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Blog / 22 Jul 2019

(डेली न्यूज़ स्कैन - DNS हिंदी) दलाई लामा : नया उत्तराधिकारी (Dalai Lama: New Heir)

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(डेली न्यूज़ स्कैन - DNS हिंदी) दलाई लामा : नया उत्तराधिकारी (Dalai Lama: New Heir)


मुख्य बिंदु:

भारत और चीन के बीच दलाई लामा को लेकर विवाद जारी है। भारत और चीन के बीच मौजूदा विवाद तिब्बती आध्यात्मिक धर्म गुरु दलाई लामा के नए उत्तराधिकारी को लेकर चल रहा है। दरअसल 84 साल के दलाई लामा के स्वास्थ्य कारणों को देखते हुए अब दलाई लामा के नए उत्तराधिकारी की बात चल रही है। बीते दिनों दलाई लामा के उत्तराधिकारी के चयन को लेकर चीन ने दिए कुछ बयान दिए है। चीन के मुताबिक़ नये उत्तराधिकारी का चयन चीन से ही होना चाहिए। भारत अगर इसमें कोई दखल देता है तो इसका सीधा असर द्विपक्षीय सम्बन्धो पर पड़ेगा।

चीन के वरिष्ठ अधिकारियों का कहना ये भी है कि दलाई लामा के उत्तराधिकारी को चीन सरकार की मान्यता मिलनी चाहिए। चीनी अधिकारीयों के मुताबिक़ दलाई लामा का चयन 200 साल पुरानी प्रक्रिया है और ये चीन के लिए अहम् मुद्दा भी है जिसमे किसी के निजी विचारों या किसी अन्य देश में रह रहे लोगो के समूह द्वारा कोई फैसला नहीं लिया जायेगा।

DNS में आज हम आपको दलाई लामा के नए उत्तराधिकारी को लेकर जारी विवाद के बारे में बताएंगे। साथ ही समझेंगे इससे जुड़े कुछ और भी महत्वपूर्ण पहलुओं के बारे में ...

दलाई लामा... जिन्हें तिब्बती बौद्धों के आध्यात्मिक, धार्मिक और राजनीतिक गुरु के रूप में देखा जाता हैं। दरअसल दलाई लामा दो शब्दों से मिल कर बना है जिसमें दलाई और लामा शब्द शामिल हैं। एक और जहां दलाई मंगोल भाषा का शब्द है और इसका मतलब समुद्र या बड़ा होता है तो वहीं तिब्बती समुदाय के अनुसार लामा गुरु शब्द का मूल रूप है। दलाई लामा को सबसे सर्वश्रेष्ठ भी माना जाता है। दलाई लामा के लिए ये भी कहा जाता है कि वो राजनीतिक और आध्यात्मिक दोनों ही रूप से सबका मार्गदर्शन करते है। लाखों लोगों की आस्था के प्रतीक माने जाने वाले मौजूदा दलाई लामा यानी तेनज़िन ग्यात्सो 14 वें तिब्बती बौद्ध धर्मगुरु है। मौजूदा दलाई लामा तेनज़िन ग्यात्सो का जन्म 6 जुलाई 1935 को उत्तरपूर्वी तिब्बत में हुआ था जिनकी अब स्वास्थ्य मुश्किलों को देखते हुए पिछले कई सालों से उनके उत्तराधिकारी के चयन का मुद्दा चर्चा में है।

चीन के मुताबिक़ दलाई लामा का चयन एक ऐतिहासिक, धार्मिक और राजनीतिक मुद्दा है। चीन में दलाई लामा के उत्तराधिकारी के लिए ऐतिहासिक संस्थान व औपचारिकताएं मौजूद हैं और मौजूदा दलाई लामा को चीन मान्यता भी मिली हुई है। बीते दिनों तिब्बत स्वायत्त क्षेत्र की सरकार में महानिदेशक वांग ने कहा है कि मौजूदा दलाई लामा को बीजिंग ने मान्यता दी है और उनके उत्तराधिकारी की खोज ‘स्वर्ण पात्र में ड्रॉ निकालने की प्रक्रिया’ के तहत ही होनी चाहिए।

