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Blog / 24 Apr 2019

(Global मुद्दे) लीबिया, सोमालिया और सूडान संकट (Crisis in Libya, Somalia and Sudan)

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(Global मुद्दे) लीबिया, सोमालिया और सूडान संकट (Crisis in Libya, Somalia and Sudan)


एंकर (Anchor): कुर्बान अली (पूर्व एडिटर, राज्य सभा टीवी)

अतिथि (Guest): अनिल त्रिगुनायत (पूर्व राजदूत, लीबिया), कमर आगा (उत्तर अफ़्रीक़ी मामलों के जानकार और विश्लेषक)

लीबिया संकट

लीबिया चर्चा में क्यूँ

उत्तरी अफ्रीकी देश लीबिया गृहयुद्ध के मुहाने पर है। कुछ दिन पहले राजधानी त्रिपोली पर कब्ज़े के लिए एक हवाई अड्डे पर हमला किया गया। महीने की शुरुआत में जनरल हफ़्तार ने अपनी 'लीबियन नैशनल आर्मी' को त्रिपोली पर आक्रमण करने का आदेश दे दिया है। ख़बरों के मुताबिक़ जनरल हफ़्तार की सेना त्रिपोली के 50 किलोमीटर तक पहुँच गई है, जहाँ से अन्य सशस्त्र गुटों से संघर्ष की ख़बरें आ रही हैं। दरअसल 2011 की अरब अरब क्रांति में मारे गए कर्नल मुआम्मार गद्दाफ़ी के बाद से ही लीबिया संकट का सामना कर रहा है। लीबिया में अंतरराष्ट्रीय मान्यता प्राप्त सरकार है। मौजूदा समय में फ़याज़ सिराज़ लीबिया के संयुक्त राष्ट्र समर्थित प्रधानमंत्री हैं। लीबिया की राजधानी त्रिपोली है। त्रिपोली से ही लीबिया के ज़्यादातर सरकारी काम काज संपन्न होते हैं। जनरल हफ़्तार की 'लीबियन नैशनल आर्मी' से मोर्चा लेने के लिए अंतरराष्ट्रीय मान्यता प्राप्त सरकार के समर्थक गुटों ने भी त्रिपोली की रक्षा के लिए कूच कर दिया है।

कौन हैं जनरल हफ़्तार और क्या चाहते हैं ?

जनरल हफ़्तार पूर्व सैन्य अधिकारी हैं, जिन्होंने 1969 में गद्दाफ़ी को सत्ता दिलाने में मदद की थी। गद्दाफ़ी से रिश्ते ख़राब होने के बाद जनरल हफ़्तार अमेरिका चले गए और साल 2011 में गद्दाफ़ी के ख़िलाफ़ विरोध प्रदर्शनों को देख वो वापस आए और विद्रोहियों के नेता बन गए। हफ़्तार ने कहा है कि - 'लीबिया में आतंकवाद का ख़ात्मा होने तक उनका अभियान जारी रहेगा'

लीबिया का इतिहास ?

1911 में इटली और तुर्की के बीच शत्रुता के फैलने के बाद इटली ने त्रिपोली इलाके पर कब्ज़ा जमा लिया। इसके बाद धीरे - धीरे इटली का कब्ज़ा पूरे लिबिया में फ़ैल गया। 1934 तक आते आते लीबिया इटली का उपनिवेश बन गया जो 1947 तक रहा। लीबिया 1951 में आज़ाद हुआ और 'लीबिया यूनाइटेड किंगडम' कहलाया। लीबिया में 1958 में तेल की खोज हुई और इसकी अर्थव्यवस्था में सुधार आया।1967 में हुई इसराइल और अरब मुल्क़ों की लड़ाई में अरब जगत को हार का सामना करना पड़ा। हार की वजह से कई अरब देशों में तनाव पैदा हो गया। इसराइल से मिली हार का जिम्मेदार लीबिया के राजा इदरिस को ठहराया गया। लीबिया सेना के कर्नल रहे मुअम्मर गद्दाफी ने 1969 में सैन्य तख्तापलट कर दिया और शासन में आ गए। गद्दाफ़ी ने 1969 से 2011 तक लीबिया पर राज किया। लेकिन 2011 में हुई अरब क्रांति ने उन्हें सत्ता से बेदख़ल कर दिया और गद्दाफ़ी की हत्या कर दी गई।

