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Daily Current Affairs for UPSC, IAS, State PCS, SSC, Bank, SBI, Railway, & All Competitive Exams - 03 February 2020

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Daily Current Affairs for UPSC, IAS, State PCS, SSC, Bank, SBI, Railway, & All Competitive Exams - 03 February 2020



BREXIT की कहानी

  • 31 जनवरी रात 12 बजते ही ब्रिटेन यूरोपीय यूनियन से बाहर हो गया है।
  • इस तरह ब्रिटेन और यूरोपीय यूनियन का 47 साल पुराना महत्वपूर्ण रिश्ता खत्म हो गया।
  • बेल्जियम की राजधानी ब्रुसेल्स में यूरोपीय संघ केे संस्थानों से ब्रिटेन का ध्वज हटा दिया गया।
  • लंदन में ब्रेक्जिट के समर्थन और खुशी में लोगों ने इकट्ठा होकर अपना उत्साह प्रदर्शित किया वही स्कॉअलैण्ड में इसके विरोध में कैंडल मार्च निकाला गया।
  • 23 जून 2016 को हुए मत संग्रह में 52% लोगों ने ब्रिटेन के यूरोपीय यूनियन से बाहर होने एवं 48% नहीं होने के पक्ष में मतदान किया था।
  • इसके बाद ब्रिटेन ने यूरोपीय यूनियन से बाहर निकलने की प्रक्रिया प्रारंभ की इसे ब्रेक्जिट नाम दिया गया।
  • यूरोपीय यूनियन 28 देशों का एक यूनियन है जो इन देशों को आर्थिक और राजनीतिक रूप से जोड़ता है।
  • यह यूनियन सदस्य देशों के बीच Free Trade की अनुमति देता है।
  • इसके साथ ही यह सेवाओं के मुक्त आवागमन को सुनिश्चित करता है।
  • यू.के. के अंतर्गत 4 क्षेत्र उत्तरी आयरलैण्ड, स्कॉटलैण्ड, इंग्लैण्ड तथा वेल्स आते है।

इतिहास

  • ब्रेक्जिट के लिए वोटिंग के समय यू.के. के पी.एम. डेविड केमरून थे जो नहीं चाहते थे कि ब्रेक्जिट हो।
  • 52% मत पक्ष में आने पर 13 जुलाई 2016 को उन्होने इस्तीफा दे दिया।
  • इसी दिन थेरेसा मे (Theresa May) यू.के. की प्रधानमंत्री बनती हैं।
  • इसके बाद यूरोपीय यूनियन से बाहर आने की प्रक्रिया पूरी करने की जिम्मेदारी थेरेसा मे पर आ गई।
  • इसके बाद Deal or No Deal की प्रक्रिया पर सहमति बनाना था।
  • थेरेसा मे 3 साल तक प्रयास करती रहीं।
  • 31 अक्टूबर 2019 का समय ब्रेक्जिट के लिए निश्चित किया गया।
  • इसमें थेरेसा मे ने ब्रेक्जिट With Deal करने की घोषणा की ।
  • जब यह डील यू.के. की संसद में पेश किया गया तो सांसद ने अस्वीकार कर दिया।
  • 24 जुलाई को थेरेसा मे ने इस्तीफा दे दिया।
  • इसी दिन Boris Johnson को यहाँ का पी.एम. बनाया जाता है।
  • ब्रेक्जिट के प्रस्ताव को यूरोपीय यूनियन के साथ न होने के पीछे एक विवाद उत्तरी आयरलैण्ड और रिपब्लिक ऑफ आयरलैण्ड से संबंधित है।
  • उत्तरी आयरलैण्ड एवं आयरलैण्ड गणराज्य के बीच मुक्त व्यापार समझौता है आयरलैण्ड भी यूरोपीय यूनियन का भाग है।
  • जोंनसन यह प्रस्ताव लेकर आये कि उत्तरी आयरलैण्ड को छोड़कर अन्य हिस्से का ब्रेक्जिट कर लेते हैं।
  • वहाँ के सांसदो ने इसका विरोध किया क्योंकि यह One Nation Two System की तरह है।
  • बढ़ते विरोध और जल्द से जल्द ब्रेक्जिट करने के लिए जोंनसन ने Without Deal ब्रेक्जिट की घोषणा की।
  • यह प्रस्ताव जब जोंनसन संसद में लेकर आये तो यह पास नही हो पाया, उनकी पार्टी के सांसदो ने भी विरोध किया।
  • दूसरा प्रस्ताव वह नया चुनाव कराने का लेकर आये यह भी पास नहीं हो पाया।
  • 14 अक्टूबर 2019 को वह संसद ने वर्तमान ब्रेक्जिट डील को अस्वीकार कर दिया।
  • 29 अक्टूबर को नया चुनाव कराने की स्वीकृति संसद ने दे दिया।
  • बोरिस जोंनसन पुनः पी.एम. निर्वाचित हुए और पूर्ण बहुमत प्राप्त हुआ।
  • चुनाव में इन्होने यह आश्वासन और घोषणा किया था कि वह 31 जनवरी 2020 तक किसी भी हालत में ब्रेक्जिट करवा देंगे। और ऐसा ही हुआ।

Johnson – “We will get Brexit done on time by 31 January No ifs, No buts, Not maybe.”

