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Blog / 06 Sep 2019

(डेली न्यूज़ स्कैन - DNS हिंदी) टॉर : हाई-एनक्रिप्टेड एनॉनमस चैट प्लेटफार्म (TOR : High Encrypted Anonymous Chat Platform)

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(डेली न्यूज़ स्कैन - DNS हिंदी) टॉर : हाई-एनक्रिप्टेड एनॉनमस चैट प्लेटफार्म (TOR : High Encrypted Anonymous Chat Platform)


मुख्य बिंदु:

कश्मीर घाटी में संचार व्यस्था फिलहाल बंद है। हालाँकि टेलीफोन और इंटरनेट सेवा बंद होने के बावजूद पाकिस्तान यहां मौजूद अलगाववादियों और स्थानीय आतंकवादियों से अलग - अलग ऑफलाइन एप्स और हाई-एनक्रिप्टेड एनॉनमस चैट प्लेटफार्म के ज़रिए संपर्क बनाए हुए है । ऑफलाइन एप्स और हाई-एनक्रिप्टेड एनॉनमस चैट प्लेटफार्म के ही माध्यम से कश्मीर के फर्जी वीडियो भी फैलाए जा रहे हैं। दरअसल ऑफलाइन एप्स और हाई-एनक्रिप्टेड एनॉनमस चैट प्लेटफार्म वाले एप्स को ट्रैक करना भी काफी मुश्किल है जो सुरक्षा एजेंसियों के लिए चुनौती पैदा कर रही हैं। ग़ौरतलब है कि बीते दिनों जम्मू कश्मीर से हटाए गए अनुच्छेद 370 के बाद सरकार ने ये फैसला लिया था।

DNS में आज हम आपको ऑफलाइन एप्स और हाई-एनक्रिप्टेड एनॉनमस चैट प्लेटफार्म टॉर के बारे में बताएंगे। साथ ही समझेंगे इससे जुड़े कुछ और भी अन्य हाई-एनक्रिप्टेड एनॉनमस चैट प्लेटफार्म के बारे में...

आतंकवादी और अलगाववादी अक्सर ही सुरक्षा एजेंसियों की नज़र से दूर रहने के लिए ऑफलाइन एप्स और हाई-एनक्रिप्टेड एनॉनमस चैट प्लेटफार्मस का इस्तेमाल करते हैं। आतंकवादियों और अलगाववादियों के बीच ऑफलाइन एप्स और हाई-एनक्रिप्टेड एनॉनमस चैट प्लेटफार्मस के रूप में टॉर नाम का सॉफ्टवेयर सबसे लोकप्रिय है। दरअसल इस सॉफ्टवेयर का इस्तेमाल करने वाले व्यक्ति की लोकेशन और उसके नाम से जुड़ी कोई भी जानकारी साझा नहीं होती है जिसके कारण इसे इस्तेमाल करने वाले व्यक्ति की सरकार के साइबर सेल से पकड़े जाने का ख़तरा नहीं होता है। इसके अलावा फ्री और ओपन-सोर्स वाला सॉफ्टवेयर टॉर विंडोज, मैक, लिनक्स और एंड्रायड प्लेटफॉर्म्स पर आसानी से उपलब्ध है। अक्सर आतंकवादी और अलगाववादी समूह इस तरह के ऑफलाइन एप्स और हाई-एनक्रिप्टेड एनॉनमस चैट प्लेटफार्मस का इस्तेमाल प्रदर्शनकारियों को इकट्ठा करने में करते हैं।

टॉर एप के अलावा कई अन्य भी सॉफ्टवेयर भी हैं जिनका इस्तेमाल आतंकवादी और अलगाववादी समूह आपस में संपर्क बनाए रखने के लिए करते हैं। एक और हाई-एनक्रिप्टेड एनॉनमस चैट प्लेटफार्म की बात करें तो इसमें ऑफ द ग्रिड चैट एप्स का भी इस्तेमाल इन समूहों दवारा किया जाता है। ऑफ द ग्रिड चैट एप्स के ज़रिए मोबाइल नेटवर्क के बग़ैर भी संपर्क साधा जा सकता है क्यूंकि ये एप कुछ हद तक आइओएस और एंड्रॉयड के लिए उपलब्ध वॉकी-टॉकी एप की तरह काम करते हैं जिनके लिए किसी भी तरह के 2 जी, 3 जी या 4 जी नेटवर्क कवरेज की ज़रूरत नहीं होती है। ऑफ द ग्रिड चैट एप को वाईफाई या ब्लूटूथ के की ज़रूरत होती है जिसके ज़रिए 100-200 मीटर की रेंज तक संपर्क साधा जा सकता है। आपको बता दें कि ऑफ द ग्रिड चैट एप फेसबुक या वाट्सएप और मेश नेटवर्क की तरह काम करते हैं।