गद्दाफ़ी के बाद का लीबिया

लीबिया में सरकार विरोधी प्रदर्शनों की शुरुआत 15 फरवरी, 2011 को ही हो गई थी। प्रदर्शनों की वज़ह से विपक्षी बलों और गद्दाफी के समर्थकों के बीच गृहयुद्ध जैसी स्थिति पैदा हो गई। पश्चिमी शक्तियों द्वारा सैन्य दखलंदाज़ी के पश्चात् लीबिया की राजधानी, त्रिपोली पर कब्ज़ा जमा लिया गया और गद्दाफ़ी सरकार को उखाड़ फेंका गया।

इसके बाद लीबिया में संयुक्त राष्ट्र समर्थित अंतर्राष्ट्रीय मान्यता प्राप्त सरकार, गवर्नमेंट ऑफ नेशनल एकॉर्ड (Government of National Accord-GNA) बनाई गई। लीबिया मौजूदा हालात दयनीय है। एक ओर जहां लीबियन नैशनल आर्मी (LNA ) टोब्रुक-आधारित संसद की सहायता से लीबिया के पूर्वी हिस्से को नियंत्रित करती है तो वहीं Government of National Accord- GNA लीबिया के पश्चिमी भागों को त्रिपोली से नियंत्रित करती है। मौजूदा संयुक्त राष्ट्र समर्थित सरकार लीबिया को स्थिरता प्रदान करने में कामयाब नहीं हो सकी है। GNA के नियंत्रण में मौजूद पश्चिम लीबिया भीतरी लड़ाइयों और अपहरण की घटनाओं से पस्त है। GNA के पास कोई सुरक्षा बल नहीं है। सार्वजनिक प्रशासन की मौजूदगी बहुत कम है। पश्चिमी लीबिया को पानी, पेट्रोल और बिजली जैसी समस्याओं से जूझना पड़ता है और इस क्षेत्र मं। कुछ ही बैंक संचालित होते हैं।

अफ्रीका का सबसे बड़ा तेल उत्पादक देश है लीबिया

लीबिया अफ्रीका का सबसे बड़ा तेल भंडार है। लीबिया पेट्रोलियम उत्पादक देशों के संगठन ओपेक का भी सदस्य भी है। लीबिया पूरी दुनिया की लगभग 40 फीसदी कच्चे तेल की ज़रूरतों को पूरा करता है। यहां पेट्रोलियम, प्राकृतिक गैस के भंडार होने के अलाव जिप्सम भी पाया जाता है। जिप्सम की वजह से सीमेंट लीबिया का प्रमुख उद्योग है। कृषि उत्पादों में चावल, जौ, जैतून, खजूर, रसीले फल, सब्जियां मूंगफली और सोयाबीन जैसे उत्पाद लीबिया के प्रमुख उत्पाद हैं। 64 लाख की आबादी वाला देश लीबिया में 97% लोग सुन्नी मुस्लिम हैं। यहां शिया-सुन्नी संघर्ष नहीं है, लेकिन सत्ता के लिए विभिन्न गुटों में संघर्ष जरूर होता दिख रहा है।

लीबिया और भारत

2011 (अरब क्रांति ) के पहले लीबिया में क़रीब 18 हज़ार भारतीय मौजूद थे। हालाँकि इन आंकड़ों में अब कुछ कमी आई है, लेकिन अभी भी वहां काफी तादात में भारतीय मौजूद हैं। 2014 - 2015 के दौरान भारत द्वारा लीबिया को निर्यात 163.74 मिलियन अमरीकी डॉलर था। वहीं लीबिया की ओर से भारत को किया गया निर्यात भी 70.14 मिलियन अमरीकी डॉलर के आस पास था।