आख़िर क्यों अलग हो रहा है ब्रिटेन?

स्वायत्तता: EU की दखलंदाज़ी के कारण इंग्लैंड कानून बनाने सम्बन्धी अपने अधिकारों का खुल कर इस्तेमाल नहीं कर पा रहा है। खासतौर से फिशरीज़ से जुड़े कानून। ऐसे में इंग्लैंड की स्वायत्तता प्रभावित हो रही है।

इमीग्रेशन: पिछले कुछ सालों में ब्रिटेन में आप्रवासियों की तादाद में काफी वृद्धि देखी गई है, क्योंकि सीरिया में सिविल वार के चलते काफी संख्या में आप्रवासी भागकर यूरोप आ रहे हैं। इसके अलावा यूरोपीय संघ के देशों के बीच लोगों की आवाजाही पर कोई मनाही नहीं है। इसके चलते मध्य और पूर्वी यूरोप से ढेर सारे लोग काम करने के लिहाज से ब्रिटेन में आकर बस गए हैं। लेकिन दिक्कत ये है कि इमीग्रेशन नीति EU तय करता है, न कि UK । ऐसे में अगर ब्रिटेन EU से हट जाता है तो उसे अपनी खुद की इमीग्रेशन नीति तय करने का हक़ होगा।

सदस्यता फीस: यूरोपियन यूनियन यानी EU सदस्यता शुल्क के नाम हर साल अपने सदस्य देशों से कुछ धन राशि लेता है। ये धनराशि हर सदस्य देश के लिए अलग-अलग है जो कि हर सदस्य देश की अर्थव्यवस्था के मुताबिक़ तय की जाती है। EU हर साल सदस्यता शुल्क के तौर पर ब्रिटेन से क़रीब 13 बिलियन पाउंड लेता है लेकिन बदले में उसे बहुत कम राशि मिलती है। ऐसे में ब्रिटेन को काफी नुकसान उठाना पड़ता है।

प्रशासनिक दिक्कतें: EU की दखलंदाज़ी के कारण UK में कोई भी प्रशासनिक काम करने के दौरान काफी अड़चनें आती हैं। लालफीताशाही की भूमिका काफी ज़्यादा है।
अर्थव्यवस्था: ब्रिटेन को लगता है ब्रेक्सिट के बाद वो अपने आपको फाइनेंसियल सुपर पॉवर बना सकता है क्योंकि लंदन को पहले से ही वित्तीय राजधानी कहा जाता है। वहाँ का वित्तीय बाज़ार दुनिया के बड़े बाज़ारों में से एक है।

ब्रेक्जिट का ब्रिटेन पर प्रभाव

ब्रेक्जिट की इस खींचतान के कारण यहाँ की मुद्रा, पाउंड में भारी गिरावट आई है। पाउंड में पिछले 31 सालों में ये सबसे बड़ी गिरावट है।

  • ब्रिटिश जीडीपी को 1 से 3 फ़ीसदी का नुकसान हो सकता है।
  • ब्रिटेन के लिए सिंगल मार्केट सिस्टम ख़त्म हो जाएगा।
  • दूसरे यूरोपीय देशों में ब्रिटेन को कारोबार से जुड़ी दिक्कतें होंगी। ब्रेक्जिट के बाद ये कारोबार WTO के नियमों के मुताबिक़ होंगी।
  • पूरे यूरोपियन यूनियन पर ब्रिटेन का दबदबा ख़त्म हो जाएगा।
  • ब्रिटेन को यूरोपियन यूनियन के बजट के लिए बड़ी धन राशि नहीं देनी होगी।
  • ब्रिटेन की सीमाओं पर बिना रोक-टोक के आवाजाही पर लगाम लगेगी।
  • फ्री वीजा पॉलिसी के कारण ब्रिटेन को हो रहा नुकसान भी कम होगा।

