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Blog / 18 Apr 2019

(डेली न्यूज़ स्कैन (DNS हिंदी) इलेक्शन नामा (Election Nama) : भारत का पहला चुनाव (First Election of India)

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(डेली न्यूज़ स्कैन (DNS हिंदी) इलेक्शन नामा (Election Nama) : भारत का पहला चुनाव (First Election of India)


मुख्य बिंदु:

देश में सत्रवीं लोकसभा के चुनाव शुरू हो गए हैं। लोकसभा चुनावों के साथ चार अन्य राज्यों के भी चुनाव होने हैं। इन राज्यों में आंध्र प्रदेश, ओडिशा, सिक्किम और अरुणाचल प्रदेश शामिल हैं। 10 मार्च को भारत निर्वाचन आयोग ने लोकसभा और चार राज्यों की विधानसभाओं में होने वाले चुनावों की तारीखों का एलान किया था जिसके बाद से आदर्श आचार संहिता लागू है। चुनाव आयोग के मुताबिक देशभर में कुल 7 चरणों में लोकसभा चुनाव कराए जायेंगे और मतगणना 23 मई को की जाएगी। इलेक्शन नामा के अपने इस ख़ास शो आज आपको बताएंगे कि कब और कैसे शुरू हुआ था भारत में चुनाव...

आज़ाद हिंदुस्तान का पहला चुनाव कैसा था ये शायद हम आप में से ज़्यादातर लोगों न देखा हो। लेकिन लोकतंत्र का ये पर्व, था बहुत खूबसूरत...

लंबी लड़ाई के बाद मिली ये जीत काफी रोमांचकारी थी उस वक़्त “अंधेरी रातों से बाहर आई जनता ने, पहली बार लोकतंत्र का सुनहरा चेहरा देखा था

कुशासन पे सुशासन की विजय हुई थी और लोकतंत्र ने एक बार फिर से इतिहास रचा था”

तब से अब के चुनाव में काफी बदलाव आ गए हैं। अशिक्षा और ग़रीबी जैसे मामले पहले आम चुनाव के मुक़ाबले अब काफी बेहतर हो गए हैं। मतदान पेटियों की जगह ईवीएम मशीनें आ गई हैं। और संचार के तौर तरीके भी काफी बदल गए हैं। वैसे तो भारत में चुनाव की शुरुआत आज़ादी मिलने के पहले ही शुरू हो गई थी। लेकिन आज़ाद भारत का पहला चुनाव 1951 से 1952 के बीच हुआ था।

1935 में अंग्रेज़ों ने भारत को गवर्नमेंट ऑफ़ इंडिया एक्ट के तहत चुनाव कराने का अधिकार दिया था। 1937 में पहली बार भारत में प्रांतीय सभाओं के चुनाव हुए। लेकिन ये चुनाव अंग्रेज़ों के अधीन हुए थे इसलिए लिए इसे भारत के पहले चुनाव के रूप में नहीं देखा जाता । 1937 में हुए चुनावों के 2 साल बाद ही द्वितीय विश्व युद्ध शुरू हो गया। भारतीय आवाम की मंजूरी के बिना ही ब्रिटिश सरकार ने भारत को युद्ध में धकेल दिया।

1945... द्वितीय विश्व युद्ध समाप्त हो चुका था। तमाम आंदोलनों और दुश्वारियों के बाद भारत को आज़ादी मिलनी थी। लेकिन अंग्रेज़ अधिकारी भारत में को आज़ाद करने से पहले भारत में एक संविधान चाहते थे। ताकि भारत आज़ाद होने के बाद इसी आधार पर शासन करे ।

जुलाई 1946... ये वो तारीख़ है जब भारतीय संविधान सभा के लिए पहली बार चुनाव हुए। संविधान सभा के चुनाव के बाद 9 दिसंबर 1946 को संविधान सभा की पहली बैठक हुई। सभा के सबसे उम्रदराज़ सदस्य रहे डॉ. सच्चिदानंद सिन्हा को सभा का अस्थायी अध्यक्ष बनाया गया। बाद में 11 दिसम्बर 1946 को डॉ. राजेंद्र प्रसाद को संविधान सभा का स्थाई अध्यक्ष नियुक्त किया गया। उस वक़्त मुस्लिम लीग ने इस बैठक का बहिष्कार किया था और अपने लिए अलग से संविधान सभा की मांग की।

