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Blog / 14 May 2019

(Global मुद्दे) संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद UNSC : भारत का दावा (United Nations Security Council - UNSC : India's Claim)

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(Global मुद्दे) संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद UNSC : भारत का दावा (United Nations Security Council - UNSC : India's Claim)


एंकर (Anchor): कुर्बान अली (पूर्व एडिटर, राज्य सभा टीवी)

अतिथि (Guest): विवेक काटजू (पूर्व राजदूत), सतीश जैकब (वरिष्ठ पत्रकार)

चर्चा में क्यों?

बीते दिनों फ्रांस ने एक बार फिर संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में भारत को शामिल किए जाने की वक़ालत की। फ्रांस के मुताबिक़ भारत जर्मनी ब्राजील और जापान जैसे देशों को संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद का स्थायी सदस्य बनाए जाने की सख़्त ज़रूरत है।

क्या कहा फ्रांस ने?

फ्रांस का कहना है कि सुरक्षा परिषद में इन प्रमुख सदस्यों को शामिल करना मौजूदा समस्याओं की सच्चाई को बेहतर ढंग से समझने के लिए बेहद ही ज़रूरी है। अप्रैल महीने में फ्रांस के दूत फ्रांकोइस डेलातरे ने संयुक्त राष्ट्र में जर्मनी के दूत क्रिस्टोफ ह्यूसजन के साथ हुई बातचीत में जोर देते हुए कहा कि फ्रांस का मानना है कि - जर्मनी, जापान, भारत, ब्राजील और विशेष रूप से अफ्रीका के कुछ देशों का संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में स्थायी सदस्य्ता की ज़रूरत है। फ्रांस के मुताबिक़ ये हमारी लिए प्राथमिकता का विषय है कि संयुक्त राष्ट्र में न्यायपूर्ण प्रतिनिधित्व हो। इसके अलावा इन देशों को संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में शामिल कराना फ्रांस की रणनीतिक प्राथमिकताओं में भी शुमार है।

इस मामले पर भारत की प्रतिक्रिया

भारत लम्बे समय से संयुक्त राष्ट्र में सुरक्षा परिषद में सुधार की मांग कर रहा है। साथ ही दुनिया के कई देश भी भारत को संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में शामिल किए जाने का उचित हक़दार मानते हैं। संयुक्त राष्ट्र में भारत के स्थायी प्रतिनिधि सैयद अकबरुद्दीन ने कहा है कि - संयुक्त राष्ट्र के ज़्यादतर देश सदस्य सुरक्षा परिषद की स्थायी और अस्थायी सदस्यता के विस्तार का समर्थन करते हैं। सदस्यता के मुद्दे पर 122 देशों में से 113 देशों ने सहमति जताई है कि सदस्यता के मौजूदा दोनों श्रेणियों (स्थायी और अस्थायी ) में विस्तार की ज़रूरत है। यानी कि 90% से अधिक सदस्य चार्टर में मौजूद सदस्यता की दोनों श्रेणियों में विस्तार के पक्ष में हैं। उन्होंने आगे ये भी कहा कि - UNSC में सुधार कोई घटना नहीं बल्कि एक प्रक्रिया है। जब इसका गठन हुआ तब परिस्थितियां अलग थी जबकि मौजूदा परिदृश्य काफी अलग है।

भारत UNSC का हक़दार क्यों?

