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Blog / 24 Sep 2019

(डेली न्यूज़ स्कैन - DNS हिंदी) फैंटम एफ.डी.आई (Phantom FDI)

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(डेली न्यूज़ स्कैन - DNS हिंदी) फैंटम एफ.डी.आई (Phantom FDI)


मुख्य बिंदु:

हाल ही में जारी हुई अंतरराष्ट्रीय मुद्राकोष (आईएमएफ) की एक रिपोर्ट के अनुसार ‘फैंटम' एफडीआई(प्रत्यक्ष विदेशी निवेश) में काफी वृद्धि हुई है। गौरतलब है कि अंतरराष्ट्रीय उपायों के बावजूद फैंटम एफडीआई लगातार बढ़ रहा है। एक दशक से भी कम समय में वैश्विक एफडीआई में फैंटम एफडीआई की हिस्सेदारी 30 से बढ़कर 40 प्रतिशत हो गयी है। ‘फैंटम’ एफडीआई के जरिये होने निवेश में लक्जमबर्ग, नीदरलैंड, हांगकांग, स्विट्जरलैंड, सिंगापुर और मॉरीशस जैसी दस छोटी अर्थव्यवस्थाओं की हिस्सेदारी सर्वाधिक है। रिपोर्ट तैयार करने वाले जैनिक डैमगार्ड, थॉमस एल्काजेर और नील्स जोहानसन ने कहा कि वैश्विक स्तर पर ‘फैंटम’ एफडीआई का आकार 15 हजार अरब डॉलर है, जो चीन और जर्मनी के सम्मिलित सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के बराबर है।कर चोरी को रोकने के अंतरराष्ट्रीय उपायों के बाद भी ‘फैंटम’ एफडीआई लगातार बढ़ रहा है और वास्तविक एफडीआई को पीछे छोड़ दे रहा है।

आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार, महज छह लाख आबादी वाले देश लक्जमबर्ग से अमेरिका एवं चीन जैसे देशों से भी अधिक एफडीआई दूसरे देशों में निवेश की जाती है। लक्जमबर्ग से चार हजार अरब डॉलर का एफडीआई हुआ है। रिपोर्ट के अनुसार ‘फैंटम’ एफडीआई में लक्जमबर्ग और नीदरलैंड की लगभग आधी हिस्सेदारी है। यदि इनके साथ हांगकांग, ब्रिटिश वर्जिन आइलैंड, बरमुडा, सिंगापुर, केमैन आईलैंड, स्विट्जरलैंड, आयरलैंड और मॉरीशस को सूची में जोड़ लिया जाये तो कुल ‘फैंटम’ एफडीआई में इनकी 85 प्रतिशत हिस्सेदारी हो जाएगी।

फैंटम एफडीआई होता क्या है?

कर चोरी के मकसद से बनायी गयी बिना कारोबारी गतिविधियों वाली मुखौटा कंपनियों(शेल कंपनी) के जरिए किए जाने वाले एफडीआई को फैंटम एफडीआई कहा जाता है। इसमें कर चोरी करके काले धन को टैक्स हेवेन देशों में पहुंचाया जाता है। उसके उपरांत द्विपक्षीय आर्थिक संधियों (उदाहरण के लिए डबल टैक्स एग्रीमैंट) का फायदा उठाते हुए पुनः उसे वैध मनी बनाकर इन देशों में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश के रूप में निवेशित कर दिया जाता है। यहां मुखौटा कंपनी से आशय ऐसी कंपनियों से होता है जिनका अस्तित्व मात्र कागजों पर होता है।

फैंटम एफडीआई काम कैसे करता है?

भारत जैसे विकासशील देशों में कंपनियां करों की चोरी करती हैं। इसमें वित्तीय संरचना की खामियों का लाभ उठाते हुए काले धन को वैध धन में बदल दिया जाता है। इसमें मनी लॉन्ड्रिंगऔर राउंड ट्रिपिंग जैसी अवैध वित्तीय गतिविधियों का सहारा लिया जाता है। दरअसल मनी लॉन्ड्रिंग अवैध रूप से प्राप्त धनराशि को छुपाने का एक तरीका होता है। मनी लॉन्ड्रिंग के माध्यम से धन ऐसे कामों या निवेश में लगाया जाता है कि जाँच करने वाली एजेंसियों को भी धन के मुख्य स्रोत का पता लगाने में काफी मशक्कत करनी पड़े। इस प्रक्रिया में सबसे पहले कंपनी के अवैध तरीके से कमाए गए धन को वित्तीय संस्थानों के माध्यम से छोटे-छोटे टुकड़ों में जमा कर दिया जाता है।पुनः इस काले धन को विदेशों में हस्तांतरित किया जाता है। इसके उपरांत धीरे-धीरे करके अवैध धन को कई देशों में घुमाया जाता है। जिससे जांच एजेंसियां आसानी से इस काले धन पर नजर ना रख सके। उसके उपरांत अवैध धन को किसी टैक्स हेवेन कंट्री में बॉन्ड, स्टॉक या बैंक खातों में निवेशित कर दिया जाता है। पुनः यहां पर शेल कंपनियां(मुखौटा कंपनियां) स्थापित की जाती है जिनका अस्तित्व केवल कागजों पर होता है। यहां पर इन कंपनियों के खातों में हेर-फेर करते हुए इन कंपनियों को काफी लाभप्रद स्थिति में दिखाया जाता है। पुनः यहां से शेल कंपनियों के द्वारा काले धन को उसी देश में विदेशी पोर्टफोलियो निवेश और प्रत्यक्ष विदेशी निवेश में निवेशित कर दिया जाता है जहां से अवैध धन का सृजन हुआ था।

