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Blog / 14 Jun 2019

(डेली न्यूज़ स्कैन - DNS हिंदी) चंद्रयान 2 मिशन (Chandrayaan 2 Mission)

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(डेली न्यूज़ स्कैन - DNS हिंदी) चंद्रयान 2 मिशन (Chandrayaan 2 Mission)


मुख्य बिंदु:

चंद्रयान-1 की बड़ी सफलता के बाद, ISRO ने चंद्रयान-2 के प्रक्षेपण की तैयारी शुरू कर दी है। चंद्रयान-2 के प्रक्षेपण की तारीख़ 9 से -16 जुलाई के बीच रखी गयी है। हाल ही में ISRO के chairman K. Sivan ने बताया कि यह Spacecraft 6 सितम्बर तक चन्द्रमा पर सयुंक्त रूप से Lunar South Pole में उतरेगा जहाँ आज तक कोई Agency नहीं पहुँच पाई है।

DNS में आज हम आपको चंद्रयान-2 के बारे में बताएंगे साथ ही समझेंगे इससे जुड़े कुछ महत्वपूर्ण पहलुओं के बारे में...

ISRO यानी भारतीय अंतरिक्ष अनुसन्धान संगठन। ISRO भारत सरकार की प्रमुख अंतरिक्ष अन्वेषण एजेंसी है। इसका मुख्यालय बंगलूरू में है। ISRO का गठन 1969 में अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी के माध्यम से राष्ट्रीय विकास के लिए हुआ था। ISRO को विक्रम साराभाई और पंडित जवाहरलाल नेहरू द्वारा 1962 में स्थापित किया गया था। अपनी स्थापना के बाद ISRO ने कई महत्वपूर्ण मिशनों को पूरा किया है।

चंद्रयान-2 भारत का दूसरा Lunar exploration मिशन है जिसे geosynchronous satellite launch vehicle mark III GSLV MK iii द्वारा भेजा जाएगा। 3.8 टन द्रव्यमान वाले इस Spacecraft में तीन module हैं। ये module - Orbiter, Lander और Rover के रूप में मौजूद होंगे।

Spacecraft में मौजूद इन Modules के काम की बात करें तो - Orbiter 100 km यानि 62 मील की ऊंचाई से चन्द्रमा की परिक्रमा करेगा। इस Orbiter की संरचना का निर्माण Hindustan Aeronautics Ltd. द्वारा 2015 में किया गया और उसके बाद ISRO को भेजा गया। ये Mission Orbiter पर पांच यंत्र ले कर जाएगा जिनमे से तीन नए यंत्र हैं और दो उन्नत संस्करण हैं जिनमें से एक चंद्रयान - 1 में भी शामिल था। इसका launch द्रव्यमान लगभग 2379 kg है।

Lander की बात करे तो इस Mission के Lander का नाम Vikram है। जिसका अर्थ वीरता है, इस Lander का नाम विक्रम साराभाई के नाम पर रखा गया है, जिन्हें Indian Space Programme का जनक माना जाता है। Vikram Orbiter से अलग हो कर धीरे से एक कठोर सतह पर उतरेगा। इस बीच Orbiter चन्द्रमा के आस-पास लगभग 100 km की सतह के चारों ओर चक्कर लगाएगा और Picture लेगा। इसी के साथ-साथ ये सतह की जानकारी एकत्रित करेगा और पृथ्वी पर भेजेगा। Orbiter सौर्य ऊर्जा के ज़रिए संचालित होगा।

Vikram का प्रारंभिक विन्यास अध्ध्यन अहमदाबाद में Space Application Centre SAC द्वारा 2013 में पूरा किया गया था। Lander और Rover का सयुंक्त द्रव्यमान लगभग 1471 kg है।

अब Rover की बात करे तो इस Mission में इसको प्रज्ञान नाम दिया गया है। इसका द्रव्यमान 27 kg होगा और ये भी सौर ऊर्जा से संचालित होगा। प्रज्ञान चंद्र सतह पर 6 पहियों से आगे बढ़ेगा और Site पर Chemical विश्लेषण करेगा। प्राप्त किये Data को Rover Orbiter को भेजेगा जो Data को आगे पृथ्वी पर भेजेगा। Rover के निर्माण की प्रारंभिक योजना रूस में design करने की थी जिसे बाद में भारत में निर्मित किया जाता लेकिन रूस इसमें विफल रहा और ISRO ने Rover के design और fabrication को खुद किया। IIT कानपूर इसकी उप-प्रणाली तैयार कर रही है।

