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Blog / 20 Jun 2019

(Global मुद्दे) शंघाई सहयोग संगठन (SCO) 19वीं शिखर बैठक (SCO 19th Summit - 2019)

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(Global मुद्दे) शंघाई सहयोग संगठन (SCO) 19वीं शिखर बैठक (SCO 19th Summit - 2019)


एंकर (Anchor): कुर्बान अली (पूर्व एडिटर, राज्य सभा टीवी)

अतिथि (Guest): विवेक काटजू (पूर्व राजदूत), क़मर आग़ा (कूटनीतिक मामलों के जानकार)

चर्चा में क्यों

13 -14 जून को बिश्केक (किर्गिज़ गणराज्य) में शंघाई सहयोग संगठन SCO की 19वीं बैठक आयोजित की गई। बैठक में SCO के सदस्य देशों ने शिरक़त की। साल 2017 में इस संगठन के सदस्य बने भारत की ये दूसरी बैठक है। इससे पहले भारत जून 2018 में चीन के क़िंगदाओ में हुए आखिरी SCO बैठक में शामिल हुआ था। शंघाई सहयोग संगठन की अगली बैठक रूस में होनी है।

शंघाई सहयोग संगठन 2019

  • भारत ने आतंकवाद को जड़ से ख़त्म करने के लिए अंतर्राष्ट्रीय समुदाय को मिलकर प्रयास करने की कही बात
  • भारत ने पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद पर साधा निशाना
  • आतंकवाद को बढ़ावा दे रहे देशों को जवाबदेह बनाए जाने की ज़रूरत - भारत
  • आठ सदस्य देशों की ओर से जारी संयुक्त घोषणापत्र में भी सीमापार से आतंकवाद को बड़ी चुनौती बताया गया।
  • भारत ने इस बैठक में सहयोग के लिए 'हेल्थ' (HEALTH) की रखी अवधारणा
  • H – हेल्थ कोऑपरेशन (स्वास्थ्य देखभाल)
  • E - इकॉनामिक कोऑपरेशन (आर्थिक सहयोग)
  • A - ऑलटरनेट एनर्जी (वैकल्पिक ऊर्जा)
  • L - लिटरेचर एंड कल्चर (साहित्य और संस्कृति)
  • T - टेररिज़्म फ्री सोसायटी (आतंकवाद मुक्त समाज)
  • H - ह्यूमेनिटेरियन अप्रोच (मानवीय सहयोग)

क्या है शंघाई सहयोग संगठन (SCO)?

1991 में सोवियत संघ के विघटन के बाद ये संगठन अस्तित्व में आया था। सोवियत संघ के विघटन के बाद मौजूदा यूरेशियन क्षेत्र में सुरक्षा और आर्थिक संरचना समाप्त हो गई थी। 1996 में बना ये संगठन पहले शंघाई - 5 के नाम से जाना जाता था। शंघाई - 5 में - चीन, कजाकिस्तान, किर्गिस्तान, रूस और ताजिकिस्तान जैसे देश शामिल थे। 2001 में इस संगठन का विस्तार हुआ और उजबेकिस्तान भी इस संगठन में शामिल हो गया। उजबेकिस्तान के इस संगठन में शामिल होने के बाद 15 जून, 2001 को शंघाई में SCO संगठन की स्थापना हुई थी। साल 2017 में भारत और पाकिस्तान भी SCO के सदस्य देश बन गए।

SCO एक स्थायी अंतर-सरकारी अंतर्राष्ट्रीय संगठन है। SCO में कुल तीन तरह के देश हैं, जिनमें सदस्य देश, पर्यवेक्षक देश और वार्ता साझेदार देश शामिल हैं।

  • सदस्य देश - कज़ाकिस्तान, चीन, किर्गिस्तान, रूस, ताजिकिस्तान, उज़्बेकिस्तान, भारत और पाकिस्तान
  • पर्यवेक्षक देश - अफगानिस्तान, बेलारूस, ईरान और मंगोलिया
  • साझेदार देश - अज़रबैजान, आर्मेनिया, कंबोडिया, नेपाल, तुर्की और श्रीलंका

इस संगठन का मक़सद संबंधित क्षेत्र में शांति, सुरक्षा और स्थिरता बनाए रखना। सदस्य देशों के बीच विश्वास और सद्भाव को मज़बूत करना। राजनैतिक, व्यापार और अर्थव्यवस्था, अनुसंधान व प्रौद्योगिकी और संस्कृति में महत्वपूर्ण सहयोग को बढ़ावा देना।

