Home > DNS

Blog / 16 May 2020

(डेली न्यूज़ स्कैन - DNS हिंदी) चक्रवाती तूफान अम्फान (Cyclone Amphan)

image


(डेली न्यूज़ स्कैन - DNS हिंदी) चक्रवाती तूफान अम्फान (Cyclone Amphan)



राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली समेत देश के कई इलाकों में मूसलाधार बारिश हुई...इसके साथ आंधी और तेज़ हवाएं भी चलीं.. इसकी वजह बंगाल की खाड़ी के दक्षिण पूर्व भाग में निम्न दबाव का क्षेत्र बनना बताया जा रहा है....गौरतलब है की इसकी वजह से 16 मई को 'चक्रवाती तूफान' के आने की गुंजाईश है....इस चक्र वाती तूफान को अम्फान (Amphan) नाम दिया गया है....अम्फान नाम थाईलैंड द्वारा दिया गया है.....

आज के DNS में हम जानेंगे अम्फान चक्रवात के बारे में साथ ही जानेंगे की कैसे पैदा होते हैं ये चक्रवात और इनका नाम कैसे रखा जाता है...

अम्फान चक्रवात बंगाल की खाड़ी के दक्षिणी पूर्वी भाग में बनने के आसार नज़र आ रहे हैं...मौसम विभाग के मुताबिक़ बंगाल की खड़ी के दक्षिणी पूर्वी भाग में निम्न दाबाव क्षेत्र बन रहा है जो धीरे धीरे एक बड़े डिप्रेशन का रूप ले लेगा और बाद में एक पूर्ण चक्रवात बन जायेगा ...

स्काईमेट वेदर के मुताबिक बंगाल की खाड़ी में मौसमी स्थितियां और वायुमंडलीय स्थितियां अनुकूल दिख रही हैं, इसलिए संभावना है कि अगले 24-48 अड़तालीस घंटों में यह सिस्टम प्रभावी होते हुए डिप्रेशन का रूप ले लेगा....16 मई की शाम तक दक्षिण-मध्य और उससे सटे पश्चिमी बंगाल की खाड़ी पर एक 'चक्रवाती तूफान' उभर कर सामने आ जायेगा....

मौसम विभाग के मुताबिक़ यह तूफान विकसित होने पर पहले 17 मई को उत्तर और उत्तर-पूर्व की ओर बढ़ेगा और फिर इसके उत्तर-पश्चिम की ओर बढ़ने के आसार है....आने वाले 48 अड़तालीस घंटों में इसके बारे में और सटीक अनुमान लग सकेगा कि 'चक्रवात' की दिशा क्या होगी....मौसम विभाग की माने तो यह' चक्रवात' मानसून के जल्द आने में मददगार साबित होगा....

अम्फान चक्रवात इस साल का पहला 'चक्रवाती तूफान' होगा .....16 मई को इस चक्रवात से अंडमान-निकोबार द्वीप समूह में कई जगहों पर भारी बारिश होने के आसार हैं.....चक्रवात अम्फान के मद्देनज़र केरल में येलो अलर्ट जारी किया गया है....इस चक्रवात से दक्षिण व मध्य बंगाल की खाड़ी में 15 मई को 55 पचपन से 65 पैंसठ किमी प्रति घंटे की गति से और 16 मई को 75 पचहतर किमी प्रति घंटा की गति से हवाएं चलने के आसार हैं....

भारतीय मौसम विभाग की माने तो आगामी दिनों में देश के कई राज्यों में अभी बारिश का सिलसिला जारी रहेगा.....इसमें कई जगहों पर बारिश और वज्रपात के साथ साथ ओलावृष्टि होने की गुंजाईश हैं.....इस दौरान 40 से 60 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से हवाएं भी चल सकती है....भारतीय मौसम विभाग ने दिल्ली, एनसीआर, हरियाणा, पंजाब, उत्तर प्रदेश, बिहार, मणिपुर, त्रिपुरा, मेघालय, पश्चिम बंगाल, सिक्किम, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, केरल, कर्नाटक, मध्य महाराष्ट्र, उत्तरी ओड़िशा, अंडमान निकोबार, जम्मू कश्मीर, लद्दाख, राजस्थान, तटीय आंध्र प्रदेश, आंतरिक तमिलनाडु में भारी बारिश होने की आशंका जताई है....

