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Blog / 17 Jul 2020

(डेली न्यूज़ स्कैन - DNS हिंदी) भारत में घटता कुपोषण (Declining Malnutrition in India)

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(डेली न्यूज़ स्कैन - DNS हिंदी) भारत में घटता कुपोषण (Declining Malnutrition in India)



संयुक्त राष्ट्र ने हाल ही में एक रिपोर्ट जारी की। इस रिपोर्ट के मुताबिक़ भारत में पिछले एक दशक में अल्पपोषित लोगों की संख्या छह करोड़ तक घट गई है। इस रिपोर्ट में बताया गया कि साल 2004 से 2006 तक यह दर 21.7 प्रतिशत थी जो साल 2017-19 में घटकर यह दर 14 फीसदी हो गई। बीते सोमवार को जारी, ‘विश्व में खाद्य सुरक्षा एवं पोषण स्थिति रिपोर्ट’ में बताया गया कि बच्चों में बौनेपन की समस्या कम हो गई है लेकिन देश के वयस्कों में मोटापा बढ़ रहा है।

भूख एवं कुपोषण को समाप्त करने की दिशा में होने वाली प्रगति पर नजर रखने वाली यह सबसे आधिकारिक वैश्विक अध्ययन माना जाता है। इस रिपोर्ट के अनुसार भारत में अल्पपोषित लोगों की संख्या 2004-06 के 24.94 करोड़ से घटकर 2017-19 में 18.92 करोड़ रह गई। दो उन उपक्षेत्रों में जिनमें अल्पपोषण में कमी दिखाई दी है उनमे पूर्वी एवं दक्षिण एशिया उपक्षेत्र अहम् हैं। इन उपक्षेत्रों में भी एशिया महाद्वीप की दो सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाओं- चीन और भारत का वर्चस्व कायम है ।” इस रिपोर्ट को संयुक्त राष्ट्र के खाद्य एवं कृषि संगठन (एफएओ), अंतरराष्ट्रीय कृषि विकास कोष (आईएएफडी) , संयुक्त राष्ट्र बाल कोष (यूनिसेफ), संयुक्त राष्ट्र विश्व खाद्य कार्यक्रम (डब्ल्यूएफपी) और विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) की ओर से संयुक्त रूप से तैयार किया गया है। इसमें यह भी कहा गया कि भारत में पांच साल से कम उम्र के बच्चों में बौनेपन की समस्या भी 2012 में 47.8 प्रतिशत से घटकर 2019 में 34.7 प्रतिशत रह गई यानि 2012 में यह समस्या 6.2 करोड़ बच्चों में थी जो 2019 में घटकर 4.03 करोड़ रह गई। रिपोर्ट में कहा गया कि ज्यादातर भारतीय वयस्क 2012 से 2016 के बीच मोटापे के शिकार हुए। मोटापे से ग्रस्त होने वाले वयस्कों की संख्या 2012 के 2.52 करोड़ से बढ़कर 2016 में 3.43 करोड़ हो गई यानि 3.1 प्रतिशत से बढ़कर 3.9 प्रतिशत हो गई।

वहीं खून की कमी (अनीमिया) से प्रभावित प्रजनन आयु वर्ग (15-49) की महिलाओं की संख्या 2012 में 16.56 करोड़ से बढ़कर 2016 में 17.56 करोड़ हो गई। 0-5 माह के शिशु जो पूरी तरह स्तनपान करते हैं उनकी संख्या 2012 के 1.12 करोड़ से बढ़कर 2019 में 1.39 करोड़ हो गई। रिपोर्ट में कहा गया कि 2019 में दुनिया भर में करीब 69 करोड़ लोग अल्पपोषित (या भूखे) थे। यह संख्या 2018 के मुकाबले एक करोड़ ज्यादा है। एशिया में भूखों की संख्या सबसे ज्यादा है लेकिन यह अफ्रीका में भी तेजी से बढ़ रही है।

