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Blog / 18 Mar 2019

(आर्थिक मुद्दे) अमेरिका - भारत अर्थयुद्ध और जीएसपी (America India Tarde War and GSP)

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(आर्थिक मुद्दे) अमेरिका - भारत अर्थयुद्ध और जीएसपी (America India Tarde War and GSP)


एंकर (Anchor): आलोक पुराणिक (आर्थिक मामलो के जानकार)

अतिथि (Guest): अशोक सज्जनहार (पूर्व राजदूत), दीपक उपाध्याय (अंतर्राष्ट्रीय कारोबार के जानकार)

चर्चा में क्यों?

बीते दिनों 4 मार्च को अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने ये घोषणा किया कि वे भारत का नाम उन देशों की सूची से बाहर कर देंगे, जो जनरलाइज़्ड सिस्टम ऑफ प्रेफरेंस यानी जीएसपी कार्यक्रम का लाभ उठा रहे हैं। अमेरिकी प्रावधानों के मुताबिक़ ये बदलाव अधिसूचना जारी होने के 60 दिनों बाद लागू हो जाएंगे।

राष्ग्ट्रपति ट्रम्प ने अमेरिकी हाउस ऑफ़ रिप्रेजेन्टेटिव की स्पीकर नैन्सी पैलोसी को एक पत्र लिखा। इस पत्र में उन्होंने बताया कि भारत ने अमेरिका को इस बात का भरोसा नहीं दिया कि वह अमेरिकी उत्पादकों को भारत के बाजारों में ‘न्यायसंगत एवं उचित पहुंच’ प्रदान करेगा।

क्या है जीएसपी?

जीएसपी को, आसान शब्दों में, सामान्य कर-मुक्त प्रावधानों के तौर पर समझा जा सकता है। यह कार्यक्रम अमेरिका का सबसे बड़ा व्यापारिक वरीयता कार्यक्रम यानी ट्रेड प्रेफरेंस प्रोग्राम है।

  • अमेरिका ने इसकी शुरुआत साल 1976 में विकासशील देशों में आर्थिक वृद्धि बढ़ाने के मक़सद से की थी।
  • इसके तहत कुछ चुनिंदा सामानों के ड्यूटी-फ्री इम्पोर्ट की अनुमति दी जाती है। इसका मतलब, जीएसपी के तहत अमेरिका भारत से जिन सामानों का आयात करेगा उन पर टैक्स नहीं लगाया जाएगा।
  • अभी तक लगभग 129 देशों को करीब 4,800 गुड्स के लिए जीएसपी के तहत फायदा मिला है।

किस आधार पर अमेरिका द्वारा दिया जाता है जीएसपी दर्ज़ा?

अमेरिकी नियमों के अनुसार जीएसपी का फायदा उठाने वाले देश को पात्रता के 15 मानकों को पूरा करना होता है। इसका मतलब ये हुआ कि अमेरिका इन्ही 15 आधारों पर किसी देश को जीएसपी कार्यक्रम में शामिल करता है। इनमे से कुछ अहम् मानक इस प्रकार हैं-

  • अमेरिका को उस देश के बाजार में न्यायसंगत और उचित पहुंच हो,
  • पंचाटों द्वारा अमेरिकी नागरिकों या कारपोरेशन के पक्ष में ज़ारी निर्णयों का सम्मान करना,
  • बाल श्रम को रोकना,
  • पर्याप्त और प्रभावी बौद्धिक संपदा संरक्षण प्रदान करना और
  • अंतरराष्ट्रीय समुदाय द्वारा मंज़ूर श्रमिक अधिकारों का सम्मान करना

भारत पर इसका क्या प्रभाव पड़ेगा?

जीएसपी कार्यक्रम के तहत भारत को 5.6 अरब डॉलर यानी 40,000 करोड़ रुपए के एक्सपोर्ट पर छूट मिलती है। जीएसपी से बाहर होने पर भारत को यह फायदा नहीं मिलेगा।

गौरतलब है कि भारत जीएसपी का सबसे बड़ा लाभार्थी देश है। साल 2017 में अमेरिका में आयात पर कुल 21.1 अरब डॉलर का शुल्क माफ किया गया था, जिनमें 5.6 अरब डॉलर का लाभ अकेले भारत को मिला था।

वो कौन से कारण हैं जिनसे अमेरिका ने ये निर्णय लिया?

