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Blog / 13 Jan 2020

(India This Week) Weekly Current Affairs for UPSC, IAS, Civil Service, State PCS, SSC, IBPS, SBI, RRB & All Competitive Exams (01st - 10th January 2020)

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(India This Week) Weekly Current Affairs for UPSC, IAS, Civil Service, State PCS, SSC, IBPS, SBI, RRB & All Competitive Exams (01st - 10th January 2020)



इण्डिया दिस वीक कार्यक्रम का मक़सद आपको हफ्ते भर की उन अहम ख़बरों से रूबरू करना हैं जो आपकी परीक्षा के लिहाज़ से बेहद ही ज़रूरी है। तो आइये इस सप्ताह की कुछ महत्वपूर्ण ख़बरों के साथ शुरू करते हैं इस हफ़्ते का इण्डिया दिस वीक कार्यक्रम...

न्यूज़ हाईलाइट (News Highlight):

  • निर्भया कांड के चारों दोषियों की डेथ वारंट पर दिल्ली की पटियाला हाउस कोर्ट ने लगाई मुहर। दुष्कर्म के एक आरोपी ने दाखिल की सुप्रीम कोर्ट में क्यूरेटिव पिटिशन
  • पाकिस्तान में मौजूद गुरुद्वारा ननकाना साहिब पर भीड़ ने किया पथराव। ननकाना साहिब पर हुए हमला को बताया गया 1955 के पंत-मिर्ज़ा समझौते का उल्लंघन
  • जारी हुई देश में वनों से संबधित इण्डिया स्टेट ऑफ़ फॉरेस्ट रिपोर्ट 2019 । इस रिपोर्ट के मुताबिक़ देश के 80 दशमलव 73 मिलियन हेक्‍टेयर पर मौजूद है वन
  • ऑस्ट्रेलिया के जंगलों में लगी आग से हज़ारों बेज़ुबान जानवरों की मौत। ऑस्ट्रेलिया के कई इलाकों में आपात स्थिति की घोषणा
  • मंद पड़ती जा रही है गाँवों के विकास के लिए शुरू हुई सांसद आदर्श ग्राम योजना। इस योजना के चौथे चरण में अभी क़रीब दो-तिहाई सांसदों को करना है ग्राम पंचायतों का चयन
  • नीति आयोग ने जारी किया SDG इंडिया इंडेक्स 2019। साल 2019 के इस सूचकांक में केरल राज्य का रहा सबसे बढ़िया प्रदर्शन
  • रिजर्व बैंक ने जारी की 20वीं वित्तीय स्थिरता रिपोर्ट। इसी दौरान भारत में बैंकिंग की प्रवृत्ति और प्रगति 2018-19 से सम्बंधित एक रिपोर्ट को भी RBI ने किया जारी
  • NCRB ने जारी किए देश में किसानों की आत्महत्या से सम्बंधित आंकड़े। साल 2017 में क़रीब 10 हज़ार से अधिक किसानों ने की है आत्महत्या
  • इसरो ने किए चंद्रयान-3 और गगनयान को लेकर कुछ बड़े ऐलान। गगनयान मिशन के लिए हुआ 4 भारतीय वायुसैनिकों का चयन

खबरें विस्तार से:

1.

7 जनवरी को दिल्ली की पटियाला हाउस कोर्ट ने निर्भया कांड के चारों दोषियों की डेथ वारंट पर मुहर लगा दी है। कोर्ट की मंजूरी मिलने के बाद अब 22 जनवरी को इन चारों दोषियों को फाँसी की सज़ा दी जाएगी। फाँसी की तारीख़ मुकर्रर होने के बाद जहां जेल प्रशासन अब दोषियों को फांसी देने की तैयारी में है, तो वहीं इन दोषियों में शामिल रहे एक आरोपी ने सुप्रीम कोर्ट में एक सुधारात्मक याचिका यानी क्यूरेटिव पिटिशन दायर की है। आपको बता दें कि 16 दिसम्बर 2012 की रात 23 साल की निर्भया के साथ हुए सामूहिक दुष्कर्म में ये चारो आरोपी शामिल रहे हैं। इस मामले में फास्ट ट्रैक कोर्ट ने 10 सितंबर 2013 को चारों बालिग आरोपियों को दोषी करार दिया और 13 सितंबर 2013 को इन आरोपियों को मौत की सज़ा सुनाए जाने का आदेश दिया। हालाँकि आरोपीयों ने फास्ट ट्रैक कोर्ट के फैसले को दिल्ली हाइकोर्ट में चुनौती दी और अदालत से गुहार लगाई है कि उनकी सजा में थोड़ी नरमी बरती जाए।

16 दिसम्बर 2012... रात का वक़्त था। दिल्ली में काफी सर्द थी। 23 साल की निर्भया अपने एक दोस्त के साथ रात के क़रीब आठ बजे अपने घर लौट रहे थी। घर तक आने ऑटो न मिलने के कारण वो अपने दोस्त के साथ एक एक बस में सवार हुई। बस में पहले से मौजूद मुकेश, विनय और अक्षय और पवन नाम के व्यक्तियों ने पहले तो निर्भया के साथ दरिंदगी की और फिर बाद में उसकी हत्या कर दी। 16 दिसम्बर 2012 की उस रात हुई घटना के ने पूरे देश को हिला कर रख दिया। इस मामले में कुल 6 आरोपी थे। इसमें एक आरोपी नाबालिग था, जिसे सुधार गृह में तीन साल की सजा काटने के बाद 2015 में रिहा कर दिया गया था। इसके अलावा एक अन्य दोषी रामसिंह ने 2015 में कथित रूप में आत्म हत्या कर ली थी। बाद में 13 सितंबर 2013 को इन चार आरोपियों मुकेश, विनय शर्मा, अक्षय सिंह और पवन गुप्ता फांसी की सज़ा सुनाई गई। अब इन आरोपियों में शामिल विनय ने क्यूरेटिव पिटिशन दायर की है।

जब किसी भी जघन्य अपराध के लिए किसी ट्रायल कोर्ट द्वारा सजा सुनाई जाती है तो इसकी पुष्टि हाईकोर्ट द्वारा होनी ज़रूरी होती है। इसके बाद सज़ायाफ्ता के पास सुप्रीम कोर्ट जाने का क़ानूनी अधिकार होता है। अगर वहां से भी बात नहीं बनी तो अनुच्छेद 137 के तहत सप्रीम कोर्ट में एक रिव्यू पिटिशन यानी पुनर्विचार याचिका दायर करने का विकल्प होता है। अगर रिव्यू पिटिशन भी ख़ारिज़ हो जाता है तो दोषियों के पास सुप्रीम कोर्ट में ही उपचारात्मक याचिका यानी क्यूरेटिव पिटिशन लगाना और फिर राष्ट्रपति के पास दया याचिका दायर करने का आख़िरी विकल्प होता है। इन सभी जगह से निराशा हाथ लगने के बाद कोर्ट द्वारा सज़ायाफ्ता के लिए डेथ वारंट जारी कर दिया जाता है उसके बाद अपराधी को फाँसी के फंदे पर चढ़ा दिया जाता है।

क्यूरेटिव पिटिशन पुनर्विचार याचिका से थोड़ा अलग होता है। पुनर्विचार याचिका यानी रिव्यू पिटिशन में पक्षकार अदालत से ये आग्रह करते हैं कि वो अपने फैसले पर एक बार फिर से विचार करे, जबकि क्यूरेटिव पिटिशन में पूरे केस में ऐसे बिंदुओं को उठाया जाता है जिन पर पक्षकारों को लगता है कि इन पर ध्यान दिए जाने की ज़रुरत है। यानी याचिकाकर्ता को ये बताना ज़रूरी होता है कि वो किस आधार पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले को चुनौती दे रहा है।

क्यूरेटिव पिटिशन को दायर करने से पहले इसे किसी वरिष्ठ अधिवक्ता द्वारा सर्टिफाइड होना ज़रूरी होता है। इसके बाद इस याचिका को सर्वोच्च न्यायालय के तीन सीनियर मोस्ट जजों और जिन जजों ने फैसला सुनाया था उनके पास भेजा जाता है। अगर इस बेंच के ज़्यादातर जज इस बात से सहमत होते हैं कि मामले की दोबारा सुनवाई की जानी चाहिए तो याचिका को स्वीकार कर लिया जाता है। इसके बाद इस पिटीशन को दोबारा उन्हीं जजों के पास भेज दिया जाता है, जिन्होंने इस मामले की सुनवाई की होती है।

अदालत ने यह भी कहा था कि अगर कोई व्यक्ति गलत नियत से क्यूरेटिव पिटिशन का दुरुपयोग करता है तो उसे इसका ख़ामियाज़ा भुगतना पड़ सकता है। निर्भया मामले में अगर सुप्रीम कोर्ट इस क्यूरेटिव पिटिशन को स्वीकार कर लेता है और अगले 12 दिनों के भीतर इस पर कोई फैसला नहीं सुनाता तो इन दोषियों के फांसी की तारीख टल सकती है। इसके अलावा इन दोषियों में से एक ने राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद के पास भी दया याचिका दायर की हुई है। अगर राष्ट्रपति इन दोषियों की दया याचिका पर अगले 12 दिनों में कोई निर्णय नहीं लेते तो भी फाँसी की तारीख टल सकती है।

2.

