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Blog / 03 Jul 2019

(डेली न्यूज़ स्कैन - DNS हिंदी) जल शक्ति अभियान (Jal Shakti Abhiyan)

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(डेली न्यूज़ स्कैन - DNS हिंदी) जल शक्ति अभियान (Jal Shakti Abhiyan)


मुख्य बिंदु:

भारत के कई इलाके भीषण जल संकट से गुजर रहे हैं। बीते कुछ साल में देश के कई हिस्सों में पानी का ग्राउंड लेवल काफी नीचे चला गया है, जिसने हर किसी की चिंता को बढ़ाया है। मौजूदा वक़्त में चेन्नई इस बात का सबसे बड़ा उदाहरण है, जहां पर जलाशय, झीलें सूख गई हैं और ग्राउंड लेवल पानी भी काफी कम है। यही हाल कमोवेश दक्षिण भारत, महाराष्ट्र और बुंदेलखंड जैसे कई और इलाकों का भी हैं।

पिछले साल नीति आयोग द्वारा जारी ‘समग्र जल प्रबंधन सूचकांक’ के मुताबिक इस समय देश में 60 करोड़ लोग पानी की किल्लत से जूझ रहे हैं। इसके अलावा स्वच्छ जल की उपलब्धता न होने के कारण हर साल तक़रीबन दो लाख लोगों की मौत हो जाती है। जल संकट की इस समस्या को देखते हुए सरकार ने अपनी महत्वाकांक्षी योजना जल शक्ति अभियान की शुरुआत की है। संचय जल, बेहतर कल थीम से लागू हुई ये योजना 1 जुलाई 2019 से शुरू हुई हो गई है।

आज के DNS में हम जल शक्ति अभियान के बारे में बताएंगे साथ ही समझेंगे कि भौम जल क्या है ? और देश में मौजूद जल संकट के कारण क्या हैं ?

ऊर्जा सुरक्षा की तर्ज पर जल सुरक्षा के लिए लागू हुआ 'जल शक्ति अभियान' दो चरणों में लागू होगा। पहला चरण एक जुलाई से 15 सितंबर तक चलेगा जबकि दूसरा चरण एक अक्टूबर से 30 नवंबर तक होगा। इस दौरान पानी की कमी का सामना कर रहे जिलों में जल संरक्षण और रेन वाटर हार्वेस्टिंग के लिए अभियान चलाया जाएगा। इसके तहत मनरेगा जैसी योजनाओं की राशि का इस्तेमाल कर परंपरागत तालाबों और जलाशयों का संरक्षण, भूजल रिचार्ज, वाटरशेड डेवलपमेंट और वृक्षारोपण पर जोर दिया जाएगा।

इस अभियान के तहत गंभीर भूजल स्तर का सामना कर रहे कुल 313 ब्लॉकों को कवर किया जाएगा। इसके अलावा क़रीब 1100 से अधिक ब्लॉकों में जल सुरक्षा का इंतजाम किया जाएगा जहां भूमिगत जलस्तर का इस्तेमाल सबसे ज़्यादा हुआ है। साथ ही 94 ऐसे ब्लॉकों को जल सुरक्षा के उद्देश्य से चुना गया है जहां भूमिगत जल की उपलब्धता कम है।

दक्षिण पश्चिम मानसून के आगमन के साथ जल संचय के लाभों के लिए 1 जुलाई से 15 सितम्बर का समय तय किया गया है जबकि लौटते हुए मानसून यानी मानसून के निवर्तन काल में तमिलनाडु और अंडमान निकोबार जैसे राज्यों और पूर्वी तटीय राज्यों में जल सुरक्षा के लिए 1 अक्टूबर से 30 नवम्बर की समयावधि चुनी गई है ।

जल शक्ति अभियान को क्रियान्वित करने करने की जिम्मेदारी 255 आईएएस अधिकारियों को दी गई है जो की संयुक्त अथवा अपर सचिव रैंक के होंगे । ये अधिकारी अलग - अलग मंत्रालयों अंतरिक्ष , पेट्रोलियम और रक्षा से संबंधित होंगे ।