15 अगस्त 1947... देश विभाजन के बाद संविधान सभा का फिर से गठन हुआ। ये गठन 31 अक्टूबर 1947 को हुआ जिसमें संविधान सभा के लिए कुल 299 सदस्यों को चुना गया। संविधान सभा ने 26 नवम्बर 1949 को अपना सारा काम पूरा कर लिया था जिसके बाद 26 जनवरी 1950 से संविधान पूरे भारत भर में लागू हो गया।

भारतीय संविधान में आर्टिकल 324 से 329 के बीच लगभग पूरी चुनाव प्रक्रिया का ज़िक्र है। आज़ादी मिलने के बाद भारत में संविधान के इन्हीं नियमों के मुताबिक़ चुनाव होते रहे हैं। उस वक़्त भी संविधान के इन्हीं नियमों के मुताबिक़ चुनाव होने थे। पूरब से पश्चिम और उत्तर से दक्षिण भारत के इलाकों में चुनाव कराना कोई आसान काम नहीं था। अशिक्षा और ग़रीबी जैसे हालात भारत को पीछे धकेल रहे थे। अंग्रेज़ों से आज़ादी मिलने के 5 साल बाद भी देश की तस्वीर में कोई ज़्यादा बदलाव नहीं आया था। इसके अलावा भारत को जबरन द्वितीय विश्व में शामिल किए जाने का भी खामियाजा भुगतना पड़ा था। द्वितीय विश्व युद्ध के चलते भारत को भारी मात्रा में जान और माल का नुकसान सहना पड़ा था।

तो 26 जनवरी 1950 को संविधान लागू होने के बाद से ही लोकतान्त्रिक तरीके से चुनाव कराए जाने की कवायद शुरू हो गई थी। पंडित नेहरू समेत देश के कई अन्य वरिष्ठ राजनेता भी लोकतान्त्रिक तरीके से चुनाव कराने के पक्ष में थे। देश के राजनीतिक और सामाजिक हालातों को सुधारने के लिए भारत में चुनाव की सख़्त ज़रूरत थी। लेकिन साल 1950 में बने चुनाव आयोग के लिए नियम कायदे तैयार करने की मुश्किलें बरक़रार थी।

संविधान बनने के बाद ही चुनाव आयोग का गठन हो गया था। हालांकि इसे चलाने के लिए नियम और कायदों की ज़रूरत थी। ऐसे में भारत के एक तेज़तर्रार I.C.S अधिकारी रहे सुकुमार सेन को चुनाव करने की जिम्मेदारी दी गई। इस जिम्मेदारी के बाद सुकुमार सेन भारत के पहले मुख्य चुनाव आयुक्त नियुक्त किए गए। सुकुमार सेन के चुनाव की तैयारियों के लिए जी तोड़ मेहनत की। लोकसभा चुनाव के साथ-साथ कुछ राज्यों की विधानसभाओं में भी चुनाव चुनाव होने थे। उस वक़्त भारत की आबादी क़रीब 36 करोड़ थी, जिसमें लगभग 17 करोड़ लोग वयस्क मतदाता थे।

चुनाव आयुक्त सुकुमार सेन ने देश की जनसंख्या का आंकड़ा इकट्ठा किया और मतदाता सूची बनाई। चुनाव आयोग को आंकड़े जुटाने में काफी समस्याएं आईं। चुनाव अधिकारियों के मुताबिक़ बिहार, उत्तर प्रदेश और राजस्थान में मतदाता सूची बनाने में उन्हें सबसे ज़्यादा मुश्किल मालूम हुई। दरअसल इन राज्यों की ग्रामीण महिलाएं किसी बाहरी व्यक्ति को अपना नाम बताने से कतरातीं थीं। इस वजह से इन राज्यों की क़रीब 28 लाख महिलाओं ने अपने नाम नहीं बताए और वो चुनाव में शामिल नहीं हो सकीं।