बीते दिनों पाकिस्तान में मौजूद गुरुद्वारा ननकाना साहिब पर भीड़ द्वारा पथराव करने का मामला सामने आया है। पवित्र गुरुद्वारे पर हुए इस हमले को लेकर भारत ने एक आधिकारिक बयान जारी करके इसकी कड़ी निंदा की है। साथ ही पाकिस्तान सरकार से सिख समुदाय की सुरक्षा सुनिश्चित करने की भी अपील भारत सरकार की ओर से की गई है। आपको बता दें कि तकरीबन 80 हजार की आबादी वाला ननकाना साहिब, पाकिस्तान के पंजाब प्रान्त में मौजूद है। इसका मौजूदा नाम सिखों के पहले गुरू श्री गुरू नानक देव जी के नाम पर रखा गया है।

ननकाना साहिब, पाकिस्तान के पंजाब प्रान्त में मौजूद है। इस शहर का पुराना नाम तलवंडी था। ये लाहौर से करीब 80 किमी की दूरी पर दक्षिण-पश्चिम में स्थित है। साल 1469 में, सिख धर्म के संस्थापक श्री गुरु नानक देव जी का जन्म इसी तलवंडी में हुआ था। चूंकि ये जगह गुरू नानक देव का जन्म स्थान है, इसलिए ये सिखों का बेहद ही पवित्र और ऐतिहासिक तीर्थस्थल माना जाता है। तलवंडी शहर की स्थापना एक अमीर जमींदार राय भोई द्वारा किया गया था। बाद में, राय भोई के पोते, राय बुलर भट्टी ने, गुरु नानक देव के सम्मान में इसका नाम बदल कर ननकाना साहिब रख दिया।

साल 1818-19 के दौरान, मुल्तान की लड़ाई के बाद लौटते वक्त महाराजा रणजीत सिंह ने ननकाना साहिब का दौरा किया था और उन्होंने ही तीर्थ स्वरूप इस जन्म स्थान पर एक गुरुद्वारे का निर्माण करवाया था। ननकाना साहिब में गुरु नानक देव के ‘जनम अस्थान’ के अलावा तकरीबन 11 और गुरुद्वारे स्थित हैं। ये सभी गुरुद्वारे श्री नानक देव जी के जीवन के अलग-अलग चरणों से जुड़े हुए हैं। इसके अलावा यहां पर सिखों के पांचवें गुरु - गुरु अर्जन देव और 6वें गुरु - गुरु हरगोबिंद जी को भी समर्पित गुरुद्वारे बनाए गए हैं।

अंग्रेजी शासनकाल के दौरान, करीब 1920 के दशक में, ननकाना साहिब सिख सुधार आंदोलनों का एक प्रमुख केंद्र बनकर उभरा था। इसी आंदोलन का नतीजा रहा कि 1925 में सिख गुरुद्वारा अधिनियम पारित किया गया और गुरुद्वारों पर महंतों का क़ब्ज़ा ख़त्म हो गया। साल 2014 में, इस जगह पर मारे गए लोगों की याद में एक स्मारक भी बनवाया गया।

कुछ लोगों का ये भी आरोप है कि ननकाना साहिब हमला 1955 के पंत-मिर्जा समझौते का उल्लंघन है। दरअसल पंत-मिर्जा समझौते के तहत भारत और पाकिस्तान ने एक दूसरे से वादा किया था कि वे इस तरह के धार्मिक और पूजा स्थलों की पवित्रता को बनाए रखेंगे और इनकी सुरक्षा सुनिश्चित करेंगे। आज़ादी के पहले तक, ननकाना साहिब में हिंदू, मुस्लिम और सिखों की तादाद लगभग बराबर थी, लेकिन बंटवारे के बाद यह शहर मुस्लिम बाहुल्य हो गया। जिसके बाद से पाकिस्तान में अल्पसंख्यकों के खिलाफ होने वाले अत्याचार की ख़बरें आए दिन सुनने को मिलती रहती हैं।

3.

बीते दिनों केंद्रीय पर्यावरण वन और जलवायु परिवर्तन मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने इण्डिया स्टेट ऑफ़ फॉरेस्ट रिपोर्ट 2019 जारी की। इस रिपोर्ट में बताया गया है कि देश के क़रीब 80.73 मिलियन हेक्‍टेयर पर वन मौजूद है और ये देश के कुल भौगोलिक क्षेत्र का 24.56 प्रतिशत है। आपको बता दें कि साल 2019 के आखिर में जारी ये रिपोर्ट ISFR श्रृंखला की 16 वीं रिपोर्ट है। इसे भारतीय वन सर्वेक्षण विभाग द्वारा जारी किया गया है। इस रिपोर्ट को जारी करते हुए पर्यावरण मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने कहा कि भारत दुनिया के उन चंद देशों में शुमार है जहां वन क्षेत्र का दायरा लगातार बढ़ रहा है। साथ ही ये रिपोर्ट हमे ये भी विश्वास दिलाती है कि भारत पेरिस समझौते के लक्ष्यों को हासिल करने की दिशा में आगे बढ़ रहा है।

इण्डिया स्टेट ऑफ़ फॉरेस्ट रिपोर्ट 2019 के मुताबिक़ देश में कुल वन आवरण यानी Total forest cover 7,12, 249 वर्ग किमी है जो भारत के कुल भौगोलिक क्षेत्र का 21.67% है। इसके आलावा देश का कुल वन और वृक्ष आच्छादन यानी Total forest and tree cover 8,07,276 वर्ग किमी है जो देश के भौगोलिक क्षेत्र का 24.56 प्रतिशत है। वनों की स्थिति से संबंधित राज्यवार आँकड़े पर नज़र डाले तो सर्वाधिक वनावरण वाले राज्यों यानी Most forest cover वाले स्टेट्स में मिजोरम (85.41%), अरुणाचल प्रदेश (79.63%), मेघालय (76.33%), मणिपुर (75.46%) और नागालैंड जैसे राज्य (75.31%) के साथ शीर्ष वनावरण वाले राज्य हैं। इसके अलावा सर्वाधिक वन क्षेत्रफल वाले राज्यों यानी States with the highest forest area में मध्य प्रदेश 77,482 वर्ग किमी, अरुणाचल प्रदेश 66,688 वर्ग किमी, छत्तीसगढ़ 55,611 वर्ग किमी, ओडिशा 51,619 वर्ग किमी और महाराष्ट्र में 50,778 वर्ग किमी. के क्षेत्रफल में वन मौजूद है। वन क्षेत्रफल में वृद्धि वाले शीर्ष राज्यों यानी Top states with increase in forest area में कर्नाटक 1,025 वर्ग किमी, आंध्र प्रदेश 990 वर्ग किमी, केरल 823 वर्ग किमी, जम्मू-कश्मीर 371 वर्ग किमी और हिमाचल प्रदेश जैसे राज्यों में वन क्षेत्रफल में 334 वर्ग किमी.की वृद्धि देखी गई है।

इस रिपोर्ट के अनुसार, भारत के रिकार्डेड फारेस्ट एरिया (Recorded Forest Area-RFA/GW) में 330 यानी (0.05%) वर्ग किमी. की मामूली सी कमी आई है। इसके अलावा मौजूदा आंकड़ों के मुताबिक़ भारत के वनों का कुल कार्बन स्टॉक लगभग 7,142.6 मिलियन टन अनुमानित है।

देखा जाए तो साल 2017 के आंकड़ों के मुक़ाबले इसमें लगभग 42.6 मिलियन टन की वृद्धि हुई है। साथ ही इस रिपोर्ट में बताया गया है कि भारत में बाँस भूमि क़रीब 1,60,037 वर्ग किमी. अनुमानित है। इस मामले में भी साल 2017 की रिपोर्ट के मुक़ाबले कुल बाँस भूमि में 3,229 वर्ग किमी. की वृद्धि देखी गई है। कुछ और आंकड़ों की बात करें तो देश में मैंग्रोव वनस्‍पति में साल 2017 के आकलन की तुलना में कुल 54 वर्ग किमी यानी (1.10%) की बढ़ोत्तरी हुई है। भारत के पहाड़ी ज़िलों में मौजूदा आकलन में ISFR-2017 के मुक़ाबले भारत के 144 पहाड़ी जिलों में 544 वर्ग किमी यानी (0.19%) की वृद्धि देखी गई है।
जनजातीय क्षेत्रों की स्थिति के मामले की बात करें तो भारत के जनजातीय ज़िलों में कुल वनावरण क्षेत्र 4,22,351 वर्ग किमी. है जोकि इन ज़िलों के कुल भौगोलिक क्षेत्रफल का 37.54% है। उत्तर-पूर्व क्षेत्र में वनों की स्थिति देखे तो यहां मौजूदा आकलन के मुताबिक़ उत्तर-पूर्वीय क्षेत्र में कुल वनावरण क्षेत्र में 765 वर्ग किमी यानी (0.45%) की कमी आई है। इनमें असम और त्रिपुरा को छोड़कर बाकी सभी उत्तर-पूर्वी राज्यों के वनावरण क्षेत्र में कमी देखी गई है।

इसके अलावा ईंधन की लकड़ियों के लिये आश्रितता की बात करें तो इस मामले में महाराष्ट्र पहले स्थान पर है जबकि चारा, इमारती लकड़ी और बाँस पर सर्वाधिक आश्रित राज्य मध्य प्रदेश रहा है। साथ ही इस रिपोर्ट में ये भी बताया गया है कि भारत के कुल वनावरण का 21.40% क्षेत्र वनों में लगने वाली आग से प्रभावित है। आपको बता दें कि 1987 से भारतीय वन स्थिति रिपोर्ट को हर दो साल पर ‘भारतीय वन सर्वेक्षण’ द्वारा प्रकाशित किया जाता है। इस रिपोर्ट में वन एवं वन संसाधनों के आकलन के लिये भारतीय दूरसंवेदी उपग्रह रिसोर्स सेट-2 से जुटाए आँकड़ों का इस्तेमाल किया गया है। इसके अलावा रिपोर्ट में सटीकता लाने के लिये आँकड़ों की जाँच हेतु वैज्ञानिक पद्धति भी अपनाई गई है।

4.