भारत और अमेरिका के बीच तमाम ऐसे मुद्दे रहे हैं, जिसने दोनों देशों के व्यापार संबंधों को प्रभावित किया है।

  • इसमें, भारत का नया ई-कॉमर्स नियम, मेडिकल डिवाइसेज की कीमतों को तय किया जाना और इनफार्मेशन एंड कम्युनिकेशन टेक्नोलॉजी यानी आईसीटी प्रॉडक्ट्स पर शुल्क लगाया जाना जैसे मुद्दे शामिल हैं।
  • इसके अलावा, अमरीका चाहता है कि भारत उससे डेयरी उत्पाद अधिक खरीदे लेकिन भारत का कहना है कि उसके इस फ़ैसले के पीछे "सांस्कृतिक और धार्मिक संवेदनाएं हैं" जिन पर "समझौता नहीं" किया जा सकता।

दरअसल, अमेरिका अपनी डेयरी और मेडिकल डिवाइस इंडस्ट्री की ओर से दी गई याचिकाओं के आधार पर भारत की पात्रता की समीक्षा करना चाहता है। भारत में, इन दोनों सेक्टरों में, अमेरिकी कंपनियों को कड़े नियमों के कारण एक्सपोर्ट में मुश्किल हो रही है।

अमेरिकी डेयरी उत्पादों में क्या दिक्कत है और ब्लड मील क्या है?

अमरीका और यूरोप के कई देशों में गायों को खिलाए जाने वाले चारे में गायों-सूअरों और भेड़ों का माँस और खून को मिलाया जाता है, इसी वजह से इन जानवरों के चारे को 'ब्लड मील' कहा जाता है।

  • ऐसी खुराक पर पली गायों के दूध से बनी चीज़ों का आयात करने को लेकर भारत सहज नहीं है, उसका कहना है कि वह ऐसी गायों के दूध से बने उत्पाद नहीं ख़रीद सकता जिन्हें ब्लड मील दिया गया हो।
  • भारत आस्था और संस्कृति की वजह से ऐसा नहीं करना चाहता।
  • धार्मिक कारण के अलावा भारत का अपना वैज्ञानिक तर्क भी है। दरअसल ब्लड मील वाले जानवरों में 'मैडकाऊ' नामक बीमारी होने का डर रहता है, जो इंसानों के स्वास्थ्य के लिहाज़ से अच्छा नहीं होता है।

आखिर भारत अमेरिका को क्यों नहीं दे रहा है टैरिफ छूट?

भारत ने दो कारणों से अमेरिका को टैरिफ छूट देने से मना कर रहा है।

  • जिन उत्पादों पर अमेरिका छूट चाह रहा है वो उत्पाद अमरीका द्वारा भारत को बहुत ही कम मात्रा में निर्यात किया जाता है। इस कैटिगरी में अमेरिकी निर्यात भारत के कुल इम्पोर्ट का केवल 2 फीसदी है। ऐसे में अगर भारत द्वारा टैरिफ में छूट दे भी दिया जाय तो अमेरिका को कोई बड़ा फायदा होने की संभावना नहीं है।
  • दूसरा, भारत केवल अमेरिका के लिए टैरिफ में कमी नहीं कर सकता क्योंकि ग्लोबल ट्रेड नियमों के मुताबिक़ इस तरह की छूट मोस्ट फेवर्ड नेशन के आधार पर दिया जाना चाहिए। इस तरह का कदम उठाने पर चीन को भी फायदा होगा। लेकिन दिक्कत ये है कि भारत का पहले ही चीन के साथ ट्रेड डेफिसिट बहुत अधिक है और टैरिफ में छूट देने से यह और भी बढ़ जाएगा।

भारत और अमेरिका के बीच के व्यापार सम्बन्धी आंकड़े क्या कहते हैं?

साल 2017-2018 के आर्थिक सर्वेक्षण के मुताबिक़ भारत अमेरिका के साथ व्यापार अधिशेष यानी ट्रेड सरप्लस की स्थिति में है। वित्त वर्ष 2016-2017 में भारत और अमेरिका के बीच द्विपक्षीय व्यापार 64.5 बिलियन डॉलर का था। बाद में, 15.5% की वृद्धि के साथ साल 2017-18 में ये व्यापार 74.5 बिलियन डॉलर का हो गया।

अभी हाल के आंकड़ों पर भी नज़र डाले तो हम पाते हैं कि व्यापार भारत के पक्ष में झुका है, मसलन एक अंदाज़ के मुताबिक़ अप्रैल 2018 से दिसंबर 2018 में भारत ने अमेरिका को 38.8 बिलियन डॉलर का निर्यात किया जबकि आयात मात्र 26.3 बिलियन डॉलर का ही किया था।

अमेरिका के इस घोषणा के बाद भारत का क्या कहना है?

