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Blog / 11 Feb 2020

(डेली न्यूज़ स्कैन - DNS हिंदी) एग्जिट पोल (Exit Poll)

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(डेली न्यूज़ स्कैन - DNS हिंदी) एग्जिट पोल (Exit Poll)


आखिर क्या होता है एग्जिट पोल?

बीते दिनों 8 फरवरी को दिल्ली में विधानसभा के चुनाव संपन्न हुए। मतदान के उपरांत न्यूज़ चैनल और सोशल मीडिया पर एग्जिट पोल ट्रेंड करने लगा। एग्जिट पोल को लेकर कुछ दलों में जहां उत्साह का माहौल है वहीं दूसरी ओर कुछ दलों में मायूसी का।

आज के DNS कार्यक्रम में हम जानेंगे कि आखिर यह एग्जिट पोल होता क्या है? क्या एग्जिट उनके अलावा भी ऐसी कोई प्रणालियां होती हैं?

और अंत में यह जानने की कोशिश करेंगे कि एग्जिट पोल की विश्वसनीयता कितनी है?

आपको बता दें चुनाव प्रक्रिया के दौरान विभिन्न एजेंसियों, न्यूज़ चैनल के द्वारा मतदाताओं से बातचीत करके विभिन्न दलों के उम्मीदवारों की जीत हार के पूर्वानुमानों के बारे में सूचनाओं को एकत्र किया जाता है। इन्हीं पूर्वानुमानों के आकलन की प्रक्रिया चुनावी सर्वे कहलाती है। इन पूर्वानुमानों के लिए कई प्रकार के सर्वे कराए जाते हैं जिसमें प्रमुख है

  1. एग्जिट पोल,
  2. ओपिनियन पोल,
  3. प्री पोल और
  4. पोस्ट पोल

एग्जिट पोल के तहत किए गए सर्वेक्षण में मतदान के दिन मतदाता से डाटा कलेक्ट किया जाता है। इसमें यह पूछा जाता है उसने किस प्रत्याशी एवं किस दल के पक्ष में अपना मतदान किया है। इस आधार पर जो नतीजे निकलते हैं उसे ही एग्जिट पोल कहते हैं। एग्जिट पोल को मतदान उपरांत ही दिखाया या प्रकाशित किया जा सकता है।

ओपिनियन पोल क्या होता है?

ओपिनियन पोल के तहत मतदान के पहले ही सर्वेक्षण किया जाता है। इस सर्वेक्षण में लोगों से यह पूछा जाता है कि वह किस पार्टी एवं किस दल का समर्थन करते हैं। इसके आधार एकत्रित डाटा को ही ओपिनियन पोल कहते हैं। अभीप्रायः ओपिनियन पोल को चुनाव से पहले दिखाया जाता है।

आपको बता दें विवादों के कारण 1999 में चुनाव आयोग ने ओपिनियन पोल और एग्जिट पोल को प्रतिबंधित कर दिया था। दरअसल ओपिनियन पोल और एग्जिट पोल के सर्वेक्षण मतदाता के वोट करने के निर्णय को प्रभावित करते थे एवं ज्यादातर पूर्वानुमान गलत भी साबित होते थे।इसके साथ ही एग्जिट पोल और ओपिनियन पोल पर पेड न्यूज़ को भी बढ़ावा देने के आरोप लगे। इसी कारण से एग्जिट पोल और ओपिनियन पोल पर प्रतिबंध लगाने की मांग व्यापक रूप से सभी दलों के द्वारा उठाई गई।

हालांकि उच्चतम न्यायालय ने एग्जिट पोल ओपिनियन पोल को प्रतिबंधित करने वाले चुनाव आयोग के इस निर्णय को निरस्त कर दिया। बढ़ते विरोध को देखते हुए 2009 में तात्कालिक सरकार के द्वारा जनप्रतिनिधित्व कानून 1951 में संशोधन करते हुए एग्जिट पोल और ओपिनियन पोल पर नियंत्रण लगाने की कोशिश की गई। इसके तहत यह प्रावधान किया गया कि जब तक अंतिम वोट नहीं डाल दिया जाता तब तक एग्जिट पोल के नतीजे को न कोई दिखा सकता है और न प्रकाशित कर सकता है।

