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Blog / 21 Mar 2020

(डेली न्यूज़ स्कैन - DNS हिंदी) विदेशी ट्राइब्यूनल (Foreign Tribunals)

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(डेली न्यूज़ स्कैन - DNS हिंदी) विदेशी ट्राइब्यूनल (Foreign Tribunals)



वैसे तो इंसान को ज़िंदगी गुज़र बसर करने के लिए हवा पानी और खाने की ज़रुरत होती है लेकिन इन सबके अलावा एक और चीज़ जो इंसान के वज़ूद को कायम रखती है वो है उसकी पहचान लेकिन अगर किसी की पहचान ही गुम हो जाए तो क्या हो । क्या हो अगर किसी को ये पता चले की बरसों से जिस इंसान का एक नाम और पहचान थी वो अचानक ही गुमनामी के अंधेरों में खो जाए । क्या हो अगर आपकी पहचान चाँद कागज़ के पुलिंदों में खोकर रह जाए । ये सब कोई फलसफा नहीं बल्कि हकीकत की ऐसी काली स्याही है जिसके इंसानी किस्मत के काले पन्ने असम में लिखे जा रहे है जी हाँ हम बात कर रहे हैं असम के नागरिकता रजिस्टर की जिसमे कई लोग अपने नाम और पहचान की तलाश में हताशा के गर्त में जा चुके हैं।

आज के अपने dns में बात करेंगे नागरिकता रजिस्ट्रर की , और इस विवाद के निपटारे के लिए बनाये गए विदेषी अधिकरणों की साथ ही जानेंगे इन अधिकरणों के गठन और मौजूदा वक़्त में इसकी प्रासंगिकता के बारे में

वैश्विक मानवाधिकार संगठन ‘(Amnesty International) ने हाल हे में एक रिपोर्ट जारी की है ।इस रिपोर्ट का शीर्षक है (Designed to Exclude) । इस रिपोर्ट पर गौर करें तो इसमें असम सरकार ने ‘विदेशी अधिकरण’ (Foreigners’ Tribunal- FT) के सदस्यों के कार्यकाल को निर्धारित करने का फैसला किया है ।इसका निर्धारण अधिकरणों द्वारा विदेशी घोषित किये गए व्यक्तियों की संख्या के आधार पर किया जायेगा।

विदेशी अधिकरणों के इतिहास पर नज़र डालें तो शुरुआत में इन अवैध प्रवासी निर्धारण अधिकरणों या (Illegal Migrant Determination Tribunals- IMDT) की संख्या 11 थी ।इसके बाद सर्वोच्च न्यायालय ने अवैध प्रवासी निर्धारण अधिकरण अधिनियम, 1983 (तिरासी ) को रद्द कर दिया । साल 2005 में इसेविदेशी अधिकरण या फॉरेन ट्रिब्यूनल में बदल दिया गया ।असम सरकार ने साल 2005 में 21, साल 2009 में 4 और साल 2014 में बाकी 64 (चौसंठ ) विदेशी अधिकरणों की स्थापना की।

ये विदेशी अधिकरण होते क्या हैं और किस मकसद के मद्देनज़र इन्हे बनाया जाता है

विदेशी (अधिकरण) आदेश, 1964 (चौसठ ) को केंद्र सरकार ने विदेशी अधिकरण अधिनियम, 1946 (छियालीस )की धारा 3 के तहत जारी किया था। इस आदेश में प्रमुख रूप से साल 2013 में संशोधन किये गए । इन आदेशों को पूरे देश में लागू किया गया है और इसके लिए कोई भी राज्य विशिष्ट नहीं है

इस क़ानून में हालिया संशोधन 30 मई 2019 को किया गया। ये संशोधन राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर या NRC के खिलाफ दायर दावों एवं आपत्तियों के विरोध में अपील संबंधी मामलों का निपटारा करने के मकसद से किया गया था । हालांकि 30 मई, 2019 को जारी किया गया आदेश केवल असम राज्य से संबंधित है।

असम में वर्तमान में 100 विदेशी अधिकरण हैं ।, इसके अलावा 200 से अधिक विदेशी अधिकरणों बनाने सम्बन्धी प्रक्रिया पूरी कर ली गयी है