ऐसी शेल कंपनियों की स्थापना करके फैंटम एफडीआई का निवेश करने में टैक्स हेवन कंट्री काफी महत्वपूर्ण माने जाते हैं। दरअसल टैक्स हैवन उस देश को कहा जाता है जो विदेशी व्यक्तियों या कारोबारों पर बिल्कुल नाम मात्र का कर या कोई कर नहीं लेते। दूसरे शब्दों में इन देशों में इनकम(आय) पर किसी तरह का कोई टैक्स नहीं लगता। इसके अलावा इन देशों में टैक्स संबंधी इन लाभों को उठाने के लिए ना ही वहां की नागरिकता जरूरी होती है और ना ही ऑपरेट की जाने वाली कंपनी का वहां स्थित होना। अगर हम टैक्स हेवेन देश पनामा को देखें तो वहां के टैक्स सिस्टम के तहत आने वाले टैरेट्रियल सिस्टम के मुताबिक, रेसिंडेंट और नॉन रेसिडेंट कंपनियों से तभी टैक्स वसूला जाता है, जब इनकम देश में ही जेनरेट हुई हो। फॉरेन इन्वेस्टमेंट पर पनामा में कोई टैक्स नहीं लगता। अगर हम टैक्स हैवन कंट्री पर नजर डालें तो इनमें स्विटजरलैंड, हॉन्गकॉन्ग, मॉरीशस, मोनाको, पनामा, बहामास, बरमूडा, ब्रिटिश वर्जिन आइलैंड्स, बेलीज, कैमेन आइलैंड, कुक आइलैंड, जैसे देश आते हैं। अगर हम भारत के संदर्भ में देखें तो हमारे यहां भी एफडीआई के प्रमुख स्रोत के रूप में सिंगापुर मारीशस जैसे देश प्रमुख है। मारीशस के साथ भारत का डबल टैक्स एग्रीमेंट भी फैंटम एफडीआई में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। दरअसल डबल टैक्स एग्रीमेंट का उद्देश्य किसी कंपनी पर दोहरे कराधान के भार को समाप्त करना होता है। उदाहरण के लिए अगर कोई कंपनी भारतीय मूल की है एवं वह मारीशस में भी अपनी गतिविधियों का संचालन कर रही है तो उसे भारत एवं मारीशस दोनों जगह पर कर देना पड़ता था। इससे कंपनियों पर दोहरा भार पड़ता था एवं उनकी प्रतिस्पर्धी क्षमता घट जाती थी। इसी से बचने के लिए मारीशस एवं अन्य देशों के साथ भारत ने डबल टैक्स एग्रीमेंट कर रखा है। इसके तहत यदि कोई कंपनी भारतीय मूल की है तो उसे केवल भारत में टैक्स देना होगा और यदि कोई कंपनी मॉरीशस मूल की है तो उसे केवल मारीशस में टैक्स देना होगा। इस प्रावधान का कंपनियों के द्वारा फायदा उठाया जाता है। भारत से अवैध धन को मनी लॉन्ड्रिंग के जरिए मारीशस में निवेश किया जाता है एवं पुनः वहां से राउंड ट्रिपिंग के द्वारा वैध मुद्रा के रूप में भारत में फैंटम एफडीआई और एफएफआई(FFI) के रूप में निवेश कर दिया जाता है।

फैंटम एफडीआई का क्या प्रभाव पड़ता है?

इसका सबसे ज्यादा दुष्प्रभाव अर्थव्यवस्था पर पड़ता है। दरअसल इससे देश की अर्थव्यवस्था में ब्याज दर, मुद्रा विनियम दर तथा मुद्रास्फीति बढ़ती है। समाज में भ्रष्टाचार को प्रोत्साहन मिलता है। विदेशी निवेश के सँदर्भ में राउण्ड ट्रिपिंग की संभावना बढ़ जाती है अर्थात् काले धन को विदेशों में अर्जित करके वापस वैध धन में निवेश करना सहज हो जाता है, जिसका नकारात्मक प्रभाव अर्थव्यवस्था पर पड़ता है। इससे सरकार के कर राजस्व में कमी आती है। वस्तुतः सरकार को डबल टैक्स एग्रीमेंट प्रावधानों से दोहरी हानि होती है। इसे हम ऐसे समझ सकते हैं कि ‘एक ओर कंपनी कर चोरी करके अवैध मुद्रा सृजन करती हैं वहीं दूसरी ओर फैंटम एफडीआई के रूप में जब इसे अर्थव्यवस्था में वैध मुद्रा के रूप में प्रवेश कराती हैं तो डबल टैक्स एग्रीमेंट के कारण पुनः सरकार को कर देने के दायित्वों से बच जाती हैं।

फैंटम एफडीआई को नियंत्रित कैसे किया जाए?

विकासशील देशों में कर संबंधी कानूनों की जटिलता को दूर करते हुए ऐसी संरचना बनाई जाए जिससे लोग कर देने हेतु प्रोत्साहित हो। मनी लॉन्ड्रिंग जैसी प्रक्रिया को रोकने के लिए इलेक्ट्रॉनिक माध्यम की भुगतान प्रणाली का विस्तार किया जाए। वित्तीय धोखाधड़ी से जुड़े मामलों की त्वरित सुनवाई एवं कठोर दंड का प्रावधान किया जाए। वैश्विक स्तर पर वित्तीय आसूचना तंत्र का और विस्तार किया जाये-उदाहरण के लिए फाइनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स (FATF)। गौरतलब है कि भारत 2010 में एफडीए का 34 वां सदस्य बना। इसके साथ ही टैक्स हेवेन देशों पर भी वित्तीय सूचनाएं उपलब्ध करवाने का दबाव डाला जाए। भारत के संदर्भ में ग़ार(General Anti-Avoidance Rules-GAAR) को लागू किया जाए।