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Blog / 18 Jan 2019

(Daily News Scan - DNS) जम्मू और कश्मीर : विवादों में 370 (Jammu and Kashmir : Disputed 370)

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(Daily News Scan - DNS) जम्मू और कश्मीर : विवादों में 370 (Jammu and Kashmir : Disputed 370)


मुख्य बिंदु:

सुप्रीम कोर्ट में अनुच्छेद 370 को लेकर चल रही सुनवाई को 2 अप्रैल तक टाल दिया गया है। चीफ जस्टिस रंजन गोगोई समेत 3 अन्य जजों की बेंच ने आर्टिकल 370 की अंतिम सुनवाई के लिए 2 अप्रैल 2019 का दिन तय किया गया है।

सुप्रीम कोर्ट में दायर इस जनहित याचिका में जम्मू-कश्मीर के अलग संविधान को ग़लत और असंवैधानिक बताया गया है। साथ ही इसमें कहा गया है कि संविधान के निर्माण के समय जम्मू कश्मीर को मिला ये विशेष दर्जा अस्थायी था जोकि 26 जनवरी, 1957 को जम्मू एवं कश्मीर संविधान सभा भंग होने के साथ ही खत्म गया था। ये याचिका बीजेपी नेता और वकील अश्विनी कुमार उपाध्याय की ओर से दायर की गई थी।

DNS में आज जानेंगे कि आर्टिकल 370 क्या है और इसके तहत जम्मू कश्मीर को क्या विशेष अधिकार मिले हैं -

आर्टिकल 370 भारतीय संविधान का एक विशेष अनुच्छेद है। जिसके ज़रिये जम्मू और कश्मीर को भारत के राज्यों के मुकाबले कुछ विशेष अधिकार प्राप्त है। जम्मू-कश्मीर के विशेष अधिकारों में - भारतीय संसद को सिर्फ रक्षा, विदेश मामले और संचार के विषय में कानून बनाने का अधिकार है। इसके अलावा जम्मू-कश्मीर में किसी भी दूसरे विषय से जुड़े क़ानून को लागू करवाने के लिये राज्य सरकार से मंजूरी लेनी अनिवार्य होती है। जम्मू-कश्मीर को मिले विशेष दर्जे के कारण यहां पर संविधान का अनुच्छेद 356 लागू नहीं होती। जिसके कारण राष्ट्रपति तक को भी राज्य के संविधान को बर्ख़ास्त करने का अधिकार नहीं है।

1976 में बने भारतीय शहरी भूमि क़ानून को भी जम्मू-कश्मीर में लागू नहीं किया जा सकता है। जिसके चलते भारत के किसी भी दूसरे राज्य का नागरिक जम्मू कश्मीर में ज़मीन नहीं खरीद सकता है । इसके अलावा भारतीय संविधान के अनुच्छेद 360 के तहत राज्यों में लगाए जाने वाले वित्तीय आपातकाल को भी जम्मू कश्मीर राज्य में नहीं लगाया जा सकता है।

इन विशेष अधिकारों के ज़रिये जम्मू-कश्मीर के नागरिकों के पास दोहरी नागरिकता होती है।साथ ही जम्मू-कश्मीर का ध्वज भी अलग है।

विशेष राज्य वाले जम्मू - कश्मीर की विधानसभा का भी कार्यकाल 6 वर्षों का होता है, जबकि भारत के अन्य राज्यों की विधानसभाओं का कार्यकाल सिर्फ 5 वर्षों तक ही रहता है। भारत के उच्चतम न्यायालय के आदेश भी जम्मू-कश्मीर के अन्दर नहीं माने जाते हैं। इसके अलावा जम्मू कश्मीर राज्य RTI और ऑडिट करने वाली संस्था CAG के भी दायरे में नहीं आता है।

दरअसल अंग्रज़ों के जाने के बाद भारत दो अलग अलग देशों में बंट गया था। एक देश भारत था तो दूसरा बना पाकिस्तान। इस दौरान भारत में कई सारी रियासतें थी। जिन्हें भारत और पाकिस्तान अपने अपने देश में शामिल कराना चाहते थे। भारत के उत्तर में बसा जम्मू कश्मीर भी उस वक़्त एक देशी रियासत था। जिसके मुखिया थे महाराजा हरि सिंह । भारत और पाकिस्तान दोनों ही देश जम्मू और कश्मीर को अपने देश में शामिल करना चाहते थे। लेकिन जम्मू कश्मीर का रुख भारत की ओर होता देख वहां पर पाकिस्तान ने आक्रमण कर दिया। जिसके बाद अक्टूबर 1947 को महाराजा हरि सिंह ने जम्मू कश्मीर को भारत के साथ रखने का फैसला किया।

जम्मू कश्मीर को भारत में शामिल कराने के बदले राजा हरि सिंह ने भारत सरकार से स्वायत्ता दिए जाने की मांग की थी । जिसके बाद भारत सरकार ने अनुच्छेद 370 के तहत जम्मू कश्मीर को विशेष राज्य का दर्जा दे दिया ।

जम्मू कश्मीर को दिए इस विशेष राज्य वाले दर्जे को काफी वक़्त से हटाए जाने की मांग चल रही है। अनुच्छेद 370 को हटाए जाने के पीछे लोगों का तर्क ये है कि इससे जम्मू कश्मीर के लोगों को नुकसान हुआ है। क्यूंकि आर्टिकल 370 के कारण वहां के लोगों को केंद्र सरकार की किसी भी योजना का लाभ नहीं मिलता है। इसके अलावा लोगों को कहना ये भी है कि 370 के कारण ही जम्मू कश्मीर में अलगाववादियों को मज़बूती मिली है।

जबकि अनुच्छेद 370 को जारी रखने के पक्ष में लोगों का कहना ये है कि - ऐसा करने से भारत और कश्मीर का रिश्ता फिर से टूट जायेगा। और वहां के लोग दोबारा से भारत या पाकिस्तान में शामिल होने का फैसला कर सकते हैं। इसके अलावा लोगों का तर्क ये भी है कि - जम्मू कश्मीर को अन्य रियासतों की तरह भारत में शमिल नहीं कराया गया था। जम्मू कश्मीर को भारत में शामिल होने के लिए कुछ शर्तें रखी गईं थी जोकि अनुच्छेद 370 के रूप में मिली हैं।

अनुच्छेद 370 भारत के संविधान का अंग है। ये आर्टिकल संविधान के 21 वें भाग में समाहित है जिसका शीर्षक है- अस्थायी, परिवर्तनीय और विशेष प्रावधान यानी - Temporary, Transitional and Special Provisions वहीं आर्टिकल 370 का शीर्षक है - जम्मू-कश्मीर राज्य के संबंध में अस्थायी उपबंध

क्यूंकि इस शीर्षक में अस्थायी शब्द का ज़िक्र हुआ है जिसके कारण भी इसको हटाने की मांग होती है। लेकिन इस मसले की संवेदनशीलता को देखते हुए सभी स्टेक होल्डर्स से बातचीत करके कोई समाधान निकालना ही बेहतर हल साबित होगा।