(Global मुद्दे) अमेरिका तालिबान वार्ता (America Taliban Peace Talks)
एंकर (Anchor): कुर्बान अली (पूर्व एडिटर, राज्य सभा टीवी)
अतिथि (Guest): अम्बैस्डर शीलकांत शर्मा (पूर्व राजनयिक), प्रो. अब्दुल नाफे (कूटनीतिक मामलों के जानकार)
सन्दर्भ:
अफ़ग़ानिस्तान में मौजूद संकट को ख़त्म किए जाने की कोशिशें जारी हैं। अमेरिका और रूस दोनों ही देश अपने -अपने तरीके शांति बहाली में लगे हुए हैं। आज से क़रीब 2 दशक पहले अमेरिका में एक आतंकवादी हमला हुआ था। ये हमला तालिबान गुट की ओर से ही कराया गया था। जिसके बाद से अमेरिकी सैनिक अफ़ग़ानिस्तान में मौजूद है।
अफ़ग़ानिस्तान शांति वार्ता की शुरुआत पिछले महीने अमेरिका - तालिबान की बातचीत से शुरू हुई है। ये बैठक अमेरिकी राजनयिक ज़लमय ख़लीलज़ाद की अगुवाई में की गई । पिछले हफ़्ते तालिबान और अफ़ग़ान नेताओं के बीच हुई बैठक भी अमेरिकी राजनयिक की ही मेहनत का नतीजा है। ये पहला ऐसा मौका था जब तालिबान ने अफ़ग़ानिस्तान के नेताओं से औपचारिक रूप से बातचीत की। मॉस्को शहर में हुई मुलाक़ात के दौरान तालिबान ने अफ़ग़ानिस्तान में जारी संकट को समाप्त किये जाने की पेशकश की।
बातचीत के वक़्त तालिबान ने कुछ ऐसे फैसले लेने की भी बात कही जो उसके रवैये के ठीक उलट है। तालिबान गुट की अगुवाई कर रहे अब्बास तानिकज़ई ने महिलाओं की सुरक्षा और उन्हें इस्लाम संस्कृति के मुताबिक़ अधिकार दिए जाने की बात कही। इसके अलावा तालिबान ने एक मिली जुली सरकार लाये जाने का भी ऐलान किया। इस वार्ता में अफ़ग़ान सरकार को नज़रअंदाज किये जाने से राष्ट्रपति अशरफ ग़नी बेहद नाराज़ हैं। राष्ट्रपति ने कहा है कि मास्को में हुई वार्ता पूरी तरीके से बेबुनियाद है। क्यूंकि इस बातचीत में जो भी लोग शामिल हुए हैं उनके पास कोई अधिकार नहीं है।
अमेरिका अब जल्द से जल्द अफ़ग़ानिस्तान से निकलना चाहता है। अमेरिका ने इसके लिए तालिबान और अफ़ग़ान सरकार के बीच सुलह की अपनी गतिविधियों को भी तेज़ कर दिया है। जबकि तालिबान फ़िलहाल अमेरिका की इस बात पर राजी नहीं है। तालिबान ने दावा किया है कि ये सभी वार्ताएं असफल रही है। तालिबान ने कहा कि हमारे दुश्मन हम पर हमला कर रहे हैं। जिसके कारण हम भी युद्ध करने पर मजबूर हैं।
तालिबान शांति वार्ता में भारत ने अपना कोई रुख़ ज़ाहिर नहीं किया है। क्यूंकि भारत अफ़ग़ानिस्तान के सम्बन्ध पहले से ही काफी बेहतर रहे हैं। इसके अलावा अफ़ग़ानिस्तान में इसी साल चुनाव भी होने हैं। ऐसे में तालिबान की ओर लिया गया ये कदम बहुत ही महत्वपूर्ण साबित हो सकता है। साथ ही आने वाले वक़्त में अफ़ग़ान सरकार की स्थिरता उसके कुछ पड़ोसी मुल्कों पर ही निर्भर करेगी। जिसमें भारत, ईरान और चीन जैसे देशों की अहम भूमिका होगी।