ब्रेक्जिट का भारत पर प्रभाव

मौजूदा वक़्त में ब्रिटेन में क़रीब 800 भारतीय कंपनियाँ हैं। जिनमें 1 लाख से ज़्यादा लोग काम करते हैं। भारतीय आईटी कंपनियों की 6 से 18 फ़ीसद कमाई ब्रिटेन से होती है।

भारत में कुल एफडीआई का 8 फ़ीसद हिस्सा UK से आता है। इसका असर भारत के कारोबार पर कम पड़ेगा लेकिन ब्रेक्जिट के बाद ब्रिटेन के साथ अलग से व्यापारिक समझौते करने पड़ेंगे। साथ ही यूरोप के देशों से भी भारत को नए करार करने होंगे। इस प्रक्रिया में तमाम राजनीतिक और कूटनीतिक दिक्कतें आ सकती हैं।

  • भारतीय कंपनियों की ब्रिटेन में रुचि की एक बड़ी वज़ह यह है कि ब्रिटेन के रास्ते भारतीय कंपनियों की यूरोप के बाकी 27 देशों के बाज़ार तक सीधी पहुँच हो जाती है। यानी भारतीय कंपनियों के लिए ब्रिटेन एक गेटवे की तरह है। जाहिर है जब ब्रिटेन यूरोपीय यूनियन से बाहर निकलेगा तो इस बड़े बाज़ार तक आसान पहुँच बंद हो जाएगी। UK ने हमेशा EU में भारत की तरफदारी की है और भारत का साथ दिया है, विशेष रूप से फ्री ट्रेड एग्रीमेंट के मामले में। लेकिन ब्रेक्जिट के बाद ब्रिटेन में काम कर रहीं भारतीय कंपनियों को यूरोपीय बाज़ार तक पहुँचने के नए रास्ते निकालने होंगे।
  • इतना ही नहीं ब्रिटेन में बने उत्पादों पर भारतीय कंपनियों को यूरोपीय देशों में टैक्स भी देना होगा। इस कारण भी कंपनियों के खर्च में इज़ाफा होगा।
  • मॉरिशस और सिंगापुर के बाद ब्रिटेन भारत में तीसरा सबसे बड़ा निवेशक है। अगर ब्रेक्जिट के बाद ब्रिटेन की अर्थव्यवस्था कमजोर पड़ती है तो उसके निवेश में भी कमी आ सकती है।
  • पौंड के कमजोर होने से डॉलर मजबूत बनेगा। ऐसी परिस्थिति में रुपया डॉलर के मुकाबले कमजोर हो सकता है।

ब्रेक्जिट के कारण कुछ फायदा भारत को भी है

ब्रेक्जिट के कारण यूके और यूरोपीय संघ दोनों ही घाटे में जा सकते हैं। दोनों को ही एक दूसरे के विकल्पों की जरूरत होगी। ऐसे में भारत अहम भूमिका निभा सकता है। भारत तकनीक, साइबर सुरक्षा, रक्षा और वित्त में बड़ा भागीदार बन सकता है। निवेश के लिहाज से भी भारत की भूमिका अहम होगी।

एक्सपर्ट्स का कहना है कि ब्रेक्जिट के कारण होने वाला कोई भी नुकसान सिर्फ शार्ट-टर्म के लिए ही होगा, लॉन्ग-टर्म में भारत को कोई नुकसान नहीं होगा।

यूरोपियन यूनियन

दूसरे विश्वयुद्ध के बाद यूरोप में यह कोशिश की गई कि सभी देश आर्थिक रूप से एक साथ आएँ और एकजुट होकर एक व्यापार समूह बनें। इसके पीछे एक मक़सद यह था कि देशों का आपस में आर्थिक जुड़ाव जितना ज़्यादा होगा, युद्ध होने की गुंजाईश उतनी कम होगी। इस तरह 1957 में 'रोम की संधि' द्वारा 'यूरोपीय आर्थिक परिषद' के ज़रिए छह यूरोपीय देशों की आर्थिक भागीदारी शुरू हुई। इसी क्रम में 1993 में 'मास्त्रिख संधि' के ज़रिए यूरोपीय यूनियन अस्तित्व में आया।

यूरोपियन यूनियन 28 देशों की एक आर्थिक और राजनीतिक पार्टनरशिप है। 2004 में जब यूरो करेंसी लॉन्च की गई तब यह पूरी तरह से राजनीतिक और आर्थिक रूप से एकजुट हुआ। इस संघ के सदस्य देशों के बीच किसी भी तरह का सामान और व्यक्ति बिना किसी टैक्स या बिना किसी रुकावट के कहीं भी आ-जा सकते हैं। साथ ही बिना रोक टोक के नौकरी, व्यवसाय तथा स्थायी तौर पर निवास कर सकते हैं।