  1. 1.25 बिलियन की आबादी वाला भारत, दुनिया का दूसरा सबसे अधिक आबादी वाला देश है। भारत में विश्व की कुल जनसँख्या का क़रीब 1/5 वां हिस्सा निवास करता है।
  2. भारत दुनिया का सबसे बड़ा लोकतान्त्रिक देश है।
  3. भारत विश्व की उभरती हुई आर्थिक महाशक्ति है। वैश्विक स्तर पर भारत के बढ़ते आर्थिक कद ने भारत के दावों को और मज़बूत किया है। मौजूदा समय में भारत विश्व की 6ठीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है।
  4. भारत के सॉफ्टवयेर इंजीनियर, IT एक्सपर्ट और उद्यमियों का वैश्विक स्तर पर बहुत ही महत्वपूर्ण योगदान है।
  5. भारत को अब विश्व व्यापार संगठन, ब्रिक्स और जी 20 जैसे आर्थिक संगठनों में सबसे प्रभावशाली देशों में गिना जाता है।
  6. भारत संयुक्त राष्ट्र संघ की लगभग सभी पहलों में शामिल रहा है। मौजूदा समय में भारत संयुक्त राष्ट्र के 16 शांति योजनाओं में से 9 का भागीदार है।
  7. भारत की दावेदारी इस लिए ज़रूरी है कि क्यूंकि भारत तेज़ी से अंतराष्ट्रीय स्तर पर आर्थिक शक्ति बनकर उभरा है। इसके अलावा भारत शरू से ही संयुक्त राष्ट्र संघ के बजट में भी योगदान देता आया है।
  8. भारत संयुक्त राष्ट्र की सेना में सबसे ज़्यादा सैनिक भेजने वाला देश है
  9. राजनीतिक रूप से भारत एशिया की दुसरी सबसे बड़ी ताक़त और विश्व के ज़्यादातर विकासशील देशों का नेतृत्व करता है।

इसके अलावा संयुक्त राष्ट्र मौजूदा समय में सिर्फ शांति और सुरक्षा तक सीमित नहीं है। संयुक्त राष्ट्र आज प्रवास, जलवायु परिवर्तन, सतत विकास जैसे महत्वपूर्ण मुद्दों पर काम कर रहा है जोकि भारत के भी अहम मुद्दों में शुमार है। इसलिए भारत संयुक्त राष्ट्र के साथ अधिक से अधिक भागीदारी करना चाहता है।

संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में बदलाव की ज़रूरत क्यों?

  1. सुरक्षा परिषद 1945 की राजनीति के हिसाब से बनाई गई थी। मौजूदा भू - राजनीति द्वितीय विश्व युद्ध से काफी अलग है।
  2. शीतयुद्ध के बाद से ही इसमें सुधार की ज़रूरत महसूस की जा रही है। इसमें कई तरह के सुधार की ज़रूरत है जिनमें बनावट और प्रक्रिया सबसे अहम है।
  3. परिषद के पाँच स्थायी सदस्यों अमेरिका, ब्रिटेन, फ्राँस, रूस और चीन को 7 दशक पहले केवल एक युद्ध जीतने के आधार पर किसी भी परिषद के प्रस्ताव या निर्णय पर वीटो का विशेषाधिकार प्राप्त है।
  4. मौजूदा समय में संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के 5 स्थायी देशों में यूरोप का सबसे ज़्यादा प्रतिनिधित्व है। जबकि यहां दुनिया की कुल आबादी का मात्र 5 प्रतिशत जनता ही निवास करती है।
  5. अफ्रीका और दक्षिण अमेरिका का कोई भी देश सुरक्षा परिषद का स्थायी सदस्य नहीं है। जबकि संयुक्त राष्ट्र का 50 प्रतिशत से अधिक कार्य अकेले अफ्रीकी देशों से संबंधित है।
  6. पीस कीपिंग अभियानों (peacekeeping operations) में अहम भूमिका निभाने के बावज़ूद मौजूदा सदस्यों द्वारा उन देशों के पक्ष को नज़रंदाज़ कर दिया जाता है। जिसका भुग्तभोगी - भारत है
  7. संयुक्त राष्ट्रसंघ के ढांचे में सुधार की एक और ज़रूरत इसलिए भी है क्यूंकि यहां अमेरिका का वर्चस्व है। सोवियत संघ के विघटन के बाद से ही अमेरिका ही एकमात्र महाशक्ति है। अमेरिका अपनी सैन्य और आर्थिक ताकत के बल पर संयुक्त राष्ट्रसंघ के या किसी दूसरे भी अंतराष्ट्रीय संगठनों की अनदेखी करता रहा है।
  8. वीटो के चलते कई महत्वपूर्ण मुद्दों पर फैसला नहीं हो पाता
  9. संयुक्त राष्ट्र की स्वयं की सेना न होना भी सुधार का विषय है
  10. ज़्यादातर देश अपने राष्ट्रीय स्वार्थो को ध्यान में रखकर काम करते हैं, जिसके चलते संयुक्त राष्ट्र अपने उद्देश्यो में सफल नही हो सका है