जानकारों के मुताबिक़ चीन चाहता है कि अगले दलाई लामा चीन के हों। जबकि दलाई लामा चीन से हो ऐसी कोई शर्त नहीं है। इससे पहले 6ठें दलाई लामा भारत से ताल्लुक़ रखते थे और कई दलाई लामा का मंगोलिया से भी सम्बन्ध रहा है। मौजूदा दलाई लामा को भारत ने शरण दी है। 14 वें दलाई लामा हिमाचल प्रदेश की धर्मशाला में 1959 से ही रह रहे हैं। भारतीय विदेश मंत्रालय के मुताबिक़ दलाई लामा भारत में काफी लोकप्रिय धार्मिक नेता हैं। मौजूदा दलाई लामा को भारत में किसी भी धार्मिक काम के लिए पूरी तरह से इजाज़त मिली हुई है। भारत तिब्बती बौद्धों की परंपरा का सम्मान करते हुए उन्हें स्वयं से दलाई लामा का चुनाव करने का हिमायती रहा है जबकि चीन हमेशा से दलाई लामा के चयन में अपनी भूमिका बनाए रखना चाहता है। इसके अलावा दलाई लामा की भारत में आवाजाही को लेकर भी चीन भारत को हिदायतें देता आया है। चीन का कहना है कि भारत दलाई लामा को अरुणाचल प्रदेश के तवांग क्षेत्र में जाने की इजाज़त न दे वरना इसका असर दोनों देशों के सम्बन्धो पर पड़ेगा।

दरअसल चीन अरुणाचल प्रदेश को तिब्बत का एक हिस्सा बताता है। 17वीं सदी में अरुणाचल प्रदेश के तवांग ज़िले में पैदा हुए छठवें दलाई लामा के आधार पर चीन अरुणाचल प्रदेश पर अपना दावा करता है और इसे दक्षिणी तिब्बत कहता है। जबकि भारत चीन के इस दावे को क्षेत्रीय अखंडता और सम्प्रभुता में दखलअंदाज़ी बताता रहा है |

ग़ौरतलब है कि 1955 में चीन ने तिब्बत पर चढ़ाई की थी। इस घटना के बाद चीन ने तिब्बत को अपना अभिन्न अंग माना और उससे 17 सूत्रीय समझौता करते हुए उसे अर्ध स्वायत्तता प्रदान की। इस घटना के तीन साल बाद चीन ने माओ के निर्देश पर एक बार फिर 1958 में तिब्बत पर सैन्य कार्रवाई को अंजाम दिया गया। ऐसे में 21 वर्षीय 14वें दलाई लामा को तिब्बत छोड़ने पर मज़बूर होना पड़ा था।

30 मार्च, 1959 को दलाई लामा अपने क़रीब डेढ़ लाख अनुयायियों के साथ भारत पहुंचे थे। 1959 में भारत आए दलाई लामा को भारत ने राजनीतिक शरण दी साथ ही उनकी निर्वासित सरकार को मान्यता भी दी थी। तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू ने दलाई लामा को सुरक्षा का पूर्ण आश्वासन दिया और उन्हें हिमाचल प्रदेश के धर्मशाला में अपना मुख्य केंद्र बनाने की इजाज़त दी।

दलाई लामा ने कई काम मानवता के हित में किए हैं जिसके लिए उन्हें 1989 में उन्हें शांति के लिए नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया। उन्होनें आज भी तिब्बत की आज़ादी के लिए अहिंसक लड़ाई चीन के खिलाफ जारी रखी है जबकि चीन तिब्बत पर अपना पूरा नियंत्रण चाहता है।

दरअसल तिब्बत सामरिक रूप से भारत और चीन दोनों ही देशों के लिए काफी महत्वपूर्ण है। इसके अलावा तिब्बत से ही ब्रह्मपुत्र नदी का उद्गम भी है जिसके जल पर चीन अपना दावा करता है।

भारत ने 29 अप्रैल, 1954 को चीन तिब्बत विवाद के समाधान के लिए पंचशील समझौते का प्रस्ताव पेश किया था। पंचशील के मुताबिक़ दोनों देश एक दूसरे की प्रादेशिक अखंडता और पारस्परिक संप्रभुता का सम्मान करेंगे, साथ ही दोनों देश एक दूसरे पर आक्रमण भी नही करेंगे। इसके अलावा एक दूसरे के आंतरिक मामले में हस्तक्षेप ना करना, समानता और पारस्परिक लाभ की मानसिकता रखना और शांतिपूर्ण सहअस्तित्व पर बल देने जैसे समझौते भारत और चीन के बीच हुए पंचशील समझौते में शामिल थे।

आज पंचशील नाक़ाम ज़रूरी हो गया है लेकिन भारत आज भी चीन से ये अपेक्षा करता है कि पंचशील के पांच बिंदुओं का वो अपने अंतर्राष्ट्रीय आचरण के दौरान पालन करे तो तिब्बत विवाद जैसे कई और भी मसलों के समाधान आसानी से किए जा सकते हैं। पंचशील समझौतों के ज़रिए न सिर्फ डोकलाम, तवांग, नाथूला , कैलाश मानसरोवर और लेह व लद्दाख जैसे विवादों का हल निकल आएगा बल्कि ओबोर, मैरिटाइम सिल्क रूट और तिब्बत पर कब्जे जैसी चीन की मानसिकता पर लगाम लग जायेगा।