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Daily-current-affairs / 03 Sep 2025

25वाँ शंघाई सहयोग संगठन शिखर सम्मेलन: परिणाम, भारत की भूमिका और भू-राजनीतिक निहितार्थ

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परिचय:

हाल ही में शंघाई सहयोग संगठन (SCO) का 25वाँ शिखर सम्मेलन, चीन के तियानजिन में आयोजित हुआ, जिसमें चीन, रूस, भारत, पाकिस्तान, ईरान, बेलारूस, कजाखस्तान, किर्गिस्तान, ताजिकिस्तान और उज़्बेकिस्तान सहित दस सदस्य देशों के नेताओं ने भाग लिया। यह शिखर सम्मेलन एक महत्वपूर्ण समय पर हुआ जब वैश्विक राजनीति तेजी से बहुध्रुवीय हो रही है, यूरेशिया महाशक्तियों की प्रतिस्पर्धा का नया मोर्चा बन गया है और शंघाई सहयोग संगठन जैसी संस्थाओं की परीक्षा हो रही है कि वे प्रतीकात्मक घोषणाओं से आगे जाकर ठोस सहयोग देने में सक्षम हैं या नहीं।

    • भारत की भागीदारी शंघाई सहयोग संगठन शिखर सम्मलेन में महत्वपूर्ण रही। यह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सात वर्षों में पहली चीन यात्रा थी और 2020 की सीमा झड़पों के बाद चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग के साथ उनकी पहली द्विपक्षीय मुलाकात। इस संदर्भ में, यह शिखर सम्मेलन संस्थागत सहयोग जितना था उतना ही भू-राजनीति पर भी केंद्रित रहा।

2025 शिखर सम्मेलन के प्रमुख परिणाम:

1. आतंकवाद-निरोध और सुरक्षा सहयोग
तियानजिन घोषणा में तीन चुनौतियोंआतंकवाद, उग्रवाद और अलगाववादसे निपटने की प्रतिबद्धता दोहराई गई।

      • सदस्य देशों ने RATS के माध्यम से समन्वय को गहन करने, अधिक संयुक्त अभ्यास और खुफिया साझाकरण करने पर सहमति जताई।
      • साइबर सुरक्षा को प्राथमिकता दी गई, जिसमें साइबर आतंकवाद और ऑनलाइन कट्टरपंथ के खिलाफ क्षेत्रीय तंत्र बनाने पर चर्चा हुई।
      • भारत ने आतंकवाद विरोधी प्रयासों में दोहरे मानदंडोंपर चिंता जताई, परोक्ष रूप से पाकिस्तान पर सीमा-पार आतंकवाद और उसे राजनीतिक संरक्षण देने वालों की ओर इशारा किया।

2. संपर्क और व्यापार

      • चीन ने बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (BRI) से अधिक तालमेल के लिए दबाव डाला। रूस और मध्य एशियाई देशों ने इसका समर्थन किया, जबकि भारत ने संप्रभुता उल्लंघन का हवाला देते हुए इसका विरोध किया, विशेषकर चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे (CPEC) में।
      • ईरान ने चाबहार बंदरगाह और उसके अंतरराष्ट्रीय उत्तर-दक्षिण परिवहन गलियारे (INSTC) को BRI के तटस्थ विकल्प के रूप में प्रस्तुत किया।
      • डिजिटल अर्थव्यवस्था, ई-कॉमर्स और फिनटेक सहयोग पर एक कार्य समूह स्थापित किया गया, जो व्यापार में डॉलर पर निर्भरता कम करने की दिशा में एक कदम है।
      • सदस्य देशों के बीच स्थानीय मुद्रा में लेन-देन को बढ़ावा देने पर सहमति बनी।

3. ऊर्जा और जलवायु परिवर्तन
रूस, कजाखस्तान और ईरान जैसे ऊर्जा-संपन्न सदस्य देशों ने दक्षिण एशिया और उससे आगे तक स्थिर ऊर्जा प्रवाह की आवश्यकता पर जोर दिया।

      • सीमा-पार पाइपलाइनों, नवीकरणीय ऊर्जा सहयोग और क्षेत्रीय विद्युत ग्रिड्स के प्रस्ताव रखे गए।
      • भारत ने स्वच्छ ऊर्जा प्रौद्योगिकियों और ऊर्जा संक्रमण के लिए सस्ती वित्तपोषण पर बल दिया।
      • शंघाई सहयोग संगठन ने एक संयुक्त जलवायु कार्य योजना अपनाई, जिसमें मरुस्थलीकरण नियंत्रण, जल सुरक्षा और नवीकरणीय ऊर्जा विस्तार पर ध्यान केंद्रित किया गया।