चंद्रमा का एक दिन पृथ्वी के 14 दिनों के बराबर है, Lander और Rover से इसी अवधि में काम करने की उम्मीद की जा रही है। चंद्र दृश्ये को दूर से और सतह से देखने और मापने के लिए यह Mission 14 payload का निरिक्षण करता है जिनमें से एक उपकरण NASA का reflectometer है जो की future Missions को चिन्हित करने और चंद्र से पृथ्वी की दूरी आकलन करने के लिए है।

ISRO के अनुसार Soft - Landing यानि craft को सयुंक्त रूप से चंद्र सतह पर उतरना इस मिशन की सबसे बड़ी चुनौती है। मिशन South Pole Lunar पर उतरेगा जहाँ पर आज तक कोई नहीं पहुंचा है। सबसे पहली Soft - Landing Luna 9 की फरवरी 3 , 1966 में हुई थी। जिसके बाद सोवियत संघ, US , और हल ही में चीन ने काफी Soft - Landing की हैं।

लेकिन इनमे से कोई भी उस सतह पर नहीं उतरा है जहाँ अब भारत का चंद्रयान-2 उतरने जा रहा है। जिन सतहों पर अब तक Landing हो चुकी है सिर्फ उन्ही की jankari ISRO के पास है, इतिहास में कुछ ऐसे Astronomers थे जो ये मानते थे कि शायद चन्द्रमा की सतह उतनी कठोर न हो और वह बस मिटटी से ढकी हो। अगर ऐसा हुआ तो जो Astronauts चंद्र यात्रा पर जाएंगे वह मिटटी में धस जाएंगे।

इसके अलावा भी तीन और चुनौतियाँ हैं , जैसे: Trajectory Accuracy यानि प्रक्षेपवक्र सटीकता: प्रक्षेपवक्र या उड़ान पथ वह मार्ग है जो गति में द्रव्यमान के साथ एक वास्तु , समय के एक कार्य के रूप में अंतरिक्ष से गुज़रती है । 3 दशामबलव 844 लाख किलोमीटर के गंत्वव्य को cover करते समय प्रक्षेपवक्र सटीकता सुनिश्चित करना एक चुनौती है। Trans - Lunar Injection : यह तकनीक Spacecraft को प्रक्षेपवक्र पर सेट करने के लिए उपयोग की जाती है जिससे चन्द्रमा तक पहुंचा जाता है।

जब चंद्रयान के संचालकों को Orbiter के संपर्क में रहना होगा, Lander और Rover को नियंत्रण में रखने के लिए, तब पृथ्वी से इतनी दूरी के कारण Radio Signals में कमज़ोरी आ सकती है , जिसके कारण संपर्क करना मुश्किल हो सकता है। इन सभी चुनौतियों के बावजूद ISRO ,चंद्रयान-2 से एक सकारात्मक परिणाम की उम्मीद रख रहा है। इससे पहले Mission चंद्रयान-1 था, चंद्रयान-1 भारत का पहला मिशन था जिसे ISRO ने ही लांच किया था। यह मिशन अक्टूबर 2008 - अगस्त 2009 तक चला।

इस मिशन में एक Lunar Orbiter और Impactor था जिसे PSLV - XL राकेट, सीरियल नंबर C11 द्वारा 22 अक्टूबर 2008 को चेन्नई के श्रीहरिकोटा स्थित सतीश धवन स्पेस सेंटर से Space में भेजा गया। ये मिशन भारत के लिए एक प्रमुख उन्नति थी क्यूंकि भारत ने चन्द्रमा का पता लगाने के लिए अपनी खुद की तकनीक का शोध किया और उसे विकसित किया। इस Project की कीमत लगभग 386 करोड़ थी। तकनीकी खराबी और संपर्क विफलता के कारण ये मिशन पूरा नहीं हो पाया और लगभग एक साल बाद ही मिशन ओवर घोषित कर दिया गया । चंद्रयान - 1 ने योजनाबद्ध दो वर्षों के मुक़ाबले सिर्फ 312 दिन काम किया लेकिन इसके बावजूद 95 % सफलता प्राप्त की। इस मिशन की सबसे बड़ी खोज चंद्र मिटटी में पानी के अंश की मौजूदगी थी।