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Blog / 27 Jul 2019

(Global मुद्दे) नई सरकार की विदेश नीति (Foreign Policy of New Government)

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(Global मुद्दे) नई सरकार की विदेश नीति (Foreign Policy of New Government)


एंकर (Anchor): कुर्बान अली (पूर्व एडिटर, राज्य सभा टीवी)

अतिथि (Guest): शिवशंकर मुखर्जी (पूर्व सचिव, विदेश मंत्रालय), प्रो. हर्ष पंत (कूटनीतिक तथा सामरिक मामलों के जानकार)

चर्चा में क्यों?

अपने पहले कार्यकाल में नेबरहुड पॉलिसी को लेकर प्रतिबद्ध रही मौजूदा NDA सरकार अपने दूसरे कार्यकाल में भी विदेश नीति को लेकर काफी सक्रिय है। बीते दिनों शपथ ग्रहण समारोह में एक बार फिर नेबरहुड पॉलिसी पर ज़ोर देते हुए बिम्सटेक देशों को आमंत्रित किया गया था। इसके अलावा नई सरकार बनने के तुरंत बाद ही भारत ने मालदीव और श्रीलंका का भी दौरा किया है। पड़ोस पहली की नीति को तरज़ीह देते हुए भारतीय विदेश मंत्री भी बीते दिनों भूटान दौरे पर थे जहां उन्होंने दोनों देशों के बीच आर्थिक विकास को बढ़ावा देने के मुद्दे पर बातचीत की है। हालाँकि मौजूदा वक़्त में भारतीय विदेश नीति कई कारणों से प्रभावित भी हैं। इनमें ईरान तेल संकट, अमेरिकी द्विपक्षीय व्यापार और चीन की मज़बूत होती BRI परियोजना जैसी मुश्किलें भारतीय विदेश नीति के लिए चिंता के विषय बने हुए है।

विदेश नीति - मक़सद, महत्व और निर्भरता

विदेश नीति किसी भी देश के लिए बहुत ख़ास मायने रखती है। विदेश नीति के ज़रिए ही कोई देश किसी दूसरे मुल्क़ के साथ बेहतर सम्बन्ध बनाकर अपने राष्ट्रीय हितों को हांसिल करता है। विदेश नीति के कुछ मक़सद होते हैं जिनमें राष्ट्रीय सुरक्षा, आर्थिक विकास और विश्व व्यवस्था को बेहतर बनाए रखने जैसे ज़रूरी लक्ष्य शामिल होते हैं। इसके अलावा किसी भी देश की विदेश नीति उसके अंदरूनी और बाहरी माहौल के आधार पर निर्धारित की जाती है, जिसमें भौगोलिक स्थिति, ऐतिहासिक विरासत, व्यक्तित्व, और विचारधाराओं का भी काफी योगदान होता है। साथ ही राजनीतिक जवाबदेही, सामाजिक संरचना और किसी देश के अंतर्राष्ट्रीय संधियों में शामिल होना भी उस देश की विदेश नीति में अहम भूमिका निभाता है।

भारतीय विदेश नीति

भारत में विदेश नीति और कूटनीति की एक लंबी परंपरा रही है। ये प्राचीन काल में शुरू हुई है जो अब तक जारी है। चाणक्य को अक्सर भारतीय कूटनीतिक परंपरा का जनक माना जाता है। औपनिवेशिक काल में, ब्रिटिश भारत ने एक ऐसी नीति अपनाई जो मुख्य रूप से औपनिवेशिक सत्ता के हितों द्वारा तय की गई थी। 15 अगस्त 1947 को आज़ादी मिलने के बाद विदेश नीति देश के हिसाब से परिभाषित किया गया। विदेश नीति का उदेश्य भारत के हितों की रक्षा करना और उन्हें बढ़ावा देना है। इसके अलावा भारतीय विदेश नीति में पड़ोस में शांति हासिल करना, व्यापार बढ़ाना, विदेशी निवेश आकर्षित करना और वैश्विक क्षेत्र में प्रमुख भूमिका निभाने जैसे लक्ष्य भी शामिल है। ग़ौरतलब है कि भारतीय विदेश नीति भारत द्वारा संचालित हैं युगों पुरानी सूक्ति - 'दुनिया एक परिवार है' पर आधारित है।

पंचशील सिद्धांत

1954 में पंचशील सिद्धांत का निर्माण हुआ। पंचशील सिद्धांत के तहत पांच सिद्धांतों का निर्माण किया गया जिससे भारत और चीन के मध्य आर्थिक और सुरक्षा सहयोग को बढ़ावा दिया गया।

