(डेली न्यूज़ स्कैन - DNS हिंदी) दक्षिणी चीन सागर में बढ़ता विवाद (Rising Conflict in South China Sea)
हाल ही में, वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए आसियान शिखर सम्मेलन का आयोजन किया गया. आयोजन में आसियान देशों ने दक्षिण चीन सागर में चीन के आक्रामक रवैए पर कड़ी आपत्ति जताई है, और साथ ही चेतावनी भी दी है...
डीएनएस में आज हम जानेंगे दक्षिण चीन सागर से जुड़े विवादों के बारे में और साथ ही समझेंगे इससे जुड़े कई दूसरे अहम पक्षों को भी…….
एशिया के दक्षिण-पूर्व इलाके में मौजूद दक्षिण चीन सागर प्रशांत महासागर के पश्चिमी किनारे से सटा हुआ है। सिंगापुर से लेकर ताइवान की खाड़ी तक करीब 3.5 मिलियन वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैला यह सागर चीन के दक्षिण में मौजूद एक सीमांत सागर है. इसमें स्पार्टली और पार्सल जैसे महत्वपूर्ण द्वीप समूह भी शामिल हैं. इंडोनेशिया का करिमाता, मलक्का, फारमोसा जलडमरूमध्य और मलय व सुमात्रा प्रायद्वीप इसी सागर के आसपास मौजूद हैं। इसका उत्तरी इलाका चीन से सटा हुआ है, जबकि इसके दक्षिण-पूर्वी हिस्से पर ताइवान अपना मालिकाना हक जताता है। इसका पश्चिमी तट वियतनाम और कंबोडिया से, पूर्वी तट फिलीपींस से और दक्षिणी तट इंडोनेशिया के बंका और बैंतुंग द्वीप से सटा हुआ है.
इस तरह इस पूरे इलाके पर अलग-अलग देश अपना दावा करते हैं जो कि विवाद का मुख्य वजह है। चीन दक्षिण-चीन सागर के 80% हिस्से को अपना बताता है। यह एक ऐसा समुद्री इलाका है जहाँ प्राकृतिक तेल और गैस का अपार भंडार होने की संभावना है..
एक रिपोर्ट के मुताबिक इस पूरे दायरे में करीब 11 अरब बैरल प्राकृतिक गैस और तेल तथा मूंगे के पर्याप्त भंडार मौजूद हैं। मछली व्यापार में शामिल देशों के लिए भी यह पूरा क्षेत्र काफी अहम है. इसके अलावा, दक्षिण चीन सागर की लोकेशन सामरिक लिहाज से काफी महत्वपूर्ण है. यही कारण है कि चीन इस पर अपना प्रभुत्व कायम करना चाहता है..अभी हाल के अप्रैल महीने में ही, चीन ने पारसेल आइलैंड के पास वियतनाम के एक मछली पकड़ने वाले पोत को डुबो दिया था। पारसेल को वियतनाम और ताइवान दोनों अपना इलाका बताते हैं। चीन के इस कदम पर प्रतिक्रिया देते हुए वियतनाम ने कहा कि यह अंतरराष्ट्रीय कानूनों का उल्लंघन है। इतना ही नहीं, चीन ने फिलीपींस के अधिकार क्षेत्र में आने वाले हिस्से को अपने हैनान प्रांत का ज़िला घोषित कर दिया था..इस तरह आए दिन इस इलाके में कुछ ना कुछ विवाद होता रहता है.
इसीलिए आसियान शिखर सम्मेलन के दौरान इस संगठन के सदस्य देशों ने दक्षिण-पूर्व एशिया में बढ़ती असुरक्षा को लेकर चिंता जताई. सम्मेलन के दौरान वियतनाम और फिलीपींस ने चीन को आगाह किया कि कोरोना संकट के दौरान वह दक्षिण चीन सागर में खतरा पैदा करने वाली किसी भी तरह की हरकत से बाज आए...इस पूरे क्षेत्र को लेकर भारत का भी अपना एक रुख है. भारत दक्षिण चीन सागर में बिना किसी रोक-टोक के जल परिवहन का समर्थन करता है. इसके लिए यह यूनाइटेड नेशंस कन्वेंशन ऑन द लॉ ऑफ द सी, 1982’ बयासी का हवाला देता है। भारत का यह भी मानना है कि दक्षिण चीन सागर विवाद में शामिल सभी देशों को किसी भी तरह की धमकी और बल प्रयोग से बचना चाहिए, क्योंकि अगर ऐसा होता है तो उस पूरे इलाके में समीकरण और भी उलझ जाएगा जो शांति और स्थिरता के लिहाज से कतई ठीक नहीं है...इस पूरे इलाके में चीन के बढ़ते दबदबे को संतुलित करने के लिए भारत कुछ जमीनी कदम भी उठा रहा है....
भारत, वियतनाम और फिलीपींस जैसे देशों के साथ सैन्य साज़ो सामान के आयात-निर्यात को बढ़ावा दे रहा है.....साथ ही, अमेरिका के साथ मिलकर इस पूरे इलाके के लोगों की क्षमताओं में वृद्धि करने के लिए भी कोशिश कर रहा है....भारत अपनी एक्ट ईस्ट नीति के जरिए दक्षिण पूर्व एशिया में मौजूद देशों के साथ अपने संबंधों को एक नई ऊंचाई पर ले जाने की कोशिश कर रहा है.
मौजूदा वैश्विक हालत को देखते हुए दुनिया भर को कोरोना से निपटने के लिए एकजुट होने की जरूरत है, लेकिन चीन समस्या को सुलझाने के बजाय अपनी विस्तार वादी नीति के जरिए दूसरी समस्याओं को पैदा कर रहा है. ऐसे में, दक्षिण चीन सागर में कोई भी कार्यवाही अंतर्राष्ट्रीय कानून के उल्लंघन के साथ-साथ असुरक्षा और अस्थिरता को बढ़ा सकती है. इसलिए विशेषज्ञों का कहना है कि चीन पर सामरिक और आर्थिक कूटनीतिक दबाव बनाकर किसी भी तरह के विवाद को पैदा होने से रोका जाना चाहिए...