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Blog / 26 Jun 2019

(Global मुद्दे) ईरान की बढ़ती मुश्किलें (Iran: Increasing Troubles)

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(Global मुद्दे) ईरान की बढ़ती मुश्किलें (Iran: Increasing Troubles)


एंकर (Anchor): कुर्बान अली (पूर्व एडिटर, राज्य सभा टीवी)

अतिथि (Guest): मीरा शंकर (पूर्व राजदूत - अमेरिका), क़मर आग़ा (कूटनीतिक मामलों के जानकार)

चर्चा में क्यों?

अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने ईरान पर और कड़े प्रतिबंध लगाए जाने का ऐलान किया है। साथ ही ट्रंप ने ये भी कहा कि अमेरिका ईरान के खिलाफ सैन्य कार्रवाई पर भी विचार कर रहा है। उन्होंने कहा कि अगर ईरान परमाणु हथियार का त्याग कर दे तो अमेरिका ईरान का "सबसे अच्छा दोस्त" साबित होगा।

  • ग़ौरतलब है कि बीते सप्ताह ईरान ने अमेरिकी सर्विलांस ड्रोन को मार गिराया था जिसके चलते अमेरिका और ईरान के बीच तनाव काफी बढ़ गया है।
  • इस बढ़ते तनाव के बीच भारतीय विमान कंपनियां अब ईरानी हवाई क्षेत्र के इस्तेमाल से बचने के लिए अपनी उड़ानों का रास्ता बदलेंगी।

क्यों बढ़ गया अमेरिकी-ईरान तनाव?

  • परमाणु क़रार का रद्द होना: साल 2015 में, जर्मनी समेत संयुक्त राष्ट्र के पांच स्थायी सदस्यों (P5+1) और ईरान के बीच एक परमाणु समझौता हुआ। समझौते के मुताबिक़ ईरान को अपने संवर्धित यूरेनियम भंडार को कम करने और अपने परमाणु संयंत्रों को संयुक्त राष्ट्र के निरीक्षकों को निगरानी की इजाज़त देनी थी। इसके अलावा इस समझौते के तहत ईरान को हथियार और मिसाइल ख़रीदने की भी मनाही थी। अमेरिका इन समझौते के बदले ईरान को तेल और गैस के कारोबार, वित्तीय लेन देन, उड्डयन और जहाज़रानी के क्षेत्रों में लागू प्रतिबंधों में ढील देने के लिए राजी था। लेकिन अमेरिका में रिपब्लिकन पार्टी को ये डील रास नहीं आयी और उन्होंने कहा कि अगर उनकी पार्टी सत्ता में आती है तो वे इस डील को रद्द कर देंगे। इसी के मुताबिक़ ट्रम्प प्रशासन ने पिछले साल इस परमाणु समझौते से बाहर होने का निर्णय ले लिया।
  • ईरान पर प्रतिबंधों का लगाया जाना: ईरान की अर्थव्यवस्था कमज़ोर करने के लिहाज़ से अगस्त, 2018 में अमेरिकी प्रशासन ने वे सभी प्रतिबंध फिर से उस पर लगा दिए जिन्हें परमाणु करार के तहत हटा लिया गया था। अमेरिका का मानना था कि आर्थिक दबाव के चलते ईरान नए समझौते के लिये तैयार हो जाएगा और अपनी हानिकारक गतिविधियों पर रोक लगा देगा।
  • अमेरिका द्वारा आइजीआरसी को आतंकी संगठन घोषित करना: अमेरिका ने बीते आठ अप्रैल को ईरान के इस्लामिक रिवोल्यूशनरी गार्ड कॉर्प्स यानी आइजीआरसी को आतंकी संगठन घोषित किया। ऐसी पहली बार हुआ है कि किसी देश द्वारा किसी दूसरे देश के सरकारी सुरक्षा एजेंसी को आतंकी संगठन घोषित किया गया हो। बदले में ईरान ने भी अमेरिकी सेना को आतंकी समूह क़रार दे दिया।
  • तेल टैंकरों पर हमले के कारण तल्ख़ी और बढ़ गई: होरमूज स्ट्रेट में बीते 13 मई को चार अमेरिकी तेल टैंकरों पर हमला किया गया। अमेरिका को लगता है कि ये हमला ईरान ने कराया है लेकिन ईरान ने इन आरोपों को खारिज कर दिया। इसके बाद 24 मई को अमेरिकी प्रशासन ने इस क्षेत्र में अपनी स्थिति और मजबूत करने के लिहाज़ से 1500 और सैनिकों को भेजने का फैसला लिया।
  • ईरान ने अमेरिकी ड्रोन को मार गिराया: ईरान ने 20 जून को एक अमेरिकी ड्रोन को मार गिराया। ईरान ने दलील दी कि ड्रोन उसकी वायु सीमा में प्रवेश कर रहा था इसलिए इसे निशाना बनाया गया। लेकिन अमेरिका का कहना था कि ड्रोन अंतरराष्ट्रीय जल सीमा पर था। ईरान ने कहा कि अमेरिका चाहे कोई भी फैसला करे लेकिन ईरान अपनी सीमाओं का उल्लंघन बर्दाश्त नहीं करेगा और वो हर खतरे का जवाब देने को तैयार है।