भारत के पहले चुनाव के दौरान अशिक्षा सबसे बड़ी समस्या थी। क़रीब 15 फीसदी भारतीय ही उस दौर में शिक्षित थे। ज़्यादातर मतदाता किसी उम्मीदवार का नाम पढ़ कर वोट देने में सक्षम नहीं थे। चुनाव आयोग के सामने ये सबसे गंभीर समस्या थी। हालाँकि चुनाव आयुक्त सुकुमार सेन ने इस समस्या का भी हल ढूंढ़ लिया। चुनाव आयोग ने हर पार्टी और उम्मीदवार के लिए एक निर्धारित रंग की मतपेटी तैयार की। ताकि आम आदमी रंग और चुनाव चिन्ह के आधर पर उम्मीदवार की पहचान करले और वोट डाले। चुनाव आयोग ने मतदान के लिए लगभग दो करोड़ लोहे की मतपेटियां भी बनवाईं थी। लोकसभा के पहले चुनाव में मताधिकार का अधिकार 21 वर्ष से अधिक उम्र वाले लोगों को ही दिया गया।

आज़ाद भारत में पहली बार चुनाव होना था। दुनिया भर की निगाहें भारत के इस चुनाव पर टिकी हुई थी। साथ ही अमेरिका, जर्मनी और ब्रिटेन जैसे देशों के अधिकारी भी भर में मौजूद थे। तमाम तैयारियों और 2 बार चुनावों को खारिज़ करने के बाद आख़िरकार 25 अक्टूबर 1951 को मतदान शुरू हो गए। ये आज़ाद भारत का पहला चुनाव था।

पहले लोकसभा चुनाव में क़रीब 4500 सीटों पर चुनाव हुए, जिसमें लोकसभा की 489 सीटों के अलावा अन्य राज्यों की विधानसभा सीटें शामिल थी। पहले लोकसभा चुनाव के लिए लगभग 22 हज़ार से भी अधिक पोलिंग पोलिंग बूथ बनाये गए। चुनाव प्रक्रिया को समझाने और मतदान करने की जागरूकता के लिए चुनाव आयोग ने रेडियो और फिल्मों का सहारा लिया। चुनाव प्रक्रिया को समझने के लिए एक डॉक्यूमेंट्री भी बनवाई गई जिसे देश के क़रीब 3 हजार से अधिक थियेटरों में कई हफ़्तों तक नि:शुल्क दिखाया गया।

25 अक्टूबर 1951 को शुरू हुआ मतदान फरवरी 1952 तक चला था। भारत में पहली बार लगभग 17 करोड़ पुरूषों और महिलाओं ने मताधिकार का इस्तेमाल किया गया था। 53 राजनीतिक दलों के करीब 1874 उम्मीदवारों ने पहली लोकसभा चुनाव में अपनी किस्मत आजमाई। लोकसभा के पहले आम चुनाव में 14 राष्ट्रीय स्तर और बाकी क्षेत्रीय पार्टियां शामिल थी।

लोकसभा के पहले आम चुनाव में रहीं मुख्य राजनीतिक पार्टियों में कांग्रेस, भारतीय जनसंघ, सोशलिस्ट पार्टी और कम्युनिस्ट पार्टी के अलावा किसान मज़दूर प्रजा पार्टी शामिल थी। स्वतंत्रता आंदोलन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाली कांग्रेस पार्टी 489 में से कुल 364 सीटें जीतने में कामयाब रही। कांग्रेस को कुल वोटों में से क़रीब 45 फीसदी वोट मिला था। उस वक़्त कांग्रेस की ओर से जवाहरलाल नेहरू, लाल बहादुर शास्त्री और गुलजारी लाल नंदा जैसे नेता कांग्रेस के चुनाव प्रचार में शामिल थे। जवाहरलाल नेहरू उत्तर प्रदेश की फूलपुर सीट से चुनाव लड़ा था और वो भारी मतों से विजयी होकर भारत के पहले प्रधानमंत्री बने।

1952 का चुनाव पूरी दुनिया में लोकतंत्र के इतिहास के लिए मील का पत्थर साबित हुआ। पहले लोकसभा चुनाव में 3 लाख से अधिक चुनाव अधिकारीयों और चुनाव कर्मियों को चुना गया। आज़ाद हिन्दुस्तान के पहले लोकसभा के देश के किसी भी कोने से हिंसा की खबर नहीं आई और चुनाव शांतिपूर्वक संपन्न हो गए।

इलेक्शन नामा की अगली कड़ी में हम आपको बताएंगे कि अब तक हो चुके कुल 16 लोकसभा चुनावों की और साथ ही ज़िक्र करेंगे चुनावों के दौरान हुई कुछ महत्वपूर्ण सियासी उठापटक की...