शिक्षा, ऊर्जा, परिवहन, पर्यटन और पर्यावरण संरक्षण जैसे क्षेत्रों में संबंधों को बढ़ाना। इसके अलावा आतंकवाद, अलगाववाद और उग्रवाद के ख़िलाफ़ लड़ाई इस संगठन का मूल मंत्र है।

कैसे शामिल हुआ था SCO में भारत

साल 2017 से पहले भारत SCO के पर्यवेक्षक देशों की सूची में शामिल था। भारत को इस संगठन में सदस्य्ता दिलाने में रूस की अहम रही है। मध्य एशियाई देश और चीन शुरूआत में इस संगठन के विस्तार के पक्ष में नहीं थे; जबकि रूस इस क्षेत्र में विस्तार चाहता था। जानकारों के मुताबिक़ चीन की बढ़ती शक्ति को देखते हुए रूस इस संगठन में विस्तार के लिए राज़ी था।

2009 में रूस ने आधिकारिक तौर पर SCO में भारत को शामिल किए जाने का समर्थन किया था। जवाब में में चीन ने भी पाकिस्तान को इस संगठन में सदस्यता दिलाने की बात रखी।

नवंबर 2008 में मुंबई आतंकवादी हमलों के कुछ महीनों के बाद प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और आसिफ अली जरदारी की जून 2009 में रूस के एकातेरिनबर्ग में मुलाक़ात हुई। ये पहला मौका था जब भारत ने SCO में शामिल होने की अपनी मंशा ज़ाहिर की। तत्कालीन यूरेशिया के संयुक्त सचिव अजय बिसारिया (मौजूदा वक़्त में पाकिस्तान में भारत के उच्चायुक्त) के लगातार दस वर्षों के प्रयास के बाद भारत जून 2017 में SCO में शामिल हो गया। ग़ौरतलब है कि भारत के साथ ही पाकिस्तान को भी इस संगठन की सदस्य्ता दिलाई गई थी।

SCO की ख़ासियत क्या है?

  • SCO में वैश्विक जनसंख्या की क़रीब 40% से अधिक आबादी रहती है।
  • SCO वैश्विक GDP का लगभग 20 फीसदी का प्रतिनिधित्व करता है।
  • इसके अलावा दुनिया के कुल भू-भाग का 22% हिस्सा SCO में शामिल है।
  • भौगोलिक महत्त्व के कारण SCO की एशियाई क्षेत्र में रणनीतिक रूप से अहम भूमिका है।
  • भौगोलिक महत्त्व के चलते SCO मध्य एशिया को नियंत्रित करने और इस क्षेत्र में अमेरिकी प्रभाव को कम करने के क़ाबिल है।
  • SCO को उत्तर अटलांटिक संधि संगठन यानी NATO के भी बराबर देखा जाता है।

भारत के लिये क्यों अहम है SCO ?

