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Blog / 30 Jul 2019

(डेली न्यूज़ स्कैन - DNS हिंदी) राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग (एनएमसी) विधेयक 2019 (National Medical Commission (NMC) Bill 2019)

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(डेली न्यूज़ स्कैन - DNS हिंदी) राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग (एनएमसी) विधेयक 2019 (National Medical Commission (NMC) Bill 2019)


मुख्य बिंदु:

बीते दिनों लोकसभा में National Medical Commission Bill 2019 पेश किया गया। इस विधेयक का मक़सद 63 साल पुराने भारतीय आयुर्विज्ञान परिषद (MCI) को ख़ारिज कर एक नई चिकित्सा शिक्षा प्रणाली मुहैया कराने की बात कही गई है जिसमें पर्याप्त और उच्च गुणवत्ता वाले चिकित्सा पेशेवरों की उपलब्धता, चिकित्सा पेशेवरों के ज़रिए आधुनिक चिकित्सा अनुसंधान को अपनाना, चिकित्सा संस्थानों का समय - समय पर मूल्यांकन करना, और एक प्रभावी शिकायत निवारण तंत्र तैयार करने जैसे फैसले शामिल है।

ग़ौरतलब है की विधेयक के संसद से पारित होने के बाद देश में मेडिकल शिक्षा को सुचारू रूप से चलाने के लिए MCI की जगह राष्ट्रीय मेडिकल आयोग MNC के गठन का रास्ता साफ हो जाएगा। इससे पहले ये विधेयक पिछले साल दिसंबर में लोकसभा से पास हो चुका है, लेकिन राज्यसभा से पास नहीं होने के कारण ये विधेयक निरस्त हो गया था।

DNS में आज हम आपको National Medical Commission Bill के बारे में बताएंगे। साथ ही समझेंगे कि आख़िर भारतीय चिकित्सा परिषद को हटा कर राष्ट्रीय मेडिकल आयोग विधेयक लाने की ज़रूरत क्यों पड़ी।

National Medical Commission Bill यानी राष्ट्रीय मेडिकल आयोग विधेयक...

मौजूदा सरकार के मुताबिक़ ये विधेयक मेडिकल की शिक्षा को एक समान बनाने की दिशा में काम करेगा। विधेयक के तहत एक राष्ट्रीय मेडिकल कमीशन के गठन की भी बात कही गई है। इसके अलावा एमबीबीएस और पीजी कोर्सेज में 50 फीसदी सीटों के लिए फीस के नियंत्रण और मेडिकल एड्वाइज़री काउन्सिल बनाने का भी प्रस्ताव विधेयक में शामिल है।

विधेयक में मेडिकल की शिक्षा को एक समान बनाने के लिए दाख़िले और मेडिकल प्रैक्टिस के लिए एक समान परीक्षा का प्रस्ताव रखा गया है। इस विधेयक के तहत भारत में मौजूद सभी मेडिकल कॉलेजों में दाख़िले के लिए सिर्फ एक ही परीक्षा देनी होगी यानी अब एम्स जैसे संस्थानों में भी छात्रों का प्रवेश नीट परीक्षा के ही ज़रूए ही किया जायेगा। इसके अलावा इस विधेयक में ये भी प्रावधान है कि मेडिकल के पोस्ट ग्रेजुएट कोर्स में दाख़िले के लिए अब अलग से परीक्षा नहीं देनी होगी। पोस्ट ग्रेजुएट कोर्स में एडमिशन के का आधार अब MBBS कर रहे छात्रों के आख़िरी साल के रिजल्ट पर निर्भर करेगा। विधेयक में इस बात का भी ज़िक्र है कि MBBS कर रहे छात्रों के आख़िरी साल की परीक्षा देश भर में एक साथ और एक जैसी आयोजित की जाएगी जिसे नेशनल एक्जिट टेस्ट यानी नेक्स्ट का नाम दिया गया है।

पोस्ट ग्रेजुएट कोर्स में दाख़िले के लिए प्रस्तावित नेक्स्ट परीक्षा एमबीबीएस डाक्टरों की प्रैक्टिस के भी रस्ते को आसान बनाएगी। इस परीक्षा के आधार पर ही मेडिकल की पढ़ाई कर रहे छात्रों को प्रैक्टिस लाइसेंस दिया जाएगा। जबकि इसके पहले एमबीबीएस डाक्टरों को प्रैक्टिस के लिए मेडिकल कौंसिल से मंज़ूरी लेनी पड़ती थी। नेक्स्ट परीक्षा के ज़रिए ही विदेशों से मेडिकल की पढ़ाई करने वाले छात्रों को देश में प्रैक्टिस करने की इजाज़त मिलेगी। विदेशों से मेडिकल की पढ़ाई करने वाले छात्रों को भी देश में MBBS की पढ़ाई कर रहे छात्रों के साथ ही परीक्षा देनी होगी जिसके बाद वो भी पोस्ट ग्रेजुएशन कोर्स में दाखिला या प्रैक्टिस कर सकेंगे।