गुटनिरपेक्ष आन्दोलन

जवाहर लाल नेहरू की अगुआई में भारत ने साल 1961 में असंयुक्त आंदोलन (NAM) की स्थापना में सहभागिता की । जिसके तहत विकाशील देशों ने पश्चिमी व पूर्वी ताकतों को समर्थन देने से इंकार किया ।

भारत सोवियत संघ संधि

1971 में इंदिरा गाँधी की अगुआई में भारत ने सोवियत संघ के साथ संधि की, जिसके तहत भारत और सोवियत संघ के मध्य दोस्ती और आपसी सहयोग को बढ़ावा मिला। इस संधि को अमेरिका और चीन के पाकिस्तान के साथ बढ़ते सम्बन्धो के उत्तर में भी देखा जाता है ।

गुजराल डॉक्ट्रिन

1996 में बने गुजराल सिद्धांत उस समय के विदेश मंत्री रहे इन्दर कुमार गुजराल की विदेश नीति को लेकर सिद्धांतों को कहा जाता है इन सिद्धांतों के तहत पडोसी देशों की बिना किसी स्वार्थ के मदद करने की बात कही गई ।

नुक्लेअर डॉक्ट्रिन

भारत ने प्रथम नुक्लेअर परिक्षण 1974 तथा दूसरा परिक्षण 1991 में किया जिसके बाद भारत अपने परमाणु सिद्धांत के साथ सामने आया । इस सिद्धांत के अनुसार भारत तब तक किसी देश पर हमला नहीं करेगा जब तक भारत पर हमला न किया जाये साथ ही भारत किसी गैर नुक्लेअर राष्ट्र पर नुक्लेअर हमला नहीं करेगा ।

NDA सरकार के पहले कार्यकाल के दौरान भारतीय विदेश नीति (2014 - 2018)

मई 2014 में जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देश की बागडोर संभाली तब उनकी विदेश नीति का मुख्य उद्देश्य भारत की बेहतर छवि बनाने और भारत को विश्वपटल पर एक उभरती हुई शक्ति के रूप में दिखाने का था जिसके तहत उन्होंने विभिन्न राष्ट्रों की सरकारों के सामने “मेक इन इंडिया” का प्रस्ताव रखा। इसी प्रस्ताव के चलते FDI के नियमों में भी बदलाव किये गए। प्रवासी भारतियों के साथ संबंधों को भी नयी विदेश नीति के तहत ही बढ़ाया गया ।

पड़ोस पहले की नीति पर काम करते हुए NDA सरकार ने सार्क देशों को शपथ ग्रहण समारोह में बुलाया था। NDA सरकार ने अपने पहले कार्यकाल के दौरान विकसित विदेश नीति' के सिद्धांतों पर काम किया है जिससे भारतीय कूटनीति काफी मज़बूत हुई है। पुरानी सरकारों द्वारा वैश्विक स्तर पर हल किए मुद्दों को मौजूदा सरकार ने प्राथमिकता देते हुए आगे बढ़ाया है। इन कामों में बांग्लादेश के साथ हुआ भूमि सीमा समझौता और अमेरिका के साथ हुए असैन्य परमाणु समझौते जैसे महत्वपूर्ण मुद्दे शामिल थे। इसके अलावा यूरोपीय देशों और भारत के संबंधों को प्रभावित करने वाले 'इतालवी मरीन मामले' मामले पर भी मौजूदा सरकार ने ज़ोर दिया। इतालवी मरीन मामले के चलते यूरोप, भारत को मिसाइल प्रौद्योगिकी नियंत्रण व्यवस्था MTCR में शामिल होने से रोक रहा था।

NDA कार्यकाल के दौरान जहाँ अफ़ग़ानिस्तान और श्रीलंका जैसे देशों के साथ भारत के सम्बन्ध बेहतर हुए तो वहीं नेपाल और पाकिस्तान जैसे भारत के पड़ोसी मुल्कों के साथ भारत के सम्बन्ध में तल्ख़ी आई है। पाकिस्तान मामले में पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद, पुलवामा हमला और कुलभूषण जाधव जैसे मामले शामिल रहे हैं। नेपाल मामले में देखे तो नेपाल के नए संविधान ने काठमांडू और नई दिल्ली के बीच दरार पैदा कर दी, और मधेसी नाकाबंदी के कारण ये दरार और भी चौड़ी हो गई है। जानकारों के मुताबिक नेपाल अब भारत से दूर जाकर चीन के साथ अपने संबंधों को बढ़ा रहा है।