UNSC सुधार पर भारत का पक्ष

भारत सुरक्षा परिषद् के अस्थायी और स्थायी दोनों ही तरह के सदस्यों की संख्या में बढ़ोत्तरी चाहता है। भारत का मानना है कि बदले हुए विश्व में संयुक्त राष्ट्रसंघ की मज़बूती और सख़्ती की ज़रूरत है। भारत संयुक्त राष्ट्रसंघ के देशों के बीच सहयोग बढ़ाने और विकास को बढ़ावा देने का मुद्दा प्रमुख है क्यूंकि अंतराष्ट्रीय शांति और सुरक्षा के लिए ये पहली शर्त है।

भारत की बड़े चिंता सुरक्षा परिषद् की संरचना को लेकर है। संयुक्त राष्ट्रसभा की आम सभा में सदस्यों की संख्या खूब बढ़ी है। भारत का तर्क है कि परिषद का विस्तार होने से सुरक्षा परिषद् ज़्यादा प्रतिनिधिमूलक होगी और विश्व बिरादरी का ज़्यादा समर्थन मिलेगा। सुरक्षा परिषद् के काम काज की समीक्षा विश्व बिरादरी के कामों पर निर्भर करती है इसलिए सुरक्षा परिषद के पुनर्गठन की ज़रूरत है। साथ ही और भी विकासशील देशों को शमिल किया जाना चाहिए।

सुरक्षा परिषद में भारत को P-5 देशों (अमेरिका, फ्रांस, रूस, चीन, यूनाइटेड किंगडम ) में चीन को छोड़कर लगभग सभी देशों का समर्थन है। कुछ दिन पहले आतांकवादी मसूद अज़हर को वैश्विक आतंकवादी घोषित कराने अमेरिका, फ्रांस और ब्रिटेन का अहम रोल रहा।

हालांकि ये देश भारत का समर्थन ज़रूर करते हैं लेकिन P-5 के कई देश सुरक्षा परिषद् में किसी बदलाव को लेकर राजी नहीं हैं। भारत के साथ रहने वाले अमेरिका और चीन का रुख़ सुरक्षा परिषद् में भारत को शामिल किए जाने को लेकर बदल जाता है। ये देश नहीं चाहते हैं कि स्थायी या अस्थायी सदस्यों की संख्या में इज़ाफ़ा हो।

UNSC में सुधार की अड़चनें

UNSC के P-5 सदस्यों की संयुक्त राष्ट्र सुधारों के बारे में अलग-अलग राय है। अलग अलग राय होना UNSC के सुधार को और जटिल बना देता है।

अमेरिका जहां बहुपक्षवाद के ख़िलाफ़ है। तो वहीं रूस भी किसी तरह के सुधार के पक्ष में नहीं है। सुरक्षा परिषद् में एशिया का एकमात्र प्रतिनिधि होने मंशा रखने वाला चीन भी संयुक्त राष्ट्र में किसी तरह का सुधार नहीं चाहता। चीन नहीं चाहता कि उसके भारत और जापान सुरक्षा परिषद के सदस्य बने।

इसके अलावा सुरक्षा परिषद के दो अन्य सदस्य ब्रिटेन और फ्रांस ब्रेग्जिट के चलते उलझे हुए हैं जिसका असर UNSC पर भी पड़ा है। मौजूदा समय में इन पांचों देशों के बीच सामंजस्य नहीं है जिसके चलते सुधार की कोई उम्मीद नहीं है। ये सभी देश एशिया, अफ्रीका, दक्षिण अमेरिका और यूरोपीय संघ में उभरते नई वैश्विक ताक़तों से चिंतित हैं। ये देश नहीं चाहते कि कोई भी देश उनकी जगह ले।

