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Blog / 07 Jun 2019

(डेली न्यूज़ स्कैन (DNS हिंदी) विश्व पर्यावरण दिवस (World Environment Day)

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(डेली न्यूज़ स्कैन (DNS हिंदी) विश्व पर्यावरण दिवस (World Environment Day)


मुख्य बिंदु:

5 जून यानी विश्व पर्यावरण दिवस... दुनिया भर में हर साल 5 जून को विश्व पर्यावरण दिवस के रूप में मनाया जाता है। तेज़ी से बढ़ते वायु प्रदुषण को लेकर 1972 में पहली बार संयुक्त राष्ट्र की ओर से चिंता ज़ाहिर की गई थी। वैश्विक संकट बन चुके वायु प्रदुषण को लेकर 1972 में हुई चर्चा के दौरान हर साल विश्व पर्यावरण दिवस मनाए जाने की बात कही गई। इस चर्चा के 2 साल बाद यानी 5 जून 1974 को स्वीडन की राजधानी स्टॉकहोम में पहला विश्व पर्यावरण दिवस मनाया गया जिसके बाद से हर साल 5 जून को विश्व पर्यावरण दिवस मनाया जाता है।

DNS में आज हम आपको विश्व पर्यावरण दिवस के बारे में बताएंगे साथ ही समझेंगे वायु प्रदूषण के कारण पर्यावरण को होने वाले नुकसान के बारे में

1974 से शुरू हए पहले विश्व पर्यावरण दिवस के मौके पर क़रीब 119 देश शामिल हुए थे। बढ़ते प्रदुषण और उसके दुष्प्रभाव के बारे में जागरूकता फैलाने के लिये हर साल विश्व पर्यावरण दिवस आयोजित किया जाता है। विश्व पर्यावरण दिवस के ज़रिए लोगों में पर्यावरण से जुडी सामान्य जानकारियाँ और मानव व पर्यावरण के बीच संबंधों के बारे में जानकारी साझा करने की कोशिश की जाती है। इसके अलावा पर्यावरण संबंधी मुश्किलों के लिए शिक्षा कार्यक्रमों का विकास और पर्यावरण के प्रति लोगों में ज़िम्मेदारी की भावना पैदा करने जैसे मक़सद भी विश्व पर्यावरण दिवस के पीछे शुमार हैं।

हर साल आयोजित होने वाले विश्व पर्यावरण दिवस की अलग - अलग देश मेज़बानी करते हैं। पिछले साल भारत ने 45 वें विश्व पर्यावरण दिवस की मेज़बानी की थी। जबकि इस बार यानी 46 वें विश्व पर्यावरण दिवस की मेज़बानी चीन कर रहा है। विश्व पर्यावरण दिवस पर संयुक्त राष्ट्र एक विषय तय करता है। जिस पर परिचर्चाएँ, गोष्ठियाँ, और प्रतियोगिताओं जैसी गतिविधियों आयोजित की जाती है। चीन में आयोजित हो रहे इस बार के विश्व पर्यावरण दिवस की थीम Air pollution है।

विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक़ वायु प्रदूषण एक ऐसी स्थिति है जिसमें वातावरण में इंसान और पर्यावरण को हानि पहुंचाने वाले तत्व ज़्यादा मात्रा में जमा हो जाते हैं। पर्यावरण को नुकसान पहुंचाने वाले मुख्य कारणों में वायु, जल और भूमि प्रदूषण से जैसे महत्वपूर्ण कारक ज़िम्मेदार होते हैं। दुनिया भर में तेज़ी से चल रहे निर्माण कार्य, कोयले और तेल के जलने से निकलने वाले सल्फर ऑक्साइड और नाइट्रोजन ऑक्साइड व कार्बन मोनोऑक्साइड जैसी गैसे भी वायु प्रदुषण के लिए मुख्य रूप से ज़िम्मेदार हैं। इसके अलावा कृषि प्रक्रिया के ज़रिए उत्सर्जित होने वाली अमोनिया इन दिनों सबसे ज़्यादा प्रदूषण फैलाने वाली गैस है।

