(डेली न्यूज़ स्कैन - DNS हिंदी) जीएसपी दर्जा (Generalized System of Preferences - GSP Status)
चर्चा में क्यों?
हाल ही में, अमेरिका ने भारत को दी जाने वाली सामान्य तरजीही प्रणाली यानी जीएसपी दर्जे को खत्म कर दिया है। अमेरिका का ये क़दम पांच जून 2019 से लागू हो जाएगा। आपको बता दें कि बीते 4 मार्च को अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने ये ऐलान किया था कि वे भारत का नाम उन देशों की सूची से बाहर कर देंगे, जो जीएसपी कार्यक्रम का लाभ उठा रहे हैं। अमेरिकी क़ानूनों के मुताबिक़ ये बदलाव अधिसूचना जारी होने के 60 दिनों बाद लागू होने थे। लेकिन कुछ वजहों से इसे पांच जून से लागू किया जाएगा।
डीएनएस में आज हम आपको बताएँगे कि जीएसपी क्या है और साथ ही इसके दूसरे पहलुओं को भी समझने की कोशिश करेंगे।
क्या है जीएसपी?
जीएसपी को, आसान शब्दों में, सामान्य कर-मुक्त प्रावधानों के तौर पर समझा जा सकता है। अमेरिका ने इसकी शुरुआत साल 1976 में विकासशील देशों में आर्थिक वृद्धि बढ़ाने के मक़सद से की थी। इसके तहत कुछ चुनिंदा सामानों के ड्यूटी-फ्री इम्पोर्ट की अनुमति दी जाती है। इसका मतलब, जीएसपी के तहत अमेरिका भारत से जिन सामानों का आयात करेगा उन पर टैक्स नहीं लगाया जाएगा। अभी तक 129 देशों को करीब 4,800 सामानों के लिए जीएसपी के तहत फायदा मिला है।
भारत के लिए क्यों अहम् है जीएसपी?
गौरतलब है कि भारत जीएसपी का सबसे बड़ा लाभार्थी देश है। साल 2017 में अमेरिका में आयात पर कुल 21.1 अरब डॉलर का शुल्क माफ किया गया था, जिनमें 5.6 अरब डॉलर का लाभ अकेले भारत को मिला था।
भारत सरकार का क्या कहना है?
मार्च में अमेरिका के इस ऐलान के बाद भारत सरकार ने कहा था कि जीएसपी के तहत केवल 1.90 करोड़ डॉलर कीमत की वस्तुएं ही बिना किसी शुल्क वाली श्रेणी में आती हैं। इस तरह, अमेरिका अगर जीएसपी की व्यवस्था को खत्म करने का फैसला लागू करता है, तो 'भारतीय व्यापार पर इसका असर बेहद सीमित होगा।'
मामले को सुलझाने के लिए भारत ने क्या किया?
वाशिंगटन द्वारा जीएसपी को खत्म करने की चेतावनी के बाद भारत ने अपने कृषि, डेयरी एवं पॉल्ट्री बाजार को अमेरिका के लिए खोलने की सहमति जताई। भारत ने बाक़ायदा ट्रंप सरकार को इसका एक औपचारिक प्रस्ताव भी भेजा। लेकिन, इस प्रस्ताव का अमेरिकी सरकार पर कोई असर नहीं हुआ।
कब शुरू हुआ ये मामला?
दरअसल पिछले साल से ही भारत-अमेरिका के व्यापारिक रिश्तों में तल्ख़ी देखी जा रही है। साल 2018 में अमेरिकी प्रशासन ने भारत के कई सामानों को ड्यूटी-फ्री लिस्ट से बाहर किया था। बाद में, भारत ने भी ऐलान किया कि वो अमेरिकी उत्पादों पर शुल्क लगाया जाएगा। हालांकि, भारत सरकार इस फैसले को लागू करने से बचता रहा।
क्यों नाराज़ है अमेरिका?
