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Blog / 26 Apr 2019

(डेली न्यूज़ स्कैन (DNS हिंदी) इलेक्शन नामा (Election Nama) : कहानी लोकसभा चुनावों की (भाग - 1) (Story of Lok Sabha Elections (Part - 1)

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(डेली न्यूज़ स्कैन (DNS हिंदी) इलेक्शन नामा (Election Nama) : कहानी लोकसभा चुनावों की (भाग - 1) (Story of Lok Sabha Elections (Part - 1)


मुख्य बिंदु:

चुनाव... लोकतंत्र का ऐसा पर्व जिसमें पूरा देश शामिल होता है। दुनिया के सबसे बड़े लोकतान्त्रिक देश भारत में चुनावों को एक पर्व की तरह मनाया जाता है। दरअसल किसी भी लोकतान्त्रिक देश के लिए चुनाव सबसे महत्वपूर्ण प्रक्रिया है। आज़ादी मिलने के बाद से ही भारत एक लोकतांत्रिक राष्ट्र है। जहां समय समय पर चुनाव होते रहे हैं। भारत में अब तक कुल 16 लोकसभाओं के चुनाव कराए जा चुके हैं। मौजूदा समय में भी भारत में लोकसभा के चुनाव चल रहे हैं। ये चुनाव 17 वीं लोकसभा के हैं, जिनमें अब तक हुई वोटिंग में लोकसभा के कुल तीन चरणों के मतदान पूरे हो गए हैं। हालांकि अभी भी 17 वीं लोकसभा के चार चरणों के मतदान कराए जाने बाकी हैं। इलेक्शन नामा प्रोग्राम के ज़रिए हम चुनाव से जुड़ी कुछ महत्वपूर्ण जानकारियों को आप तक पहुंचाने की कोशिश कर रहे हैं। इलेक्शन नामा के पहले एपिसोड में हमने आज़ाद भारत के पहले चुनाव का ज़िक्र किया था। आज इलेक्शन नामा के दूसरे एपिसोड में हम आपको बताएंगे कहानी लोकसभा चुनावों की और साथ ही ज़िक्र करेंग कुछ महत्वपूर्ण घटनाओं की।

आज़ाद भारत के पहले तीन चुनावों में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का दबदबा रहा। पहले लोकसभा चुनाव में 489 में से 364 सीटें जीतने वाली कांग्रेस को लोकसभा के दूसरे और तीसरे आम चुनावों में भी भारी मतों से विजयी हुई । 1957 में हुए दूसरे लोकसभा चुनाव में जहां कांग्रेस को 371 तो वहीं 1962 के तीसरे आम चुनाव में भी कांग्रेस 361 सीटें जीतने में कामयाब रही थी। इन चुनावों में लोकसभा की सीटों में कुछ इजाफा हुआ था और सीटें 489 से बढ़ा कर 494 कर गईं दी गईं । दूसरे और तीसरे चुनाव में मिली के बाद पंडित जवाहरलाल नेहरू लगातार तीसरी बार भारत के प्रधानमंत्री बने। हालांकि लोकसभा के तीसरे कार्यकाल के दौरान 1964 में प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू का निधन हो गया था। जिसके बाद गुलजारी लाल नन्दा को भारत का अंतरिम प्रधानमंत्री नियुक्त किया गया।

प्रधानमंत्री नेहरू के निधन के बाद भारत को किसी पूर्णकालिक प्रधानमंत्री की ज़रूरत थी। कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष के.कामराज ने कांग्रेस के नेताओं और सांसदों से मशविरा किया। ज़्यादतर सदस्यों ने कांग्रेस पार्टी के नेता रहे लाल बहादुर शास्त्री के पक्ष में समर्थन किया। जिसके बाद शास्त्री कांग्रेस संसदीय दल के निर्विरोध नेता चुने गए और प्रधानमंत्री बने।

1962 में हुए भारत चीन युद्ध के बाद भारत आर्थिक कठिनाइयों से जूझ रहा था। इसी दौरान पकिस्तान ने भी मौक़ा देखते हुई 1965 में भारत के साथ युद्ध शुरू कर दिया। कई दिनों तक चले इस युद्ध के बाद तत्कालीन प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री युद्ध की समाप्ति के सिलसिले में ताशकंद गए हुए थे लेकिन अचानक जनवरी 1966 में ही उनकी ताशकंद में ही मृत्यु हो गई।

तीसरी लोकसभा में दो प्रधानमंत्रियों को खोने के बाद कांग्रेस के सामने बहुत ही गंभीर समस्या थी। पार्टी के वरिष्ठ नेता रहे मोरार जी देसाई इस बार प्रधानमंत्री पद की के लिए सबसे पहले और मज़बूत दावेदार थे। लेकिन कांग्रेस के कुछ बड़े नेताओं ने मोरार जी देसाई को नज़रअंदाज़ किया और इंदिरा गांधी के नाम पर सहमति जताई। हालांकि मुश्किलें अभी भी बरकरार थी। लेकिन कांग्रेस सांसदों के गुप्त मतदान के चलते मोरार जी देसाई को इंदिरा गांधी के मुक़ाबले कम वोट मिले और 1966 में श्री मती इंदिरा गांधी भारत की तीसरी पूर्णकालिक प्रधानमंत्री बनी। 1966 में प्रधानमंत्री बनी इंदिरा गांधी भारत की पहली महिला प्रधानमंत्री थीं जिन्होंने लोकसभा के बचे हुए कार्यकाल को 1967 तक आसानी से चलाया ।