इस अभियान के क्रियान्वयन का रोल मॉडल पिछले साल शुरू हुए ग्राम स्वराज अभियान को माना जा रहा है जिसके तहत देश के 117 एस्पीरेसनल ज़िलों में 7 फ्लैगशिप विकास योजनाओं को केंद्र सरकार के प्राधिकारियों की निगरानी में क्रियान्वित किया गया था ।

जल शक्ति अभियान का मुख्य उद्देश्य परिसंपत्ति सृजन और संचार अभियानों के ज़रिए जल संरक्षण और सिंचाई कार्यदक्षता संवर्धन को एक जन अभियान का रूप देना है । इसमें जल संकट से जूझ रहे ब्लॉक्स को एसपीरेसनल और नॉन एसपीरेसनल ज़िलों में बांटा गया है । इसके तहत भूमिगत जल विशेषज्ञों , वैज्ञानिकों के द्वारा राज्य और जिले स्तर के प्राधिकारियों के साथ मिलकर कार्य किया जाएगा ताकि बेहतर संसाधन प्रबंधन को दिशा दी जा सके । इसके तहत वर्षा जल संचयन, संभरण , जल निकायों को पुनर्जीवन प्रदान करने , बोरवेल रिचार्ज संरचनाओं , ढाचों का पुनः नवीनीकरण करना शामिल है। इसके साथ ही इसमें व्यापक , सघन वनीकरण पर भी जोर दिया गया है । ये एक समयबद्ध , मिशन मोड वाला अभियान है जो देश में सतत विकास के लक्ष्य की प्राप्ति में सहायक है ।

भारतीय मौसम विभाग के मुताबिक़ किसी क्षेत्र में सामान्य से 25 फीसदी कम वर्षा होने पर सूखे की स्थिति पैदा हो जाती है। भारत में मानसून की अनिश्चितता तथा अनियमितता, अल-नीनो और ख़राब जल प्रबंधन जैसे कारक जल संकट के लिए जिम्मेदार माने जाते हैं।

आइए अब भौम जल से जुड़े कुछ ज़रूरी पहलुओं को समझते हैं।

दरअसल भौम जल यानी भूजल, वो जल होता है जो चट्टानों और मिट्टी से रिस जाता है और भूमि के नीचे जमा हो जाता है। जिन चट्टानों में भूजल जमा होता है, उन्हें जलभृत यानी एक्विफर कहा जाता है। सामान्य तौर पर, जलभृत बजरी, रेत, बलुआ पत्थर या चूना पत्थर से बने होते हैं। इन चट्टानों से पानी नीचे बह जाता है क्योंकि चट्टानों के बीच में ऐसे बड़ी और परस्पर जुड़ी हुई जगहें होती हैं, जो चट्टानों को प्रवेश के योग्य बना देती हैं।

भारत में भौम जल के विनियमन के लिए कुछ विधायी और नीतिगत उपाय किए गए हैं । इनमें प्रमुख है ईजमेंट एक्ट , 1882 जिसे हिंदी में सुखभोग अधिनियम कहते हैं । वर्तमान में सुखभोग अधिनियम, 1882 प्रत्येक भूस्वामी को ज़मीन के भीतर या उसकी सतह पर मौजूद पानी को अपने दायरे के अंदर जमा करने और निस्तारित करने का अधिकार देता है। इसके चलते भूस्वामी इस जल पर अपना अनन्य अधिकार समझते हुए इसका अंधाधुंध दोहन करता है । यही कारण है कि भूजल निकासी को विनियमित करना कठिन हो जाता है क्योंकि उस पर उस व्यक्ति का स्वामित्व होता है जो जमीन का मालिक होता है। इससे भूजल पर भू स्वामियों का अधिकार हो जाता है। इसके अतिरिक्त कानून अपने दायरे से भूमि से वंचित लोगों को बाहर करता है।

भारतीय संविधान के तहत जल संबंधी मामलों को राज्य सूची में रखा गया है। इसका अर्थ ये है कि इस विषय पर राज्य विधानमंडल कानून बना सकते हैं। भारत सरकार द्वारा गठित अशोक चावला समिति ने जल को समवर्ती सूची में शामिल करने की सिफारिश नदी जल विवादों और भौम जल के अंधाधुंध दोहन को देखते हुए ही किया था । इस दिशा में काम करते हुए राज्य सरकारों को जल के सतत उपभोग पर कानून बनाने के संबंध में व्यापक दिशानिर्देश देने के उद्देश्य से केंद्र सरकार ने प्रारूप कानूनों या मॉडल विधेयकों के मसौदे को प्रकाशित किया था ।