आंकड़ों पर गौर करें तो इस रिपोर्ट में कोरोना जैसी वैश्विक महामारी ने भी इस रिपोर्ट के आंकड़ों पर व्यापक असर डाला है। रिपोर्ट में यह अनुमान लगाया गया है की कोविड-19 वैश्विक महामारी के कारण दुनिया भर में 2020 के आखिर तक 13 करोड़ और लोग भुखमरी की किल्लत से जूझते दिखाई देंगे ।

प्रतिशत के हिसाब से, अफ्रीका सबसे अधिक प्रभावित क्षेत्र है जहां के 19.1 प्रतिशत लोग अल्पपोषित हैं। मौजूदा चलन के लिहाज से देखें तो 2030 तक, अफ्रीका में आधे से ज्यादा लोग विश्व के लंबे समय से भूखे रहने वाले लोग हो जाएंगे। कोविड-19 वैश्विक खाद्य प्रणालियों की अपर्याप्तता और संवेदनशीलता को बढ़ा रहा है क्योंकि सभी गतिविधियां एवं प्रक्रियाएं खाद्य उत्पादन, वितरण एवं उपभोग को प्रभावित कर रही हैं। रिपोर्ट में कहा गया, “अभी लॉकडाउन एवं अन्य रोकथाम उपायों के पूर्ण प्रभाव को आंकना बहुत जल्दबाजी होगी, लेकिन रिपोर्ट का अनुमान है कि 2020 में कम से कम और 8.3 करोड़ लोग और संभवत: 13.2 करोड़ लोग कोविड-19 के कारण आई आर्थिक मंदी के परिणामस्वरूप भूख का शिकार हो सकते हैं।” साथ ही यह भी कहा गया कि इस झटके ने सतत विकास लक्ष्य दो की कामयाबी पर भी सवालिया निशाँ लगा दिए हैं। सतत विकास लक्ष्य दो भुखमरी को पूरी तरह ख़त्म करने के लिए है । हालिया अनुमान हैं कि करीब तीन अरब लोग या उससे अधिक स्वस्थ आहार ले पाने में असमर्थ हैं। उप-सहारा अफ्रीका और दक्षिणी एशिया में यह उसकी 57 प्रतिशत आबादी के साथ है हालांकि उत्तरी अमेरिका और यूरोप समेत कोई भी क्षेत्र इससे अछूता नहीं है।

सेहतमंद शरीर के लिये ज़रूरी पोषक पदार्थों की मात्रा जब किसी वज़ह से उपलब्ध नहीं हो पाती है तो इंसान अल्पपोषण का शिकार हो जाता है। इसलिये रोज़ के खाने में मात्रा के साथ-साथ उसमें गुणवत्ता का होना भी ज़रूरी है। इसका सीधा सीधा मतलब है कि भोजन में ज़रूरी कैलोरी की मात्रा के साथ-साथ प्रोटीन, विटामिन और खनिज भी पर्याप्त मात्रा में मौजूद होने चाहिये।

बच्चों में और वयस्कों में बढ़ता मोटापे के लिए रोज़मर्रा में इस्तेमाल होने वाले जंक फ़ूड और फास्ट फ़ूड काफी हद तक ज़िम्मेदार हैं। भारत के शहरी इलाके इस समस्या से जूझते हुए ज़्यादा दिखाई देते हैं। बर्गर पिज़्ज़ा चाइनीज़ फ़ूड और अधिक तेल मसाले वाले खाने का सेवन मोटापा ज़्यादा बढ़ा रहा है। नै युवा पीढ़ी की भागदौड़ भरी ज़िंदगी और कार्यशैली भी बढ़ते मोटापे के लिए बहुत हद तक ज़िम्मेदार है। जहां कुपोषण और अल्पपोषण के लिए सरकारी योजनाओं की बाढ़ है तो वहीं मोटापे की समस्या के लिए कोई भी उपा नहीं किया जा रहा है।