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Blog / 13 Jun 2019

(डेली न्यूज़ स्कैन - DNS हिंदी) भारतीय रिजर्व बैंक द्विमासिक मौद्रिक समीक्षा (RBI Second Bimonthly Monetary Policy Review)

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(डेली न्यूज़ स्कैन - DNS हिंदी) भारतीय रिजर्व बैंक द्विमासिक मौद्रिक समीक्षा (RBI Second Bimonthly Monetary Policy Review)


मुख्य बिंदु:

RBI की मौद्रिक नीति समिति यानी MPC ने बीते 6 जून को चालू वित्त वर्ष 2019-20 की दूसरी द्विमासिक मौद्रिक समीक्षा का ऐलान किया। इस समीक्षा के दौरान नीतिगत दरों में 25 आधार अंक यानी 0.25% की कटौती की गई। साल 2010 के बाद से पहली बार ऐसा हुआ है कि ब्याज दर 6% से नीचे आया है।

डीएनएस में आज हम आपको मौद्रिक नीति के बारे में बताएँगे और साथ ही इसके दूसरे पहलुओं को भी समझने की कोशिश करेंगे।

RBI की मौद्रिक नीति समिति हर दूसरे महीने मौद्रिक नीति की समीक्षा करती है। इसके ज़रिए रिजर्व बैंक अर्थव्यवस्था में पैसे की आपूर्ति को नियंत्रित करता है। वहीँ राजकोषीय नीति के ज़रिए सरकार समग्र मांग और अर्थव्यवस्था पर सरकारी खर्च और करों के असर को नियंत्रित करती है।

मौद्रिक नीति समिति एक छह सदस्यीय समिति होती है जिसका गठन केंद्र सरकार द्वारा किया जाता है। इसमें तीन सदस्य आरबीआई से होते हैं और तीन अन्य स्वतंत्र सदस्य भारत सरकार द्वारा नियुक्त किए जाते हैं। समिति की अध्यक्षता आरबीआई गवर्नर करता है। मौद्रिक नीति निर्धारण के लिए यह समिति साल में चार बार बैठक करती है और सर्वसम्मति से निर्णय लेती है। इस समिति का गठन उर्जित पटेल कमिटी की सिफारिश के आधार किया गया था।

मौद्रिक नीति का मक़सद महंगाई पर अंकुश लगाना और कीमतों में स्थिरता बनाए रखना है। इसके अलावा रोजगार के अवसर तैयार करना और टिकाऊ आर्थिक विकास दर का लक्ष्य हासिल करना भी इसके लक्ष्यों में शामिल है। अर्थव्यवस्था में पैसे की आपूर्ति के नियंत्रण के लिए बैंकों के कैश रिजर्व रेशियो या ओपन मार्केट आपरेशन का सहारा लिया जाता है। रेपो रेट और रिवर्स रेपो रेट के जरिए कर्ज की लागत को बढ़ाया या घटाया जा सकता है।

नरम रुख रखने पर आरबीआई मौद्रिक नीति में प्रमुख ब्याज दरों को घटाती है। इससे अर्थव्यवस्था में पैसों की आपूर्ति बढ़ने का रास्ता खुल जाता है। बाजार में नकदी बढ़ने से आर्थिक गतिविधियां बढ़ जाती हैं। लेकिन जब आरबीआई कठोर रुख अपनाती है तो ब्याज दरों को बढ़ाया जाता है। इससे अर्थव्यवस्था में नकदी घट जाती है। इसका उत्पादन और खपत दोनों पर विपरीत असर होता है। इससे अर्थव्यवस्था की रफ्तार घटती है। जब मौद्रिक नीति में कोई बड़ा बदलाव नहीं किया जाता तो इसे तटस्थ नीति कहा जाता है।

इस बार की मौद्रिक नीति में जिन पहलूओं पर ग़ौर किया गया उनमें उपभोक्ता मांग और निजी निवेश में कमी, खराब मॉनसून और आर्थिक विकास दर में गिरावट जैसे कारक शामिल हैं।

इस बार रेपो दर को 6 फीसदी से घटाकर 5.75 फीसदी और रिवर्स रेपो दर 5.75 फीसदी से घटाकर 5.50 फीसदी कर दिया गया। इसके अलावा बैंक दर को भी 6.25 फीसदी से घटाकर 6.0 फीसदी कर दिया गया। नकद आरक्षित अनुपात चार प्रतिशत पर तटस्थ रखा गया है। देश में लागू बैंकिंग नियमों के तहत हरेक बैंक को अपनी कुल नकदी का एक निश्चित हिस्सा रिजर्व बैंक के पास रखना होता है। इसे ही कैश रिजर्व रेश्यो यानी CRR या नकद आरक्षित अनुपात कहते हैं।

आपको बता दें कि केंद्रीय बैंक द्वारा वाणिज्यिक बैंकों को दिए जाने वाले लोन पर जो ब्याज दर लगाया जाता है उसे बैंक दर या रेपो रेट कहते हैं। लेकिन बैंक दर अमूमन लॉन्ग टर्म लोन पर लगाया जाता है, जबकि रेपो रेट शार्ट टर्म लोन पर लगाया जाता है। इसके अलावा रिवर्स रेपो रेट वह दर होती है जिस पर बैंकों को उनकी ओर से आरबीआई में जमा धन पर ब्याज मिलता है। तरलता समायोजन सुविधा यानी लिक्विडिटी एडजस्टमेंट फैसिलिटी के ज़रिए आरबीआई रेपो दर और रिवर्स रेपो दर आदि का निर्धारण करती है।

भारतीय रिजर्व बैंक RBI द्वारा रेपो रेट में की गई कटौती से होम लोन और कार लोन की ईएमआई में कमी के आसार दिख रहे हैं। जल्द ही बैंक इस कटौती का फायदा ग्राहकों तक पहुंचाएंगे।