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Blog / 09 Mar 2019

(डेली न्यूज़ स्कैन (DNS हिंदी) एंजेल टैक्स (Angel Tax)

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(डेली न्यूज़ स्कैन (DNS हिंदी) एंजेल टैक्स (Angel Tax)


मुख्य बिंदु:

पिछले महीने सरकार ने स्टार्टअप की परिभाषा में कुछ बदलाव किया। लम्बे समय से एंजेल टैक्स को लेकर स्टार्टअप्स की शिकायतों के सामने आने के बाद सरकार ने ये निर्णय लिया है। सरकार की ओर से किए गए इस बदलाव के बादउभरते उद्यमियों को अब काफी राहत मिलने की संभावना रहेगी।

DNS में आज हम आपको एंजेल टैक्स के बारे में बताएँगे और साथ ही इसके दूसरे पहलुओं को भी समझने की कोशिश करेंगे।

दरअसल अपने किसी भी कारोबार को बढ़ाने के लिए स्टार्ट अप कम्पनियों को पैसे की ज़रूरत होती है। इसके लिए स्टार्ट अप कम्पनियाँ किसी दूसरे पैसे देने वाली कंपनी या संस्था को शेयर जारी करती हैं। अक्सर ये शेयर वाजिब कीमत केमुकाबले ज़्यादा कीमत पर जारी किए जाते हैं, ताकि ज़्यादा से ज़्यादा फण्ड जुटाया जा सके। ऐसे में ज़्यादा कीमत पर जारी किए जाने वाले शेयर से मिलने वाली अतिरिक्त धनराशि को सरकार इनकम मानती है और फिर उसी पर टैक्सकी मांग करती है। जिसे एंजल टैक्स कहा जाता है।

स्टार्टअप को इस तरह मिले पैसे को एंजल फंड भी कहते हैं। एंजल टैक्स वसूलने का काम इनकम टैक्स विभाग का होता है। एंजल फण्ड की आड़ में काले धन को सफ़ेद बनाने की कालाबाज़ारी भी होती थी। जिसके लिए साल 2012 मेंतत्कालीन वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी ने इस कालाबाज़ारी को रोकने के लिए बजट में एंजेल टैक्स के लिए कुछ प्रावधान लागू किया। तत्कालीन सरकार ने काले धन को सफेद करने के इस खेल के ख़िलाफ़ कदम अनलिस्टेड और अनजानकंपनियों में निवेश की जानकारी मिलने के बाद उठाया था।

यहां स्टार्पअप के बारे में आपको बताए तो एक ऐसी बिज़नेस यूनिट जो इनोवेशन, डेवलपमेंट, नए प्रोडक्ट के कॉमर्शियलाइजेशन, टेक्नोलॉजी या इंटेलेक्चुअल प्रॉपर्टी से जुड़ी सर्विस पर काम करना चाहती है वो स्टार्पअप के तौर पररजिस्ट्रेशन करवा सकती हैं। पिछले साल जनवरी में उभरते उद्यमियों को प्रोत्साहन देने के लिए सरकार ने स्टार्टअप इंडिया एक्शन प्लान लॉन्च किया था। स्टार्टअप इंडिया का मक़सद स्टार्टअप को टैक्स में छूट और इंस्पेक्टर-राज सेमुक्त व्यवस्था देना है। स्टार्टअप इंडिया के ज़रिए औद्योगिक नीति व संवर्धन विभाग ने देशभर में 14 हज़ार से अधिक स्टार्टअप की पहचान की थी। जिसमें क़रीब ढ़ाई हज़ार से अधिक यानी सबसे ज्यादा स्टार्टअप पाए महाराष्ट्र में पाएगए।

सरकार ने अप्रैल 2018 में एक आदेश जारी करते हुए इनकम टैक्स ऐक्ट की धारा 56 के तहत एंजेल इन्वेस्टर के योगदान सहित 10 करोड़ रुपये तक के कुल निवेश वाली स्टार्टअप्स को टैक्स में छूट की इजाजत दी थी। इस छूट का लाभउठाने के लिए स्टार्टअप को एक अंतर-मंत्रालयी बोर्ड की मंजूरी और मर्चेंट बैंकर से वैल्यूएशन का सर्टिफिकेट लेना जरूरी था। साथ ही, स्टार्टअप में हिस्सेदारी लेने के इच्छुक एंजेल इन्वेस्टर की मिनिमम नेटवर्थ दो करोड़ रुपये या पिछलेतीन वित्तीय वर्ष में 25 लाख रुपये से ज्यादा एवरेज रिटर्न्ड इनकम होनी चाहिए।

