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Blog / 18 Mar 2019

(राष्ट्रीय मुद्दे) विश्वविद्यालयों में रोस्टर (Roster System in Universities)

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(राष्ट्रीय मुद्दे) विश्वविद्यालयों में रोस्टर (Roster System in Universities)


एंकर (Anchor): कुर्बान अली (पूर्व एडिटर, राज्य सभा टीवी)

अतिथि (Guest): प्रोफ़ेसर विवेक कुमार (जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय - JNU), प्रोफ़ेसर शशि शेखर सिंह (दिल्ली विश्वविद्यालय)

चर्चा में क्यों?

प्रधानमंत्री की अध्यक्षता वाली केंद्रीय मंत्रिमंडल ने विश्वविद्यालय/कॉलेज को एक विभाग/विषय के बजाय एक इकाई मानते हुए केंद्रीय शैक्षिक संस्थान (शिक्षक के कैडर में आरक्षण) अध्यादेश, 2019 को अपनी मंजूरी दे दी है। इस अध्यादेश पर राष्ट्रपति की मुहर भी लग गयी है।

हालांकि कुछ लोगों द्वारा इस अध्यादेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती भी दी गई है। दरअसल, काफी दिनों से 13 पॉइंट रोस्टर को लेकर विवाद चल रहा था, जिसे देखते हुए केंद्र सरकार ने अध्यादेश लाकर अब उसके बजाय 200 पॉइंट रोस्टर को अनुमति दे दी।

सरकार के मुताबिक़ इसके लाभ और प्रभाव क्या होंगे?

इस निर्णय से पात्र प्रतिभाशाली आवेदकों को आकर्षित करके उच्च शैक्षिक संस्थानों में शिक्षा के मानकों में सुधार होने की उम्मीद है।

  • इस निर्णय से SC/ST और सामाजिक तथा आर्थिक रूप से पिछड़े वर्गों के लिए निर्धारित आरक्षण मानदंडों के साथ 5000 से अधिक खाली पदों को भरने की अनुमति मिलेगी। इसके अलावा, संविधान के अनुच्छेद 14, 16 और 19 के संवैधानिक प्रावधानों को और मज़बूती मिलेगी।

रोस्टर क्या है?

रोस्टर एक तरीका होता है जिससे यह निर्धारित किया जाता है कि किसी विभाग में निकलने वाली वेकंसी किस वर्ग को मिलेगी। मसलन आरक्षित वर्ग या फिर अनारक्षित वर्ग। यानी किसी विभाग में निकलने वाला कौनसा पद आरक्षित वर्ग को दिया जाएगा और कौन सा सामान्य वर्ग को।

13 पॉइंट रोस्टर क्या है?

13 पॉइंट रोस्टर एक ऐसा सिस्टम है जिसमें 13 वैकेंसीज को क्रमानुसार व्यवस्थित किया जाता है। इसमें पूरे विश्वविद्यालय को एकल यूनिट न मानकर सिंगल विभाग को इकाई माना जाता है। यानी इस व्यस्था के तहत शिक्षकों के कुल वैकेंसीज की गणना विश्वविद्यालय या कॉलेज के अनुसार नहीं बल्कि विभाग या विषय के हिसाब से की जाती है।

इसे मिसाल के तौर पर इस तरह समझा जा सकता है कि अगर किसी विभाग में 4 वेकंसी हैं तो उसमें से पहली तीन वेकंसी सामान्य वर्ग के लिए होंगी जबकि चौथी वेकंसी ओबीसी या आरक्षित वर्ग के लिए होगी। इसके बाद जब अगली वेकंसी आएंगी तो उसे 5वें नंबर से गिना जाएगा। यानी पांचवी और छठी वेकंसी सामान्य वर्ग के लिए तो सातवां अनुसूचित जाति के लिए। इसी तरह फिर आठवीं, नौवीं और दसवीं वेकंसी सामान्य वर्ग के लिए तो 12वीं वेकंसी ओबीसी के लिए। यह पूरा क्रम 13 तक ही चलेगा और 13 के बाद फिर से 1 नंबर से शुरू हो जाएगा।

200 पॉइंट रोस्टर क्या है?