ऑस्ट्रेलिया के पूर्वी तट में मौजूद जंगल इन दिनों बेहद ही भयावह घटना से गुज़र रहे हैं। ऑस्ट्रेलिया के जंगलों में लगी इस आग में हज़ारों बेज़ुबान जानवर मारे गए हैं। इस आग से जंगल का लगभग 5.5 मिलियन क्षेत्रफल बर्बाद हो चुका है, साथ ही जंगल के आस - पास बसे इलाक़ों को भी काफी नुकसान पहुंचा है। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक़ इस प्राकृतिक आपदा में अब तक क़रीब 20 से अधिक लोगों के मारे जाने की भी बात कही गई है। ऑस्ट्रेलिया में लगी इस आग के बाद हालात ये हैं कि मौजूदा वक़्त में ऑस्ट्रेलिया की राजधानी कैनबरा दुनिया की सबसे प्रदूषित जगह बन गई है। ऐसे में ऑस्ट्रेलिया के कई इलाकों में आपात स्थिति की घोषणा की गई है।

पिछले साल अमेज़न की जंगलों में लगी आग का मंज़र अभी लोगों के दिल से उतरा भी नहीं था कि नए साल की शुरुआत में हुई इस प्राकृतिक घटना ने एक बार फिर पूरी दुनिया का ध्यान तेजी से बदल रहे जलवायु परिवर्तन की ओर खींचा है।

ऑस्ट्रेलिया में लगी इस आग से न्यू साउथ वेल्स का क़रीब 40 हेक्टेयर इलाका तबाह हो चुका है। ऑस्ट्रेलिया में लगी इस आग के पीछे मुख्य रूप से ग्लोबल वार्मिंग को ही ज़िम्मेदार माना जा रहा है । दरअसल जलवायु परिवर्तन के कारण ऑस्ट्रेलिया में तापमान काफी तेज़ी से बढ़ा है और इस साल यहां बारिश न के बराबर हुई है। ऑस्ट्रेलिया में पड़ने वाली भीषड़ गर्मी, सूखा और पिछले तीन महीनों से चल रही गर्म तेज़ हवाओं जैसी कुछ ऐसी घटनाएं रही हैं, जिसके कारण ये आग जंगलों के अलावा आस - पास के इलाकों तक भी फ़ैल गई है। इसके अलावा ऑस्ट्रेलिया में इतनी ज़्यादा गर्मी इसलिए भी पड़ती है क्यूंकि पृथ्वी की एक्सिस 23 डिग्री यानी जायरोस्कोप जैसी टिल्टेड है। ऐसे में एक ऐसा एंगल बनता है, जिसके कारण ऑस्ट्रेलिया में सूर्य की रोशनी काफी तेज़ आती है और इससे यहां गर्मी बढ़ जाती है।

बात चाहे अमेरिका के कैलिफोर्निआ के जंगलों में लगने वाली आग हो या फिर रूस के साइबरिया और ब्राज़ील के अमेजन वर्षा वनों में पैदा होने वाली वनाग्नि की घटनाओं की, इन सब के पीछे भी कमोबेश जलवायु परिवर्तन के ही कारण ज़िम्मेदार रहे है। हालांकि जंगलों में लगने वाली आग की कुछ परिस्थतियों में इंसानी भूमिका भी ज़िम्मेदार होती है। देखा जाए तो साल 2019 में जंगलों में आग की ज़्यादातर घटनाओं में इंसानी भूमिका मुख्य रूप से मानव ज़िम्मेद्दार हैं। एक आकंड़े के मुताबिक़ ऑस्ट्रेलिया में लगभग 62 हज़ार आग की घटनाएं सालाना दर्ज़ की जाती है औरइनमें से क़रीब 13 % घटनाएं मानव जनित कारणों से होती है। जंगलों में लगने वाली आग का सबसे ज़्यादा असर कार्बन चक्र पर पड़ता है। दरअसल जंगल ही CO2 को सोखते हैं ऐसे में जब जंगल ही नहीं रहेंगे तो इसका सीधा असर हमारे पर्यावरण पर पड़ेगा। साथ ही जंगलों में आग लगने से वनस्पतियों और वन्यजीवों का अस्तित्व भी खतरे में आ जाता है। वनों में लगने वाली आग के कारण जैव सम्पदा के भी दुष्प्रभावित होने का ख़तरा रहता है। इसके अलावा कृषि और विकास कार्यों से मृदा क्षरण की समस्या उत्पन्न होती है । साथ ही इस तरह की घटनाओं से स्थानीय सांस्कृतिक व्यवस्था भी ख़राब होती है। ऐसे में कई स्थानीय जनजातियों जिनका अस्तित्व वहां की जैव-विविधता और प्राकृतिक वातावरण पर निर्भर करता हैं वो भी खतरे में आ जाती हैं।

5.

साल 2014 में गांवों के विकास के लिए एक बेहद ही ख़ास सांसद आदर्श ग्राम योजना की शुरुआत हुई थी। इस योजना के लागू हुए आज क़रीब पांच से भी ज़्यादा साल बीत चुके हैं। मौजूदा वक़्त में इस योजना का चौथा फेज चल रहा है और इस योजना के उद्देश्य कहीं से भी पूरे होते नहीं दिख रहे हैं। दरअसल सांसद आदर्श ग्राम योजना का मकसद योजनाओं और संसाधनों का समुचित प्रयोग कर एक आदर्श गाँव के सपने को साकार करना था। हालांकि लागू होने से अब तक ये योजना अपने मकसद को पाने में नाकाम ही रही है।

देखा जाए तो सांसदों का ढुलमुल रवैया इस योजना के साकार होने में रोड़ा बनकर खड़ा है। मौजूदा फेज़ में अभी सिर्फ 252 सांसदों ने ही इस योजना के तहत ग्राम पंचायतों का चयन किया है...

प्रधानमंत्री नरेन्‍द्र मोदी ने 11 अक्टूबर 2014 को लोकनायक जय प्रकाश नारायण के जन्मदिवस के मौके पर इस योजना की शुरुआत की थी। इस योजना के तहत देश के सभी सांसदों को एक साल के लिए किसी एक गांव को गोद लेकर वहां विकास काम करना होता है। इससे गांव में बुनियादी सुविधाओं के साथ ही खेती, पशुपालन, कुटीर उद्योग और रोजगार आदि पर जोर दिया जाता है। इस योजना में मुख्य रूप से तीन बातों पर फोकस रखते हुए काम करने की बात कही गई है। यानी सांसद आदर्श ग्राम योजना के तहत होने वाले काम मांग पर आधारित हो, समाज द्वारा प्रेरित हो और इसमें जनता की भागीदारी हो। एक तरीके से देखा जाए तो इस योजना का उद्देश्‍य संबंधित सांसद की देख-रेख में चुनी हुई ग्राम पंचायत में रहने वाले लोगों के जीवन स्‍तर में सुधार लाना है। हालाँकि चौथे फेज़ से गुज़र रही ये योजना अब धीरे - धीरे फेड आउट हो रही है। देखा जाए तो 17 वीं लोकसभा बने 6 महीने बीत चुके हैं। लेकिन अभी तक सदन के दो-तिहाई सांसदों को ग्राम पंचायतों का चयन करना बाकी है। वर्तमान में संसद सदस्यों की संख्या 795 है। इसमें चयनित और नामांकित दोनों शामिल हैं। इस योजना के पहले चरण में 703 सांसदों ने गाँवों को गोद लिया था। लेकिन दूसरे चरण में यह संख्या घटकर 497 हो गई तथा तीसरे चरण में 301 सांसदों ने गाँवों को विकसित करने के लिए गोद लिया और चौथे चरण में यह संख्या घटकर 252 पर पहुँच गई है। यानी पाँच वर्ष में कुल 451 सांसदों इस योजना से दूर हो गए घट गई। देखा जाए तो कुल चार चरणों में अब तक सिर्फ 1753 ग्राम पंचायत ही गोद लिए जा सके हैं।

इस योजना में सामाजिक और आर्थिक विकास के लिए सार्वजनिक सेवाओं तक पहुंच में सुधार पर भी जोर दिया जाता है। ये गांव आस-पास की अन्‍य ग्राम पंचायतों के लिए आदर्श बनते हैं। आदर्श सांसद ग्राम योजना के तहत विकास कार्य पूरा करने के लिए कई तरह से फंड मिलते हैं। इनमें इंदिरा आवास, PMGSY और मनरेगा शामिल है। इसके अलावा सांसदों को मिलने वाला विकास फंड भी कार्यक्रम पूरा करने में मददगार है। ग्राम पंचायत भी अपने फंड का इस्तेमाल इस योजना के लिए करती है। कंपनियां भी कॉर्पोरेट सोशल रिस्पॉन्सिबिलिटी (सीएसआर) के जरिए इस योजना के लिए मदद देती हैं।

6.

नीति आयोग ने बीते दिनों सतत् विकास लक्ष्य भारत सूचकांक का दूसरा संस्करण जारी किया है। नीति आयोग द्वारा जारी साल 2019 के सूचकांक में केरल जहां पहले पायदान पर है तो वहीं बिहार का प्रदर्शन इस इंडेक्स में सबसे ख़राब आका गया है। इसके अलावा इस सूचकांक में पिछले साल के मुकाबले उत्तर प्रदेश, ओडिशा और सिक्किम जैसे राज्यों के प्रदर्शनों में सबसे अधिक सुधार देखने को मिला है। आपको बता दें कि ये SDG इंडिया इंडेक्स को सांख्यिकी और कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय, संयुक्त राष्ट्र संघ की भारतीय शाखा और वैश्विक हरित विकास संस्थान के सहयोग से तैयार किया गया है।

SDG इंडिया इंडेक्स में केरल 70 अंको के साथ पहले पायदान पर बना हुआ है। इसके अलावा 69 अंकों के साथ हिमाचल दूसरे और आंध्रप्रदेश, तेलंगाना और तमिलनाडु जैसे राज्य 67 अंकों के साथ संयुक्त रूप से तीसरे स्थान पर मौजूद रहे हैं।जबकि बिहार को 50 अंकों के साथ इस सूचकांक में सबसे निचले पायदान पर रखा गया है। SDG इंडिया इंडेक्स के मुताबिक़ पिछले साल के मुकाबले कुछ राज्यों में सबसे अधिक सुधर देखने को मिला है। इनमें उत्तर प्रदेश को (55), ओडिशा को (58) और सिक्किम जैसे राज्य भारी सुधार के बाद (65) अंक अर्जित करने में क़ामयाब हुए हैं।

