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Blog / 08 Dec 2019

(डेली न्यूज़ स्कैन - DNS हिंदी) हैदराबाद रेप केस और जस्टिस वर्मा समिति रिपोर्ट (Hyderabad Rape Case and Justice Verma Committee Report)

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(डेली न्यूज़ स्कैन - DNS हिंदी) हैदराबाद रेप केस और जस्टिस वर्मा समिति रिपोर्ट (Hyderabad Rape Case and Justice Verma Committee Report)


हाल ही हुए हैदराबाद रेप मामले ने एक बार फिर से पूरे देश में रोष और हलचल उत्पन्न कर दी है। निर्भया मामले के पश्चात् हुए इस घिनौने कांड ने महिला सुरक्षा पर सरकार के किये जा रहे दावों पर एक प्रश्न-चिन्ह लगा दिया है।

इसी परिप्रेक्ष्य में आज हम अपने DNS के कार्यक्रम में महिला सुरक्षा और महिलाओं पर हो रहे यौन-अत्याचारों को रोकने के लिए बनी वर्मा समिति के बारे में जानने का प्रयास करेगें।

  • वर्मा समिति का गठन 23 दिसम्बर 2012 को किया गया था।
  • यह एक तीन सदस्यीय समिति थी जिसकी अध्यक्षता न्यायमूर्ति जे0 एस0 वर्मा कर रहे थे जो कि उच्चतम न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश थे।
  • इस समिति के अन्य दो सदस्यों में से एक पूर्व उच्च न्यायालय के न्यायाधीश, थे जिनका नाम लीला सेठ था जबकि दूसरे पूर्व महा-न्याभिकर्ता यानि Former Solicitor General गोपाल सुब्रमन्यम थे।
  • इस समिति का गठन महिलाओं के प्रति हो रहे यौन अपराधों के लिए आपराधिक कानूनों मे बदलाव का सुझाव एवं इससे जुडे़ अपराधियों को शीघ्र सजा दिलाने के लिए प्रावधानों का सुझाव देने के लिए किया गया था।
  • इस समिति ने 23 जनवरी 2013 में अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की।
  • इन्होने रेप, यौन-उत्पीड़न, मानव-तस्करी, बच्चों के प्रति हो रहे यौन-अपराध, पीड़ितो के चिकिस्कीय परीक्षण इत्यादि के संबध में अपने सुझाव प्रस्तुत किये।
  • इस समिति ने यह भी सुझाव दिया कि यौन अपराध को ‘‘भारतीय दण्ड संहिता 1860’’ में ही रखा जाना चाहिये।
  • इस समिति ने यह माना कि रेप या यौन-उत्पीड़न न सिर्फ उत्तेजना वश किया गया अपराध है बल्कि या पुरूष वर्ग का शक्तियों की गलत अभिव्यक्ति भी है।
  • इसके अलावा रेप को अलग से अपराध की श्रेणी में ही रहना चाहिए एवं यह सिर्फ बलपूर्वक शारीरिक संबंध तक सीमित न करके किसी भी प्रकार के असहमतिपूर्ण यौन सम्बन्ध या Non-Consensual Penetration of Sexual Nature को भी रेप की परिभाषा में शामिल किया जाना चाहिए।
  • भारतीय दण्ड संहिता (IPC) शादी में हुए रेप एवं शादी के बाहर के रेप में अन्तर की बात करता है। भारतीय दण्ड संहिता के अन्र्तगत बिना अनुमति के Sexual Intercourse पूर्णतः वर्जित है परन्तु यही कार्य पति-पत्नी के मध्य किये जाने पर उसे अपराध की श्रेणी से बाहर रखता है। सरल शब्दों में कहा जाये तो Marital Rape को IPC के अन्र्तगत अपराध नहीं माना गया है।
  • इस समिति ने इस कृत्य को भी अपराध की श्रेणी में शामिल किये जाने का प्रावधान सुझाया है।

इस समिति ने यौन-हमलो को भी परिभाषित किया है।

  • वर्तमान में बल प्रयोग या किसी अन्य आपराधिक गतिविधि द्वारा महिला की शीलता को भंग किया जाना यौन हमला माना गया है जो कि IPC की धारा-354 के तहत एक दण्डनीय अपराध है परन्तु इसकी सजा मात्र 2 साल है, साथ ही यदि किसी भी प्रकार से Sexual Penetration यानि यौन-प्रवेश न साबित किया जा सके तो सभी तरह के अपराधों को इसी धारा के अन्र्तगत रख दिया जाता है।
  • अतः इस समिति ने यह सुझाव दिया है कि किसी भी प्रकार का कृत्य चाहे वह Penetrative या Non-penetrative, असहमतिपूर्ण होने के साथ ही किया गया सभी प्रकार का गलत प्रकार से छूना, या महिला की शीलता व सम्मान को भंग करना एक यौन हमला माना जाये जिसकी न्यूनतम सजा 5 वर्ष कारावास या जुर्माना या दोनो हो।
  • एवं यदि आपराधिक बल द्वारा महिला पर यौन उत्पीड़न किया गया हो तो इसकी सजा 3 से 7 वर्ष की हो।
  • साथ ही इस समिति ने यह भी सुझाव दिया कि यदि शब्दों द्वारा, कृत्यों या अश्लील इशारों द्वारा या किसी भी अन्य प्रकार का भय उत्पन्न करके महिला की शीलता या गरिमा को हानि पहुँचाने की बात की जाती हो तो इसे भी एक दण्डनीय अपराध माना जाये जिसकी न्यूनतम सजा 1 वर्ष हो।
  • इसके अलावा इस समिति ने कार्यस्थल पर महिलाओं के सरक्षंण व एसिड हमला या Acid Attack को भी दण्डनीय अपराध बनाये जाने के सम्बन्ध में कठोर प्रावधानो का सुझाव दिया।
  • गौरतलब है कि विशाखा मामले में भी उच्चतम न्यायालय ने महिलाओ को कार्यस्थल पर यौन-संरक्षण प्रदान करने के सन्दर्भ में दिशा- निर्देश दिये थे।
  • इसी सम्बन्ध में वर्मा समिति ने महिलाओं के प्रति हो रहे यौन अपराधों के सन्दर्भ में कई महत्वपूर्ण सुझाव दिये

जैसे-

  1. एक Rape-Crisis Cell का गठन किया जाये एवं जैसे ही रेप की घटना की F.I.R. दर्ज हो इस ब्मसस को सूचित किया जाये।
  2. यह विभाग पीड़ित को सभी विधिक सहायता प्रदान करे।
  3. सभी पुलिस थानो में CCTV कैमरा लगाये जाये, खासकर थानों के प्रवेश स्थान पर व Questioning या पूछताछ कक्ष में।
  4. आनलाइन FIR या प्राथमिकी दर्ज करने का प्रावधान किया जाये।
  5. पुलिस अधिकारी को पीड़िता को बिना क्षेत्राधिकार की परवाह किये उसके मदद के लिये कर्तव्यबद्ध किया जाये।
  6. जनता के बीच के वे व्यक्ति जो पीड़िता की मदद करें उन्हे विधिक कार्यवाहियों के फेर में परेशान न किया जाये।
  7. पुलिस कर्मचारियों की संख्या में वृद्धि की जाये।
  8. शहर के अंधेरे वाले स्थलों पर उचित रोशनी की व्यवस्था की जाये।
  9. Community Policing की व्यवस्था की जाये।
  10. Volunteers जोकि महिला सुरक्षा करने के लिये तैयार हो उचित प्रशिक्षण दिया जायें।