लीबिया में बिगड़ते सुरक्षा हालात के मद्देनजर भारतीय विदेश मंत्रालय की तरफ से एक एडवाइजरी जारी की गई है। एडवाइजरी में लीबिया में रह रहे भारतीयों को जल्द वापस लौटने के लिए कहा गया है साथ ही विदेश मंत्रालय ने भारतीय नागरिकों को अत्यधिक सावधानी बरतने और समुदाय के दूसरे लोगों के साथ संपर्क में रहने के लिए कहा। लीबिया की राजधानी त्रिपोली में बड़ी संख्या में भारतीय काम करते हैं जिनकी सुरक्षा के लिए विदेश मंत्रालय ने एडवाइजरी की है

क्या कहती है WHO की रिपोर्ट - WHO की एक रिपोर्ट के अनुसार देश में चल रहे तनाव की वजह से अब तक 205 लोगों की मौत हो चुकी है इसके अलावा दो हफ्ते की लड़ाई में अब तक 913 लोग गंभीर रूप से घायल भी हैं

क्या होंगे प्रभाव?

लीबिया का ये गृहयुद्ध खासकर यूरोप के लिये शरणार्थी समस्या को बढ़ा सकता है। अफ्रीका का सबसे बड़ा तेल भंडार लीबिया में स्थित है और यह दुनिया के सबसे बड़े तेल उत्पादकों में शामिल है। लीबिया में अस्थिरता से वैश्विक स्तर पर तेल की कीमतें बढ़ सकती हैं। जिसका भारत पर सीधा असर पड़ेगा।

सूडान संकट

सूडान चर्चा में क्यूं?

अफ्रीकी देश सूडान भी भरी उथल पुथल से जूझ रहा है। सूडान में बीते साल दिसंबर से ही प्रदर्शन हो रहे थे। इन प्रदर्शनों का नतीजा ये हुआ कि 11 अप्रैल 2019 को सूडान में एक बड़ी क्रांति के तौर पर तख़्तापलट हुआ। तख़्तापलट के बाद तीन दशक से देश की सत्ता पर काबिज़ सूडान के राष्ट्रपति उमर अल बशीर को अपना पद छोड़ना पड़ा। उमर अल बशीर के हटने के बाद सेना प्रमुख और रक्षा मंत्री ने देश की कमान संभाली लेकिन जनता के पूर्ण लोकतान्त्रिक सरकार की मांग पर अड़े होने के नाते रक्षा मंत्री को भी सत्ता से बेदख़ल होना पड़ा।

सूडान का इतिहास

1899 से 1956 तक सूडान पर ब्रिटेन और इजिप्ट का कब्ज़ा था। 1953 में हुए एक समझौता हुआ। समझौते के तहत दक्षिण और उत्तरी सूडान भूभाग को एक में शामिल करके आज़ादी देने पर रज़ामंदी हुई जिसके बाद 1956 में 'यूनाइटेड सूडान' को आज़ादी मिली।

सूडान और सिविल वॉर

आज़ादी मिलते ही सूडान में सिविल वॉर शुरू हो गया। सिविल वॉर की वजह उत्तरी और दक्षिण सूडान के अलग - अलग कल्चर तथा उत्तरी सूडान की ओर से दक्षिणी सूडान को नज़रअंदाज़ किया जाना था। दरअसल उत्तरी सूडान में अरब मुस्लिम बहुसंख्यक हैं जिनका मुख्य धर्म इस्लाम है। जबकि दक्षिण सूडान में ज़्यादातर ईसाई समाज है और यहां 50 से अधिक स्थानीय जनजातियां (ETHNIC TRIBES) भी निवास करती हैं। इसके अलावा सूडान में मौजूद ज़्यादातर तेल भण्डार के दक्षिणी सूडान में होने के बावजूद भी उत्तरी सूडान ने इस पर कब्ज़ा जमा लिया। दक्षिण सूडान में कोई समुद्री तट नहीं होने के कारण सारे तेल का एक्सपोर्ट उत्तरी सूडान से ही किया जाता था। तेल से मिलने वाले रेवेन्यू का अधिक हिस्सा उत्तरी सूडान में हे इस्तेमाल होता था।