SDG इंडिया इंडेक्स 2019 के मुताबिक़ भुखमरी से मुक्ति और लैंगिक समानता के मामले में लगभग सभी राज्यों का प्रदर्शन खराब ही रहा है। देखा जाए तो ‘भुखमरी से मुक्ति’ में कुछ ही राज्यों के प्रदर्शन में कमी देखने को मिली है। इन राज्यों में केरल, गोवा और पूर्वोत्तर के कुछ राज्य मिज़ोरम (67), नगालैंड (70), अरुणाचल प्रदेश (66) और सिक्किम जैसे राज्य शामिल रहे हैं। इन राज्यों को छोड़कर बाकी के अन्य क़रीब 22 राज्यों व केंद्रशासित प्रदेशों को इस मामले में 50 से भी कम अंक ही मिले हैं। भुखमरी से जूझ रहे मध्य भारत के राज्यों झारखंड (22), मध्यप्रदेश (24), बिहार (26) और छत्तीसगढ़ जैसे राज्यों को (27) अंक ही मिल पाए हैं।

लैंगिक समानता’ के क्षेत्र में सभी राज्यों का प्रदर्शन बेहद ही खराब रहा है। जम्मू और कश्मीर- (53), हिमाचल (52) और केरल (51) जैसे राज्यों को छोड़ दिया जाए तो बाकी के सभी राज्य 50 का भी आँकड़ा पार नहीं कर पाए हैं। इस इंडेक्स में महिलाओं के खिलाफ अपराध, महिलाओं के साथ लिंग के आधार पर होने वाले भेदभाव और गर्भधारण से संबंधित स्वास्थ्य सेवाओं की कमी देखी गई है। इस इंडेक्स के मुताबिक़ देश में भारत का असमान लैंगिक अनुपात 896 :1000 का रहा है।

SDG इंडिया इंडेक्स 2019 में ‘स्वच्छ जल और सफाई’ में बेहतर प्रदर्शन को लेकर स्वच्छ भारत मिशन की तारीफ़ की गई है। दिल्ली को छोड़कर सभी केन्द्रशासित प्रदेशों को इस सूचकांक में 65 से अधिक अंक मिले हैं। जबकि दिल्ली का प्रदर्शन स्वच्छता के मामले में बहुत ही ख़राब रहा है। इसके अलावा सरकार की घर-घर बिजली और भोजन पकाने के लिये उज्ज्वला योजना को SDG लक्ष्यों को हासिल करने की दिशा में महत्वपूर्ण कदम माना गया है।

SDG इंडिया इंडेक्स 2019 के तहत इन सभी आधारों पर 16 क्षेत्रों में भारत को संयुक्त रूप से 60 अंक हासिल हुए हैं, जबकि पिछले साल इस श्रेणी में भारत को 57 अंक मिले थे। रिपोर्ट में बताया गया है कि भारत के इन अंको में हुए सुधार की वजह नवीकरणीय ऊर्जा और स्वच्छता के क्षेत्र में हुई प्रगति (88), शांति, न्याय और सशक्त संस्थानों (72) और सस्ती एवं स्वच्छ ऊर्जा (70) जैसे क्षेत्रों में हुए सफल प्रयास की वजह से मिले हैं।

नीति आयोग ने ये सूचकांक संयुक्त राष्ट्र द्वारा निर्धारित SDG लक्ष्यों के आधार पर भारत की प्राथमिकताओं के अनुरूप तैयार किया है। इस साल नीति आयोग की रिपोर्ट में UN के 17 में से 16 लक्ष्यों को शामिल किया गया है। दरअसल नीति आयोग UN के 232 सूचकांकों की प्रणाली पर आधारित 100 निजी सूचकांकों पर राज्यों के प्रदर्शन की समीक्षा करता है। इनमें आकांक्षी (Aspirant) 0–49, परफार्मर (Performer) 50-64, फ्रंट रनर 65–99 और अचीवर (Achiever) - को 100 अंको के ज़रिए दर्शाया जाता है। इस वार्षिक आकलन के पीछे नीति आयोग के मुख्य रूप से दो मक़सद हैं। इनमें पहला SDG की प्रगति में राज्यों की स्थिति का आकलन करना। और दूसरा राज्यों व केन्द्रशासित प्रदेशों को उनके विकास के रास्ते में आने वाली मुश्किलों की पहचान करके राज्यों को आपसी सहयोग के लिये प्रेरित करने जैसे उद्देश्य शुमार हैं। इसके अलावा सतत् विकास लक्ष्य SDG के बारे में आपको बताएं तो साल 2015 में संयुक्त राष्ट्र महासभा में सदस्य देशों ने विकास के 17 लक्ष्यों को आम सहमति से स्वीकार किया था। संयुक्त राष्ट्र ने विश्व के बेहतर भविष्य के लिये इन लक्ष्यों को काफी अहम बताया और साल 2030 तक इन लक्ष्यों को हासिल करने के लिए सदस्य देशों के साथ नीतियों का ज़िक्र किया था।

7.

बीते दिनों रिजर्व बैंक ने 20वीं वित्तीय स्थिरता रिपोर्ट और भारत में बैंकिंग की प्रवृत्ति और प्रगति 2018-19 से सम्बंधित एक रिपोर्ट जारी की है। वित्तीय स्थिरता रिपोर्ट में एक ओर जहां सब-कमिटी के सामूहिक मूल्यांकन के साथ वित्तीय स्थिरता के जोखिमों और फ़ाइनेंशियल सेक्टर के लचीलेपन के बारे में बताया गया है तो वहीं भारत में बैंकिंग की प्रवृत्ति और प्रगति 2018-2019 में सहकारी बैंकों और NBFCs समेत पूरे बैंकिंग सेक्टर के परफॉर्मेंस को पेश किया गया है। साथ ही ये रिपोर्ट भारत के वित्तीय क्षेत्र के लिए विकसित संभावनाओं पर भी एक नज़रिया पेश करती है।

20वीं वित्तीय स्थिरता रिपोर्ट में बताया गया है कि घरेलू मंदी के बावजूद भारत की वित्तीय प्रणाली में स्थिरता बनी हुई है। सरकार द्वारा सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों में पैसा लगाने के बाद बैंकिंग क्षेत्र के लचीलेपन में सुधार हुआ है। हालांकि वैश्विक और घरेलू आर्थिक अस्थिरता और भू-राजनीतिक गतिविधियों के चलते थोड़ा रिस्क ज़रूर बना हुआ है। इसके आलावा RBI द्वारा जारी दूसरी रिपोर्ट में सहकारी बैंकों और NBFCs समेत पूरे बैंकिंग सेक्टर के परफॉर्मेंस को पेश किया गया है। इसमें 2018-19 और 2019-20 की अब तक की अवधि के आंकड़ों को शामिल किया गया है। इस रिपोर्ट के मुताबिक शेड्यूल्ड कमर्शियल बैंकों के ग्रास एनपीए में मार्च 2018 के 11.2 फ़ीसदी के मुकाबले मार्च 2019 में 9.1 फ़ीसदी तक कमी देखने को मिली। ग्रॉस एनपीए में सुधार की वजह आईबीसी कोड को बताया गया है।

सरकार द्वारा सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों में पैसा लगाए जाने के चलते बैंकों की पूंजी की स्थिति में काफी सुधार हुआ है। एनपीए में बढ़ोत्तरी और मुनाफे में कमी के चलते सहकारी बैंकिंग की स्थिति थोड़ी कमजोर हुई है। रिपोर्ट में बताया गया है कि कम पूंजी, कमजोर प्रबंधन व्यवस्था और फ्राड कांडों को रोकने में नाकामी जैसी वज़हों के चलते शहरी कोआपरेटिव बैंकों को दिक्कत का सामना करना पड़ रहा है। इसके अलावा नयी तकनीक अपनाने में देरी और समुचित निगरानी का न होना भी सहकारी बैंकों की मुश्किलों में शुमार हैं। एनबीएफसी द्वारा कर्ज दिए जाने की गति में मंदी बनी रही, हालांकि पूँजी के हालात बफ़र मानकों से ऊपर बने रहे। बैंक क़र्ज़ एनबीएफसी की फाइनेंसिंग का एक स्थिर स्रोत रहा है।

आपको बता दें कि वित्तीय स्थिरता रिपोर्ट FSR को भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा हर 6 महीने में प्रकाशित किया जाता है। इस रिपोर्ट में वित्तीय स्थिरता और विकास परिषद यानी FSDC की सब-कमिटी के सामूहिक मूल्यांकन को दिखाया जाता है। इसके अलावा इसमें फ़ाइनेंशियल सेक्टर के विकास और रेगुलेशन से जुड़े मसलों पर भी चर्चा की जाती है। आपको बता दें FSDC का गठन दिसंबर 2010 में किया गया था। इसकी अध्यक्षता केंद्रीय वित्त मंत्री द्वारा की जाती है। ये परिषद वित्तीय स्थिरता, वित्तीय क्षेत्र के विकास, अंतर-नियामक समन्वय और वित्तीय साक्षरता के लिए काम करता है। भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) के बारे में बताए तो ये देश का केन्द्रीय बैंक है। इसकी स्थापना 1935 में बैंकिंग विनियमन अधिनियम, 1934 के तहत की गई थीl बाद में, कुछ सीमित लोगों के हाथों में शेयरों के केन्द्रीयकरण को रोकने के लिए 1 जनवरी 1949 को भारतीय रिजर्व बैंक का राष्ट्रीयकरण कर दिया गया।

8.

