Brain-booster
/
14 Mar 2021
यूपीएससी और राज्य पीसीएस परीक्षा के लिए ब्रेन बूस्टर (विषय: अशमनीय अपराध (Non-compoundable Crime)
यूपीएससी और राज्य पीसीएस परीक्षा के लिए
करेंट अफेयर्स
ब्रेन बूस्टर (Current
Affairs Brain Booster
for UPSC & State PCS Examination)
विषय (Topic): अशमनीय
अपराध (Non-compoundable Crime)

चर्चा का कारण
- हाल ही में भारत के मुख्य न्यायाधीश शरद अरविंद बोबडे की अगुवाई वाली
सुप्रीम कोर्ट की एक बेंच ने मोहित सुभाष चव्हाण बनाम महाराष्ट्र सरकार मामले
की सुनवाई के दौरान बलात्कार के आरोपी से पूछा कि क्या वह पीडि़ता से विवाह
करेगा या नहीं? जबकि बलात्कार एक अशमनीय (non-compoundable) अपराध है।
- इस संदर्भ में सीजेआई शरद अरविंद बोबडे को एक पत्र लिखते हुए चार हजार से
अधिक महिला अधिकार कार्यकर्ताओं, प्रगतिशील समूह और नागरिकों ने सुप्रीम कोर्ट
में उनके द्वारा ‘नाबालिग से बलात्कार के आरोपी युवक से पीडि़ता से विवाह करने
की बात पूछने और मैरिटल रेप को सही ठहराने को लेकर उनसे पद छोड़ने की मांग की
है।
सुप्रीम कोर्ट में पूछे गए शब्दों के निहितार्थ
- उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीशों द्वारा कहे गए शब्दों का समाज में बहुत
प्रभाव होता है। इनके पास नागरिकों के संवैधानिक अधिकारों का विस्तार करने और
कबीलाई, जातिगत, तथा पितृसत्ता के असमान मूल्य प्रणालियों से उनकी रक्षा करने
की शक्ति है।
- ऐसे में सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी, बलात्कार के आघात के बदले में विवाह के
प्रस्ताव प्रस्तुत करना पीडि़ता के साथ-साथ सम्पूर्ण समाज के लिए अत्यधिक
आक्रामक और प्रतिगामी विचार है।
सर्वोच्च न्यायालय द्वारा पूर्व में दिये गए फैसले
- हाल के वर्षों में कुछ उच्च न्यायालयों द्वारा दुष्कर्म के मामले में यह
तर्क दिया कि चूंकि पीडि़ता व अपराधी में समझौता हो गया है, इसलिए सजा को कम
किया जाना जायज है। मप्र उच्च न्यायालय ने गुना सत्र न्यायालय द्वारा धारा 376
(दुष्कर्म) के अंतर्गत दी गई सजा को धारा 354 (छेड़छाड़) के तहत बदल दिया था।
ऐसे में सर्वोच्च न्यायालय ने जुलाई 2015 में मध्य प्रदेश बनाम मदनलाल मामले
में दिया गया निर्णय मील का पत्थर है। सुप्रीम कोर्ट ने दुष्कर्म के मामलों में
साफ कहा है कि इसमें किसी भी तरह से अपराधी को दी गई सजा से समझौता नहीं हो सकता।
- सर्वोच्च न्यायालय ने सख्त टिप्पणी करते हुए कहा था कि कई बार अदालतें
अपीलीय स्तर पर हस्तक्षेप कर इस तरह के पूर्वाग्रहों से ग्रस्त होकर निर्णय लिख
देते हैं कि आपराधिक न्याय व्यवस्था की आत्मा ही मर जाती है।
- गौरतलब है कि इससे पहले हरियाणा बनाम शिंभु मामले (2014) में भी अपने फैसले
में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि न्याय के हित में तथा पीडि़त को अनावश्यक दबाव
व उत्पीड़न से बचाने के लिए आवश्यक है कि पार्टियों के बीच समझौते पर कतई ध्यान
नहीं दिया जाए। हरियाणा बनाम शिंभु मामले में निर्णय देते हुए न्यायाधीश ने
स्पष्ट किया कि दुष्कर्म या दुष्कर्म के प्रयास के मामले में किसी भी स्थिति
में समझौते की अवधारणा सोची ही नहीं जा सकती। बलात्कार ऐसा मामला नहीं है, जिसे
सुलह और समझौता करने के लिए दोनों पक्षों पर छोड़ा दिया जाना चाहिए।
- हरियाणा बनाम शिंभु मामले (2014) में शीर्ष अदालत ने कहा कि सबसे अधिक
महत्व महिला का सम्मान है, जिसके विरुद्ध कोई समझौता अथवा निपटान नहीं हो सकता।
कई बार अपराधी द्वारा पीडि़त से विवाह कर सांत्वना देने का प्रयास होता है, जबकि
वास्तविकता यह है कि पीडि़त पर ऐसा कर अप्रत्यक्ष रूप से दबाव बनाया जाता है।
अदालतों में ऐसे अपराधों में इस प्रकार के कारणों के चलते दोषी के प्रति नरमी
कतई नहीं दिखाई जा सकती। न्यायालय ने कहा कि किसी भी प्रकार का उदार रवैया अथवा
मध्यस्थता की सोच को कतई वैधानिक अनुमति नहीं है।
शमनीय एवं अशमनीय अपराध
- भारतीय दडं संहिता की धारा 320 का संबंध उन अपराधों से है जिनमे कोर्ट की
अनुमति के बिना समझौता हो सकता है तथा कछु मामले ऐसे होते हैं जिनमें समझौता
कोर्ट की अनुमति से होता है।
- जिन अपराधों में दो पक्षों के बीच समझौता हो जाता है उन अपराधों को शमनीय
अपराध (compoundable offences) कहा जाता है आरै जिन अपराधों में दोनों पक्षों
के बीच में समझौता नहीं होता है उन अपराधों को अशमनीय अपराध (Non Compoundable
Offences) कहा जाता है। जिन अपराधों में न्यायालय की अनुमति के बिना भी समझौता
हो सकता है उनको CRPC के सेक्शन 320(1) में दिया गया है। हालांकि इस समझौते की
जानकारी पुलिस को देनी पड़ती है। जिन मामलों में न्यायालय की सहमति से समझौता
हो सकता है उनको CRPC के सेक्शन 320(2) में दिया गया है।