केंद्र सरकार के निर्देश पर UGC ने जेएनयू के प्रोफेसर रावसाहब काले की अध्यक्षता में एक कमेटी गठित की। कमिटी का काम रिज़र्वेशन लागू करने के लिए एक तरीका बनाना था। प्रोफेसर काले कमेटी नें रिज़र्वेशन लागू करने के लिए 200 पॉइंट का रोस्टर बनाया। ये रोस्टर 13 पॉइंट रोस्टर जैसा ही था लेकिन इसमें 13 वैकेंसीज के बजाय 200 वैकेंसीज को क्रमबद्ध तरीके से व्यवस्थित किया जाता है। 200 वैकेंसीज का एक क्रम पूरा होने के बाद यह फिर से 1,2,3,4 संख्या से शुरू हो जाएगी।

साथ ही कमेटी ने ये भी सिफ़ारिश की कि इस रोस्टर को विभाग स्तर पर लागू ना करके विश्वविद्यालय स्तर पर लागू किया जाय, क्योंकि विश्वविद्यालय/कॉलेज एम्प्लोयर होता है, ना कि उसका विभाग।

विवाद कहाँ से शुरू हुआ?

दरअसल इलाहाबाद हाईकोर्ट ने साल 2017 में एक फैसला दिया कि यूनिवर्सिटी में टीचर्स रिक्रूटमेंट का आधार यूनिवर्सिटी या कॉलेज नहीं बल्कि विभाग होंगे। इसके बाद UGC ने तमाम सेंट्रल यूनिवर्सिटी को आदेश जारी कर दिया था कि वे इलाहाबाद हाईकोर्ट का फैसला तत्काल लागू करें। यानी यहाँ से 13 पॉइंट रोस्टर व्यवस्था लागू हो गयी।

बाद में, केंद्र सरकार ने इस फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दाखिल की, लेकिन सर्वोच्च न्यायालय ने हाई कोर्ट के ही फैसले को सही माना। सर्वोच्च अदालत ने इसमें बदलाव से इनकार करते हुए कहा कि हाई कोर्ट का फैसला ही प्रभावी रहेगा।

इसका कई संगठन विरोध कर रहे थे। विरोध की वजह ये थी कि विभागवार नियुक्ति के कारण आरक्षित वर्ग के लिए सीटों की संख्या पर असर पड़ता था। यूनिवर्सिटी में नौकरी के लिए बहुत कम सीटें निकलती हैं और ऐसे में विभागवार रोस्टर होने पर आरक्षित वर्ग के लिए सीटें कम हो जातीं थीं।

क्या है आरक्षण की वर्तमान व्यवस्था?

मौजूदा कानून के तहत कुल 49.5 फीसद आरक्षण की व्यवस्था है। इसमें अनुसूचित जाति को 15 फीसद, अनुसूचित जनजाति को 7.5 फीसद और अन्य पिछड़ा वर्ग को 27 फीसद आरक्षण दिया जाता है।

क्या रहा है आरक्षण का इतिहास?

आरक्षण की शुरुआत आजादी के पहले प्रसिडेंसी और रियासतों में पिछड़े वर्गों के लिए शुरू हुई थी। 1901 में महाराष्ट्र में कोल्हापुर के महाराजा छत्रपति साहूजी महाराज ने गरीबी दूर करने के लिए पिछड़े वर्ग के लिए आरक्षण की शुरुआत की थी। इसके बाद अंग्रेजों ने 1908 में आरक्षण शुरू किया था। मद्रास प्रेसिडेंसी ने 1921 में 44 फीसदी गैर-ब्राह्मण, 16-16 फीसदी ब्राह्मण, मुसलमान और भारतीय-एंग्लो/ईसाई को और अनुसूचित जातियों को लोगों को 8 फीसदी आरक्षण दिया गया था।

इसके बाद 1935 में भारत सरकार अधिनियम के तहत लोगों को सरकारी आरक्षण सुनिश्चित किया था। बाबा साहब अम्बेडकर ने 1942 में सरकारी सेवाओं और शिक्षा के क्षेत्र में अनुसूचित जातियों के लिए आरक्षण की मांग उठाई थी।