भारत और अमेरिका के बीच तमाम ऐसे मुद्दे रहे हैं, जिसने दोनों देशों के व्यापार संबंधों को प्रभावित किया है। इसमें, भारत का नया ई-कॉमर्स नियम, मेडिकल डिवाइसेज की कीमतों को तय किया जाना और आईसीटी प्रॉडक्ट्स पर शुल्क लगाया जाना जैसे मुद्दे शामिल हैं। इसके अलावा, अमरीका चाहता है कि भारत उससे डेयरी उत्पाद और ज़्यादा खरीदे।
दरअसल अमरीका और यूरोप के कई देशों में गायों को खिलाए जाने वाले चारे में गायों-सूअरों और भेड़ों का माँस और खून को मिलाया जाता है। इस चारे को ब्लड मील कहा जाता है। इसी वजह से भारत इन डेयरी उत्पादों को नहीं खरीदना चाहता है।
धार्मिक कारण के अलावा भारत का अपना वैज्ञानिक तर्क भी है। क्योंकि ब्लड मील वाले जानवरों में 'मैडकाऊ' नामक बीमारी होने का डर रहता है, जो इंसानों के स्वास्थ्य के लिहाज़ से अच्छा नहीं होता है।
आखिर भारत अमेरिका को क्यों नहीं दे रहा है टैरिफ छूट?
सवाल ये उठता है कि आखिर भारत भी अमेरिका को उसी तरह की छूट क्यों नहीं दे रहा है। इसके लिए भारत दो कारणों का हवाला दे रहा है। पहला ये कि जिन उत्पादों पर अमेरिका छूट चाह रहा है वो उत्पाद अमरीका द्वारा भारत को बहुत ही कम मात्रा में निर्यात किया जाता है। ऐसे में अगर भारत अमेरिका को टैरिफ में छूट दे भी दे तो भी अमेरिका को कोई ख़ास फायदा होने की गुंजाईश नहीं है।
दूसरा, भारत केवल अमेरिका के लिए टैरिफ में कमी नहीं कर सकता क्योंकि ग्लोबल ट्रेड नियमों के मुताबिक़ इस तरह की छूट मोस्ट फेवर्ड नेशन के आधार पर दिया जाना चाहिए। और इस तरह का कदम उठाने पर चीन को भी फायदा होगा। लेकिन दिक्कत ये है कि भारत का पहले ही चीन के साथ ट्रेड डेफिसिट बहुत अधिक है और टैरिफ में छूट देने से यह और भी बढ़ जाएगा।
भारत के सामने क्या विकल्प हैं?
भारत को मिली तरजीही व्यापार सुविधा को खत्म किए जाने के बाद भारत के सामने कई विकल्प खुले हैं। वह अमेरिकी सामानों के आयात पर जवाबी कार्रवाई करते हुए टैक्स में इजाफा कर सकता है या फिर अमेरिका के इस कदम को विश्व व्यापार संगठन यानी डब्ल्यूटीओ में चुनौती दे सकता है।
पहले भी हो चुके हैं ऐसे मामले
साल 2002 में भारत का यूरोपियन यूनियन के साथ भी एक ऐसा ही विवाद हुआ था। जिसमे भारत ने यूरोपियन यूनियन के जीएसपी सिस्टम को WTO में चुनौती दी थी। और भारत को इस मामले में सफलता हासिल हुई थी।
निष्कर्ष
एक्सपर्ट्स का ये भी कहना है कि डब्ल्यूटीओ में प्रक्रिया लंबी चल सकती है। और साथ ही, साल 2017-2018 के आर्थिक सर्वेक्षण के मुताबिक़ भारत अमेरिका के साथ ट्रेड सरप्लस की स्थिति में है। ऐसे में, भारत के सामने बेहतर विकल्प यह होगा कि इस मुद्दे का समाधान द्विपक्षीय बातचीत से किया जाए।