राष्ट्रीय मेडिकल कमीशन के बारे में बताएं तो बिल राष्ट्रीय भारतीय चिकित्सा प्रणाली आयोग की स्थापना का प्रावधान करता है। राष्ट्रीय भारतीय चिकित्सा प्रणाली आयोग में कुल 29 सदस्य होंगे जिन्हें केंद्र सरकार द्वारा नियुक्त किया जाएगा। इसके अलावा एक सर्च कमिटी चेयरपर्सन, पार्ट टाइम सदस्यों और NCISM के अंतर्गत गठित चार स्वायत्त बोर्ड्स के प्रेज़िडेंट्स के नामों का सुझाव केंद्र सरकार को देगी। सर्च कमिटी में कुल पांच सदस्य होंगे, जिनमें कैबिनेट सेक्रेटरी और केंद्र सरकार द्वारा नामित तीन विशेषज्ञ शामिल होंगे। ग़ौरतलब है कि इन अधिकारियों का कार्यकाल अधिकतम चार वर्ष होगा। इसके अलावा राष्ट्रीय मेडिकल कमीशन बिल के पारित होने के तीन वर्षों के भीतर राज्य सरकारों द्वारा भारतीय चिकित्सा प्रणाली की राज्य आयुर्विज्ञान परिषदों की स्थापना की जाएगी।

विधेयक में आयोग को सलाह देने और सिफारिशें करने के लिए एक मेडिकल एड्वाइज़री काउन्सिल के गठन का भी प्रस्ताव है। मेडिकल एड्वाइज़री काउन्सिल यानी आयुर्विज्ञान सलाहकार परिषद के बारे में आपको बताएं तो विधेयक का सबसे अहम् हिस्सा है। इसके ज़रिए राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों द्वारा MNC से जुड़े अपने विचारों और समस्याओं को साझा कर सकेंगे। साथ ही सभी के लिये समान चिकित्सकीय सुविधा मुहैया कराने में एक सलाहकारी भूमिका का निभाएगा।

लम्बे वक़्त से अधर में लटके इस बिल के एक बार फिर से लोकसभा में पेश होने के बाद इसके ख़िलाफ़ विरोध प्रदर्शन शुरू हो गए हैं। 2016 से ही इस विधेयक के का विरोध कर रहे इंडियन मेडिकल एसोसिएशन ने इस बिल को ‘गरीब विरोधी’ करार दिया है। IMA का कहना है कि इस विधेयक में पहले वाले विधेयक से सिर्फ कुछ मामूली बदलाव ही किए हैं इसलिए हम एक बार फिर से इसका विरोध कर रहे हैं। इस बिल का विरोध का विरोध कर रहे लोगों को इस बिल के स्वरूप, पोस्ट ग्रेजुएशन एग्जाम के ज़रिए सिर्फ सर्वश्रेष्ठ छात्रों का चयन, और निजी मेडिकल कॉलेजों में 50 फीसदी सीटों पर फीस नियंत्रण से परेशानी है जिसके कारण वो इस बिल का विरोध कर रहे हैं। इसके अलावा इस विधेयक में शामिल ब्रिज कोर्स का मसला भी प्रमुख चुनौती है। बिल के क्लॉज़ 49 के तहत एक ब्रिज कोर्स चलाया जायेगा जिसे करके आयुर्वेद और होम्योपेथी के डॉक्टर भी प्राथमिक स्तर पर एलोपेथी इलाज कर पाएंगे।

आइये जानते हैं कि भारतीय चिकित्सा परिषद को हटा कर राष्ट्रीय मेडिकल आयोग विधेयक क्यों लाया गया है।

1956 से देश में मेडिकल शिक्षा की निगरानी करने वाले MCI को हटाने का फैसला यूँ ही नहीं लिया गया। MCI में फैले भ्रष्टाचार, उसके ख़िलाफ़ सुप्रीम कोर्ट की कड़ी टिप्पणियों ने MCI को निरस्त करने पर मज़बूर किया है। MCI की कार्यशैली से नाराज़ सुप्रीम कोर्ट ने 2016 में उसके कामकाज की निगरानी के लिए 6 सदस्यीय कमेटी का गठन का फैसला सुनाया था। लेकिन इसके बाद भी एमसीआई पर कोई फर्क नहीं पड़ा और निगरानी समिति के सुझावों को उसने कोई तवज्जो नहीं दी। इसके बाद निगरानी समिति के सदस्यों ने भी इस्तीफा दे दिया और सरकार को बीओजी का गठन करना पड़ा था। ग़ौरतलब है कि मौजूदा वक़्त में सरकार भारतीय चिकित्सा परिषद MCI का कामकाज 12 सदस्यीय बोर्ड ऑफ गवर्नर्स यानी BOG देख रेख में चल रहा है।