4. संस्थागत विस्तार और सुधार

      • बेलारूस को नवीनतम पूर्ण सदस्य के रूप में शामिल किया गया, जिससे SCO का विस्तार दस राज्यों तक हो गया।
      • मंगोलिया, अफगानिस्तान और तुर्की जैसे प्रेक्षक राज्यों ने गहन भागीदारी में रुचि व्यक्त की।
      • संस्थागत सुधारों पर चर्चा हुई, जिसमें भारत ने पारदर्शिता, सहमति-आधारित निर्णय और किसी एक सदस्य के प्रभुत्व में कमी पर जोर दिया।

SCO Summit 2025 dhyeya ias

तियानजिन में भारत की भूमिका:

भारत ने शिखर सम्मेलन में संतुलित व्यवहार अपनाया:

1. आतंकवाद को मुख्य मुद्दा बनाना:

      • प्रधानमंत्री मोदी ने दृढ़ता से दोहराया कि आतंकवाद क्षेत्र में शांति और समृद्धि के लिए सबसे बड़ा खतरा बना हुआ है।
      • भारत ने SCO का उपयोग पाकिस्तान की दोगली नीति को उजागर करने के लिए किया, लेकिन सीधा टकराव से बचा गया।
      • शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) के नेताओं ने एक संयुक्त घोषणा जारी की, जिसमें अन्य बातों के अलावा 22 अप्रैल, 2025 को पहलगाम में हुए आतंकवादी हमले की कड़ी निंदा की गई।

2. सतर्कता के साथ संपर्क:

      • भारत ने भौतिक और डिजिटल संपर्क की अहमियत पर जोर दिया, लेकिन शर्त रखी कि यह संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता का सम्मान करे।
      • चाबहार और INSTC को आगे बढ़ाकर, भारत ने एक वैकल्पिक संपर्क दृष्टिकोण प्रस्तुत किया, जो चीन-प्रभुत्व वाले परियोजनाओं पर अत्यधिक निर्भरता को कम करता है।

3. महाशक्तियों के बीच संतुलन:

      • चीन (सीमा तनाव) और रूस (बीजिंग के करीब झुकाव) के साथ तनावपूर्ण संबंधों के बावजूद, भारत ने सक्रिय भागीदारी चुनी ताकि यूरेशियाई भू-राजनीति से अलग-थलग न पड़े।
      • यह भारत की व्यापक बहु-संरेखण (multi-alignment) रणनीति को दर्शाता है, जिसमें वह विभिन्न गुटों से जुड़ता है लेकिन किसी एक का पूरा सदस्य नहीं बनता।

4. आर्थिक और ऊर्जा हित:

      • भारत ने मध्य एशियाई ऊर्जा संसाधनों तक पहुंच की आवश्यकता पर जोर दिया।
      • दवा, आईटी और डिजिटल तकनीकों में निकट सहयोग का प्रस्ताव रखा, जिनमें भारत को तुलनात्मक लाभ है।

शंघाई सहयोग संगठन के बारे में:

      • उत्पत्ति और सदस्यता: 2001 में चीन, रूस, कजाखस्तान, किर्गिस्तान, ताजिकिस्तान और उज़्बेकिस्तान ने इसे मुख्यतः सीमा विवादों के प्रबंधन और विश्वास निर्माण के लिए स्थापित किया। भारत और पाकिस्तान 2017 में शामिल हुए, ईरान 2023 में और बेलारूस 2025 में।
      • संरचना: शंघाई सहयोग संगठन (SCO) राज्य प्रमुखों की परिषद (शिखर स्तर), सरकार प्रमुखों की परिषद (आर्थिक सहयोग) और ताशकंद स्थित क्षेत्रीय आतंकवाद-निरोधक संरचना (RATS) जैसी विशेष संस्थाओं के माध्यम से कार्य करता है।
      • परिधि: प्रारंभ में सुरक्षा केंद्रित, यह अब व्यापार, संपर्क, ऊर्जा, पर्यावरण और सांस्कृतिक संबंधों तक फैल गया है।
      • वैश्विक महत्व: शंघाई सहयोग संगठन (SCO) सदस्य देश विश्व की 40% से अधिक जनसंख्या, 30% वैश्विक जीडीपी और यूरेशिया के विस्तृत भूभाग का प्रतिनिधित्व करते हैं, जिससे यह भौगोलिक दृष्टि से विश्व का सबसे बड़ा क्षेत्रीय संगठन बनता है।

भारत के लिए शंघाई सहयोग संगठन का महत्व:

1. मध्य एशिया तक रणनीतिक पहुंच:

      • पाकिस्तान की बाधाओं के कारण भारत को मध्य एशिया से सीधी जमीनी संपर्क नहीं है। SCO भारत को इस क्षेत्र से जुड़ने का बहुपक्षीय मंच देता है।

2. चीन और पाकिस्तान का संतुलन:

      • भारत यूरेशिया खाली नहीं छोड़ सकता, जिससे चीन-पाकिस्तान प्रभाव का विस्तार हो। SCO भारत को उस मंच पर बनाए रखता है जहाँ रणनीतिक निर्णय आकार ले रहे हैं।