"यूनाइटेड फॉर कंसेंसस (कॉफी क्लब)" भी है UNSC के सुधार में बाधक

ये ऐसे देश हैं जो अपने पड़ोसी मुल्क़ों को सुरक्षा परिषद् में शामिल नहीं होने देना चाहते हैं। इस अनौपचारिक समूह को यूनाइटेड फॉर कंसेंसस और कॉफी क्लब कहा जाता है। इस समूह में क़रीब 40 से अधिक देश हैं जो अपने हितों के लिए अपने पड़ोसी मुल्क़ को सुरक्षा परिषद् में शामिल नहीं होने देना चाहते हैं। इन देशों में इटली, स्पेन, कनाडा, साउथ कोरिया, ऑस्ट्रेलिया, अर्जेंटीना और पाकिस्तान जैसे देश शामिल हैं। एक ओर जहां इटली, स्पेन - जर्मनी की स्थायी सदस्य्ता का विरोध करते हैं तो वहीं अर्जेंटीना - ब्राज़ील, ऑस्ट्रेलिया - जापान और पाकिस्तान - भारत रहा है।

कई और समूह भी कर रहे हैं UNSC में सुधार की मांग

जी-4 समूह (G4):

भारत, जर्मनी, ब्राज़ील और जापान ने मिलकर जी-4 (G4) नामक समूह बनाया है। ये देश संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के स्थायी सदस्यता के लिये एक-दूसरे का समर्थन करते हैं। जी-4 समूह का मानना है कि सुरक्षा परिषद को और अधिक प्रतिनिधित्वपूर्ण, न्यायसंगत व प्रभावी बनाने की ज़रूरत है।

L - 69 समूह

ये समूह भारत, एशिया, अफ्रीका और लैटिन अमेरिका के क़रीब 42 विकासशील देशों के एक समूह की अगुवाई कर रहा है। L - 69 समूह ने UNSC सुधार मोर्चा पर तत्काल कार्रवाई की मांग की है।

अफ्रीकी समूह

अफ्रीकी समूह में 54 देश शामिल हैं। संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में सुधारों की वक़ालत करने वाला दूसरा महत्वपूर्ण समूह है। इस समूह की मांग है कि अफ्रीका के कम से कम दो राष्ट्रों को वीटो की शक्तियों के साथ सुरक्षा परिषद का स्थायी सदस्य बनाया जाए।

संयुक्त राष्ट्रसंघ

पहले विश्व युद्ध की विभीषिका को देखते हुए एक अंतराष्ट्रीय संगठन की ज़रूरत महसूस हुई। जिसके बाद लीग ऑफ़ नेशंस (राष्ट्र संघ) नाम का अंतर्राष्ट्रीय संगठन बना। हालांकि ये संगठन द्वितीय विषय युद्ध को रोकने में नाकामयाब रहा। जिसके बाद शांति एवं सुरक्षा द्वितीय, विश्व युद्ध की विभीषिका, परमाणु युद्ध का भय, सामाजिक और आर्थिक विकास का उद्देश्य और साामूहिक सुरक्षाा की भावना लिहाज़ से संयुक्त राष्ट्रसंघ की स्थापना हुई। संयुक्त राष्ट्रसंघ की स्थापना 24 अक्टूबर 1945 को हुई थी। उस वक़्त 51 देशों की ओर से संयुक्त राष्ट्रसंघ के घोषणापत्र पर दस्तख़त करने के साथ इस संगठन की स्थापना की गई।

वीटो अधिकार

मौजूदा समय में संयुक्त राष्ट्रसंघ के कुल 193 सदस्य हैं। संयुक्त राष्ट्रसंघ की सुरक्षा परिषद् में पांच स्थायी सदस्य हैं। दुनिया में स्थिरता क़ायम करने के लिए 5 देशों को स्थायी सदस्य्ता दी गई है। स्थायी सदस्यों को वीटो का अधिकार है जबकि अस्थायी सदस्यों को वीटो का अधिकार नहीं है। वीटो के तहत यदि कोई भी एक स्थायी सदस्य प्रस्ताव के ख़िलाफ़ वोट देता है तो उस प्रस्ताव को मंज़ूर नहीं किया जा सकता। लेकिन यदि कोई स्थायी सदस्य मतदान के समय मौजूद नहीं रहता है तो उस पर मज़ूरी की मोहर लग सकती है।