2024-25 तक 5 ट्रिलियन डॉलर की जीडीपी हासिल करने के लिए भारत ने एक महत्वपूर्ण कदम उठाया है। इस सन्दर्भ में वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने राष्ट्रीय अवसंरचना पाइपलाइन NIP के अंतर्गत 102 लाख करोड़ रुपए की आधारभूत परियोजनाओं की घोषणा की है। गौरतलब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने स्वतंत्रता दिवस के भाषण में कहा था कि अगले पाँच वर्षों में बुनियादी ढाँचे पर 100 लाख करोड़ रुपए का निवेश किया जाएगा। उनका कहना था कि इन बुनियादी ढाँचा परियोजनाओं में सामाजिक और आर्थिक बुनियादी ढाँचा परियोजनाएँ शामिल होंगी।

आपको बता दें कि इस कार्यक्रम में केंद्र और राज्य सरकार की 39-39 फीसदी की वित्तीय हिस्सेदारी होगी। साथ ही निजी क्षेत्र की भी इस परियोजना में 22 फीसदी की भी वित्तीय हिस्सेदारी रहेगी।

बीते दिनों वित्तीय वर्ष 2019-20 से 2024-25 तक हर साल राष्ट्रीय अवसंरचना पाइपलाइन तैयार करने के लिए एक टास्क फोर्स का गठन किया गया था। इसमें 2020 से 2025 के दौरान भारत में बुनियादी ढाँचे पर पूंजीगत खर्च का लगभग 70% हिस्सा इन क्षेत्रों में लगने का अनुमान है। इनमें ऊर्जा (24%), सड़क (19%), शहरी (16%), और रेलवे (13%) जैसे क्षेत्र शामिल है।

जानकारों का कहना है कि भारत को अपनी विकास दर को बनाए रखने के लिये साल 2030 तक बुनियादी सुविधाओं पर 4.5 ट्रिलियन डॉलर खर्च करने की ज़रुरत होगी। दरअसल 102 लाख करोड़ रुपए की राष्ट्रीय अवसंरचना परियोजनाओं से देश का बुनियादी ढाँचा मज़बूत होगा जिससे देश में उत्पादन की दर बढ़ेगी और साथ ही निवेशकों को लुभाने का एक बेहतर माहौल भी बन सकेगा। इसके अलावा इतनी भारी मात्रा में खर्च की जाने वाली धनराशि से आर्थिक गतिविधियों को बढ़ावा मिलेगा, जिससे अर्थव्यवस्था में मांग में बढ़ोत्तरी होगी और रोज़गार के अवसर भी पैदा होंगे। ऐसे में न सिर्फ सरकार के राजस्व में भी वृद्धि होगी बल्कि भारतीय अर्थव्यवस्था के 5 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था बनने का रास्ता भी साफ़ होगा।

9.

पिछले कुछ दिनों से कर्नाटक और महाराष्ट्र राज्य की सीमा पर तनाव जैसे माहौल है। इन दोनों राज्यों के बीच ये तनाव दशकों से चले आ रहे बेलगाम ज़िले पर अधिकार को लेकर पैदा हुआ है। एक ओर जहां महाराष्ट्र इस इलाके में रहने वाले मराठी भाषी बहुसंख्यकों की वजह से इसे अपनी सीमा शामिल कराने की कोशिशें करता आया है तो वहीं कर्नाटक अपनी सीमा में आने वाले बेलगाम ज़िले को कतई छोड़ने को राज़ी नहीं है।

कर्नाटक और महाराष्ट्र के बीच चल रहा ये विवाद दशकों पुराना है। आज़ादी मिलने के बाद बेलगाम को बॉम्बे स्टेट का हिस्सा बनाया गया। लेकिन जब साल 1956 में देश में भाषा के आधार पर राज्यों का गठन किया जा रहा था तो उस दौरान बेलगांव को संयुक्त महाराष्ट्र में शामिल करने की मांग उठी। इसके लिए कई आंदोलन हुए। उस समय की एक मुश्किल ये भी थी बॉम्बे स्टेट पर गुजरात भी अपना हक़ जता रहा था। ऐसे में बॉम्बे स्टेट को केंद्र शासित प्रदेश बनाए जाने की बात चल रही थी। लेकिन हुआ ये कि आज की मुंबई यानी तब के बॉम्बे स्टेट महाराष्ट्र राज्य की राजधानी बना दिया गया। ऐसे में हुआ ये कि तमाम मराठी भाषी इलाक़े उस वक़्त के मैसूर स्टेट में रह गए जो कि साल 1973 में बने कर्नाटक राज्य का हिस्सा हो गए। इन तमाम इलाकों में बेलगाम इलाका भी शामिल था जिसको लेकर तब से आज तक कई विवाद सामने आए हैं।

महाराष्ट्र राज्य के आग्रह पर, भारत सरकार ने 25 अक्टूबर 1966 को महाजन आयोग का गठन किया। आयोग ने, महाराष्ट्र के दावों की समीक्षा कर दोनों राज्यों के बीच बेलगाम जिले के कई गांवों के आदान-प्रदान की सिफारिश की। महाजन आयोग ने बेलगाम शहर पर महाराष्ट्र के दावे को खारिज कर दिया। बेगलाम विवाद पर आई महाजन आयोग की इस रिपोर्ट को महाराष्ट्र सरकार ने अपने ऐलान के बावजूद भी इसे मानने से इंकार कर दिया और तभी से बेलगाम इलाका महाराष्ट्र और कर्नाटक के बीच तनाव पैदा करता आया है। इस मामले को लेकर महाराष्ट्र साल 2006 में सुप्रीम कोर्ट भी पहुंचा। महाराष्ट्र के इस क़दम से को देखते हुए कर्नाटक ने 2006 में ही बेलगांव को उपराजधानी का दर्जा दे दिया।

इतना ही नहीं कर्नाटक सरकार ने बेलगांव का नाम बदलकर अब 'बेलगांवी' कर दिया जिसको लेकर भी कई आंदोलन हुए। देखा जाए तो आज भी बेलगाम और इससे सटे कई इलाक़े को लेकर महाराष्ट्र और कर्नाटक के बीच सर्वोच्च न्यायालय में कानूनी लड़ाई जारी है। इसके अलावा महाराष्ट्र सरकार ने साल 2019 के आखिर में कर्नाटक सरकार के साथ सीमा विवाद से जुड़े मामलों पर बातचीत तेज़ करने के प्रयासों की समीक्षा के लिये दो मंत्रियों को ‘समन्वयक’ भी बनाया है।

बात अगर बेलगाम के ऐतिहासिक महत्त्व की हो तो कर्नाटक का बेलगाम शहर ऐतिहासिक रूप से काफी अहम माना जाता है। साल 1924 में हुआ कॉन्ग्रेस का अधिवेशन बेलगाम में ही हुआ था जिसकी अध्यक्षता महात्मा गांधी ने की था। इसके अलावा बेलगाम से ही लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक ने साल 1916 में अपना ‘होम रूल लीग‘ आंदोलन शुरु किया था।

10.

बीते दिनों राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो NCRB ने कृषि क्षेत्र में आत्महत्या से जुड़े आँकड़ो को प्रकाशित किया है। ये आकंड़े 2017 के हैं और इनमें कृषि क्षेत्र से संबंधित आत्महत्याओं में कमी देखी गई है। NCRB के आंकड़ों में बताया गया है कि साल 2017 में कुल 10 हज़ार से अधिक लोगों ने आत्महत्या की है। इस रिपोर्ट में ये भी बताया गए है कि ये हत्याएं सबसे महाराष्ट्र और कर्नाटक जैसे राज्यों में हुई हैं।

राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो NCRB के आंकड़ों के मुताबिक़ साल 2017 में 2017 में कुल 10,655 लोगों ने आत्महत्या की है। इनमें ये आत्महत्याएं महाराष्ट्र में (34.7 प्रतिशत) कर्नाटक में (20.3 प्रतिशत), मध्य प्रदेश में (9 प्रतिशत), तेलंगाना में (8 प्रतिशत) और आंध्र प्रदेश (7.7 प्रतिशत) के रूप में हुई हैं। रिपोर्ट में बताया गया है कि आत्महत्या करने वालों में 5,955 किसान है और 4,700 खेतिहर मज़दूर रहे हैं। रेप्रोट में ज़िक्र है कि ये संख्या साल 2016 के मुक़ाबले कम है। आपको बता दें कि साल 2016 में जहां 6 हज़ार से अधिक किसानों ने आत्महत्या की थी तो वहीं 2015 में ये आंकड़े उससे भी ज़्यादा यानी 8 के क़रीब थे।

NCRB की ये रिपोर्ट बताती है कि साल 2017 में देश में जितनी भी आत्महत्याएं हुई हैं उनमे खेती से जुड़े लोगों की संख्या का प्रतिशत 8.2% है। हालाँकि किसानों की आत्महत्या से सम्बंधित ये रिपोर्ट बताती है कि साल 2016 के मुकाबले साल 2017 में महिला किसानों ने ज़्यादा ख़ुदकुशी की है। एक ओर जहां साल 2016 में आत्महत्या करने वाली महिला किसानों की संख्या 275 थी तो वहीं ये 2017 में बढ़कर से 480 हो गई है। पश्चिम बंगाल, ओडिशा, नगालैंड, मणिपुर, मिज़ोरम, उत्तराखंड, चंडीगढ़, दादरा और नगर हवेली, दमन और दीव, दिल्ली, लक्षद्वीप और पुद्दूचेरी जैसे इलाक़े ऐसे हैं जहां किसानों की आत्महत्या के मामले न के बराबर हैं।

कृषि क्षेत्र में आत्महत्याओं के कारणों की बात करें तो इसमें मुख्य रूप से बैंकों या महाजनों द्वारा लिए गए क़र्ज़ को प्राकृतिक आपदाओं या मानवजनित आपदाओं से फसलों के बर्बाद होने के चलते ऋण न चुका पाना। परिवारिक समस्याएँ, जलवायु परिवर्तन, और किसान के बीमारी या नशे की लत से ग्रस्त होने जैसे कारण मुख्य रूप से ज़िम्मेदार हैं। इसके अलावा ख़राब आर्थिक नीति, भू-जोत के आकार में कमी जैसे भी कुछ कारण हैं जिनसे किसानों की आय में लगातार कमी देखी गई है। राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो के आंकड़ों में ग़ौर कारण वाली बात ये भी है कि आत्महत्या करने वाले किसानों में 72 प्रतिशत छोटे एवं सीमांत किसान शामिल हैं। मौजूदा हालात को देखते हुए किसानों को आत्म हत्या से रोकने के लिए कुछ उपायों की सख़्त ज़ररत है। इनमें खेती करने वाले किसानों को कम कीमत पर बीमा और स्वास्थ्य उपलब्ध कराई जाएं। राज्य स्तर पर किसान आयोग का गठन हो जिससे किसी भी तरह की समस्या का समाधान जल्द - जल्द से निकाला जा सके।

इसके अलावा कृषि शोध एवं अनुसंधान के ज़रिए ऐसे बीजों को तैयार किय जाए जो ख़राब मौसम में भी फसलों की अच्छी पैदावार दें सके। इसके अलावा किसानों को तकनीकी, प्रबंधन और विपणन से भी मदद उपलब्ध कराई जाए। किसानों के संकट को दूर करने के लिए ज़रूरी होगा कि स्वामीनाथन आयोग की सिफारिशों को भी लागू किया जाए और खेती - किसानी के मामले में संस्थागत ऋण में भी बढ़ोत्तरी की जाए।

11.