फर्स्ट सिविल वॉर (1955 - 1972)

सूडान का पहला सिविल वॉर 1955 से शुरू होकर 1972 तक चला था। इसमें क़रीब 5 लाख लोग मारे गए। 1972 में एक शांति समझौता हुआ लेकिन ये समझौता ज़्यादा समय नहीं चला और लड़ाई फिर से शुरू हो गई।

सेकंड सिविल वॉर (1983 - 2005)

सूडान का दूसरा सिविल वॉर 1983 से 2005 के बीच चला था। इसे वॉर ऑफ़ इंडिपेंडेंस भी कहा जाता है। दूसरे सिविल वॉर के दौरान दक्षिणी सूडान को अलग देश की मान्यता देने पर सहमति हुई थी। दूसरे सिविल वॉर में क़रीब 20 लाख लोग मारे गए और 40 लाख लोग यहां से विस्थापित हुए। आख़िरकार 2005 में उत्तरी सूडान और SPLA ( सूडान पीपल लिबरेशन मूवमेंट ) के बीच एक शांति समझौता हुई। SPLA को 6 साल का वक़्त दिया गया कि वो अपनी एक पोलिटिकल पार्टी बनाए जिसमें उत्तरी और दक्षिणी सूडान दोनों भागीदार होंगे। इसमें 6 साल बाद एक जनमत संग्रह कराने पर सहमति बनी थी। 2011 में हुए जनमत संग्रह में 99 फीसदी दक्षिण सूडान के लोगों ने आज़ाद मुल्क़ की मांग की जिसके बाद दक्षिणी सूडान आज़ाद हो गया।

दक्षिणी सूडान के अलग होने के बाद की समस्याएं?

दक्षिणी सूडान के अलग होने के बाद भी परेशानियां ख़त्म नहीं हुई। सूडान के पश्चिमी हिस्से में नया गृहयुद्ध शुरू हो गया। इस दौरान बशीर ने प्रदर्शनकारियों पर ज़ुल्म ढाया। राष्ट्रपति बशीर पर कई आरोप लगे। अंतरराष्ट्रीय अदालत ने मामले को संज्ञान में लेते हुए उनके ख़िलाफ़ गिरफ्तारी का वारंट जारी किया। इस दौरान बशीर ने देश में हुए 2010 व 2015 के चुनाव भी जीते। इस दौरान उनकी अंतरराष्ट्रीय यात्राओं पर रोक लग गई। लेकिन इस प्रतिबंध के बावजूद बशीर ने मिस्र, सऊदी अरब और दक्षिण अफ्रीका की याताएं की।

कौन हैं ओमर अल-बशीर?

ओमर अल-बशीर पूर्व सेना अधिकारी हैं। ओमर अल बशीर 1989 में सेना के तख़्तापलट के बाद सत्ता पर क़ाबिज़ हुए थे। सूडान में बीते 30 सालों से उमर अल बशीर का शासन था। बशीर के कार्यकाल में सूडान में व्यापक आर्थिक सुधारों को लागू किया गया। इससे सूडान की अर्थव्यवस्था क्रांतिकारी बदलाव अया। लेकिन उनके शासन काल में सूडान ने भयंकर गृहयुद्ध भी झेला है।

