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Daily-current-affairs / 30 Oct 2023

भारत की कृषि निर्यात नीतियां और किसानों तथा खाद्य सुरक्षा पर उसका प्रभाव - डेली न्यूज़ एनालिसिस

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तारीख Date : 31/10/2023

प्रासंगिकता: जीएस पेपर 3- अर्थव्यवस्था - कृषि

की-वर्ड: न्यूनतम निर्यात मूल्य (एमईपी), निहित कर, एफपीओ, कृषि बाजार, निर्यात नीति

सन्दर्भ:

  • पिछले पांच वर्षों में, भारत द्वारा वार्षिक तौर पर लगभग 4.5 मिलियन टन बासमती चावल का निर्यात करने के बावजूद हाल ही में भारत की वर्तमान कृषि निर्यात नीतियों का एक महत्वपूर्ण उदाहरण बासमती चावल के निर्यात पर लगाई गई सीमा है। इस प्रीमियम किस्म के चावल निर्यात को नियंत्रित करने के लिए, सरकार ने 1,200 डॉलर प्रति टन का न्यूनतम निर्यात मूल्य (एमईपी) निर्धारित किया है।
  • इसके अतिरिक्त वर्तमान भारत सरकार दिसंबर 2023 तक प्याज का न्यूनतम निर्यात मूल्य 800 डॉलर प्रति टन निर्धारित कर चुकी है। इससे पहले सरकार ने रूस-यूक्रेन युद्ध के दौरान वर्ष 2022 में अचानक गेहूं निर्यात पर प्रतिबंध लगा दिया था।

एमईपी के प्रभाव:

किसानों पर

  • ○ पंजाब और हरियाणा बासमती चावल तथा गेहूं के प्राथमिक उत्पादक राज्य हैं और $1,200/टन एमईपी लगाने से इन क्षेत्रों के किसानों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है। पंजाब और हरियाणा के कई कृषि बाजारों (मंडियों) में, उच्च निर्यात मूल्य के कारण व्यापारी बासमती चावल खरीदने में संकोच कर रहे हैं।
  • हालांकि, जब निर्यात अधिक था तब भी इन राज्यों में किसानों को अपनी उपज के लिए कम कीमतों और उससे होने वाले नुकसान का सामना करना पड़ा है।

प्रतिस्पर्धा को मजबूत करना

  • घरेलू प्रभाव से परे, भारत की प्रतिबंधात्मक कृषि निर्यात नीतियों ने इसके प्रतिस्पर्धी भागीदारों के लिए कई अवसर उत्पन्न किए हैं। बासमती चावल के लिए उच्च एमईपी निर्धारित करने से, भारत को बासमती चावल उत्पादन में अपने प्राथमिक प्रतिस्पर्धी पाकिस्तान जैसे देशों के हाथों अपने निर्यात बाजार खोने का खतरा है।
  • इससे यह प्रश्न निरंतर उठता रहा है कि क्या याह नीति सरकार द्वारा लिया गया एक उचित निर्णय है और क्या नीति निर्माताओं को भारत के कृषि निर्यात से होने वाले नुकसान के बारे में पूरी जानकारी है?

निर्यात प्रतिबंधों की व्यापक सीमा

  • अधिक खरीद को प्रोत्साहित करने तथा सार्वजनिक खरीद में कमी को दूर करने के बजाय, सरकार ने व्यापारियों को चावल और गेहूं के बफर स्टॉक बनाने की अनुमति दे दी है।
  • इस प्रकार भविष्य की खाद्यान्न बिक्री (घरेलू या निर्यात बाजार में) से किसानों के बजाय व्यापारियों को अधिक लाभ होने की संभावना बढ़ जाती है।

कृषि-निर्यात को दोगुना करने के लक्ष्य में बाधा

  • यद्यपि भारत सरकार ने कृषि निर्यात को दोगुना करने का लक्ष्य रखा है, लेकिन प्रचलित प्रतिबंधात्मक निर्यात नीतियों के कारण यह उद्देश्य प्रभावहीन लगता है।
  • वित्तीय वर्ष 2013-14 में, कृषि निर्यात 43.27 बिलियन डॉलर तक था, जो वर्ष 2004-05 में 8.67 बिलियन डॉलर से अधिक था।
  • वर्तमान प्रक्षेपवक्र से यह भी अनुमान लगाया जा रहा है, कि भारत वित्तीय वर्ष 2023-24 तक कृषि निर्यात में $50 बिलियन तक पहुंच सकता है।