अप्रैल महीने में, अमेरिका स्थित हेल्थ इफेक्ट्स इंस्टीट्यूट द्वारा स्टेट ऑफ ग्लोबल एयर रिपोर्ट 2019 जारी की गई थी। इस रिपोर्ट में बताया गया कि साल 2017 में वायु प्रदूषण के कारण होने वाली बीमारियों से 12 लाख भारतीयों की मौत हो गई। इसके अलावा डब्लूएचओ की एक रिपोर्ट के मुताबिक भी दुनिया के 20 सबसे प्रदूषित शहरों में 14 भारत के ही हैं। एशिया में वायु प्रदूषण के होने वाली अकाल मौतों के मामले में भारत शीर्ष पांच देशों में शामिल है। साथ ही भारत में करीब 66 करोड़ लोग ऐसी जगहों पर रहने को मजबूर हैं जहां हवा में प्रदूषण की मात्रा राष्ट्रीय औसत से कहीं ज्यादा है।

भारत में PM 2.5 यानी पार्टिकुलेट मैटर का बढ़ता स्तर वायु प्रदूषण के लिहाज से सबसे गंभीर समस्या है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक PM 2. 5 की सुरक्षित सीमा – 40 माइक्रोग्राम प्रति मीटर क्यूब निर्धारित की गयी है, जबकि देश की राजधानी दिल्ली में ये स्तर अक्सर ही 200 माइक्रोग्राम प्रति मीटर क्यूब के करीब बना रहता है।

पार्टिकुलेट मैटर को अभिकणीय पदार्थ के नाम से जाना जाता है। ये हमारे वायुमंडल में उपस्थित बहुत छोटे कण होते हैं जिनकी मौजूदगी ठोस या तरल अवस्था में हो सकती है। पार्टिकुलेट मैटर वायुमंडल में निष्क्रिय अवस्था में होते हैं, जोकि अतिसूक्ष्म होने के कारण साँसों के ज़रिये हमारे शरीर में प्रवेश कर जाते हैं और कई जानलेवा बीमारियों का कारण बनते हैं।

दरअसल संविधान का अनुच्छेद -21 हमें स्वच्छ पर्यावरण का अधिकार प्रदान करता है। इसके अलावा और अनुच्छेद 48A में भी पर्यावरण के संरक्षण, सुधार और जंगलों और वन्य जीवों की सुरक्षा की बात गई है। साथ ही अनुच्छेद 51ए(जी) के तहत भारतीय नागरिकों का ये कर्तव्य है कि वे प्राकृतिक पर्यावरण की रक्षा करें।

सतत विकास लक्ष्यों यानी SDG के तहत पर्यावरणीय ख़तरों को कम करने के लिये कुछ लक्ष्य तय किये गए हैं। 1972 में स्टॉकहोम में आयोजित मानव पर्यावरण पर संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन के निर्णयों को लागू करने के लिये भारत सरकार ने एक अधिनियम बनाया था। जिसे वायु अधिनियम 1981 यानी प्रदूषण निवारण और नियंत्रण अधिनियम भी कहा जाता है।

वायु प्रदूषण रोकने के लिए सरकार के द्वारा उठाए गए कदम

इनमें वायु अधिनियम, 1981 के तहत दिशा-निर्देश जारी करना। परिवेशी वायु गुणवत्ता के आकलन के लिये निगरानी नेटवर्क की स्थापना करना और CNG और LPG जैसे स्वच्छ गैसीय ईंधन को बढ़ावा देना जैसे क़दम शामिल हैं इसके अलावा पेट्रोल में इथेनॉल की मात्रा बढ़ाना, राष्ट्रीय वायु गुणवत्ता सूचकांक यानी AQI की शुरुआत करने जैसे क़दम भी सरकार की ओर से उठाए गए हैं।

इसके अलावा हाल ही में केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय ने राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम यानी NCAP को लागू करने के लिए एक समिति का गठन किया है। इस समिति का मक़सद 2024 तक कम से कम 102 शहरों में 20% -30% से पार्टिकुलेट मैटर यानी PM प्रदूषण को कम करना है। भारत में प्रदूषण की समस्या काफी अधिक है। हमें वायु प्रदूषण से निपटने के लिए बायोमास जलाने पर बैन, पब्लिक ट्रांसपोर्ट को बढ़ावा देना और सभी इंजन चालित वाहनों के लिये प्रदूषण नियंत्रण सर्टिफिकेट लेना ज़रूरी जैसे नियमों को सख़्त करना होगा। साथ ही उद्योगों, परिवहन और बिजली संयंत्रों जैसे प्रमुख स्रोतों से उत्सर्जन कम करना होगा जिसके लिए एक बहु-आयामी दृष्टिकोण की ज़रूरत है।