पैसिफिक नेशन पलाऊ सन क्रीम के इस्तेमाल पर प्रतिबंध लगाने वाला दुनिया का पहला देश बन गया है। पलाऊ ने सन क्रीम पर ये प्रतिबंध उसमें इस्तेमाल होने वाले खतरनाक रसायन के चलते लगाया गया है। सन क्रीम पर पाबंदी लागू करते हुए पलाऊ के राष्ट्रपति टॉमी रेमेंगेसाऊ ने कहा कि हमें अपने वातावरण को बचाना होगा। 20 हजार की आबादी वाले इस देश ने पहले ही ऑक्सीबेंजोन और ऑक्टीनोजेट रसायनों से बनी क्रीम पर पाबंदी लगा दी है।

पैसिफिक नेशन पलाऊ अपनी ख़ूबसूरती के लिए काफी मशहूर है। कोरल रीफ से घिरा इसका द्वीप अलग - अलग तरह के जीवों का निवास स्थान हैं। इंटरनेशनल कोरल रीफ फाउंडेशन के मुताबिक, सन क्रीम के तौर पर इस्तेमाल होने वाले रसायन समुद्री जीवों के लिए जहर के समान हैं। इसके अलावा वन्यजीवों पर खतरनाक असर को देखते हुए अमेरिका के वर्जिन आइलैंड्स और हवाई प्रांत में भी सन क्रीम पर पाबंदी लगाई जा चुकी है। ग़ौरतलब है कि महासागरों के परिस्‍थितिकी तंत्र को बचाने के लिए भारत ने भी पिछले साल नवंबर में एक बड़ा कदम उठाया था। भारत के नौवहन महानिदेशालय ने साल 2020 से भारतीय जहाजों में सिंगल यूज प्‍लास्टिक और उसके उत्‍पादों पर बैन लगा दिया था।

इस निर्णय के तहत भारतीय जहाज सिंगल यूज प्लास्टिक के उत्‍पाद जैसे आइसक्रीम कंटेनर, हॉट डिश कप, माइक्रोवेव डिशेज और चिप्स के थैले आदि का इस्‍तेमाल नहीं करेंगे। साथ ही भारत के नौवहन महानिदेशालय की ओर से कहा गया था कि यह प्रतिबंध विदेशी जहाजों के लिए भी लागू होगा। ऐसे में विदेशी जहाजों को भारतीय जलक्षेत्र में प्रवेश करने से पहले यह बताना होगा कि उनके पास सिंगल यूज प्‍लास्टिक तो नहीं है। बता दें कि प्लास्टिक प्रदूषण को लेकर आई इंटरनेशनल मेरीटाइम ऑर्गनाइजेशन (आईएमओ) की रिपोर्ट में कहा गया है कि सागरों और महासागरों में प्‍लास्टिक प्रदूषण यदि इसी तेजी से ढ़ता रहा तो सन 2050 तक महासागरों में प्लास्टिक की मात्रा मछलियों से ज्‍यादा होगी।

12.

दुनिया भर के कई हिस्सों में वायु प्रदूषण खतरनाक स्तर पर बना हुआ है। विश्व स्वस्थ्य संगठन के नए आंकड़ों से पता चलता है कि दुनिया में 10 में से 9 लोग उच्च स्तर के प्रदूषकों से युक्त हवा में सांस ले रहे हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) का अनुमान है कि प्रदूषित हवा से हर साल तकरीबन 7 मिलियन लोग मरते हैं, जबकि अकेले भारत में इस से मरने वालों की संख्या तकरीबन 1.2 मिलियन है। वायु प्रदुषण की बढ़ती इसी समस्या को देखते हुए राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में एक स्मॉग टावर को स्थापित किया गया है। दरअसल पिछले कुछ सालों में दिल्ली में वायु प्रदुषण काफी तेज़ी से बढ़ा है। ऐसे में नवंबर 2018 में देश की शीर्ष अदतलत ने राजधानी में वायु प्रदूषण की समस्या से निजात पाने के लिए केंद्र सरकार और दिल्ली सरकार को दिल्ली में स्मॉग टावर स्थापित करने के निर्देश दिए थे।

स्मॉग टावरों को बड़े पैमाने पर एयर प्यूरिफायर के रूप में काम करने के लिए तैयार किया गया है। इसमें आमतौर पर एयर फिल्टर की कई परते होती हैं , जो हवा से प्रदूषकों को को साफ करते जब यह हवा इन फिलटरों से होकर गुज़रती है।

ऐसा माना जा रहा है की लाजपत नगर में स्थापित स्मॉग टॉवर हर दिन 6,00,000 क्यूबिक मीटर हवा को साफ़ करने में सक्षम है और यह हवा से तकरीबन 75 फीसदी से अधिक प्रदूषित कणों को साफ़ करेगा। आपको बता दें की 20 मीटर (65 फीट) ऊंचे टॉवर में बड़े पैमाने पर एयर फिल्टर लगाए गए I टावर के शीर्ष पर कई सारे पंखे लगे हैं जिनके माध्यम से प्रदूषित हवा को अंदर खींचकर उन्हें फिलटरों में भेजा जाता है । फिलटरों से शुद्ध हवा को टावर के निचले भाग से छोड़ा जाता है । टॉवर में स्थापित फिलटरों में मुख्या घातक के रूप में कार्बन नैनोफाइबर का उपयोग किया गया है । टावर का मुख्य कार्य हवा में अभि कणों या पार्टिकुलेट मैटर को घटाना है। स्मॉग टावर परियोजना को IIT मुंबई ने IIT दिल्ली और मिनी सोटा विश्वविद्यालय के सहयोग से अमली जामा पहनाया गया इस परियोजना में केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड़ की भी मदद ली गयी I आपको बता दे की मिनी सोटा विश्वविद्यालय के ही सहयोग से ही चीन के जियान शहर में भी स्मॉग टावर स्थापित किया गया था। जियान में स्थित स्मॉग टावर विश्व का सबसे बड़ा स्मॉग टावर माना जाता है।

ऐसा माना जाता है की इस टावर ने 6 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में PM 2.5 को तकरीबन 15 - 20 फीसदी कम कर दिया है। आपको बता दें कि प्रत्येक स्मॉग टॉवर की लागत लगभग 10 से 12 करोड़ रुपये आती है, जिसमें फ़िल्टरिंग उपकरण, निगरानी प्रणाली और टॉवर का निर्माण शामिल है.

13.

एक आंकड़े से पता चला है कि उत्तर भारत के 74 फीसदी लोगों में विटामिन बी-12 की कमी है। आकंड़ों से ये ज़ाहिर होता है कि इन राज्यों में सिर्फ 26% आबादी ही ऐसी है जिसके शरीर में पर्याप्त मात्रा में विटामिन बी-12 मौजूद है। आपको बता दें कि विटामिन बी-12 हमारे शरीर की कोशिकाओं को काम करने में मदद करतीे है। अगर किसी व्यक्ति के शरीर में विटामिन बी-12 की कमी है तो उस व्यक्ति की कोशिकाएं सही ढंग से काम करना बंद कर देती हैं। इसके अलावा विटामिन बी-12 नर्व सिस्टम यानी तंत्रिका तंत्र के लिए भी बेहद ज़रूरी होता है।

ये आंकड़े इंडियन जर्नल ऑफ एंडोक्रिनोलॉजी एंड मेटाबॉलिज्म में प्रकाशित एक अध्ययन के हैं। दरअसल 200-300 पीकोग्राम प्रति मिलीलीटर के बीच विटामिन बी-12 के स्तर को बॉर्डर लाइन कमी माना जाता है। इंडियन जर्नल ऑफ एंडोक्रिनोलॉजी एंड मेटाबॉलिज्म के आंकड़ों में बताया गया है कि उत्तर भारत में क़रीब 47 फीसदी आबादी में विटामिन बी-12 इस स्तर से काफी कम है। वहीं विटामिन बी-12 के मामले में 27 फीसदी आबादी बॉर्डर लाइन कमी के दायरे में आती है। ऐसे में दोनों को मिलाकर विटामिन बी-12 की कमी से जूझने वाली की संख्या लगभग 74% है।

इस अध्ययन में विटामिन बी-12 की कमी की वजह उत्तर भारत में शाकाहारी लोगों की संख्या का अधिक होना बताया गया है। दरअसल विटामिन बी-12 मांस, अंडों और दूध या दुग्ध से बने उत्पादों से मिलती है। विटामिन बी-12 की कमी से लोगों में थकान, बाल गिरना, कमजोर याददाश्त जैसे मामले सामने आते हैं। इसके अलावा महिलाओं में विटामिन बी-12 की कमी से अवसाद का भी ख़तरा रहता है। जानकारों की माने तो विटामिन बी-12 की ज्यादा कमी होने पर तलवों और हाथों में जलन होने लगती है।

14.