शहरी उपभोक्ता पूर्वाग्रह और किसानों पर इसका प्रभाव

  • ○ कृषि निर्यात नीतियां किसानों की अपेक्षा घरेलू उपभोक्ताओं की अधिक पक्षधर होती हैं, यह शहरी उपभोक्ता पूर्वाग्रह की दशा को दर्शाती हैं।
  • ऐसी नीतियां अनजाने में किसानों पर "अंतर्निहित कर" लगाती हैं, जिससे उनकी आजीविका कम हो जाती है।
  • यह दृष्टिकोण प्रभावी कृषि निर्यात नीति -निर्माण के अनुकूल नहीं है, क्योंकि निर्यात बाज़ार कृषि क्षेत्र के लिए आवश्यक हैं, और उन्हें समय के साथ निरंतर विकास और रखरखाव की आवश्यकता होती है।

संतुलित दृष्टिकोण की आवश्यकता

लक्षित घरेलू आय नीतियां लागू करना:

  • वर्तमान घरेलू उपभोक्ताओं की जरूरतों को पूरा करने के लिए, लक्षित घरेलू आय नीतियों को लागू करना आवश्यक है जो समाज के कमजोर वर्गों की सहायता करता हो।
  • ऐसे देश में जहां लगभग 15% आबादी गरीबी से प्रभावित है, और 800 मिलियन से अधिक लोगों को मुफ्त गेहूं और चावल मिलता है, बासमती चावल के लिए उच्च एमईपी निर्धारित करना किसानों के हितों के लिए प्रतिकूल और हानिकारक प्रतीत होता है।

कृषि प्रतिस्पर्धात्मकता और निवेश

  • कृषि क्षेत्र में प्रतिस्पर्धात्मक उत्पादकता और नवाचारों को बढ़ावा देने के लिए कृषि अनुसंधान और विकास (आरएंडडी) विभाग, गुणवत्ता वाले बीज, समुचित सिंचाई, उर्वरक उपयोग और सटीक कृषि सहित उन्नत कृषि पद्धतियों में निवेश की आवश्यकता को रेखांकित करता है।
  • वर्तमान में, कृषि अनुसंधान एवं विकास में भारत का निवेश कृषि सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) का लगभग 0.5% है, जो इस क्षेत्र में विकास और प्रतिस्पर्धात्मकता बढ़ाने के लिए अपर्याप्त है।

लोकलुभावनवाद नीति और कृषि संतुलन

  • कृषि क्षेत्र में विकास और विस्तार को बढ़ावा देने के लिए एक संतुलित और स्थिर कृषि निर्यात नीति की आवश्यकता है। भारत वर्तमान में चावल का विश्व का सबसे बड़ा निर्यातक है, जो वित्तीय वर्ष 2022-23 में वैश्विक निर्यात का लगभग 40% हिस्सा है।
  • भारत के कृषि क्षेत्र को सदैव किसी न किसी चुनौती का सामना करना पड़ता है। इस क्रम में चुनाव के दौरान लोकलुभावन नीतिगत घोषणाओं के परिणामस्वरूप अक्सर उपभोक्ताओं और किसानों दोनों के लिए सब्सिडी में वृद्धि होती है।
  • यह नीतियां खाद्य और उर्वरक सब्सिडी, ऋण माफी और मुफ्त बिजली सहित राष्ट्रीय बजट पर दबाव डालती हैं।
  • हालांकि इन उपायों से अल्पकालिक राजनीतिक लाभ हो सकता है, लेकिन इनका कृषि क्षेत्र के स्वास्थ्य और प्रतिस्पर्धात्मकता पर दीर्घकालिक प्रभाव पड़ता है।

कृषि निवेश का अनुकूलन

  • ○ यह सुनिश्चित करने के लिए कि कृषि में निवेश से महत्वपूर्ण रिटर्न मिले और प्रतिस्पर्धात्मकता बढ़े, अनुसंधान एवं विकास सहित आधुनिक कृषि तकनीकों और बुनियादी ढांचे के लिए वित्तपोषण में पर्याप्त वृद्धि का होना आवश्यक है।
  • निवेश का वर्तमान स्तर भारत को वैश्विक कृषि महाशक्ति में बदलने के लिए अपर्याप्त है। साथ ही साथ कृषि क्षेत्र की उत्पादकता और अंतर्राष्ट्रीय प्रतिस्पर्धात्मकता को बढ़ाने के लिए संसाधनों का संतुलित और रणनीतिक आवंटन अनिवार्य है।

अग्रगामी रणनीति:

