Home > DNS

Blog / 19 Jul 2020

(डेली न्यूज़ स्कैन - DNS हिंदी) डॉल्फिन जनगणना रिपोर्ट 2020 (Dolphin Census Report 2020)

image


(डेली न्यूज़ स्कैन - DNS हिंदी) डॉल्फिन जनगणना रिपोर्ट 2020 (Dolphin Census Report 2020)



हाल ही में, मध्य प्रदेश राज्य के वन विभाग ने नई डॉल्फिन जनगणना रिपोर्ट जारी की. इस रिपोर्ट के मुताबिक, 425 किलोमीटर लंबे राष्ट्रीय चंबल अभयारण्य में मात्र 68 डॉल्फिन बची हैं. यह राष्ट्रीय चंबल अभयारण्य भारत के 3 राज्यों - मध्य प्रदेश उत्तर प्रदेश और राजस्थान से होकर गुजरती हैं।

डीएनएस में आज हम आपको डॉल्फिन के बारे में बताएंगे और साथ ही, समझेंगे इससे जुड़े कुछ दूसरे अहम पहलुओं को भी…..

डॉल्फिन एक मछली होती है जिसकी आँखें अल्पविकसित (Rudimentary) होती हैं। ‘शिकार करने’ से लेकर ‘सर्फिंग’ तक की सभी प्रक्रियाओं में डॉल्फिन पराश्रव्य ध्वनि तरंगों यानी अल्ट्रासोनिक साउंड वेव्स का इस्तेमाल करती है। बता दें कि नदी और समुद्र की लहरों के साथ तैरने की क्रिया को 'सर्फिंग' कहते हैं और ऐसी ध्वनि तरंगे जिनकी आवृत्ति 20000 हद से ज्यादा होती हैं उन्हें पराश्रव्य ध्वनि तरंगे कहा जाता है. इंसान इन तरंगों को नहीं सुन सकता है. डॉल्फिन तेज़ी से बढ़ते शिकार को पकड़ने के लिये शंक्वाकार दाँतों का इस्तेमाल करती है। इनकी सुनने की क्षमता काफी गजब की होती है और यह हवा और पानी दोनों माध्यमों में बहुत अच्छे तरीके से सुन सकती हैं।

डॉल्फिन को टिकाऊ आवास के लिये नदी में कम-से-कम 3 मीटर गहराई और 266.42-289.67 क्यूबिक मीटर प्रति सेकंड का जल प्रवाह होना जरूरी है। चंबल नदी डॉल्फिन की एक दुर्लभ प्रजाति प्लैटनिस्टा गैंगेटिका का निवास स्थान है. IUCN की रेड लिस्ट में डॉल्फिन को लुप्तप्राय (Endangered) जीव की श्रेणी में रखा गया है। गंगा डॉल्फिन हमारा राष्ट्रीय जलीय पशु है.

साल 1985 में पहली बार उत्तर प्रदेश के इटावा के पास चंबल नदी में डॉल्फिन दिखाई पड़ी थी। उस वक्त इनकी तादाद 110 से ज्यादा थी लेकिन अवैध शिकार के चलते डॉल्फिन की संख्या में काफी कमी आई है। मौजूदा वक्त में, अवैध शिकार के अलावा डॉल्फिन का प्रतिकूल आवास भी उनकी संख्या कम होने का एक कारण है. प्रतिकूल आवास की समस्या के चलते इस चंबल नदी में ना केवल डॉल्फिन बल्कि घड़ियालों की संख्या पर भी बुरा असर पड़ा है।

मध्य प्रदेश वन विभाग की हालिया डॉल्फिन जनगणना रिपोर्ट जून, 2020 के अंतिम सप्ताह में सार्वजनिक की गई। डॉल्फिन जनगणना रिपोर्ट के मुताबिक, पिछले चार सालों में चंबल नदी में डॉल्फिन की तादाद में 13 फ़ीसदी की कमी आई है। गौरतलब है कि साल 2016 में चंबल में डॉल्फिन की तादाद 78 थी। साल 2016 से ही डॉल्फिन की संख्या में लगातार कमी होती जा रही है। देहरादून स्थित भारतीय वन्यजीव संस्थान के डॉल्फिन शोधकर्त्ताओं के मुताबिक चंबल नदी में अधिकतम 125 डॉल्फिंस को रखा जा सकता है।

राष्ट्रीय चंबल अभयारण्य की स्थापना साल 1979 में चंबल नदी की 425 किलोमीटर की लंबाई के साथ की गई थी। इसे राष्ट्रीय चंबल घड़ियाल वन्यजीव अभयारण्य भी कहा जाता है। यह उत्तर भारत में ‘गंभीर रूप से लुप्तप्राय’ घड़ियाल, रेड क्राउन्ड रूफ कछुए (Red-Crowned Roof Turtle) और लुप्तप्राय गंगा डॉल्फिन के संरक्षण के लिये 5,400 वर्ग किमी. में फैला एक क्षेत्र है. यह क्षेत्र 3 राज्यों में फैला हुआ है. यह अभयारण्य भारत के वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972 के अंतर्गत एक संरक्षित क्षेत्र है। इस अभयारण्य परियोजना का प्रबंधन उत्तर प्रदेश वन विभाग के वन्यजीव विंग द्वारा किया जाता है और इसका मुख्यालय आगरा में है।

साल 2006 में, सुप्रीम कोर्ट की ‘सेंट्रल एम्पावर्ड कमेटी’ यानी CEC ने चंबल नदी की वनस्पतियों और जीवों को बचाने के लिये अभयारण्य क्षेत्र में खनन बंद करने का आदेश दिया था लेकिन अवैध रेत खनन और जल का मनमाना उपभोग चंबल नदी के पूरे पारिस्थितिकी तंत्र पर बुरा असर डाल रही है। गौरतलब है कि चंबल नदी तीन राज्यों - मध्य प्रदेश, उत्तरप्रदेश, राजस्थान - की एक जीवन रेखा है। जहाँ इसके जल का हर रोज इस्तेमाल किया जाता है। वहीँ मध्यप्रदेश के भिंड एवं मुरैना और राजस्थान के धौलपुर में अवैध बालू खनन का धंधा जारी है। विशेषज्ञों का कहना है कि इस पूरे क्षेत्र के पारिस्थितिक तंत्र को बचाए रखने के लिए अवैध खनन पर नियंत्रण लगाना ही होगा.