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Blog / 22 Jul 2019

(डेली न्यूज़ स्कैन - DNS हिंदी) कुलभूषण जाधव और अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय - आईसीजे (Kulbhushan Jadhav and International Court of Justice - ICJ)

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(डेली न्यूज़ स्कैन - DNS हिंदी) कुलभूषण जाधव और अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय - आईसीजे (Kulbhushan Jadhav and International Court of Justice - ICJ)


मुख्य बिंदु:

17 जुलाई को कुलभूषण जाधव मामले में आया अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय का फैसला भारत के लिए काफी राहत भरा है। जासूसी के आरोपों में पाकिस्तान की जेल में बंद भारतीय नागरिक कुलभूषण जाधव के मामले अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय ने पाकिस्तान को पुनर्विचार करने को कहा है। इसके अलावा अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय ने कुलभूषण जाधव को काउन्सलर एक्सेस देने की भी बात कही है। अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय ने ये फैसला वियना कन्वेंशन के आर्टिकल 36 1B को पालन नहीं करने की दिशा में दिया है। ग़ौरतलब है कि 16 सदस्यीय पीठ द्वारा सुनाए गए इस फैसले में कुल 15 जजों ने एकमत समर्थन से ये फैसला सुनाया है।

DNS में आज हम आपको कुलभूषण जाधव मामले के बारे में बताएंगे साथ ही समझेंगे इससे जुड़े वियना कन्वेंशन और अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय की भूमिका के बारे में...

पाकिस्तान ने कुलभूषण जाधव को 3 मार्च 2016 को गिरफ़्तार किया था। पाकिस्तान के मुताबिक़ कुलभूषण जाधव को बलूचिस्तान प्रान्त से गिरफ़्तार किया गया था जबकि भारत का दावा शुरू से ही ये रहा है की कुलभूषण जाधव को ईरान से अगवा किया गया जहां उनका निजी करोबार था। 3 मार्च 2016 को गिरफ़्तार किए गए कुलभूषण जाधव की जानकारी पाकिस्तान ने भारत को 25 मार्च 2016 को दी थी। इस जानकारी के बाद भारत ने 29 मार्च 2016 को काउन्सलर एक्सेस की मांग की जिसे पाकिस्तान ने ठुकरा दिया। अप्रैल 2017 तक आते - आते पाकिस्तान की मिलिटरी कोर्ट ने कुलभूषण जाधव को मौत की सजा सुना दी जिसके ख़िलाफ़ भारत ने मई 2017 में अंतरराष्ट्रीय न्यायालय में अपील की थी। अन्तर्राष्ट्रीय न्यायालय में जाने से पहले भारत ने ये मसला म्यूच्यूअल लीगल असिस्टेंस ट्रीटी के ज़रिए भी हल करने की कोशिश की थी। इस सन्दर्भ में भारत ने कुल क़रीब 20 बार पाकिस्तान से आग्रह किया था लेकिन पकिस्तान ने कोई जवाब नहीं दिया। इसके बाद भारत ने अन्तर्राष्ट्रीय न्यायालय में ये मामला पाकिस्तान द्वारा वियना कन्वेंशन के आर्टिकल 36 का उल्लंघन करने की दलील देते हुए उठाया था।

वियना कन्वेंशन के बारे में बताएं तो साल 1963 में संयुक्त राष्ट्र संघ ने काउंसलर संबंधों पर एक अंतरराष्ट्रीय संधि का प्रावधान किया। इस संधि को ‘वियना कन्वेंशन ऑन कांसुलर रिलेशंस’के नाम से जाना जाता है, जिसे 189 देशों की मंज़ूरी मिली हुई है। इसका मक़सद आज़ाद देशों के बीच काउंसलर के संबंधों का एक खाका तैयार करना है। इस कन्वेंशन के आर्टिकल 36 के तहत अगर किसी विदेशी नागरिक को कोई देश अपनी सीमा के भीतर गिरफ्तार करता है तो संबंधित देश के दूतावास को बिना किसी देरी के तुरंत इसकी सूचना देनी पड़ेगी। हालाँकि पाकिस्तान ने ऐसा कुछ नहीं किया जिसके तहत भारत ने ये मसला अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय में उठाया है।

अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय के बारे में बताएं तो संयुक्त राष्ट्र का महत्वपूर्ण अंग है। संयुक्त राष्ट्र चार्टर 92 के मुताबिक़ ये संयुक्त राष्ट्र का मुख्य न्यायिक अंग भी है। इसकी स्थापना संयुक्त राष्ट्र चार्टर द्वारा 1945 में की गई थी और इसने अप्रैल 1946 में शुरू हुआ था। अंतरर्राष्ट्रीय न्यायालय की न्याय प्रक्रिया अंतरर्राष्ट्रीय न्यायालय नियमावली ,1978 के तहत चलती है जिसे सितम्बर, 2005 में संसोधित भी किया गया था।

अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय एक तरीके से दुनिया भर के न्यायालय के रूप में काम करता है। संयुक्त राष्ट्र चार्टर के मुताबिक़ इसके सभी 193 सदस्य देश इस न्यायालय से न्याय पाने का अधिकार रखते हैं। इसके अलावा ऐसे देश भी अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय में न्याय की गुहार लगा सकते हैं जो संयुक्त राष्ट्र संघ के सदस्य नहीं है।

अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय के अधिकार क्षेत्र में वो सभी मामले आते हैं जो संयुक्त राष्ट्र या अंतर्राष्ट्रीय संधियों में शामिल होते है। अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय का मुख्य काम क़ानूनी विवादों का निपटारा करना है। दो पक्षों के बीच होने वाले विवाद पर अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय अंतर्राष्ट्रीय क़ानून के हिसाब से फैसला लेता है और संयुक्त राष्ट्र की इकाइयों के अनुरोध पर सलाह देता है।

संयुक्त राष्ट्र चार्टर के अनुछेद 94 के मुताबिक़ संयुक्त राष्ट्र के सदस्य देश अदालत के उस फैसले को मानना होता है जिसके वो पक्षकार हैं। साथ ही अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय का निर्णय एक तरीके से आख़िरी होता है और इस पर दोबारा अपील नहीं की जा सकती है, हालाँकि कुछ मामलों में पुनर्विचार की संभावना ज़रूर रहती है।

न्यायाधीशों के नियुक्ति और उन्हें हटाने की बात करें तो इनकी नियुक्ति निर्वाचन द्वारा होती है, जबकि इन्हें हटाने का निर्णय न्यायाधीशों की सर्वसम्मत के ज़रिए लिया जाता है। अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय में न्यायाधीशों का निर्वाचन महासभा और सुरक्षा परिषद दवरा मिलकर किया जाता है।

न्यायाधीशों की नियुक्ति उनकी राष्ट्रीयता के आधार पर न होकर बेहतर नैतिक चरित्र, योग्यता और अंतर्राष्ट्रीय कानूनों पर उनकी समझ के आधार पर होती है। कोई भी जज नियुक्त होने के बाद 9 साल तक की समयावधि के लिए अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय में जज बना रहता है। इसके अलावा किसी भी देश के दो न्यायाधीश अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय में नहीं हो सकते हैं और न ही ये न्यायाधीश अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय में जज होने के दौरान किसी और पद पर रह सकते हैं। साथ ही अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय के न्यायाधीश को किसी और पद पर बने रहना की मनाही होती है।

अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय के प्रशासनिक व्यय का भार संयुक्त राष्ट्र संघ वहन करता है। नीदरलैंड के हेग में मौजूद अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय की दो आधिकारिक भाषाएँ हैं जिनमें अंग्रेजी और फ्रेंच शामिल हैं। अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय में न्यायाधीशों की कुल संख्या 15 है, जबकि इसमें 9 जज होने अनिवार्य होते हैं।

भारत अंतरराष्‍ट्रीय न्यायालय का सदस्य राष्ट्र है। मौजूदा वक़्त में भारत अंतरराष्‍ट्रीय न्यायालय एक महत्वपूर्ण हैसियत रखता है। भारत के जस्टिस दलवीर भंडारी का मौजूदा वक़्त में दूसरी बार अतंराष्ट्रीय अदालत के जज बने है। इसके अलावा भारत के जस्टिस दलवीर भंडारी का दूसरी बार अतंराष्ट्रीय अदालत के जज बनना अंतराष्ट्रीय राजनीति में भारत की स्थिति को और मज़बूत बना देता है।

जानकरों का कहना है अगर पाकिस्तान अंतरराष्‍ट्रीय न्यायालय के इस फैसले को भी नहीं मानता है तो भारत इसको लेकर एक बार फिर से अंतरराष्‍ट्रीय न्यायालय में गुहार लगाएगा। इसके अलावा सुरक्षा परिषद् जैसे भी विकल्प भी भारत के सामने खुले हुए हैं।