मॉरीशस और सेशेल्स के द्वीप देशों की यात्रा की जिससे हिंद महासागर क्षेत्र में एक मजबूत नींव बना पड़ी है। 90 के दशक में आई लुक ईस्ट पॉलिसी को बढ़ावा देते हुए NDA सरकार ने एक्ट ईस्ट का नारा दिया जिससे दक्षिण-पूर्व एशिया में भारत की पकड़ पहले से मजूत हुई है। एक्ट ईस्ट दक्षिण-पूर्व एशिया के साथ व्यापार और निवेश संबंधों को बढ़ाने में भारत की उत्सुकता को दर्शाती है।

एक्ट ईस्ट नीति

भारत की एक्ट ईस्ट पॉलिसी एशिया-प्रशांत क्षेत्र में मौजूद देशों के भी सहभागिता को बढ़ावा देने के मकसद से लाई गई थी।

1. भारत और एशिया-प्रशांत क्षेत्र के बीच क्षेत्रीय, द्विपक्षीय और बहुपक्षीय समझौतों के माध्यम से आर्थिक सहयोग, सांस्कृतिक संबंधों और सामरिक संबंध विकसित करना।
2. भारत के उत्तर-पूर्वी भारतीय राज्यों और इसके पड़ोसी राज्यों के बीच मधुर सम्बन्ध विकसित करना।
3. भारत के पारंपरिक व्यापार भागीदारों के स्थान पर उभरते हुए दक्षिण पूर्व एशियाई देशों के अलावा प्रशांत क्षेत्र के देशों के साथ व्यापार संबंधों को ज्यादा वरीयता देना।

भारत-अमेरिका संबंध

अमेरिका में डोनाल्ड ट्रम्प की सरकार बनने के बाद से ट्रम्प सरकार भारत के साथ विदेश नीतियों को बेहतर करने में जुटी हुई है। भारत-अमेरिका रणनीतिक साझेदारी के मामले में सफल रहा है। दोनों देशों ने रक्षा सहयोग, आधारभूत लौजिस्टिकल समझौतों और भारत-प्रशांत क्षेत्र में सहयोग सहित कई मुद्दों पर प्रगति देखने को मिली है। हालांकि वैश्विक व्यापार माहौल में आयी गर्माहट भारत और अमेरिका के व्यापार संबंधों को भी प्रभावित कर सकती है ।

भारत-चीन संबंध

चीन का बढ़ता दबदबा और उसका आक्रामक रब्बया भारत के लिए हमेशा से ही परेशानी का सबब रहा है डोकलाम विवाद को लेकर भारत और चीन आमने सामने आ चुके है और इस विवाद पर भारत के कड़े रब्बाईये के चलते चीन को पीछे हटना पड़ा था जिसे भारत की बड़ी जीत के रूप में देखा गया था । जिसके चलते दोनों देशों की अनौपचारिक मीटिंग भी हुई थी जिसमें दोनों देशों ने शांति और सामंजस्य बनाने के लिए बात करी थी । साथ ही सभी एशियाई देशों पर प्रभाव को बढ़ने के मकसद से चलाई गई चीन की बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (BRI) योजना से भी भारत और भूटान ने खुदको अलग रखा है ।

भारत-रूस संबंध

रूस भारत के सबसे पुराने साथियों में से एक है । डोनाल्ड ट्रम्प द्वारा रूस पर नए सिरे से प्रतिबन्ध लगाने के फैसले के बाद भारत -रूस के संबंधों को लेकर कई तरह के कयास लगाए जा रहे थे । मगर प्रधानमंत्री मोदी द्वारा रूस के राष्ट्रपति के साथ अनौपचारिक वार्ता के बाद इन कयासों पर रोक लगी । साथ ही रूस और चीन के साथ ओसका में हुई G20 बैठक में आतंकवाद का मुकाबला करने और जलवायु परिवर्तन को लेकर भी मुलाकात की थी। हालांकि जानकारों का कहना है कि रूस के साथ संबंध कुछ हद तक खराब हुए हैं क्योंकि भू-राजनीतिक गतिशीलता में बदलाव के कारण भारत अमेरिका संबंध घनिष्ठ हुए हैं और इसके चलते रूस विशेष रूप से रक्षा मामलों में, चीन और पाकिस्तान के साथ बढ़ा है।

भारत-जापान संबंध

2014 में सरकार बनाने के बाद से ही नरेंद्र मोदी और शिंजो आबे ने जापान और भारत के संबंधों को सुधरने की कोशिश की जिसमें वे काफी हद तक कामयाब भी हुए है । दोनों ही देशों के विचार सामरिक सुरक्षा, ऊर्जा सहयोग, क्षेत्रीय सहयोग और एकीकरण जैसे रणनीतिक मुद्दों को लेकर काफी सकारात्मक रहे है । प्रधान मंत्री मोदी और शिजो आबे दोनों के ही पास भारत- जापान रिश्तों को और बेहतर करने का यह अच्छा मौका है । इसके अलावा, भारत, जापान, अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया के बीच क्वाड प्रारूप के तहत होने वाली बैठकों को संस्थागत रूप दिया जाएगा ।