ईरान की प्रतिक्रया

अमेरिका के इस क़दम के बाद ईरान अपने आप को अलग-थलग महसूस करने लगा। इस हालात में, उसने न्यूक्लीअर डील में तय की गयी यूरेनियम स्टॉकपाइल लिमिट को तोड़ते हुए अपने यूरेनियम संवर्द्धन को बढ़ा दिया।

साथ ही ईरान ने दुनिया को चेतावनी दी कि अगर उसे अलग-थलग किया जाता है तो वो ईरान होर्मुज जलडमरूमध्य (Hormuz Strait) को बंद कर देगा।

क्यों अहम् है होर्मुज जलडमरूमध्य (Hormuz Strait)?

होर्मुज स्ट्रेट के ज़रिए वैश्विक तेल ज़रूरत की ज़रूरत का लगभग पांचवा हिस्सा गुज़रता है। सऊदी अरब, ईरान, यू.ए.ई., कुवैत और इराक से निर्यात किया जाने वाला ज़्यादातर कच्चा तेल को इसी जलमार्ग के ज़रिए भेजा जाता है।

  • होर्मुज स्ट्रेट फ़ारस की खाड़ी को ओमान की खाड़ी और अरब सागर से जोड़ता है, और ईरान को अरब प्रायद्वीप से अलग करता है।

अमेरिका-ईरान तनाव में यूरोपीय देशों का रुख़

यूरोपीय देश अमेरिका के ईरान पर सख़्त रवैये से सहमत नहीं हैं। उनका मानना है कि अमेरिका ईरान के बीच बढ़ता तनाव नुकसानदेह साबित हो सकता है।

  • ज़्यादातर यूरोपीय देश ईरान के बढ़ते ख़तरे के लिए अमेरिका को ज़िम्मेदार मानते हैं जिसमें परमाणु डील से बाहर होने और अन्य तरीकों के ज़रिए ईरान को घेरने वाले फैसले शामिल हैं।
  • दरअसल यूरोपीय देश अमेरिका और ईरान के बीच फंसे हुए हैं। वे एक ओर जहां अमेरिका से भी रिश्ता बनाए रखना चाहते हैं तो दूसरी तरफ वे ईरान को भी छोड़ना नहीं चाहते।
  • ग़ौरतलब है कि साल 2015 के परमाणु समझौते के बाद यूरोपीय कंपनियों ने ईरान में तेल शोधन, मेडिसिन और इंफ्रास्ट्रक्चर के क्षेत्र में काफी निवेश किया है। यूरोपीय देशों के ईरान में इस निवेश रोज़गार के भी अवसर बने हैं। ऐसे में इस तल्ख़ी के कारण ये निवेश खतरे में आ सकते हैं।

परमाणु डील पर अंतर्राष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा अधिकरण क्या कहता है?