भारत और सूडान

लम्बे से सूडान का भारत से ऐतिहासिक, राजनैतिक और आर्थिक रिश्ता रहा है। भारतीय विदेश मंत्रालय के अनुमान के अनुसार, लगभग पंद्रह सौ भारतीय मूल के लोग पीढ़ियों से सूडान में रह रहे हैं। भारत उत्पादित मालों मशीनों और उपकरणों रसायन व औषध उत्पाद, लोहा इस्पात जैसे सामानों का सूडान में निर्यात करता है। सूडान से आयत की जाने वाली वस्तुओं में खनिज व ईंधन, कच्ची खाल, कृषि उत्पाद और लेदर जैसे सामनाओं का आयत करता है।

इसके अलावा कई भारतीय कंपनियों ने सूडान में पैसा लगा रखा है और बहुत से भारतीय वहां नौकरी के सिलसिले में हैं। सूडान में काम करने वाली भारतीय कंपनियों में ONGC विदेश लिमिटेड, BHEL और TCILजैसी कई और भी कम्पनियाँ मौजूद हैं।

सोमालिया संकट

चर्चा में क्यों है सोमालिया?

साल के शुरुआत में सुरक्षा परिषद ने ऐलान किया था कि ये साल सोमालिया के लिए नाज़ुक रहेगा। सोमालिया में केंद्र और राज्य सरकारों में चले आ रहे तनाव और सामुदायिक खींचतान से भरी राजनीति की वजह से देश भर में तनाव बढ़ गया है।

सोमालिया ने संयुक्त राष्ट्र सहायता मिशन के प्रमुख को सोमलिया छोड़ने का आदेश दिया था ?

जनवरी महीने में सोमालिया सरकार से संयुक्त राष्ट्र सहायता मिशन के प्रमुख 'निकोलस हेसम' को देश छोड़कर जाने का ऐलान किया गया था। सोमाली सरकार ने निकोलस हेसम पर देश के अंदरूनी मामलों में दख़ल देने का आरोप लगाया था। "हेसम" ने एक प्रांत के चुनाव में चरमपंथी संगठन अल शबाब के लिए काम कर चुके एक विपक्षी उम्मीदवार को हिरासत में लिए जाने के सरकार के फ़ैसले पर सवाल उठाए थे। सरकार का कहना है कि गिरफ़्तारी इसलिए हुई क्योंकि उस उम्मीदवार ने लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं के लिए अपनी प्रतिबद्धता पूर्ण तौर पर ज़ाहिर नहीं की थी। चुनाव से पहले हुई इस गिरफ़्तारी के बाद हिंसक प्रदर्शनों में 15 लोगों की मौत हो गई थी।

सोमालिया का इतिहास

सोमालिया काफी वक़्त तक ब्रिटेन, इटली, इथोपिया और फ्रांस के अधीन रहा। औपनिवेशिक देशों ने सोमालिया को पांच भागों में बांट दिया था। ब्रिटेन (यूके) ने सोमालिया के दो हिस्से अपने पास रखे। जबकि इटली, इथोपिया और फ्रांस ने एक-एक हिस्से पर अपना शासन चलाया। सोमालिया ने लगभग इन सभी औपनिवेशिक ताकतों से आज़ादी के लिए लड़ाई लड़ी।

सोमालिया कब हुआ था आज़ाद?

उत्तरी और दक्षिणी सोमालिया 26 जून और 01 जुलाई 1960 को आज़ाद हुए। जिसके बाद सोमालिया के सभी हिस्सों को मिलाकर एक संपूर्ण सोमालिया राष्ट्र का का निर्माण हुआ।

सोमालिया और इथोपिया संघर्ष के बाद क्या हुआ?