साउथ एशिया के साथ संबंध

साउथ एशिया देशों में अपनी सहभागिता बढ़ने के लिए ही मोदी ने 2014 के शपथ समारोह में सभी SAARC देशों को आमंत्रित किया था । साउथ एशिया भारत के लिए बहुत महत्वपूर्ण क्षेत्र है जिसमे भारत अपनी सहभागिता दर्ज करना चाहेगा हालांकि SAARC समूह में पाकिस्तान के नकारात्मक रवैये के चलते नयी सरकार ने BIMSTEC देशों और साउथ ईस्ट एशियाई देशों पर ध्यान केंद्रित कर रही है। नए विदेश मंत्री एस जयशंकर ने भी साउथ एशिया क्षेत्र में ध्यान केंद्रित करने पर ज़ोर दे रहे है । आशियान देशों के साथ सम्बन्ध बनाने के लिए बिम्सटेक बेहतर ज़रिया है। प्रधानमंत्री द्वारा शपथ ग्रहण समारोह में बिम्सटेक(BIMSTEC) देशों के नेताओं के साथ किर्गिज़ गणराज्य और मॉरीशस को आमंत्रित करके एक कूटनीतिक संदेश दिया है। इस कूटनीतिक संदेश का मतलब है, बंगाल की खाड़ी से लेकर मध्य एशिया के पड़ोसी देशों और प्रवासी भारतीय समूह तक भारत की पहुँच को बढ़ावा देना था। हालाँकि पड़ोसी मुल्क़ पाकिस्तान के साथ भारत के सम्बन्ध जस - के तस बने हुए हैं। पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद के चलते भारत के समबन्ध पाकिस्तान से ख़राब हुए है। आर्थिक तंगी से जूझ रहे पाकिस्तान से भारत ने अब MNF यानी मोस्ट फवोर्ड नेशन का भी दर्ज़ा वापस ले लिया है।

मिडिल ईस्ट  के साथ संबंध

भारतीय प्रधानमंत्री ने अपने पिछले सत्र में मिडिल ईस्ट के प्रमुख देशों जिनमे सऊदी अरब , UAE , क़तर और इसराइल शामिल है से अच्छे सम्बन्ध स्थापित किये है। इन संबंधों से प्रधानमंत्री मोदी अपने इस सत्र में विदेश निवेश को बढ़ावा दे सकते है । हालांकि ईरान पर अमरीका द्वारा लगाए तेल प्रतिबन्ध के कारण भारत को दिक्कतों का सामना करना पड़ सकता है और अमेरिका के साथ अपने संबंधों को लेकर भी परेशानी उठानी पड़ सकती है । बीत दिनों सऊदी अरब के प्रिंस भारत दौरे पर थे। क्राउन प्रिंस ने अपनी भारत यात्रा के दौरान 100 अरब डॉलर के निवेश से जुड़े समझौतों पर सहमति जताई थी। भारत और सऊदी अरब के बीच कुल 5 समझौते हुए हैं। ये समझौते - इन्वेस्टमेंट, टूरिज्म, हाउसिंग और इनफॉरमेशन एंड ब्रॉडकास्टिंग के क्षेत्र में हुए थे ।

अफ्रीका महाद्वीप के साथ संबंध

अफ्रीकी महाद्वीप में व्यापार ,समुद्री सुरक्षा खतरे ,जलवायु परिवर्तन,आतंकवाद विरोधी प्रयास ,अफ्रीका में हाइड्रोकार्बन की उपस्थिति तथा चीन का अफ्रीका में बढ़ता प्रभाव जैसे मुद्दों को लेकर भारत सरकार अफ्रीका में अपनी विदेश नीति को बेहतर करने के प्रयास कर रही है । जिसके तहत भारत सरकार ने साल 2018 - 19 में 5 अफ्रीकी देशों में दूतावास का निर्माण किया है । साथ ही अपनी विदेश नीति को और बेहतर करने के लिए भारत अफ्रीका में साल 2019-20 में 18 नए राजनयिक अभियानों को शुरू करने जा रही है जिसके तहत चार नए अफ्रीकी देशों में भारतीय दूतावास का निर्माण किया जाएगा ।

विदेश नीति को लेकर भारत की प्राथमिकता

जानकारों के मुताबिक़ संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के पी-5 देशों (अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस, चीन, रूस और जर्मनी) के साथ भारत के संबंध नीति निर्माताओं के लिए सर्वोच्च प्राथमिकता है।