लेकिन अभी हाल ही में मुंबई और बेंगलुरु की कुछ स्टार्टअप्स कंपनियों को एंजेल टैक्स कानून की धारा 56 (2) (7B) के तहत टैक्स विभाग से नोटिस मिले हैं। स्टार्टएप के कई संस्थापकों ने बताया है कि उन्हें मिले फंड का कम से कम 30फीसदी बतौर टैक्स चुकाने के लिए कहा गया है। एंजल फंडों को भी नोटिस मिली हैं, जिसमें उन्हें अपनी आय का स्रोत, बैंक अकाउंट स्टेममेंट और दूसरे वित्तीय आंकड़े पेश करने के लिए कहा गया है।

सरकार द्वारा भेजे गए नोटिस पर कई स्टार्टअप कंपनियों ने चिंता जताई थी। इन कंपनियों का कहना है कि इस टैक्स के कारण स्टार्ट अप्स को काफी आर्थिक दबाव का सामना करना पड़ता है। इसके बाद सरकार ने स्टार्टअप और एंजलनिवेशकों के सामने रही टैक्स संबंधी दिक्कतों पर ग़ौर करने के लिए एक विशेषज्ञ समिति बनाने का निर्णय लिया। इस समिति की सिफारिशों के आधार पर सरकार ने एंजल टैक्स के नियमों में कुछ ढील दी है। इसमें, स्टार्टअप के दायरे मेंरहने की समयसीमा को बढ़ा दिया गया है । नए नियमों के मुताबिक़, रजिस्ट्रेशन की तारीख़ से 10 साल तक की कंपनी को स्टार्पअप माना जाएगा, जबकि पहले ये समय सीमा 7 साल तक की ही थी।

इसके अलावा सरकार ने 100 करोड़ रुपए के मूल्य वाली कंपनियों व 250 करोड़ रुपए तक टर्नओवर कमाने वाली कंपनियों को किसी भी स्टार्ट-अप में निवेश करने पर उसे आयकर के दायरे में नहीं आएगा। सरकार ने निवेश का ये दायरा25 करोड़ रुपए से ज्यादा तक के निवेश के रूप में शामिल किया है। साथ ही, सरकार ने टर्नओवर की लिमिट को भी बढ़ा दिया है। अब सालाना 100 करोड़ रुपए तक के टर्नओवर वाली कंपनियों का स्टार्टअप का दर्जा बरक़रार रहेगा। इससेपहले 25 करोड़ रुपए से ज़्यादा सालाना टर्नओवर करने वाली कंपनियां स्टार्टअप के दायरे से बाहर हो जाती थीं।

हालाँकि, विशेषज्ञों का मानना है कि नए नियमों के लागू होने से कुछ समस्याएं भी आएंगी। जिसमें स्टार्ट-अप शुरू करने में लोगों को खासा मुसीबतों का सामना करना पड़ सकता है। इसके अलावा नए नियमों के ज़रिए मिलने वाले लाभ केलिए भी कंपनियों को सरकार के स्टार्ट-अप कार्यक्रम के तहत रजिस्ट्रेशन कराना होगा। इस रजिस्ट्रेशन के लिए तमाम ऐसी शर्तें हैं जिससे इंस्पेक्टर-राज और देरी जैसी दिक्कतें पैदा हो सकती हैं। इसके अलावा, नियमों में ढील के बावजूद,ऐसी कम्पनियाँ जो स्टार्ट-अप के दायरे में नहीं आती हैं, उनके लिए मनमाने ढंग से कर उगाही के रास्ते अभी भी खुले हुए हैं। साथ ही, भुगतान किए जाने वाले करों की गणना भी सरकारी अधिकारियों द्वारा की जाती है। गणना के इसतरीकें में कुछ तकनीकी दिक्कतें भी हैं जिनको लेकर सवाल उठाया गया है और इन सभी मुद्दों का हल ढूंढना ज़रूरी है।