1988 में सोमालिया को मज़बूरन इथोपिया के साथ शांति समझौता करने पर सहमत होना पड़ा था। सोमालिया में कई कबीले हैं। इनमें इसाक, दारूद, डिगिल एवं मिरिफ्ल, दिर एवं हावीव जैसे कुछ बड़े क़बीले हैं। सोमालिया और इथोपिया संघर्ष के बाद सोमालिया के सबसे बड़े उत्तरी क़बीले 'इसाक' ने बर्रे की वर्तमान नीतियों व सरकारी संसाधनों से खुद को अलग थलग महसूस किया। जिसके बाद 'उत्तरी इसाक क़बीले' के नेतृत्व में बर्रे के ख़िलाफ़ बगावत शुरू हो गई। जवाब में बर्रे ने उत्तरी शहरों और गांवों में बमबारी के आदेश दिए। धीरे -धीरे बगावत दक्षिणी क्षेत्रों तक फैल गई और 1992 में बर्रे को भागने को मजबूर होना पड़ा।

बर्रे के बाद सोमालिया में अराजकता

1991 में रूस का विघटन हो गया था। सियाद बर्रे भी जनवरी 1991 में मोगादिशु (सोमालिया) छोड़कर से भाग गया। मोगादिशु के एक समृद्ध व्यवसायी 'अली महदी मोहम्मद' ने खुद को नया राष्ट्रपति घोषित कर लिया और एक सरकार का गठन किया। उत्तर में 'इसाक' कबीलों ने भी एक स्वतंत्र सोमालीलैंड का गठन किया। सत्ता में आए अली महदी को उनके अपने नियंत्रण वाले समूहों के अतिरिक्त अन्य किसी समूह द्वारा मान्यता नहीं दी गई। सोमालिया के दो कबीला सरदारों- मोहम्मद फराह ऐडिड और अली महदी मोहम्मद के बीच सत्ता संघर्ष के लिए युद्ध हुआ। इस लड़ाई में हज़ारों की संख्या में सोमाली नागरिक मारे गए व घायल हुए। 1992 तक आते आते सोमलिया में बीमारी, भूख और गृह युद्ध में क़रीब 350,000 लोग मारे जा चुके थे।

संयुक्त राष्ट्र संघ सुरक्षा परिषद का अभियान (Operation Restore Hope)

संघर्षों के चलते सोमालिया में भुखमरी फ़ैल गई। इन हालातों के बाद संयुक्त राष्ट्र संघ सुरक्षा परिषद (यूएनएससी) ने 'ऑपरेशन विश्वास पुनर्बहाली' नामक एक अभियान को मंजूरी दी। साथ ही अमेरिका को ये जिम्मेदारी दी कि सोमालिया में पहुंचाए जाने वाले खाद्य और राहत सामग्री को वहां के हर ज़रूरत मंद तक आसानी से पहुंचाया जाए।

सोमालिया का 4.5 सिस्टम ?

सोमालिया में क़रीब 90 % से अधिक सुन्नी मुसलमान हैं। इन मुस्लिमों की सोमालिया में कई सारी जनजातियां हैं। सोमालिया के 4.5 सिस्टम शासन के ज़रिए सिर्फ की कुछ ही जनजातियों( 6 -7 )को तवज़्ज़ो दी जाती है। सोमालिया के राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री का चयन तो सिर्फ 2 ही जनजातियों से होता है।

सोमालिया के 4.5 सिस्टम के चलते यह योग्य आदमी की कोई वैल्यू नहीं है। यहां राष्ट्रवाद की भी कोई भावना नहीं है। यहां के राष्ट्रपति देश के बारे में नहीं बल्कि अपने वंश और जाति के लोगों को खुश रखने की बारे में सोंचते हैं। किसी देश के विकास के लिये समाज में संसाधनों की बराबर हिस्सेदारी होनी चाहिए। सोमालिया के समाज में हर तबके के लिए एक समान रूप में क़ानून नहीं है जिससे ग़ैरबराबरी और बढ़ जाती है। इस तरह के शासन से देश की विकास में बढ़ा पहुँचती है और भ्रष्टाचार जैसी समस्याओं को जन्म मिलता है।