नए साल की शुरुआत में इसरो ने चंद्रयान-3 और गगनयान को लेकर कुछ बड़े एलान किए हैं। ऐसे में नए साल यानी 2020 में बदलाव की दस्तक सिर्फ पृथ्वी पर ही नहीं बल्कि अंतरिक्ष में भी सुनाई देगी। सरकार से मंज़ूरी मिलने के बाद ISRO के चेयरमैन K Sivan ने बताया कि भारत 2021 तक चन्द्रयान-3 और 2022 तक गगनयान अभियान को पूरा कर लेगा।

चंद्रयान- 3 मिशन चंद्रमा पर भारत का तीसरा मिशन होगा। चंद्रयान-3 मिशन में भी वैज्ञानिकों की कोशिश चंद्रमा पर लैंडर और रोवर उतारने की होगी। लैंडर एक तरह अंतरिक्ष यान है जो चंद्रमा की सतह पर उतरेगा। इस यान के अंदर ही रोवर सुरक्षित रहेगा।

दरअसल में रोवर पहियों वाला एक रोबोट वाहन है जो चंद्रमा की सतह पर घूमते हुए अहम जानकारियां इकट्ठा करेगा। इससे पहले वर्ष 2019 में चंद्रयान-2 का लैंडर चंद्रमा की सतह पर सफलतापूर्वक लैंड नहीं कर पाया था. लेकिन चंद्रयान-2 का ऑर्बिटर चंद्रमा की कक्षा में सफलतापूर्वक स्थापित किया जा चुका था जो अगले 7 वर्षों तक काम करता रहेगा. गौरतलब है की चंद्रयान-३ के लिए इसी ऑर्बिटर का इस्तेमाल किया जाएगा। चंद्रयान - 2 पर जहां 978 करोड़ रुपये ख़र्च हुए थे तो वहीं चंद्रयान-3 मिशन पर सिर्फ 600 करोड़ रुपए खर्च होने कि संभावना है।

चंद्रयान 2 की गलतियों से सीख लेते हुए इस बार लैंडर और रोवर की सॉफ्ट लैंडिंग को सौ प्रतिशत सफल बनाने की कोशिश की जाएगी। ऐसा अनुमान है की इस मिशन को वर्ष 2020 के अंत या वर्ष 2021 की शुरुआत में लांच किया जा सकता है। चंद्रयान-2 की ही तरह चंद्रयान-3 की लैंडिंग भी चंद्रमा के दक्षिण ध्रुव पर ही होगी क्योंकी यहां पानी मिलने की संभावना सबसे ज़्यादा है। कहा जा रहा है कि अगर चंद्रयान-3 ने चंद्रमा की सतह पर उतरकर पानी खोज लिया, तो ये अंतरिक्ष में भारत की ये सबसे बड़ी उपलब्धि होगी। आपको बता दें कि अमेरिका, रूस और चीन के बाद चांद पर कदम रखने वाला भारत चौथा देश है।

चंद्रयान-3 के बाद आइये बात करते है इसरो के सबसे अहम् मिशन गगन यान की। गगणयान मिशन में भारत पहली बार अंतरिक्ष में 3 अंतरिक्ष यात्रियों को भेजेगा। 7 दिनों तक ये अंतरिक्ष यात्री पृथ्वी की कक्षा में रहेंगे।ये मिशन साल 2022 में लॉन्च किया जाएगा। आपको बता दें की महज़ 10 हजार करोड़ रुपए के बजट के साथ गगन यान मिशन दुनिया का सबसे किफायती मानव मिशन होगा। ISRO ने इस मिशन के लिए भारतीय वायुसेना के 4 वायुसैनिकों को चुन लिया है।

इन 4 भारतीय वायुसैनिकों को भी, कई चरणों के शारीरिक, मानसिक और भावनात्मक परीक्षणों में सफल होने के बाद ही इस मिशन में शामिल किया गया है। अब इन्हीं 4 में से 3 को गगनयान मिशन पर भेजा जाएगा ऐसा इसलिए किया जाएगा ताकि ट्रेनिंग पूरी होने के बाद इनमें से सबसे बेहतर 3 को चुना जा सके। गौरतलब है की इसी महीने के तीसरे हफ्ते से रूस में इन वायु सैनिकों का प्रशिक्षण शुरू हो जायेगा जो अगले एक साल तक चलेगा साल 2020 में क्या भारत इन दोनों मिशन के ज़रिये अंतरिक्ष में अपने वर्चस्व को कायम रख पायेगा ये कह पाना तो मुश्किल है लेकिन चंद्र यान - 3 और गगन यान उसकी सफलता की राह में मील का पत्थर ज़रूर साबित होंगे।

तो ये थी पिछली सप्ताह की कुछ महत्वपूर्ण ख़बरें...आइये अब आपको लिए चलते हैं इस कार्यक्रम के बेहद ही ख़ास सेगमेंट यानी इंडिया राउंडअप में.... जहां आपको मिलेंगी हफ्ते भर की कुछ और ज़रूरी ख़बरें, वो भी फटाफट अंदाज़ में...

फटाफट न्यूज़ (India Roundup):

1. दृष्टिबाधित लोगों के लिये लांच हुआ एक मोबाइल एप मोबाइल एडेड नोट आइडेंटिफ़ायर MANI भारतीय रिज़र्व बैंक ने करेंसी नोटों के मूल्य की पहचान करने में मदद के मक़सद से लॉन्च किया है ये मोबाइल एप

2. भारतीय पुरातत्त्व सर्वेक्षण करेगा 17वीं सदी के मुगलकालीन स्मारक ‘बीबी का मकबरा’ के गुंबद और संगमरमर से बने अन्य हिस्सों का वैज्ञानिक संरक्षण ।

1660 में औरंगजेब की बेगम दिलरास बानो बेगम की याद में बनवाया गया था बीबी का मकबरा

3. केरल ने शहरी वनीकरण को बढ़ावा देने के लिये शुरू की मियावाकी पद्धति । मियावाकी पद्धति में शहरी और अर्द्ध-शहरी क्षेत्र की खाली पड़ी सरकारी ज़मीन, सरकारी कार्यालय परिसर जैसे कई स्थानों पर छोटे बागानों में बदल कर शहरी वनीकरण को बढ़ावा दिया जाता है। आपको बता दें कि मियावाकी पद्धति की खोज जापानी वनस्पति वैज्ञानिक अकीरा मियावाकी ने की है।

4. दक्षिण भारत के कर्नाटक और केरल राज्य के कुछ क्षेत्रों में बोली जाने वाली तुलू भाषा को संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल करने की मांग एक बार फिर से हुई तेज़। द्रविड़ भाषा है,तुलू मौजूदा वक़्त में तुलू भाषा दक्षिण भारत के तुलूनाडू क्षेत्र तक ही है सीमित । आपको बता दें कि संविधान की आठवीं अनुसूची में संविधान द्वारा मान्यता प्राप्त 22 प्रादेशिक भाषाओं का ज़िक्र है।

5. नासा ने पृथ्वी के आकार जैसे ग्रह TOI 700 d की की खोज। ये ग्रह गोल्डीलॉक्स ज़ोन में अपने तारे की करता है परिक्रमा आपको बता दें कि गोल्डीलॉक्स ज़ोन को हिंदी में वासयोग्य क्षेत्र कहा जाता है। ये जोन एक तारे के चारों ओर का क्षेत्र होता है। इस जोन में पृथ्वी जैसे किसी ग्रह की सतह न तो बहुत ठंडी होती है और न ही बहुत गर्म।

6. 09 जनवरी,को मनाया गया देशभर में 16वाँ प्रवासी भारतीय दिवस । साल 2003 में पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने की थी प्रवासी भारतीय दिवस की शुरुआत

7. आंध्र प्रदेश मंत्रिमंडल ने लिया राज्य की राजधानी को तीन अलग स्थानों पर स्थानांतरित करने का निर्णय। दक्षिण अफ्रीका मॉडल पर हो सकती हैं अब आंध्र प्रदेश राज्य की तीन विकेंद्रीकृत राजधानियाँ। घोषणा के अनुसार, निर्माणाधीन अमरावती विधायी राजधानी, तटवर्ती विशाखापत्तनम कार्यकारी राजधानी और कर्नूल न्यायिक राजधानी के रूप में स्थापित हो सकती है।

8. रूसी सेना में शामिल हुआ एक नया अंतर महाद्वीपीय मिसाइल सिस्टम। एवनगार्ड नाम की ये हाइपरसोनिक मिसाइल ध्वनि की गति से 27 गुना अधिक तेज़ी से चलकर हमला करने में है सक्षम। आपको बता दें कि ये मिसाइल सिस्टम 6000 किमी. दूर मौजूद अपने लक्ष्य को सफलतापूर्वक ख़त्म कर सकता है और क़रीब 2000 किग्रा. भार के परमाणु हथियार ले जाने में सक्षम है।

9. संचार मंत्रालय ने की दूरसंचार विभाग केंद्रीय उपकरण पहचान रजिस्टर' CEIR नामक पोर्टल की शुआत। ये पोर्टल दिल्ली राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में चोरी या खोए हुए मोबाइल फोन के लिए कुछ सेवाएं उपलब्ध कराएगा इनमें मोबाइल फोन को ब्लॉक करने और मोबाइल का पता लगाने में आसानी के लिए पुलिस के साथ संबंधित डेटा को साझा करने जैसी योजनाएं शामिल हैं।

10. WHO ने जारी की वैश्विक तंबाकू महामारी रिपोर्ट। इस रिपोर्ट में हुआ है तंबाकू की आदत छोड़ने वालों के संदर्भ में एम-सेसेशन कार्यक्रम का ज़िक्र