  • SCO मौजूदा वक़्त में भौगोलिक क्षेत्र और जनसँख्या के आधार पर दुनिया का सबसे बड़ा क्षेत्रीय संगठन है।
  • भारत इस मंच के ज़रिए मध्य एशिया में सक्रिय भूमिका निभा सकता है।
  • भारत SCO के ज़रिए ईस्ट और वेस्ट के बीच संतुलन स्थापित कर सकता है।
  • SCO के संदर्भ में भारत के दो महत्वपूर्ण उद्देश्य हैं- पहला आतंकवाद और दूसरा कनेक्टिविटी। भारत के ये दोनों ही उद्देश्य SCO के मूल मन्त्र से मेल खाते हैं।
  • भारत SCO के ताशकंद स्थित आतंकवाद-रोधी निकाय (रीजनल एंटी टेरर स्ट्रक्चर -RATS) से खुफिया तंत्र और इंटेलिजेंस तक पहुंच चाहता है।
  • भारत की कनेक्ट सेंट्रल एशिया पॉलिसी के लिए कनेक्टिविटी महत्वपूर्ण है। मध्य एशिया में भारत के हितों में सर्वोपरि ऊर्जा सहयोग है और यह चीन के पड़ोस में स्थित है।
  • चीन SCO के ज़रिए इस क्षेत्र में अपने रणनीतिक मक़सदों को पूरा करना चाहता है। भारत भी इस संगठन के ज़रिए पाकिस्तान पर दबाव बना सकता है।
  • SCO की सदस्यता भारत को संपूर्ण एशिया की एक प्रमुख शक्ति के रूप में स्थापित करती है जबकि पहले भारत की प्रतिष्ठा केवल दक्षिण एशिया तक ही सीमित थी।
  • SCO के कई देश प्राकृतिक गैस और तेल भंडार वाले देश हैं। भारत इन देशों के साथ बेहतर सम्बन्ध बना कर अपने हितों को साध सकता है।
  • SCO के ज़रिए भारत मादक पदार्थों की तस्करी, छोटे हथियारों के प्रसार और आतंकवाद व कट्टरतावाद जैसे समस्याओं से निपटने का प्रयास कर सकता है।
  • लंबे समय से अधर में पड़ी तापी (तुर्कमेनिस्तान-अफग़ानिस्तान-पाकिस्तान-भारत) पाइपलाइन और IPI (ईरान-पाकिस्तान-भारत) पाइपलाइन जैसी परियोजनाओं पर SCO के ज़रिए बात आगे बढ़ सकती है।
  • सार्क के नाक़ाम होने के बाद SCO संगठन भारत के लिए काफी महत्वपूर्ण है। क्यूंकि पाकिस्तान भी इसका सदस्य है। चीन और पाकिस्तान जैसे प्रतिद्वंद्वियों के साथ जुड़ने के लिए एक साझा मंच प्रदान करता है SCO

वैश्विक भू-राजनीति - SCO और भारत को कैसे प्रभावित करती है?

अमेरिका का चीन के साथ शक्ति संघर्ष, ईरान परमाणु समझौते जेसीपीओए (ईरान से भारत के तेल आयात को प्रभावित होना) से बाहर निकलना और रूस के प्रति प्रतिकूल रवैया (भारत द्वारा एस -400 की रक्षा खरीद) जैसे मुद्दे चिंता के विषय है। इन सारे मामलों के चलते भारत पर ये दबाव है कि वह किस पक्ष का चुनाव करें।

पुलवामा हमले के बाद पाकिस्तान के संदर्भ में अमेरिका ने भारत का साथ दिया। डोकलाम गतिरोध के बाद भारत के चीन के साथ तनावपूर्ण संबंध रहे हैं, लेकिन साल 2018 में वुहान में संबंधों को फिर से कायम करने के प्रयास किए गए हैं।

SCO में भारत लगभग बिना किसी दबाव के स्वतंत्र रूप से भाग लेता है लेकिन रूस और चीन हमेशा पश्चिमी देशों से चिंतित होते हैं। हालांकि भारत इन देशों के साथ शासन के मुद्दों पर तालमेल नहीं रखने के लिए हमेशा ही प्रयत्नशील रहा है।

SCO की "शंघाई स्प्रिट" ने भारत को सदैव आकर्षित किया है जो सद्भाव, दूसरों के आंतरिक मामलों में अहस्तक्षेप और गुटनिरपेक्षता पर बल देती है। संक्षेप में ये भारत को अंतरराष्ट्रीय साझेदारी के संदर्भ में सभी विकल्पों को खुले रखने में मदद करती है।

सार्क शिखर सम्मेलन की अनुपस्थिति में SCO शिखर सम्मेलन भारतीय और पाकिस्तानी नेताओं को अनौपचारिक रूप से मिलने का मंच प्रदान करती है।

दोनों पक्षों का दायित्व है कि वे द्विपक्षीय विवादों को छोड़कर अपने हितों और महत्व के मुद्दों पर सहयोग कर सकते हैं। दोनों देशों के सैन्य तंत्र आपस में आतंकवाद रोधी कार्यक्रमों पर के लिए आपस में समझौता कर सकते हैं।

चीन के संदर्भ में पिछले साल ब्रिक्स शिखर सम्मेलन की तरह तनाव कम करने की दिशा में आगे बढ़ा जा सकता है और भारत में अक्टूबर में होने वाले अनौपचारिक शिखर सम्मेलन के द्वारा संबंधों को नई दिशा दी जा सकती है।

इस महीने के आखिर में होनी है G - 20 समिट

  • 28-29 जून को जापान के ओसका में G - 20 समिट होनी है।
  • भारत, रूस और चीन करेंगे G - 20 समिट में त्रिपक्षीय वार्ता।