3. ऊर्जा सुरक्षा:

      • बढ़ती ऊर्जा ज़रूरतों के बीच, भारत SCO को रूस, कजाखस्तान और ईरान से स्थिर ऊर्जा संबंध सुरक्षित करने का माध्यम मानता है।

4. धारणा-निर्माण का मंच:

      • भारत SCO का उपयोग आतंकवाद, संप्रभुता और पारदर्शिता पर जोर देने के लिए करता है, जो इसे एक जिम्मेदार भागीदार की वैश्विक छवि के अनुरूप बनाता है।

5. बहुध्रुवीय राजनीति में पुल:

      • भारत की मौजूदगी सुनिश्चित करती है कि वह रूस और चीन दोनों से जुड़ा रहे, जबकि अन्य समूहों जैसे क्वाड और G20 के माध्यम से अमेरिका और यूरोप के साथ संतुलन बनाए रखे।

चुनौतियाँ और सीमाएँ:

      • चीन का प्रभुत्व: SCO वित्तीय और संस्थागत दोनों स्तरों पर चीन की ओर झुका हुआ है।
      • भारत-पाकिस्तान प्रतिद्वंद्विता: द्विपक्षीय विवाद अक्सर संगठन में घुस आते हैं, जिससे इसकी प्रभावशीलता सीमित हो जाती है।
      • रूस-चीन समीकरण: पश्चिमी प्रतिबंधों के चलते मॉस्को का बीजिंग के करीब झुकाव, भारत की रणनीतिक जगह को सीमित करता है।
      • बाध्यकारी प्रतिबद्धताओं का अभाव: SCO घोषणाएँ अक्सर गैर-बाध्यकारी रहती हैं, जिससे उनका व्यावहारिक प्रभाव घट जाता है।
      • विरोधाभासी हित: सदस्य देश सिद्धांत रूप में आतंकवाद विरोध पर सहमत हैं, लेकिन परिभाषाएँ भिन्न हैं। उदाहरण के लिए, जिन समूहों को भारत आतंकवादी मानता है, पाकिस्तान या चीन उन्हें अलग नजरिए से देखते हैं।

व्यापक भू-राजनीतिक निहितार्थ:

    1. यूरेशिया के लिए: SCO अब यूरेशियाई भू-राजनीति को आकार देने का मुख्य मंच बनता जा रहा है, जो NATO और EU जैसे पश्चिमी संस्थानों को चुनौती देता है।
    2. वैश्विक शासन के लिए: यह गैर-पश्चिमी समूहों के प्रभाव जताने की प्रवृत्ति को दर्शाता है, जिसमें चीन और रूस SCO को पश्चिमी प्रभुत्व के प्रतिवाद के रूप में प्रस्तुत करते हैं।
    3. भारत के लिए: SCO (चीन-रूस नेतृत्व) और क्वाड/IBSA (लोकतांत्रिक, इंडो-पैसिफिक केंद्रित) के बीच संतुलन भारत की कूटनीतिक जटिलता को दर्शाता है।
    4. वैश्विक अर्थव्यवस्था के लिए: स्थानीय मुद्रा लेन-देन और ऊर्जा गलियारों जैसी पहलों के साथ, SCO यूरेशियाई व्यापार में धीरे-धीरे डॉलर-विहीनता (de-dollarization) की ओर बढ़ रहा है।

निष्कर्ष:

तियानजिन SCO शिखर सम्मेलन 2025 ने संगठन की प्रासंगिकता को एक यूरेशियाई मंच के रूप में पुन: पुष्टि की, लेकिन साथ ही इसकी अंतर्विरोधों को भी उजागर किया। भारत के लिए, इसमें भागीदारी चीन की दृष्टि का समर्थन करना नहीं, बल्कि अपने हितों की रक्षा करना, यूरेशिया में अपनी रणनीतिक मौजूदगी बनाए रखना और आतंकवाद तथा एकतरफा संपर्क परियोजनाओं का विरोध करना है। भारत के सामने चुनौती है संतुलन बनाए रखना, संलग्न रहते हुए दबे न रहना और साथ ही इंडो-पैसिफिक और अन्य क्षेत्रों में अपनी साझेदारियों को गहरा करना। संक्षेप में, भारत के लिए SCO कोई विकल्प नहीं बल्कि आवश्यकता हैएक ऐसी आवश्यकता जो उसे उभरती बहुध्रुवीय विश्व व्यवस्था में अपनी जगह सुनिश्चित करती है।

यूपीएससी/पीएससी मुख्य प्रश्न: आतंकवाद का मुकाबला करने और क्षेत्रीय सुरक्षा सुनिश्चित करने में एससीओ की भूमिका पर चर्चा करें। इस संदर्भ में, आतंकवाद-रोधी एजेंडे को आकार देने के भारत के प्रयासों का मूल्यांकन कीजिए।