  • गुणवत्ता सुधार के लिए किसानों को सशक्त बनाना: निर्यात मानकों और संबंधित अनुपालनों का पालन करने के लिए देश में किसान सशक्तिकरण आवश्यक है। कृषि विज्ञान केंद्रों के साथ जुड़ाव निर्यात-केंद्रित प्रौद्योगिकी का प्रसार कर सकता है और निर्यात के अवसरों के बारे में किसानों के बीच जागरूकता बढ़ा सकता है।
  • उन्नत बुनियादी ढांचे: भंडारण, पैक-हाउस और कोल्ड स्टोरेज सहित अन्य कृषि मूल्य वर्धित श्रृंखलाओं को बुनियादी ढांचे का दर्जा प्रदान करना अनिवार्य है। यह उन्नयन बेहतर भंडारण और परिवहन की सुविधा प्रदान करता है, जिससे कृषि उत्पादों की गुणवत्ता सुनिश्चित होती है।
  • ब्रांडिंग निर्यात क्लस्टर: निर्यात समूहों (उदाहरण के लिए, संतरे के लिए नागपुर) में असंगठित विपणन और ब्रांडिंग समर्थन अंतरराष्ट्रीय बाजार में प्रवेश को बाधित करता है। हालांकि ब्रांडिंग क्लस्टर-विशिष्ट उत्पादों को बढ़ावा देकर वैश्विक खुदरा श्रृंखलाओं तक पहुंच को आसान बना सकती है।
  • विशिष्ट भारतीय उत्पादों को बढ़ावा देना:स्वदेशी मोटा अनाज, फल, चावल और तिलहन जैसे विशिष्ट भारतीय खाद्य उत्पादों के पारंपरिक ज्ञान और पोषण मूल्य का लाभ उठाना चाहिए। ये अनूठी सिफारिश खाद्यान निर्यात बाजारों के लिए एक बेहतर विकल्प हो सकता है।
  • वैश्विक मूल्य श्रृंखलाओं से जुड़ना: किसान उत्पादक संगठनों (एफपीओ), वैश्विक मूल्य श्रृंखलाओं और आयातकों के बीच अनुकूल संबंध स्थापित किया जाना चाहिए। यह संपर्क गुणवत्ता आवश्यकताओं की समझ को बढ़ाता है और आयातकों को मानकों के अनुपालन का आश्वासन देता है।
  • द्विपक्षीय व्यापार और क्षेत्रीय समझौतों को सुविधाजनक बनाना: द्विपक्षीय व्यापार समझौतों के माध्यम से भारत के कृषि निर्यात के लिए अनुकूल टैरिफ सुरक्षित किया जाना अनिवार्य है। अतः गुणवत्ता और परीक्षण प्रोटोकॉल जैसी गैर-टैरिफ बाधाओं को दूर कर भारतीय निर्यात के लिए निष्पक्ष व्यापार प्रमाणन प्राप्त करना आवश्यक है।

निष्कर्ष

● भारत की कृषि निर्यात नीतियां, विशेष रूप से न्यूनतम निर्यात कीमतें लागू करना; कृषि क्षेत्र, घरेलू उपभोक्ताओं और वैश्विक कृषि बाजार में भारत की प्रतिस्पर्धात्मकता पर दूरगामी प्रभाव पड़ता है। विकास को बढ़ावा देने, किसानों को सशक्त बनाने और वैश्विक कृषि क्षेत्र में एक प्रमुख भागीदार के रूप में भारत की स्थिति को बनाए रखने के लिए एक संतुलित कृषि नीति और दूरदर्शी दृष्टिकोण की आवश्यकता है। कृषि निर्यात को दोगुना करने और सभी के लिए खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने के लक्ष्य को पूरा करने के लिए, नीति निर्माताओं को अल्पकालिक लोकलुभावनवाद के बजाय व्यापक सुधार और दीर्घकालिक स्थिरता को प्राथमिकता देनी चाहिए।

यूपीएससी मुख्य परीक्षा के लिए संभावित प्रश्न-

  1. भारत की निर्यात नीतियां, जैसे बासमती चावल और प्याज जैसे उत्पादों के लिए न्यूनतम निर्यात मूल्य लागू करना, पंजाब और हरियाणा के किसानों को कैसे प्रभावित करती हैं और कृषि बाजारों पर उसके क्या परिणाम होते हैं? चर्चा करें। (10 अंक, 150 शब्द)
  2. किसानों की तुलना में घरेलू उपभोक्ताओं के पक्ष में भारत की निर्यात नीतियों का क्या प्रभाव है, और भारत की वैश्विक कृषि प्रतिस्पर्धा को बनाए रखते हुए दोनों को लाभ पहुंचाने के लिए अधिक संतुलित दृष्टिकोण कैसे प्राप्त किया जा सकता है? (15 अंक,250 शब्द)

Source: Indian Express

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