इन सब के अलावा ये समूह अपनी गतिविधियों के लिए मेश नेटवर्क का भी इस्तिमाल करते हैं। मेश नेटवर्क के बारे में बताएं तो ये डब्ल्यूडब्लयूडब्ल्यू गीको एंड फ्लाई डॉट कॉम www.geckoandfly.com की रिपोर्ट के मुताबिक मेश नेटवर्क तभी काम करता है, जब दो या अधिक स्मार्टफोन एक दूसरे की रेंज में होते हैं। मेश नेटवर्क दूरी या कवरेज स्मार्टफोन के सिग्नल की मजबूती पर निर्भर करता है।

ऑफलाइन एप्स और हाई-एनक्रिप्टेड एनॉनमस चैट प्लेटफार्म में फायर चैट एप भी काफी लोकप्रिय है। ये एक नया सॉफ्टवेर है जो यूजर्स को बिना इंटरनेट या मोबाइल कवरेज के आपस में संचार करने में सक्षम बनाता है। इसके अलावा ये लोगों को एक दूसरे से जोड़कर दुनिया के किसी भी हिस्से में संचार करने में सक्षम बनाती है। फायर चैट एप टूथ के माध्यम से फोन को आपस में कनेक्ट करता है। इससे लोग आसानी से निजी फोन कॉल कर सकते हैं, टेक्स्ट मैसेज भेज सकते हैं और फाइलों को भी साझा कर सकते हैं।

इस तरह केअन्य एप्स में वोजर एप भी शमल है जो एक फोन से सीधे दूसरे फोन में एनक्रिप्टेड मैसेज डिलीवर करता है। इस एप की मदद से लोग पहाड़ों या उन स्थानों में कनेक्टेड हो सकते हैं, जहां किसी तरह का मोबाइल कवरेज नहीं है। इसके अलावा सिफॉन भी इसी तरह का हाई-एनक्रिप्टेड एनॉनमस चैट प्लेटफार्म है जो लोगों को कंटेंट फिल्टरिंग प्रणाली से बचाता है। सिफॉन सॉफ्टवेयर एक ओपन सोर्स वेब प्रॉक्सी है।

अगर इन तकनीको के नफा नुकसान की बात की जाए तो इसमें दो तरीके के मत देखने को मिलते हैं। इन तकनीकों का समर्थन करने वाले और इन तकनीकों का विरोध करने वाले। इन तकनीकों के पक्षधर लोगों का मानना है कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता व्यक्ति का एक मूलभूत अधिकार है इस पर राज्य का सर्वेलायंस नहीं होना चाहिए दरअसल सूचना प्रौद्योगिकी के दौर में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस इत्यादि जैसे तकनीकों के कारण अब व्यक्ति पर नजर रखना ज्यादा आसान हो गया है किसी भी व्यक्ति के सोशल मीडिया एक्टिविटी और अन्य गतिविधयों के आधार पर अब राज्य की नजर उन पर ज्यादा है इसलिए वह राज्य प्रायोजित सर्वेलायंस से बचने के लिए इन तकनीकों का समर्थन करते हैं।

वही इन तकनीकों का विरोध करने वालों का मानना है कि-इन तकनीकों के दुरुपयोग से शांति-व्यवस्था, अपराधों पर नियंत्रण रखना कठिन काम है क्योंकि यह जांच एजेंसियों की पकड़ में आसानी से नहीं आते दरअसल इन तकनीकों का प्रयोग ही कानूनों से बचने के लिए किया जाता है जिसके कारण कई सारी अवैध गतिविधियों का संचालन इन तकनीकों के कारण होता है उदाहरण के लिए, पायरेसी, ड्रक्स, हथियारों की तस्करी ,कट्टरपंथी विचारधारा को या किसी विचारधारा को आगे बढ़ाने जैसे काम इस सूची में शामिल हैं।