स्वास्थ्य मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी के मुताबिक़ इस बार ये विधेयक दोनों सदनों से पारित हो जायेगा जिसके बाद सालों से देश में मेडिकल शिक्षा के विकास और विस्तार के रास्ते में रूकावट की वजहें ख़त्म की जा सकेंगी। जानकारों का कहना है कि MCI के भंग किये जाने के बाद मेडिकल शिक्षा में सुधार का रास्ता साफ हुआ है। पहली बार एक साल में ढाई हजार से ज्यादा MBBS की सीटें बढ़ाई जा सकी हैं। इसके अलावा सरकार ने 75 जिलों में नए मेडिकल कालेज खोलने की घोषणा की है। मौजूदा वक़्त में सरकार की कोशिश देश में प्रशिक्षित डॉक्टरों की कमी को दूर करना है ताकि लोगों को सस्ती और सुलभ स्वास्थ्य सेवाएं उपलब्ध करायी जा सकें।

दरअसल स्वास्थ्य का मतलब किसी व्यक्ति के बीमारियों और चोट जैसी समस्याओं से मुक्त रहना है। इसके अलावा कुछ और भी कारण हैं जिनके चलते हमारा स्वास्थ्य प्रभावित होता है। इन कारणों में स्वच्छ पानी, प्रदूषण-मुक्त वातावरण और भरपेट भोजन न मिलने जैसे कई महत्वपूर्ण कारण शुमार हैं। WHO के मुताबिक़ भी स्वास्थ्य केवल बीमारी या दुःख का होना ही नहीं है बल्कि स्वास्थ्य के लिए शारीरिक, मानसिक और सामाजिक तंदरुस्ती भी पूरी तरह से ज़रूरी है।

देश में मौजूद स्वास्थ्य संकट की मुख्य वजहों में बढ़ती जनसंख्या, प्रदूषण, ग़रीबी और खाद्य असुरक्षा जैसे महत्वपूर्ण कारक ज़िम्मेदार हैं। इसके अलावा डॉक्टरों और अस्पतालों की कमी, स्वास्थ्य पर कम खर्च और स्वास्थ्य सेवाओं के निजीकरण होने से स्वास्थ्य सेवाएं काफी महंगी हुई है। केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय की ओर से जारी एक रिपोर्ट के मुताबिक़ भारत में औसतन एक डॉक्टर पर क़रीब 11 हज़ार की जनसंख्या निर्भर हैं। जबकि WHO के तय मानकों के मुताबिक़ 1 डॉक्टर पर सिर्फ 1 हज़ार जनसंख्या होनी चाहिए।

भारत में नागरिकों को स्वास्थ्य का अधिकार भी संविधान की धारा 21 के तहत मौलिक अधिकार के रूप में मिला हुआ है। सुप्रीम कोर्ट ने अपने कई फैसलों में स्वास्थ्य के अधिकार को जीवन का अधिकार बताया है। इसके अलावा संविधान का अनुच्छेद 47 भी राज्यों पर सार्वजनिक स्वास्थ्य के सुधार, पोषण स्तर में बढ़ावा और जीवन स्तर को बेहतर बनाने की ज़िम्मेदारी देता है।

स्‍वास्‍थ्‍य मंत्री के मुताबिक़ स्‍वास्‍थ्‍य सेवाओं पर सार्वजनिक खर्च में लगातार बढ़ोत्तरी हो रही है। राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति 2017 के तहत साल 2025 तक स्‍वास्‍थ्‍य सेवाओं पर होने वाले खर्च को GDP का ढाई प्रतिशत तक बढाने का लक्ष्‍य तय किया है। इसके अलावा देश के हर क्षेत्र में डॉक्टरों की उपलब्धता सुनिश्चित करने का अब समय आ गया है। विशेषज्ञों का भी कहना है कि पुराणी व्यवस्था से आगे बढ़ने के लिए संरचना में बदलाव ज़रूरी है। मौजूदा वक़्त में यदि क़ानून द्वारा व्यवस्था नहीं बदली जाती है तो WHO के मानकों के आधार पर तय लक्ष्यों को हांसिल कर पाना भारत के लिए मुश्किल होगा। इसलिए अब समय आ गया है कि देश में डॉक्टरों की संख्या, बेहतर प्रशिक्षण और हर क्षेत्र में उनकी उपलब्धता को जल्द से जल्द सुनिश्चित किया जाए।