अंतर्राष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा अधिकरण का मानना है कि ईरान परमाणु समझौते का पालन कर रहा है। इस संगठन के मुताबिक़ ईरान ने साल 2015 के समझौते के तहत अपने क़रीब 9 टन अल्प संवर्धित यूरेनियम भण्डार को कम करके 300 किलोग्राम पर लाने की शर्त स्वीकार कर ली थी। इस हिसाब से ईरान ने परमाणु समझौते का उल्लंघन नहीं किया है।

साल 2020 का अमेरिकी चुनाव और अमेरिका-ईरान तनाव

जानकारों के मुताबिक़ अमेरिका में राष्ट्रपति चुनाव के एक साल और बचा है। ऐसे में अमेरिकी प्रशासन को कोई ऐसा मुद्दा चाहिए जो कि चुनाव तक बना रहे। इसके अलावा विशेषज्ञ बताते हैं कि ट्रम्प का ईरान पर हमला मनोवैज्ञानिक है। ज़रूरी नहीं है कि ईरान और अमेरिका के बीच युद्ध हो। अमेरिकी प्रशासन इस मामले में इतना सतर्क है कि वो चाहता है कि युद्ध से मिलने वाले फायदे बिना युद्ध के ही मिल जाएं।

दरअसल ट्रंप की नज़र साल 2020 के चुनाव पर है। उन्होंने चुनाव के दौरान किए गए अपने वादे निभाए हैं। चाहें परमाणु करार तोड़ना हो या फिर आर्थिक प्रतिबंधों से ईरान की कमर तोड़नी हो। ऐसे हालत में ट्रम्प ईरान के साथ युद्ध कर खाड़ी क्षेत्र में कोई अस्थिरता नहीं पैदा करना चाहते। दरअसल युद्ध से हमलावर देश की अर्थव्यवस्था, स्थिरता और विकास की गति भी धीमी पद जाती है।

अमेरिका ईरान तनाव का भारत पर असर

आर्थिक प्रभाव: इराक़ और सऊदी अरब के बाद ईरान भारत का तीसरा सबसे बड़ा तेल आपूर्तिकर्ता देश है। ईरान से कच्चे तेल का आयात नहीं कर पाने के कारण भारत के हितों को चोट पहुंच सकती है। प्रतिबंधों के कारण तेल के दाम में बढ़ने से पैदा होने वाली मुद्रास्फीति भारत के लिए मुख्य समस्या होगी। कच्चे तेल की कीमतों में उछाल के बाद भारत में पेट्रोल और डीजल के दाम बढ़ सकते हैं। अमेरिका के इस फैसले का असर डॉलर के मुकाबले पैसों पर भी पड़ सकता है।

मानवीय संकट: अमेरिका और ईरान के बीच चल रहा तनाव के कारण इन क्षेत्रों में रहने वाले भारतीयों को भी प्रभावित करने वाला है क्योंकि कोई भी तनावपूर्ण परिस्थिति उनके जीवन को जोख़िम में डाल सकती है। तनाव के कारण कई सारे भारतीय लोगों को इन क्षेत्रें से सुरक्षित निकालना पड़ेगा जैसा पहले भी किया जा चुका है।

भारत ईरान से कितना तेल आयात करता है?

भारत अपनी ज़रूरत का क़रीब 80% तेल आयात करता है। भारत ने साल 2017 -18 में ईरान से 220.4 मिलियन टन तेल का आयात किया था लेकिन प्रतिबंधों के बाद ईरान से तेल आयात में कमी आई है। प्रतिबंधों के बाद भारत ने ईरान से हर महीने 1.5 मिलियन टन की ही खरीद की, जबकि प्रतिबंधों के पहले भारत हर महीने क़रीब 22.6 मिलियन टन तेल का आयात करता था।