शीत युद्ध के बाद वीटो के अधिकार के इस्तेमाल में कमी से सुरक्षा परिषद एक प्रभावी संस्था के रुप में उभरी है। सुरक्षा परिषद इस बात को बहुत तरजीह देती है कि सशस्त्र संघर्ष न हों। लेकिन यदि विवाद बढ़ जाता है तो परिषद उसे सुलझाने के लिए सबसे पहले कूटनीतिक समाधान का सहारा लेती है। यदि विवाद फिर भी जारी रहता है तो परिषद संघर्ष विराम लागू करने और शांतिसेना तैनात करने पर विचार करती है। परिषद संयुक्त राष्ट्र देशों को प्रतिबंध लागू करने का आदेश भी दे सकती है। अंतिम समाधान के रुप में यह आक्रमणकारी देश के विरुद्ध सैनिक कार्रवाई का अधिकार भी दे सकती है।

संयुक्त राष्ट्र के उदेश्य

संयुक्त राष्ट्रसंघ का मूल उद्देश्य अंतराष्ट्रीय झगड़ों को रोकना और राष्ट्रों के बीच सहयोग क़ायम करना है। अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर होने वाले विवादों के पीछे अक्सर सामाजिक और आर्थिक कारण होते थे। इसलिए संयुक्त राष्ट्रसंघ का काम पूरे विश्व को एकसाथ लाकर सामाजिक और आर्थिक विकास पर जोर देना है।

संयुक्त राष्ट्र संघ के प्रमुख अंग

  • संयुक्त राष्ट्र महासभा (United Nations General Assembly)
  • संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद् (UN Security Council)
  • आर्थिक एवं सामाजिक परिषद् (Economic and Social Council)
  • संयुक्त राष्ट्र सचिवालय (UN Secretariat)
  • अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय (International Court of Justice)
  • संयुक्त राष्ट्र न्यास परिषद् (UN Trusteeship Council)

संयुक्त राष्ट्र के कुछ महत्वपूर्ण संगठन

  • युद्ध और शांति वार्ता (अंतर्राष्ट्रीय शांति और सुरक्षा बनाए रखना)- सुरक्षा परिषद् (UN Security Council)
  • स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं (विश्व के देशों के स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं पर आपसी सहयोग एवं मानक विकसित करने की संस्था है।) - विश्व स्वास्थ्य संगठन - WHO
  • संयुक्त राष्ट्रसंघ विकास कार्यक्रम (यह गरीबी कम करने, आधारभूत ढाँचे के विकास और प्रजातांत्रिक प्रशासन को प्रोत्साहित करने का काम करता है) - UNDP
  • संयुक्त राष्ट्रसंघ मानवाधिकार आयोग (मानवाधिकार के प्रतिवेदन तैयार करना, अधिकारों के अंतर्राष्ट्रीय बिल, नागरिक स्वतंत्रता, स्त्री दशा एवं मानवाधिकार सम्बन्धी विषयों पर अपनी अनुशंसाएं प्रकट करना था)- UNHRC
  • संयुक्त राष्ट्रसंघ शरणाथी उच्चायोग (शरणार्थियों की समस्याओं के प्रति आपात राहत पुनर्वास सहायता, सुरक्षा तथा स्थायी निदान उपलब्ध कराना है) - UNHCR
  • संयुक्त राष्ट्रसंघ बाल कोष (द्वितीय विश्व युद्ध में नष्ट हुए राष्ट्रों के बच्चों को खाना और स्वास्थ्य सेवाएं उपलब्ध कराना था) - UNICEF
  • संयुक्त राष्ट्रसंघ शैक्षिक सामाजिक एवं सांस्कृतिक संगठन (शिक्षा, प्रकृति तथा समाज विज्ञान, संस्कृति तथा संचार के माध्यम से अंतराष्ट्रीय शांति को बढ़ावा देना है।) - UNESCO