इन विदेशी अधिकरणों को मोटे तौर पर 31अगस्त, 2019 को प्रकाशित नागरिकता रजिस्टर से बाहर किये गए 19 ।06 लाख लोगों के मामलों का निपटारा करना है।

विदेशी अधिकरण में सदस्यों को ‘विदेशी अधिकरण अधिनियम’ 1941 (इकतालीस ), (Foreigners Tribunal Act 1941) ‘विदेशी अधिकरण आदेश’ 1984 (चौरासी ), (Foreigners Tribunal Order 1984) तथा सरकार द्वारा समय-समय पर जारी दिशा-निर्देशों के तहत नियुक्त किया जाता है।

विदेशी अधिकरण का सदस्य होने के लिए कुछ ख़ास योग्यताओं का होना ज़रूरी है जिनमे -

  • उसे असम न्यायिक सेवा का सेवानिवृत्त न्यायिक अधिकारी होना चाहिए
  • इसके अलावा न्यायिक अनुभव रखने वाला सिविल सेवक जो सचिव या अतिरिक्त सचिव के पद से नीचे सेवानिवृत्त नहीं हुआ हो या फिर
  • प्रैक्टिस करता हुआ एक वकील जिसकी उम्र 35 (पैंतीस)वर्ष से कम न हो और जिसे कम से कम सात वर्ष के अभ्यास का अनुभव हो
  • इसके अलावा उसे असम (असमिया, बंगाली, बोडो और अंग्रेजी) की आधिकारिक भाषाओं का अच्छी समझ भी होनी चाहिए ।
  • और इसके अलावा विदेशी मामलों का भी अनुभव होना चाहिए ।

विदेशी अधिकरण के सदस्यों के वेतन भत्तों की बात करें तो अगर पूर्व न्यायाधीश या सिविल सेवक की नियुक्ति विदेशी अधिकरण के सदस्य के तौर पर की जाती है तो उसे वही वेतन तथा भत्ता दिया जायेगा जो वेतन तथा भत्ता उसे रिटायरमेंट के वक़्त मिल रहा था

इसके अलावा अगर एक वकील की नियुक्ति अधिकरण के सदस्य के तौर पर की जाती है, तो उसे पचासी हज़ार रुपए प्रति माह वेतन तथा भत्ता दिया जायेगा ।

कैसे होती है विदेशी अधिकरण में अपील

वे लोग जिनका नाम नागरिकता रजिस्टर में नहीं है वे इन अधिकरणों में संपर्क कर सकते हैं। इसके बावजूद अगर कोई व्यक्ति ट्रिब्यूनल के फैसले से संतुष्ट नहीं हैं तो वो इसके खिलाफ आगे अपील कर सकता है।

लेकिन हाल के दिनों में इन ट्रिब्यूनल्स की विश्वसनीयता पर सवाल उठाये जाने लगे हैं । अधिकरण की विश्वसनीयता पर अगस्त 2017 से सवाल उठने लगे हैं। दरअसल में असम के मोरीगाँव जिले में एक शख्स ने विदेशी अधिकरणों की निष्पक्षता और कार्यशैली को लेकर आरोप लगाए थे । इस शख्स के मुताबिक़ विदेशी मामलों को अधिकरणों में बहुत हलके में लिया जा रहा है ।इस शख्स ने अधिकारियों पर रिश्वतखोरी का भी आरोप लगाया था । इस शख्स ने अधिकरण पर धान्द्ली और कालाबाज़ारी के भी आरोप लगाया था ।

सदस्य के अनुसार- “विदेशी मामलों को FTs सदस्य एक उद्योग के रूप में ले रहे है तथा उनका उद्देश्य ऐसे मामलों में केवल पैसा बनाना है।”

मोरीगाँव FT सदस्य ने यह भी देखा कि अनुचित प्रथाओं तथा नकली दस्तावेज़ों के माध्यम से भारतीय नागरिकों को विदेशी तथा विदेशियों को भारतीय नागरिकता दी जा रही है।

व्यक्ति की नागरिकता एक बुनियादी मानवाधिकार है। न्यायिक रूप से अपनी पहचान को सत्यापित किये बिना जल्दबाजी में लोगों को विदेशी घोषित करना बहुत से नागरिकों को राज्यविहीन (Stateless) कर देगा, अत: जो लोग सूची में शामिल नहीं हो पाते हैं उन्हें पर्याप्त कानूनी सहायता दी जानी चाहिये।