2011 में सरकार ने भूजल प्रबंधन पर मॉडल विधेयक का मसौदा प्रकाशित किया जिसके आधार पर राज्य अपने कानूनों को अमल में लाना चुन सकते हैं। इसके अतिरिक्त केंद्र सरकार ने 2012 में राष्ट्रीय जल नीति को रेखांकित किया जिसमें पानी की मांग के प्रबंधन, उपभोग क्षमता, बुनियादी और मूल्य संबंधी पहलुओं से संबंधित सिद्धांतों को स्पष्ट रूप से पेश किया गया था।

राष्ट्रीय जल नीति के सुझावों के मद्देनजर, 2013 में सरकार ने राष्ट्रीय जल प्रारूप विधेयक का मसौदा प्रकाशित किया।

मॉडल बिल और राष्ट्रीय जल नीति सार्वजनिक न्यास सिद्धांत के तहत भूजल के नियमन को संबोधित करती है। सार्वजनिक न्यास सिद्धांत की अवधारणा ये सुनिश्चित करती है कि सार्वजनिक प्रयोग के लिए निर्धारित संसाधनों को निजी स्वामित्व में नहीं बदला जाएगा। सरकार पर न्यासी होने का उत्तरदायित्व है इसलिए यह उसकी जिम्मेदारी है कि वह लाभार्थियों जोकि लोग हैं, के लिए और उनकी ओर से इस प्राकृतिक संसाधन का संरक्षण और सुरक्षा करे। इसके अतिरिक्त प्रत्येक व्यक्ति को स्वीकार्य गुणवत्ता के जल को प्राप्त करने का मूलभूत अधिकार है।

उल्लेखनीय है कि सर्वोच्च न्यायालय और विभिन्न उच्च न्यायालयों ने जल को प्राप्त करने के मूलभूत अधिकार को संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत जीवन के अधिकार के अंग के रूप में उल्लिखित किया है। न्यायालयों ने कई विषयों पर फैसले सुनाए हैं जैसे पेय जल तक पहुंच और सुरक्षित पेय के अधिकार को मूलभूत सिद्धांत के रूप में स्वीकार करना। भारत सरकार के जल शक्ति मंत्रालय ने दो वर्ष पूर्व 14 अप्रैल को भीम राव अम्बेडकर के जन्म दिवस को राष्ट्रीय जल दिवस के रूप में भी मनाने की घोषणा की थी ।

कुल मिलाकर कहा जा सकता है हमें इस पंक्ति से सतर्क रहना होगा कि अगला विश्व युद्ध जल के लिए होगा । जल है तो कल है के विचार को एक जन आंदोलन बनाने की जरूरत है । देश में तेज गति से सूखा अकाल अनावृष्टि की मौसमी परिघटनाएं बढ़ी है । हमें एल निनो , ला लिना , ला मोडोकी, जूलियन मीडियन ओसिलेशन, इंडियन ओसियन डाईपोल और अर्बन हीट आइलैंड जैसी स्थितियां प्रभावित कर रहीं हैं ।

जल में आर्सेनिक प्रदूषण बढ़ता जा रहा है , पश्चिम बंगाल इससे सर्वाधिक ग्रस्त राज्य हो गया है । मुरली मनोहर जोशी की अध्यक्षता वाले संसदीय समिति ने कुछ वर्षों पूर्व रिपोर्ट में कहा था कि ग्राउंड वॉटर क्षरण तो चुनौती है ही लेकिन इसके साथ ही भौम जल की स्वच्छता को बनाए रखना भी देश के सामने एक बड़ी चुनौती है जिससे निपटने की तत्काल जरूरत है । नदियों की धारणीय क्षमता उनके उन्मुक्त प्रवाह की रक्षा , ग्लेशियर्स की सुरक्षा सभी कुछ जरूरी है , ऐसे में सरकार , समाज , जनता को मिल कर जल शक्ति अभियान में अनवरत ऊर्जा देते रहना होगा ।