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Blog / 13 Jul 2019

(डेली न्यूज़ स्कैन - DNS हिंदी) जापानी इंसेफेलाइटिस (Japanese Encephalitis)

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(डेली न्यूज़ स्कैन - DNS हिंदी) जापानी इंसेफेलाइटिस (Japanese Encephalitis)


मुख्य बिंदु:

जापानी इंसेफ़ेलाइटिस टीका इन दिनों असम में मुश्किल का सबब बना हुआ है। संक्रमण काल से गुजर रहे असम में जापानी इंसेफ़ेलाइटिस के क़रीब 200 से अधिक मामले सामने आए हैं जिनमें से अब तक क़रीब 50 से ज़्यादा लोगों की मौत भी हो गई है। असम में जापानी इंसेफ़ेलाइटिस का असर सबसे ज़्यादा ऊपरी असम के हिस्से में है जो दक्षिण पूर्व एशिया की सीमा के सटे हुए है। बीते 30 जून को केंद्रीय स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्री डॉ. हर्षवर्धन ने असम में तेज़ी से फ़ैल रहे जापानी इंसेफेलाइटिस का जायज़ा लेने के लिए एक केंद्रीय दल भेजा था। इसके अलावा मौजूदा हालात को देखते हुए राज्य के स्वास्थ्य विभाग ने भी सभी डॉक्टरों और हेल्थ सेक्टर के दूसरे कर्मचारियों की छुट्टियां को रद्द करने का नोटिफिकेशन जारी किया है।

DNS में आज हम आपको जापानी इंसेफ़ेलाइटिस के बारे में बताएंगे। साथ ही समझेंगे इससे जुड़े कुछ और भी ज़रूरी पहलुओं के बारे में ...

WHO के मुताबिक़ साउथ ईस्ट एशिया और वेस्टर्न पैसिफिक रीजन की लगभग 3 अरब आबादी जापानी इंसेफेलाइटिस की चपेट में है। इसके अलावा हर साल दुनिया भर में क़रीब 68 हज़ार से अधिक मामले जापानी इंसेफेलाइटिस के दर्ज़ किए जाते हैं जिनमे लगभग 13 - 20 हज़ार के मामले जानलेवा हो सकते हैं।

असम भी लम्बे वक़्त से जापानी इंसेफ़ेलाइटिस का शिकार रहा है। असम में जापानी इंसेफेलाइटिस के फैलने की मुख्य वजह में जंगली बगुले और घरों में पीले जाने वाले सूअरों को ज़िम्मेदार माना जाता है। दरअसल बारिश के मौसम में कुछ जंगली पक्षी असम के इलाकों में पहुँचते हैं और जब इन पक्षियों को मच्छर काटते हैं तो वो इससे संक्रमित हो जाते है। इसके बाद यही मच्छर असम के ग्रामीण इलाकों में पाले जाने वाले सूअर को काटते हैं जिससे वो भी संक्रमित हो जाते हैं और इनका सीधा असर इंसानों पर पड़ता है। इसके अलावा असम में पानी के काफी अधिक स्रोत होने के नाते यहां जापानी इंसेफ़ेलाइटिस को फ़ैलाने वाले क्यूलेक्स प्रजाति के मच्छर भी काफी ज़्यादा होते हैं जो इस पूरी प्रक्रिया को आसान बनाते हैं।

सरकारी आंकड़ों की माने तो असम में जापानी इंसेफ़िलाइटिस से साल 2013 में क़रीब 134, 2014 में 165 और 2015 में लगभग 135 लोगों की मौत हुई थी। इसके अलावा असम में आगे के सालों में भी जापानी इंसेफ़िलाइटिस से मारे जाने वाले लोगों की संख्या कम नही रही है। एक ओर जहां 2016 और 2017 में भी जापानी इंसेफ़िलाइटिस के चलते कुल लगभग 180 लोगों की मौत हुई थी तो वहीं पिछले साल भी असम में क़रीब 94 लोग जापानी इंसेफ़ेलाइटिस का शिकार हुए थे।

केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने असम में जापानी इंसेफ़ेलाइटिस की रोकथाम और नियंत्रण के लिए कुछ क़दम उठाए हैं। इन क़दमों में असम के सभी ज़िलों को जेई टीकाकरण अभियान यानी 1-15 वर्ष की आयु वाले बच्चों को शामिल किया गया है। असम के दस उच्च स्थानिक ज़िलों को JE की रोकथाम और नियंत्रण के लिए बहुपक्षीय कार्यनीति के तहत शामिल किया गया है। इन जिलों को वयस्क जेई टीकाकरण अभियान के तहत कवर किया गया है। 10 उच्च प्रकोप वाले ज़िलों में से 7 बाल चिकित्सा ICU की स्थापना के लिए धनराशि मुहैया की गई है। जेई की जांच के लिए, अब तक 28 प्रहरी निगरानी अस्पतालों की पहचान की गई है और स्‍वास्‍थ्‍य एवं परिवार कल्‍याण मंत्रालय राज्य को नि:शुल्क नैदानिक किट प्रदान कर रहा है। इसके अलावा केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने जेई के दिव्‍यांग रोगियों के पुनर्वास के लिए, डिब्रूगढ़ मेडिकल कॉलेज और गुवाहाटी मेडिकल कॉलेज में 2 भौतिक चिकित्सा और पुनर्वास PMR विभागों को मज़बूत करने के लिए धनराशि दी गई है।

दरअसल जापानी इन्सेफेलाइटिस यानी जेई एक विषाणुजनित बीमारी है जिसे दिमाग़ी बुखार के रूप में देखा जा सकता है। WHO के मुताबिक़, इंसेफेलाइटिस का मामला सबसे पहले 1871 में जापान में सामने आया था और इसी कारण इसे जापानी इंसेफेलाइटिस या आम बोलचाल की भाषा में जापानी बुखार भी कहा जाता है।

जापानी इन्सेफेलाइटिस फलैवी वायरस की वजह से होता हैं, जिससे मनुष्य के मस्तिष्क में सूजन पैदा हो जाती है। मच्छरों की वजह से फ़ैलने वाला ये वायरस डेंगी, पीला बुख़ार, और पश्चिमी नील वायरस की प्रजाति का है। जापानी इन्सेफेलाइटिस अक्सर ज़्यादा गंदगी वाली जगहों पर पनपता है। जंगली पक्षियों और घरेलू सूअरों के रक्त परिसंचरण तंत्र में परजीवी के रूप में पाए जाने वाले इस रोग के वायरस क्यूलेक्स प्रजाति के मच्छर के ज़रिए फैलते हैं। क्यूलेक्स प्रजाति के मच्छरों में क्यूलेक्स ट्रिटीनियोरिंकस और क्यूलेक्स विश्नुई जैसे मच्छर जापानी इन्सेफेलाइटिस के लिए मुख्य रूप से ज़िम्मेदार होते हैं। क्यूलेक्स प्रजाति के ये दोनों मच्छर धान के खेतों और जलीय वनस्पतियों के बड़े जल निकायों में पाए जाते हैं और इन्हीं मच्छरों के काटने से ही ये विषाणु जानवरों और मनुष्यों में फैलता है। मच्छरों के काटने के बाद इसके लक्षण 5 - 15 दिन के भीतर दिखने शुरू हो जाते हैं।

जापानी इन्सेफेलाइटिस के लक्षणों में तेज़ बुखार, सिरदर्द, कमज़ोरी, जकड़न, पेट दर्द, और कोमा तक में जाने का ख़तरा रहता है। इसके अलावा जापानी इन्सेफेलाइटिस बच्चों की सोचने, समझने, और सुनने की क्षमता पर भी असर डालता है। जापानी इंसेफेलाइटिस का शिकार ज़्यादातर बच्चे और बूढ़े होते है। अगर समय पर जापानी इंसेफेलाइटिस यानी J.E का टीका न लगा हो तो ये एक ऐसी बीमारी है जिसके लिए विशेष तौर पर कोई दवा मौजूद नहीं है। बारिश के मौसम यानी जून से अगस्त महीने के बीच जेई के सबसे अधिक मामले सामने आते है। अगर कोई व्यक्ति गंभीर रूप से जापानी इंसेफेलाइटिस का शिकार हो और उस वक़्त उसे JE का टीका लगाया जाए तो इससे कोई फायदा नहीं होता। क्यूंकि इतने कम समय में जापानी इंसेफेलाइटिस से ग्रसित कोई भी व्यक्ति की प्रतिरोधक क्षमता नहीं बढ़ सकती है। जापानी इन्सेफेलाइटिस का संक्रमण किसी एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में नहीं होता है। ये संक्रमित व्यक्ति के छूने या उसके साथ खाना खाने से नहीं फैलता है।

इन्सेफेलाइटिस को कई तरीके से रोका जा सकता है। इनमें समय से टीकाकरण, साफ-सफाई, मच्छरों से बचाव और घरों के आस पास पानी न जमा होने देंने के अलावा बच्चों को बेहतर खान-पान और 'सूअर' व जंगली पक्षियों से दूरी बना कर इस विषाणुजनित बीमारी को रोका जा सकता है।