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Blog / 22 Jul 2020

(डेली न्यूज़ स्कैन - DNS हिंदी) ईरान और चीन के गहराते रिश्ते (China-Iran Proximity and India's Concerns)

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(डेली न्यूज़ स्कैन - DNS हिंदी) ईरान और चीन के गहराते रिश्ते (China-Iran Proximity and India's Concerns)



अमरीकी अख़बार न्यूयॉर्क टाइम्स की एक रिपोर्ट के मुताबिक, ईरान और चीन में एक महात्वाकांक्षी, रणनीतिक और व्यापारिक समझौता हुआ है. दोनों देशों के बीच हुआ समझौता अगले 25 सालों तक के लिए वैध माना जाएगा. डील को अभी ईरान की संसद 'मजलिस' से मंज़ूरी नहीं मिली है और न ही इसे सार्वजनिक किया गया है. लेकिन खबरों के मुताबिक यह समझौता लगभग अपने अंतिम चरण में है. इसे बस औपचारिक जामा पहनाना ही रह गया है.

डीएनएस में आज हम जानेंगे इस समझौते के बारे में और साथ ही समझेंगे कि भारत समेत दुनिया भर पर इस समझौते का क्या असर हो सकता है?

करीब 400 अरब डॉलर की इस समझौते के तहत, ईरान चीन को अगले 25 सालों तक बेहद सस्ती दरों पर कच्चा तेल उपलब्ध कराएगा. जिसके बदले में, चीन ईरान में बड़े स्तर पर निवेश करेगा. समझौते के अनुच्छेद-6 के मुताबिक़ दोनों देश ऊर्जा, इंफ्रास्ट्रक्चर, उद्योग और तकनीक के क्षेत्र में आपसी सहयोग बढ़ाएंगे.

  • दोनों ही देशों के बीच में अगले 25 सालों के लिए आपसी सहयोग बढ़ाने पर सहमति बनी है.
  • चीन, ईरान के तेल और गैस उद्योग में 280 अरब डॉलर का निवेश करेगा.
  • चीनी पक्ष, ईरान में उत्पादन एवं परिवहन के आधारभूत ढांचे के विकास के लिए भी 120 बिलियन डॉलर का निवेश करेगा.
  • ईरान, चीन को अगले 25 सालों तक लगातार काफी सस्ते दरों पर कच्चा तेल और गैस उपलब्ध कराएगा.
  • चीन 5जी तकनीक के लिए इंफ़्रास्ट्रक्चर का निर्माण करवाने में ईरान की सहायता करेगा.
  • चीन बड़े पैमाने पर बैंकिंग, टेलिकम्युनिकेशन, बंदरगाह और रेलवे समेत दर्जनों दूसरी ईरानी प्रोजेक्ट्स में अपनी भागीदारी बढ़ाएगा.
  • दोनों देश आपसी सहयोग के जरिए साझा सैन्य अभ्यास और शोध कार्य करेंगे.
  • चीन और ईरान एक दूसरे के साथ मिलकर हथियारों का निर्माण करेंगे और एक-दूसरे से ख़ुफ़िया जानकारियां भी साझा करेंगे.

चूंकि ईरान ने चीन के साथ यह समझौता अमरीका की पाबंदियों और धमकियों को दरकिनार कर किया है, इसलिए इस समझौते का असर न सिर्फ़ अमरीका बल्कि भारत समेत बाक़ी दुनिया पर भी पड़ने के आसार जताए जा रहे हैं.

इसी बीच एक और खबर आई है कि ईरान ने चाबहार रेल प्रोजेक्ट से भारत को अलग कर दिया है. ईरान ने कहा कि भारत की ओर से फंड मिलने में देरी के चलते ईरान अब अकेले ही इस प्रोजेक्ट को पूरा करेगा. ईरान ने इस पर काम भी शुरू कर दिया है. बता दें कि ईरान और भारत के बीच चार साल पहले चाबहार से अफ़ग़ानिस्तान सीमा पर ज़ाहेदान तक रेल लाइन बिछाने को लेकर एक समझौता हुआ था. यह परियोजना भारत की मदद से पूरा होने वाला था.

मौजूदा वक्त में, अमरीका, इसराइल और सऊदी अरब जैसे ताक़तवर देश ईरान के खिलाफ खड़े हैं. अमरीकी पाबंदियों की वजह से ईरान में विदेशी निवेश लगभग ठप पड़ा है. ऐसे में, अगर चीन ईरान का सहयोगी बनता है तो ट्रंप प्रशासन द्वारा ईरान पर लगाई गई कड़ी पाबंदियां कमजोर पड़ सकती हैं. चीन की वजह से ईरान में विदेशी निवेश, तकनीक और विकास को गति मिलेगी. दूसरी तरफ़, कच्चे तेल के सबसे बड़े आयातक देश चीन को ईरान से बेहद सस्ती दरों पर तेल और गैस मिलेंगे. इसके अलावा, रक्षा मामलों में चीन की स्थिति काफ़ी मज़बूत है. इसलिए, चाहे रक्षा उत्पादों के ज़रिए हो या सामरिक क्षमता के ज़रिए, चीन दोनों तरह से ईरान की मदद कर सकता है.

दूसरी तरफ़, चीन के लिए ईरान इसलिए अहम है क्योंकि ये उसकी 'वन बेल्ट, वन रोड' परियोजना को कामयाब बनाने में सहायक साबित हो सकता है.

विशेषज्ञों का कहना है कि ये समझौता रणनीतिक रूप से बेहद अहम है और इसकी वजह से खाड़ी क्षेत्र में महत्वपूर्ण बदलाव देखने को मिल सकते हैं. दरअसल ईरान और चीन के एक साथ आने से इस इलाके में एक नया ‘पावर प्लेयर’ पहुंच गया है. पूर्वी एशिया में अभी तक खासकर अकेले अमरीका का वर्चस्व रहा है. पिछले कुछ सालों में रूस ने भी यहां कुछ हद तक पहुंच बनाई है. ये पहली बार है जब चीन ने यहां इस तरह क़दम रखा है. चीन की मौजूदगी से खाड़ी देश में सऊदी अरब की एकाधिकार को भी चुनौती मिलने की आशंका है.

विशेषज्ञों का मानना है कि इस समझौते के बाद अमरीका और पश्चिमी देशों का रुख़ ईरान के प्रति नर्म पड़ सकता है.

इस समझौते का भारत पर असर की बात करें तो अगर चीनी निवेश ईरान में आता है तो इसका नुक़सान भारत को भी होगा. दरअसल भारत, ईरान में चाबहार बंदरगाह को विकसित करना चाहता है और इसे चीन के पाकिस्तान में ग्वादर पोर्ट का जवाब माना जा रहा था. चाबहार भारत के लिए व्यापारिक और रणनीतिक रूप से भी महत्वपूर्ण है. ऐसे में चीन की मौजूदगी, भारतीय निवेश के लिए मुश्किलें पैदा कर सकती हैं.

हालांकि कुछ ईरानी विशेषज्ञ इस समझौते को लेकर तरह-तरह की आशंकाएं ज़ाहिर कर रहे हैं. दरअसल चीनी निवेश ने अफ़्रीका के केन्या और एशिया के श्रीलंका जैसे देश को कर्ज़दार बनाकर छोड़ा है. ऐसे में, लोगों को लगता है कि ईरान का हश्र भी कुछ ऐसा ही होगा. यानी इन ईरानी विशेषज्ञों को लगता है कि उनका देश अप्रत्यक्ष तौर पर चीन का उपनिवेश बन जाएगा.