क्या है प्री पोल और पोस्ट पोल

चुनाव की तिथियों की घोषणा के उपरांत प्री पोल के तहत विभिन्न एजेंसियों और मीडिया संस्थान कई सर्वे और पोल करवाती हैं। इसके तहत जनता के मुड एवं देश के मुड से सर्वे और पोल कराए जाते हैं। टीवी अखबारों में अक्सर ऐसे पोल आते हैं जिसमें आपसे यह पूछा जाता है कि यदि आज चुनाव हुए तो किस पार्टी को कितनी सीटें मिलेंगी और किसकी सरकार बनेगी।

वही पोस्ट पोल हमेशा मतदान के बाद किया जाता है। एग्जिट पोल में जहां मतदान के दिन मतदाता के नब्ज़ को टटोला जाता है वही पोस्ट पोल में मतदान के अगले या एक दो दिन बाद आंकड़े जुटाए जाते हैं। आपको बता दें पोस्ट पोल सर्वे एग्जिट पोल से ज्यादा सटीक होते हैं क्योंकि एग्जिट पोल में विभिन्न एजेंसियां सबसे पहले रिजल्ट दिखाने के चक्कर में प्राप्त डाटाओं का विश्लेषण ढंग से नहीं करती। वहीं दूसरी ओर पोस्ट पोल में एकत्र डाटा का ज्यादा व्यापक अध्ययन किया जाता है।

एग्जिट पोल के परिणामों की विश्वसनीयता कितनी है?

अमूमन 2004 के चुनाव को छोड़ दें तो लगभग एग्जिट पोल सफल रहे हैं। हालांकि किसी पार्टी के द्वारा प्राप्त सीटों के संदर्भ में इनके द्वारा दिया गया डाटा असली चुनाव परिणामों से काफी भिन्न रहा है।
आपको बता दें 2004 के चुनाव में एग्जिट पोल के अनुसार एनडीए को बहुमत मिलने वाला था लेकिन हुआ इसके विपरीत। वहीं दूसरी ओर 2009 के चुनाव में किसी एग्जिट पोल में कांग्रेस को 200 से ज्यादा सीटें नहीं दी लेकिन कांग्रेस को उस चुनाव में 262 सीटें मिली। इसी के साथ 2014 के चुनाव में एनडीए की जीत का तो अनुमान लगाया गया लेकिन सीटों की वास्तविक संख्या का अनुमान कोई भी एग्जिट पोल नहीं कर पाया। इसके साथ ही राज्यों में होने वाले चुनाव में एग्जिट पोल पूरी तरीके से विफल हुए हैं उदाहरण के लिए छत्तीसगढ़ चुनाव। इसी के साथ 2019 के चुनाव में भी एग्जिट पोल सीटों का स्पष्ट आकलन नहीं दे पाया था।

आपको बता दें भारत के विशाल वोटरों की संख्या की तुलना में एग्जिट पोल औरओपिनियन पोल में छोटे सैंपल साइज लिए जाते हैं। दूसरे शब्दों में कम लोगों से जानकारी जुटाई जाती है जिससे यह स्पष्ट रिजल्ट नहीं दे पाते। ओपिनियन पोल के मामले में सैंपल साइज़ अक्सर 3000 से 5000 लोगों का होता है वहीं, एग्ज़िट पोल के मामले में कई बार ये 7-8 लाख़ वोटरों का भी होता है। कई बार एग्जिट पोल में सभी 543 लोकसभा क्षेत्रों को भी शामिल नहीं किया जाता जिससे इनसे प्राप्त रिजल्ट और वास्तविक मतदान के रिजल्ट में अंतर आ जाता है।