एम-सेसेशन, तंबाकू छोड़ने के लिये मोबाइल प्रौद्योगिकी पर आधारित एक पहल है। इस पहल के ज़रिए तंबाकू छोड़ने वाले व्यक्तियों और प्रोग्राम विशेषज्ञों के बीच दो-तरफा मैसेजिंग का इस्तेमाल होता है। साल 2016 में भारत ने सरकार के डिजिटल इंडिया पहल के तहत mCessation कार्यक्रम शुरू किया गया था। बीते दिनों सरकार ने “mTobaccoCessation” प्लेटफॉर्म का संस्करण- 2 जारी किया है।

11. 2018-19 में दीनदयाल अंत्‍योदय योजना - राष्‍ट्रीय शहरी आजीविका मिशन के तहत अच्छा काम करने वाले राज्यों का किया गया सम्मान। अच्छा काम करने वाले राज्यों में आंध्र प्रदेश को पहले, केरल को दूसरे और गुजरात तीसरे स्थान पर रहा है।

दीनदयाल अंत्योदय योजना-राष्ट्रीय शहरी आजीविका मिशन आवास और शहरी कार्य मंत्रालय की प्रमुख योजनाओं में शुमार है। राष्ट्रीय शहरी आजीविका मिशन का उद्देश्य शहरों में लाभोन्मुख स्वरोजगार एवं कौशल आधारित रोजगार के अवसरों को बढ़ावा देना है ताकि शहरी गरीब परिवारों की गरीबी एवं उनकी कठिनाईयों को दूर किया जा सके

12. डॉर्नियर-228 विमान हुआ वायुसेना में शामिल। वायुसैनिक अड्डों में लागू की गई आधुनिक एयरफील्‍ड अवसंरचना के बाद लाई गई स्‍वदेश निर्मित नैविगेशन सहायता प्रणाली के साथ तालमेल बनाने के लिए भारतीय वायुसेना में शामिल हुआ है डॉर्नियर-228 विमान

13. प्रोफेसर सुरेश चंद्र शर्मा बने राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग NMC के पहले अध्यक्ष। नया चिकित्सा शिक्षा नियामक एनएमसी भ्रष्टाचार के आरोपों वाली भारतीय चिकित्सा परिषद MCI की लेगा जगह ।

14. बेंगलुरू में हुआ 107वीं भारतीय विज्ञान कांग्रेस का आयोजन। विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी : ग्रामीण विकास’ रही है इस बार की भारतीय विज्ञान कांग्रेस की थीम . आपको बता दें कि रक्षा अनुसन्धान व विकास संगठन की वैज्ञानिक डॉ. टेसी थॉमस महिला विज्ञान कांग्रेस की मुख्य अतिथि थीं। ग़ौरतलब है कि डॉ. टेसी थॉमस भारत में किसी मिसाइल प्रोजेक्ट का नेतृत्व करने वाली पहली महिला हैं, साथ ही वे अग्नि-IV मिसाइल की प्रोजेक्ट डायरेक्टर रह चुकी हैं।

15. नेपाल की सुप्रीम कोर्ट ने दिया 1816 में हुई सुगौली संधि के दौरान भारत को सौंपे गए नक्शे की असली प्रति पेश करने का नेपाल सरकार को आदेश। अंग्रेजों और नेपालियों ने आपस में युद्ध खत्म करने के लिए किए थे 1816 में सुगौली संधि पर हस्ताक्षर

16. यूनिसेफ ने बताया साल 2020 के पहले दिन सबसे ज़्यादा भारत में जन्में 67385 बच्चे। इस मामले में चीन को मिला दूसरा स्थान

17. 28वें विश्व पुस्तक मेले का हो रहा है नई दिल्ली दिल्ली के प्रगति मैदान में आयोजन। गांधी-राइटर ऑफ राइटर्स है इस बार के विश्व पुस्तक मेले की थीम

18. रेल यात्रा के दौरान किसी भी शिकायत के लिए शुरू हुआ 139 नंबर। रेलवे के मुताबिक़ हेल्पलाइन नंबर 139 पर क़रीब 12 भाषाओं में किया जा सकता है संवाद। हालांकि, रेलवे की सुरक्षा से संबंधित हेल्पलाइन नंबर 182 का अस्तित्व बना रहेगा।

19. गुजरात में हुआ पहले सिल्‍क प्रोसेसिंग प्‍लांट का उद्घाटन। खादी एवं ग्रामोद्योग आयोग ने किया गुजरात के सुरेन्‍द्रनगर में पहले सिल्‍क प्रोसेसिंग प्‍लांट का उद्घाटन

सिल्‍क प्रोसेसिंग प्‍लांट रेशम के धागे की उत्‍पादन लागत में काफी लाएगा। साथ ही गुजराती पटोला साडि़यों के लिए स्‍थानीय स्‍तर पर कच्‍चे माल की उपलब्‍धता और बिक्री बढ़ाने में मदद करेगा।

20. ईरान के एक सैन्य कमांडर जनरल कासिम सुलेमानी की अमेरिकी हमले में मौत। अंतराष्ट्रीय राजनीति में मचा हड़कंप

ईरान के सबसे ताकतवर नेता आयतुल्लाह अली खामेनेई के बाद दूसरे सबसे ताकतवर शख्स थे जनरल कासिम सुलेमानी।

21. श्रम मंत्रालय शुरू कर रहा है संतुष्ट वेब पोर्टल। कामगारों, नियोक्ताओं की शिकायतों के शीघ्र निवारण और श्रम कानूनों के जमीनी स्तर पर लागू करने के मकसद से हो रही है इस पोर्टल की शुरुआत

22. शोधकर्ताओं ने की आंत से जुड़े कई तरह के कैंसर को बढ़ने में मदद करने वाली इम्पोर्टिन-11 प्रोटीन की खोज। शोधकर्ताओं के मुताबिक़ इस प्रोटीन को रिलीज होने से रोक कर रोका जा सकता है कैंसर के बढ़ने का खतरा। दरअसल इम्पोर्टिन-11 नामक प्रोटीन कैंसर के लिए उत्तरदायी प्रोटीन बीटा कैटेनिन को आंत कैंसर की कोशिकाओं के केंद्र में पहुंचाता है और उनकी संख्या को बढ़ा देता है।

23. इंडोनेशिया के पश्चिम मध्य सुमात्रा के जंगलों में मिला दुनिया का सबसे बड़ा फूल। वन्य जीव अधिकारियों के मुताबिक, रेफलिसिया है इस फूल का नाम। आपको बता कि ये फूल 4 वर्ग फीट में फैला है। रेफलिसिया फूल केसिरया आसमानी और सफेद रंग का होता है। यह एक परजीवी पौधा है। इस पौधे से बहुत दुर्गंध आती है।

24. 120 भाषाओं में गाना गाने वाली 14 वर्षीय सुचेता सतीश को मिला ग्लोबल चाइल्ड प्रोडिजी अवॉर्ड 2020। दुबई में रहती हैं भारतीय मूल की सुचेता ।

ग्लोबल चाइल्ड प्रोडिजी अवॉर्ड नृत्य, संगीत, कला, लेखन, अभिनय, मॉडलिंग, विज्ञान, खेल आदि में बच्चों की प्रतिभा को सामने लाने का एक मंच है।

25. एक बार चार्ज होने के बाद लगातार पांच दिनों तक आपके स्मार्टफोन को पावर दे सकती है लिथियम-सल्फर बैटरी। इसके अलावा इस बैटरी के बड़े स्वरूप के ज़रिए किसी इलेक्ट्रिक वाहन को 1,000 किमी तक आसानी से चलाया जा सकता है।

इस बैटरी की खासियत है कि बार-बार चार्ज करने पर भी इसकी ऊर्जा देने की क्षमता में कमी नहीं आती। यह बैटरी सल्फर-आयन से बनने वाली बैटरी से पांच गुना अधिक शक्तिशाली है।

26. ऑस्‍ट्रेलिया के उत्‍तर पश्चि‍मी तट पर साइक्‍लोन का पूर्वानुमान। 125 किमी प्रति घंटे की रफ्तार से हवा चलने की जताई गई है आशंका ।

27. विज्ञान को लोकप्रिय बनाने के लिये चेन्नई के रहने वाले कंप्यूटर वैज्ञानिक आर. रामानुजम को मिला साल 2020 का इंदिरा गांधी पुरस्कार। 1986 में भारतीय राष्ट्रीय विज्ञान अकादमी द्वारा स्थापित किया गया था ये प्रुस्कार।

इस पुरुस्कार का उद्देश्य देश भर में विज्ञान को लोकप्रिय बनाना है। हर तीन साल पर ये पुरूस्कार किसी मीडिया पेशेवर या किसी वैज्ञानिक को दिया जाता है।

28. सी.के. नायुडू लाइफटाइम अचीवमेंट अवार्ड’ से सम्मानित किए जायेंगे पूर्व भारतीय क्रिकेटर कृष्णामचारी श्रीकांत। BCCI द्वारा दिया जाता है ये प्रतिष्ठित सम्मान

29. इंग्लैंड के बिर्मिंघम शहर में किया जाएगा राष्ट्रमंडल खेल 2022 का आयोजन। तीसरा बार इंग्लैंड में आयोजित हो रहा है राष्ट्रमंडल खेल

30. बिहार में हुई ‘जल-जीवन-हरियाली’ योजना की शुरुआत है। इस योजना के तहत जलवायु परिवर्तन और जल संरक्षण के बारे में लोगों में फ़ैलाई जाएगी जागरूकता
 

तो इस सप्ताह के इण्डिया दिस वीक कर्यक्रम में इतना ही। परीक्षा के लिहाज़ से ज़रूरी और भी तमाम महत्वपूर्ण ख़बरों के लिए सब्सक्राइब कीजिए हमारे यूट्यूब चैनल ध्येय IAS को। नमस्कार।