वाणिज्य सचिव अनूप वाधवा ने कहा कि भारत जीएसपी के तहत अमेरिका को 5.6 अरब डॉलर के सामानों का निर्यात करता है, जिसमें से केवल 1.90 करोड़ डॉलर मूल्य की वस्तुएं ही बिना किसी शुल्क वाली श्रेणी में आती हैं। इस तरह, अमेरिका अगर जीएसपी की व्यवस्था को खत्म करने का फैसला लागू करता है, तो 'भारतीय व्यापार पर इसका असर बेहद सीमित होगा।'

इस सम्बन्ध में WTO का नियम क्या कहता है?

अमेरिका की जीएसपी योजना व्यापार को प्रोत्साहन देने वाली एक योजना है। इस तरह की योजना के तहत विकसित देश विकासशील देशों को व्यापार के लिए छूट देते हैं।

  • WTO के नियमों मुताबिक़, विकसित देशों द्वारा दिए गए इस छूट के बदले विकासशील देशों से इसी तरह के फायदे की उम्मीद नहीं करनी चाहिए।
  • विकसित देश को इस योजना के तहत दिए जाने वाले छूट के लिए विकासशील देशों के बीच किसी तरह का भेदभाव नहीं करना चाहिए।
  • साथ ही, इस तरह के फायदों को एकतरफा तरीके से समाप्त नहीं किया जा सकता।

अब भारत के सामने कौन-कौन से विकल्प हैं?

भारत को मिली तरजीही व्यापार सुविधा को खत्म किए जाने के बाद भारत के सामने कई विकल्प खुले हैं।

  • वह अमेरिकी सामानों के आयात पर जवाबी कार्रवाई करते हुए टैक्स में इजाफा कर दे। लेकिन सूत्रों से पता चला है कि भारत ऐसा नहीं करेगा।
  • भारत अमेरिका के इस कदम को विश्व व्यापार संगठन यानी डब्ल्यूटीओ में चुनौती दे सकता है। भारत डब्ल्यूटीओ में इस आधार पर जाएगा कि अमेरिका, भारत को अलग कर विकासशील देशों के बीच उसके साथ भेदभाव कर रहा है।
  • हालांकि, इन एक्सपर्ट्स का ये भी कहना है कि डब्ल्यूटीओ में प्रक्रिया लंबी चल सकती है। ऐसे में, भारत के सामने बेहतर विकल्प यह होगा कि इस मुद्दे का समाधान द्विपक्षीय बातचीत से किया जाए क्योंकि अमेरिका के साथ व्यापार में भारत ट्रेड सरप्लस कि स्थिति में है।

मुद्दे के समाधान के लिए भारत ने क्या किया और इसको कितनी सफलता मिली?

वाशिंगटन द्वारा जीएसपी को खत्म करने की चेतावनी के बाद भारत ने अपने कृषि, डेयरी एवं पॉल्ट्री बाजार को अमेरिका के लिए खोलने की सहमति जताई। भारत ने बाक़ायदा ट्रंप सरकार को इसका एक औपचारिक प्रस्ताव भी भेजा। लेकिन, इस प्रस्ताव का अमेरिकी सरकार पर कोई असर नहीं हुआ।

मामला पिछले साल से ही शुरू हो चुका था

ग़ौरतलब है कि पिछले साल से भी भारत को अमेरिकी सरकार की ओर से व्यापार पर झटका मिल चुका है। अमेरिकी प्रशासन ने भारत के कई सामानों को ड्यूटी-फ्री लिस्ट से बाहर किया था। बाद में, भारत ने भी ऐलान किया कि वो अमेरिकी उत्पादों पर शुल्क लगाया जाएगा। हालांकि, भारत सरकार इस फैसले को लागू करने से बचता रहा।

इससे पहले भी भारत, EU के जीएसपी सिस्टम को WTO में दे चुका है चुनौती

साल 2002 में भारत का यूरोपियन यूनियन के साथ भी एक ऐसा ही विवाद हुआ था। जिसमे भारत ने यूरोपियन यूनियन के जीएसपी सिस्टम को WTO में चुनौती दी थी। भारत का कहना था कि यह सिस्टम विकासशील देशों के बीच भेदभाव करता है। बाद में WTO ने यूरोपियन यूनियन के फ़ार्मासूटिकल से जुड़े जीएसपी सिस्टम में कमियां पाई थीं।