तेल आयात के मामले में ईरान क्यों अहम् है भारत के लिए

दरअसल ईरान भारत को तेल आयत पर कई तरह की छूट देता है।

  • इन छूटों में - भुगतान के लिए अतिरिक्त दिन का समय, मुफ़्त बीमा और शिपिंग शामिल है। ऐसे में अमेरिकी प्रतिबंधों के लगने से इसका असर सीधे भारत पर पड़ेगा।
  • सबसे अच्छी बात ये है कि ईरान से भारत डॉलर में नहीं बल्कि रूपये में तेल आयत करता है।
  • विषेशज्ञों के मुताबिक़ भारत को उसकी ज़रूरत का तेल तो मिल जायेगा लेकिन मुश्किल ये है ईरान जैसी सहूलियतें शायद ही कोई देश भारत को दे सके।

ईरान नहीं, तो कहाँ से तेल खरीदेगा भारत?

प्रतिबंधों के बाद भारत की सबसे बड़ी तेल कंपनी इंडियन आयल ने अमेरिका से तेल खरीदने का समझौता किया है। बताया जा रहा है कि इंडियन आयल ईरान से खरीदे जाने वाले कुल तेल का क़रीब आधा हिस्सा अब अमेरिका से आयात करेगी। इंडियन आयल साल 2019 -20 में अमेरिका से 46 लाख तन क्रूड आयल आयात करेगा।

अलग-थलग पड़ने के बाद ईरान अपने विदेश संबंधों को बेहतर बना रहा है

बीते 15 मई को ईरान के विदेश मंत्री जवाद ज़रीफ़ भारत की यात्रा पर थे। भारत दौरे पर आए ईरान के विदेश मंत्री ने मौजूदा हालात पर तत्कालीन भारतीय विदेश मंत्री से चर्चा की थी। चर्चा में, भारत ने लोकसभा चुनावों के बाद ही ईरान से तेल आयात पर कोई निर्णय लेने का फैसला किया था। भारतीय विदेश मंत्री के मुताबिक़ भारत अपने व्यवसायिक, आर्थिक और ऊर्जा ज़रूरतों को ध्यान में रखते हुए फैसला लेगा।

बहरहाल चाबहार बंदरगाह पर नहीं है कोई प्रतिबन्ध

एक महत्वपूर्ण पहलू ये है कि अमेरिका ने चाबहार बंदरगाह के विकास पर कोई प्रतिबंध नहीं लगाया है। चाबहार क्षेत्र का विकास भारत के लिए रणनीतिक रूप से बहुत महत्वपूर्ण है क्योंकि यह अफगानिस्तान के प्रवेश द्वार होने के साथ-साथ मध्य एशिया का भी प्रवेश द्वार होगा। इसके साथ यह क्षेत्र पाकिस्तान को सामरिक रूप से घेरने में भी महत्वपूर्ण है।

अमेरिका-ईरान तनाव और भारत के विकल्प

भारत हमेशा से ये कहता आया है कि वो संयुक्त राष्ट्र के प्रतिबंधों का पालन करता है, न कि एकतरफा प्रतिबंधों का। हालाँकि जैश-ए-मोहम्मद के प्रमुख मसूद अज़हर को आतंकी सूची में शामिल करने में अमेरिका की भूमिका के कारण भारत के कूटनीतिक अवसर अब थोड़े सीमित हैं।

भारत ने अब तक ईरान से किसी भी तेल आयात का अनुबंध नहीं किया है। दरअसल भारत का फॉर्मूला 'वाणिज्यिक विचार, ऊर्जा सुरक्षा और आर्थिक हितों की सुरक्षा' है। ऐसे में भारत का ये फॉर्मूला तेल आयात में उपलब्ध विकल्पों में भारत की मदद करेगा। इसमें ईरान को छोड़ने का जोख़िम नहीं नहीं उठाया जा सकता क्योंकि सभ्यता और ऐतिहासिक रूप से भारत का शिया ईरान के साथ घनिष्ठ संबंध रहा है, जबकि सऊदी अरब के पाकिस्तान के साथ घनिष्ठ रणनीतिक संबंध है। कश्मीर में ईरान के प्रभाव को ध्यान में रखते हुए भारत सरकार ईरान को चीन और पाकिस्तान की ओर नहीं धकेलना चाहेगी।