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Blog / 11 Mar 2019

(Global मुद्दे) ट्रम्प-किम वार्ता (Trump - Kim Summit)

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(Global मुद्दे) ट्रम्प-किम वार्ता (Trump - Kim Summit)


एंकर (Anchor): कुर्बान अली (पूर्व एडिटर, राज्य सभा टीवी)

अतिथि (Guest): मीरा शंकर (पूर्व राजदूत, अमेरिका), प्रो. अब्दुल नाफ़े (अमरीकी मामलों के जानकार और विश्लेषक)

सन्दर्भ:

पिछले महीने वियतनाम की राजधानी हनोई में उत्तर कोरियाई शासक किम जोंग और अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प की मुलाक़ात हुई। ट्रम्प और किम की ये दूसरी मुलाक़ात थी। दोनों नेताओं की इस मुलाक़ात के कई कयास लगाए जा रहे थे। हालांकि इस मुलाक़ात के दौरान किसी भी समझौते पर सहमति नहीं बन पाई है। पिछले साल भी ये दोनों नेता सिंगापुर में मिले थे और इस दौरान कई महत्वपूर्ण मुद्दों पर काम करने को लेकर रज़ामंदी हुई थी। लेकिन पिछली मुलाक़ात के दौरान हुए फैसलों का भी अभी तक कोई ठोस नतीजा नहीं निकला है।

हनोई में हुई वार्ता के दौरान उत्तर कोरिया ने अपने मौजूदा हालात को सुधारने की कोशिश की। उत्तर कोरिया ख़ुद पर लगे आर्थिक प्रतिबंधों को हटाए जाने के बदले अपने कई परमाणु कार्यक्रमों को बंद करने पर राज़ी हुआ । जबकि राष्ट्रपति ट्रंप फिलहाल उत्तर कोरिया पर लगे सभी प्रतिबंधों को हटाने के पक्ष में नहीं हैं। साथ ही राष्ट्रपति ट्रंप का कहना ये भी है कि उत्तर कोरिया का परमाणु हथियारों के साथ कोई भी आर्थिक भविष्य नहीं है। वहीं उत्तर कोरिया का मनाना है कि हमने अपनी वाजिब मांगों को अमेरिका के सामने रखा था। हम अपने परमाणु अनुसंधान केंद्र को बंद करने के बदले आर्थिक प्रतिबंधों में ढील चाहते थे। क्यूंकि प्रतिबंधों की वजह से हमारी अर्थव्यवस्था और जनजीवन प्रभावित हो रहा है।

उत्तर कोरिया पिछले क़रीब 2 दशकों से परमाणु परीक्षण कर रहा है। परमाणु परीक्षणों के चलते ही संयुक्त राष्ट्र और अमेरिका ने उत्तर कोरिया पर कई प्रतिबन्ध लगाए हैं। मौजूदा समय में उत्तर कोरिया के हालात काफी ख़राब हैं। आर्थिक प्रतिबंधों के कारण उत्तर कोरियाई अर्थव्यवस्था संकट में है।

बैंक ऑफ कोरिया के एक अनुमान के मुताबिक़ उत्तर कोरिया की अर्थव्यवस्था ने पिछले दो दशकों में भारी गिरावट देखी है। इसके अलावा उत्तर कोरिया में कुपोषण और गरीबी भी अपने चरम पर है। 2017 में जारी संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट के मुताबिक़ उत्तर कोरिया के लोग लंबे समय से खाद्य असुरक्षा का सामना कर रहे हैं।

कोरियाई प्रायद्वीप संकट काफी पुराना है। 1910 से 1945 तक कोरिया जापान के कब्ज़े में था। लेकिन 1945 में द्वितीय विश्व युद्ध के समाप्त होने के बाद कोरियाई प्रायद्वीप उत्तर और दक्षिण दो हिस्सों में बंट गया।

1948 तक आते आते इन दोनों इलाक़ों को एक अलग देश के रूप में मान्यता भी मिली। अलग देश बनने के बाद 1950 में उत्तर कोरिया ने रूस और चीन की मदद से दक्षिण कोरिया पर आक्रमण कर दिया। दक्षिण कोरिया पर हुए हमले का अमेरिका समेत 16 अन्य संयुक्त राष्ट्र गठबंधन के देशों ने मिलकर जवाब दिया। जिसके बाद कोरियाई प्रायद्वीप में लगभग 3 साल तक युद्ध चलता रहा।

जुलाई 1953 को हुए युद्धविराम के ऐलान बाद से ही उत्तर कोरिया और दक्षिण कोरिया के बीच तनाव बना हुआ था। लेकिन साल 2018 की शुरुआत में उत्तर और दक्षिण कोरिया के राष्ट्राध्यक्षों के बीच हुई मुलाक़ात के बाद से ही कोरियाई प्रायद्वीप में तनाव कम होने के कयास लगाए जा रहे हैं। अमेरिका और उत्तर कोरिया में हुई बातचीत भी कोरियाई प्रायद्वीप में कम हुए तनाव का ही नतीज़ा है। इसके अलावा अमेरिका और दक्षिण कोरिया ने तनाव और कम करने के लिए किसी भी तरह के सैन्य अभ्यास नहीं करने का भी उत्तर कोरिया को भरोसा दिलाया है।

कोरियाई प्रायद्वीप में चले तनाव के पीछे कई और देशों का भी हाथ रहा है। एक ओर जहां चीन और रूस उत्तर कोरिया के समर्थन में हैं तो वहीं जापान और अमेरिका समेत कई और भी देश दक्षिण कोरिया के साथ हैं। उत्तर कोरिया की यहां चाहत ये है कि कोरियाई प्रायद्वीप में मौजूद अमेरिकी सैनिक वापस लौट जाएं। साथ ही उसके परमाणु कार्यक्रम भी पूरी तरह से बंद न होने पाए। उत्तर कोरिया को डर है कि अगर वो ख़ुद को परमाणु मुक्त बनाता है तो कहीं उसका हाल भी इराक़, लीबिया और अफ़ग़ानिस्तान जैसे देशों जैसा न हो जाए।

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