(Global मुद्दे) UAE में पोप (Pope in UAE)
एंकर (Anchor): कुर्बान अली (पूर्व एडिटर, राज्य सभा टीवी)
अतिथि (Guest): अनिल त्रिगुनायत (पूर्व राजदूत), क़मर आग़ा (पश्चिम एशियाई मामलों के जानकार)
सन्दर्भ:
पोप फ़्रांसिस कैथलिक समुदाय के 266वें धर्मगुरु हैं। पोप फ़्रांसिस शुरू से ही अलग - अलग धर्मों से बातचीत करने पर जोर देते रहे हैं। अबुधाबी के क्राउन प्रिंस शेख़ मोहम्मद बिन ज़ायद ने 2016 में पोप फ्रांसिस को UAE आने का प्रस्ताव दिया था। पोप फ़्रांसिस की ये यात्रा UAE के "ईयर ऑफ़ टॉलेरेंस" का हिस्सा थी। UAE ने 2019 को "ईयर ऑफ़ टॉलेरेंस" घोषित किया है। जिसका मक़सद समाज से वैचारिक, सांस्कृतिक और धार्मिक कट्टरता को समाप्त करना है।
पोप फ़्रांसिस की इस यात्रा को कई मायनों में महत्वपूर्ण माना जा रहा है। लम्बे समय से ईसाई और मुस्लिम समाज के बीच चल रहे संघर्ष के लिहाज़ से ये दौरा काफी अहम है। ईसाई और मुस्लिम समुदाय का विवाद मध्य पूर्व के यरूशलम शहर से जुड़ा हुआ है। ये शहर इस्लाम और ईसाई धर्म के लिए पवित्र स्थान माना जाता है। जिसको ईसाई और इस्लाम धर्म के साथ यहूदी लोग भी अपना मानते हैं। यही वजह है कि यहां मुसलमानों, यहूदियों और ईसाइयों के बीच लड़ाईयां होती रही हैं।
पोप फ़्रांसिस ने अपने इस दौरे में अल अज़हर के ग्रैंड इमाम शेख़ अहमद - अल - तैय्यब से भी मुलाक़ात की। दुनिया के 2 सबसे बड़े धर्मगुरुओं ने विश्व शांति के लिए एक संयुक्त घोषणा पत्र पर दस्तख़त भी किए। घोषणा पत्र में विश्व शांति और मानवीय भाईचारे को बढ़ावा देने पर जोर दिया गया। साथ ही दोनों धर्मगुरुओं ने आस्था की आज़ादी, सहिष्णुता को बढ़ावा, धार्मिक जगहों के संरक्षण और अल्पसंख्यकों को पूर्ण नागरिक अधिकार दिए जाने पर भी सहमति जताई।
पोप फ़्रांसिस का ये दौरा यमन में जारी युद्ध के दौरान हुआ। पोप ने यमन में जारी युद्ध को समाप्त किए जाने की गुज़ारिश की। पोप ने इसके लिए सऊदी अरब और उसके सहयोगी देशों को जिम्मेदार बताया। साथ ही मध्य पूर्व के सीरिया, इराक़ और लीबिया जैसे देशों के संकट को भी जल्द से जल्द ख़त्म किए जाने की अपील की।
जानकारों का मानना है कि UAE एक आधुनिक अरब राष्ट्र है, जो सहिष्णुता के ज़रिए पूरी दुनिया में अलग छवि बनाना चाहता है। इससे पहले 2017 में UAE ने एक नेशनल टोलेरेंस प्रोग्राम शुरू किया था। जिसका मक़सद दूसरे देशों से आए लोगों के बीच समझ और संवाद क़ायम करना था। UAE के इस कदम की दुनिया भर में सराहना की जा रही है। पोप फ़्रांसिस का ये दौरा ईसाई और इस्लाम धर्म के बीच एक पुल की तरह तो काम करेगा ही साथ ही UAE का ये क़दम कट्टरपंथ को बढ़ावा देने वाले देशों के लिए भी एक मिसाल होगा, जो एशिया सहित पूरी दुनिया के हित में रहेगा।