1967... देश में चौथी लोकसभा के चुनाव होने थे। चौथे आम चुनाव में लोकसभा की सीटों को 494 से बढ़ाकर 520 कर दिया गया था। साल भर प्रधानमंत्री रहीं चुकी इंदिरा गांधी ने भारत के चौथे लोकसभा चुनाव में कांग्रेस का नेतृत्व किया। श्रीमती गांधी की अगुवाई में कांग्रेस को एक बार फिर से जीत तो मिली लेकिन डॉ. राम मनोहर लोहिया के ग़ैरकांग्रेसवाद के चलते कांग्रेस पार्टी काफी मुश्किल में दिखी। जिसका नतीज़ा ये रहा कि कांग्रेस को कुल 9 राज्यों में हार मिली।

कहा जाता है कि कांग्रेस की इस हार ने ही कांग्रेस में विभाजन की राह को और मज़बूत कर दिया था। इसके अलावा 1969 में हुआ राष्ट्रपति चुनाव भी कुछ हद तक कांग्रेस विभाजन के लिए जिम्मेदार था। कांग्रेस में हुए इस विभाजन के बाद कांग्रेस दो भागों में बंट गई जिसमें कांग्रेस (O) यानी आर्गेनाईजेशन और कांग्रेस (R) यानी रिक्विजिनिस्ट शामिल थी। कांग्रेस (O) का नेतृत्व मोरारजी देसाई जबकि कांग्रेस (R) का नेतृत्व श्रीमती गांधी ने किया।

कांग्रेस के दो धड़ों में बंटने के बाद प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ़ इंडिया के समर्थन वाली अल्पमत सरकार को चलाने पर मज़बूर होना पड़ा। हालांकि ये सरकार बहुत दिन नहीं चली। 1970 तक चली इस तरह की सरकार के बाद प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने कार्यकाल ख़त्म होने के साल भर पहले ही लोकसभा भंग करने की सिफारिश की। जिसके बाद 1971 में एक बार फिर 5वीं लोकसभा चुनावों की तैयारियां शुरू हो गई।

1971... आनन - फानन में कराए गए 5वीं लोकसभा के चुनावों में कांग्रेस को जीत तो मिली लेकिन आगे की राह काफी मुश्किलों भरी रही। 'गरीबी हटाओ' के चुनावी नारे का प्रचार करते हुए कांग्रेस (R) और उसकी सहयोगी पार्टी रही CPI को कुल 518 में से 375 सीटों पर जीत मिली थी। अकेले कांग्रेस (R) को कुल 352 सीटें हांसिल हुई थी जिसमें कांग्रेस को मिले 44 प्रतिशत वोट शामिल थे।

कांग्रेस से अलग होकर गई कांग्रेस (O) को सिर्फ 16 सीटों पर ही जीत मिली थी। इस जीत के बाद ये साबित हो गया था कि श्री मती गांधी की कांग्रेस (R) ही असली कांग्रेस है। और विपक्षी ग्रैंड अलायंस पूरी तरह से धाराशायी हो गया। 1971 में हुए 5 वीं लोकसभा चुनावों के कुछ दिन बाद ही पूर्वी पाकिस्तान में एक राजनीतिक संकट खड़ा हो गया था। पूर्वी पकिस्तान के संकट का असर भारत पर भी पड रहा था। जिसके कारण भारत और पाकिस्तान के बीच एक बार फिर से युद्ध शुरू हो गया। श्रीमती गांधी की अगुवाई में पाकिस्तान को जबरदस्त तरीके से हार का सामना करना पड़ा और एक नए मुल्क़ बांग्लादेश का उदय हुआ।

5 वीं लोकसभा चुनाव के बाद श्री मती गांधी की लोकप्रियता अपने चरम पर थी। श्री मती गांधी ने अपने राज्यकौशल के बल पर अपनी सभी विरोधियों को पस्त कर दिया था। इन सब घटनाओं के बाद उन्हें ग़रीबों और वंचितों के रक्षक और मज़बूत राष्ट्रवादी नेता के तौर पर देखा गया। लेकिन 12 जून 1975 का दिन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के लिए काफी निराशाजनक था। ये वो तारिख थी जब इलाहाबाद हाईकोर्ट ने श्री मती गांधी को भ्रष्ट चुनावी आचरण का दोषी क़रार देते हुए उनके 1971 के चुनाव को अवैध घोषित कर दिया। इलाहाबाद उच्च न्यायलय के इस फैसले के बाद इंदिरा गांधी ने इस्तीफा देने के बजाय देश में आपातकाल की घोषणा कर दी और विपक्ष के कई प्रमुख नेताओं के साथ हज़ारों निर्दोष लोगों को जेल में बंद कर दिया।

इलेक्शन नामा के अगले एपिसोड में हम ज़िक्र करेंगे भारतीय लोकतंत्र पर काले धब्बे की तरह लगे उस आपातकाल की और साथ ही बाकी के लोकसभा चुनावों की....