Brain-booster
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19 Oct 2020
यूपीएससी और राज्य पीसीएस परीक्षा के लिए ब्रेन बूस्टर (विषय: मीडिया के लिए आचार संहिता की आवश्यकता (Code of Conduct for News Channels)
यूपीएससी और राज्य पीसीएस परीक्षा के लिए
करेंट अफेयर्स
ब्रेन बूस्टर (Current
Affairs Brain Booster
for UPSC & State PCS Examination)
विषय (Topic): मीडिया
के लिए आचार संहिता की आवश्यकता (Code of Conduct for News Channels)

चर्चा का कारण
- हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने सुदर्शन टीवी के विवादित कार्यक्रम UPSC जिहाद टैगलाइन के
साथ ‘बिंदास बोल’ पर रोक से जुड़ी सुनवाई के दौरान टीवी चैनलों की कार्यशैली पर तीखी
टिप्पणियां की। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि वह सरकार से मीडिया पर कोई गाइडलाइंस थोपने
के लिए नहीं कह रहा है, क्योंकि यह अनुच्छेद 19(1)(ए) के लिए अभिशाप जैसा होगा।
किन्तु क्या मीडिया को खुद ही अपने मानक तय नहीं करने चाहिए।
- केंद्र सरकार ने सुदर्शन टीवी मामले में सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दाखिल किया है- सरकार
ने कहा कि वेब आधारित डिजिटल मीडिया (Digital Media) को पहले नियंत्रित करना होगा,
तभी टीवी चैनलों पर नियंत्रण किया जा सकता है। केंद्र ने कहा कि कोर्ट चाहे तो डिजिटल
मीडिया को लेकर कानून बनाए या कानून बनाने के लिए इसे सरकार पर छोड़ दे।
सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी
- किसी एक समुदाय को बदनाम करने के
प्रयास को अदालत द्वारा बहुत ही अपमान
के साथ देखा जाना चाहिए, क्योंकि अदालत
सांविधानिक अधिकारों की संरक्षक होती है।
कोर्ट ने कहा, ऐसे कार्यक्रम जो एक विशेष
समुदाय को गलत ढंग से दिखाने की प्रवृत्ति
रखते हैं, वे सिर्फ अभिव्यक्ति के अधिकार
और स्वतंत्र प्रेस के अधिकार का दावा करके
अदालती परीक्षण से बच नहीं सकते।
आचारसंहिता की आवश्यकता क्यों
- भारत में मीडिया ज्यादातर स्व-विनियमित है। मीडिया के विनियमन के लिए मौजूदा निकाय जैसे
कि प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया जो एक सांविधिक निकाय है और न्यूज ब्रॉडकास्टिंग स्टैंडर्ड्स
अथॉरिटी, एक स्व-नियामक संगठन है, मानकों एवं दिशानिर्देशों को जारी करता है। विश्लेषकों
का मानना है कि टेलीविजन और रेडियो को प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया या एक समान नियामक
संस्था के दायरे में लाने की आवश्यकता है।
- संचार क्रांति ने अखबारों, चैनलों तथा उसके पाठकों और दर्शकों के बीच का संवाद तंत्र मजबूत
किया है। संचार और सूचना क्रांति ने अखबारों और चैनलों का विस्तार बहुत सस्ता और आसान
कर दिया है। यही कारण है कि समाचार चैनल चौबीस घंटे हर तरह की खबरें दे रहे हैं।
अखबार भी देर रात तक की घटनाओं को विस्तार से कवरेज दे रहे हैं। अखबारों और चैनलों
की यह हैरतअंगेज तेजी एक तरफ है। जमीनी हकीकत यह है कि मीडिया गंभीर संक्रमण और
अग्निपरीक्षा के दौर से गुजर रहा है। मीडिया संगठनों में विश्वसनीयता और संचित गुडविल की
कीमत पर मुनाफा कमाने की होड़ लगी है। पैसा कमाने के लिए कई तरीके अख्तियार किए
जा रहे हैं।
- अधिकांश इलेक्ट्रोनिक मीडिया साम्प्रदायिकता की आग उगल रहा है। सोशल मीडिया द्वारा आग
में घी डाला जा रहा है। ऐसे विषैले माहौल में भी अनेक लोग इस संकट को न सिर्फ सही
परिप्रेक्ष्य में देख रहे हैं अपितु मीडिया को चेता भी रहें हैं।
क्या टेलीविजन चैनलों द्वारा स्व नियमन की एक प्रक्रिया है?
- आज समाचार चैनल स्व-नियमन के तंत्र द्वारा संचालित होते हैं। ऐसा ही एक तंत्र न्यूज ब्रॉडकास्टर्स एसोसिएशन द्वारा बनाया गया है। एनबीए ने
टेलीविजन सामग्री को विनियमित करने के लिए एक आचार संहिता तैयार की है।
- एनबीए के समाचार प्रसारण मानक प्राधिकरण (एनबीएसए) को मीडिया द्वारा आचारसंहिता के उल्लंघन के लिए 1 लाख रुपये के जुर्माना लगाया
जा सकता है। इसी तरह का एक अन्य संगठन ब्रॉडकास्ट एडिटर्स एसोसिएशन है। एडवरटाइजिंग स्टैंडर्ड्स काउंसिल ऑफ इंडिया ने विज्ञापनों की
सामग्री पर दिशानिर्देश भी तैयार किए हैं। ये समूह कोई वैधानिक शक्तियाँ नहीं रखते हैं।
आगे की राह
- अनुच्छेद 51 [ए] [एच] के अनुसार हर
भारतीय नागरिक का मौलिक कर्तव्य है।
कि वह मानववाद, वैज्ञानिक दृष्टिकोण
तथा ज्ञानार्जन एवं सुधार की भावना का
विकास करे। नागरिक समाज की इस
अपील हर मीडियाकर्मी को गौर करना
चाहिए।