उत्तरी गोलार्द्ध में ये चक्रवात घड़ी की सुइयों की विपरीत दिशा में (Counter-Clockwise) तथा दक्षिणी गोलार्द्ध में घड़ी की सुइयों की दिशा (Clockwise) में चलते हैं। उत्तरी गोलार्द्ध में इसे हरिकेन, टाइफून आदि नामों से जाना जाता है।

उष्ण कटिबंधी चक्रवात

भारत में अरब सागर और बंगाल की खाड़ी से ही ज़्यादातर तूफ़ान पैदा होते है। इन तूफानों को उष्णकटिबंधीय चक्रवात कहा जाता है। भारतीय उपमहाद्वीप के आस-पास उठने वाले तूफान घड़ी की सुईयों की दिशा में आगे बढ़ते हैं। उष्णकटिबंधीय चक्रवात एक ऐसा तूफान है जिसके बीच में काफी कम दबाव का क्षेत्र होता है ....चक्रवात के आने के साथ बिजली कड़कने के साथ तेज़ हवाएं चलती हैं और भारी बारिश होती है....उष्णकटिबंधीय चक्रवात तब पैदा होता है जब नम हवा ऊपर उठती है....नम हवा के ऊपर उठने से गर्मी पैदा होती है...इस गर्मी की वजह से हवा की नमी का संघनन होता है और बादल बनते हैं जिससे बारिश होती है।

उष्ण कटिबंधीय चक्रवात या ट्रॉपिकल साइक्लोन आम तौर पर 30° उत्तरी एवं 30° दक्षिणी अक्षांशों के बीच पैदा होते हैं । इसकी वजह इन अक्षांशों में इन चक्रवातों के पैदा होने के लिए सही स्थितियां पाया जाना है ...

भूमध्य रेखा या इक्वेटर पर कम दबाव होने के बावजूद कोरिओलिस बल न के बराबर होता है ।इसकी वजह से हवाएं वृत्ताकार रूप में नहीं चलतीं,और चक्रवात नहीं बन पाते । दोनों गोलार्द्धों में 30° अक्षांश के बाद ये हवाएं पछुआ पवनों के प्रभाव में आकर स्थल पर पहुँचकर ख़त्म हो जाती हैं। आम तौर पर उष्ण कटिबंधीय चक्रवात बनने के लिए समुद्री सतह का तापमान 27°C से ज़्यादा होना चाहिए , कोरिओलिस बल का असर होना चाहिए , ऊपर चलने वाली हवा न के बराबर हो आदि...

चक्रवातों का नामकरण

हिंद महासागर क्षेत्र के आठ देश जिनमे बांग्लादेश, भारत, मालदीव, म्याँमार, ओमान, पाकिस्तान, श्रीलंका और थाइलैंड शामिल हैं एक साथ मिलकर आने वाले चक्रवातों के नाम तय करते हैं....जैसे ही चक्रवात इन आठों देशों के किसी भी हिस्से में पहुँचता है, सूची से अगला या दूसरा सुलभ नाम इस चक्रवात का रख दिया जाता है....इस प्रक्रिया के चलते तूफ़ान को आसानी से पहचाना जा सकता है और बचाव अभियानों में भी मदद मिलती है....आम तौर पर किसी भी नाम को दोहराया नहीं जाता है....हर देश उन दस नामों की एक सूची तैयार करता है जो उन्हें चक्रवात के नाम के लिये ठीक लगते हैं...शासी निकाय या RSMC हर देश द्वारा सुझाए गए नामों में आठ नामों को चुनता है और उसके अनुसार आठ सूचियाँ तैयार करता है जिनमें शासी निकाय द्वारा अनुमोदित नाम शामिल होते हैं....साल 2004 से चक्रवातों को RSMC द्वारा अनुमोदित सूची के अनुसार नामित किया जाता है।

चक्रवातों का नाम रखने का सिलसिला कब शुरू हुआ

1900 के मध्य में समुद्री चक्रवाती तूफान का नाम रखने की शुरुआत हुई । नाम रखने का मकसद तूफ़ान से होने वाले खतरे के बारे में लोगों को समय रहते आगाह करना , और सरकार और लोगों द्वारा तूफ़ान आने पर बेहतर प्रबंधन और तैयारियाँ का मौका देना था । लेकिन इस दौर में नामकरण की प्रक्रिया व्यवस्थित नही थी। जानकारों के मुताबिक़ नामकरण की विधिवत प्रक्रिया बन जाने के बाद से यह ध्यान रखा जाता है कि चक्रवाती तूफानों का नाम आसान और याद रखने लायक होना चाहिये । 1950 के मध्य में नामकरण के क्रम को और भी क्रमवार ढंग से रखने के मकसद से अंग्रेज़ी वर्णमाला के शब्दों के इस्तेमाल पर ज़ोर दिया। 1953 से मायामी नेशनल हरीकेन सेंटर और वर्ल्ड मेटीरियोलॉजिकल ऑर्गनाइज़ेशन (WMO) तूफानों और उष्णकटिबंधीय चक्रवातों के नाम रखता आ रहा है। WMO जेनेवा स्थित संयुक्त राष्ट्र संघ की एक संस्था है। पहले उत्तरी हिंद महासागर में उठने वाले चक्रवातों का कोई नाम नहीं रखा जाता था क्योंकि ऐसा करना विवादास्पद काम था। इसकी वजह यह थी की इस क्षेत्र में अलग धर्म और जातियों के लोग थे इसलिए किसी एक के मुताबिक़ नाम रखना दिक्कत पैदा कर सकता था।