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Blog / 11 Apr 2019

(डेली न्यूज़ स्कैन (DNS हिंदी) EMISAT अंतरिक्ष में भारत की आँख और कान (EMISAT: Eye and Ear of India in Space)

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(डेली न्यूज़ स्कैन (DNS हिंदी) EMISAT अंतरिक्ष में भारत की आँख और कान (EMISAT: Eye and Ear of India in Space)


मुख्य बिंदु:

बीते दिनों 27 मार्च को भारत ने 'मिशन शक्ति' के ज़रिए अंतरिक्ष में अपनी युद्धक क्षमता साबित किया। और अभी सप्ताह भर भी नहीं बीता था कि इसी क्रम में भारत ने अंतरिक्ष की दुनिया में एक और नया प्रतिमान स्थापित कर दिया। भारत ने इलेक्ट्रॉनिक इंटेलिजेंस सैटेलाइट यानी EMISAT को सन सिंक्रोनस पोलर ऑर्बिट में सफलतापूर्वक प्रक्षेपित कर लिया।

डीएनएस में आज हम आपको बताएँगे कि EMISAT क्या है और साथ ही इसके दूसरे पहलुओं को भी समझने की कोशिश करेंगे।

दरअसल EMISAT का पूरा नाम इलेक्ट्रॉनिक इंटेलिजेंस सैटेलाइट है। इसे इसरो और डीआरडीओ ने मिलकर बनाया है। इसरो ने इस उपग्रह को पीएसएलवी C-45 लांच व्हीकल की मदद से श्रीहरिकोटा के सतीश धवन स्पेस सेंटर से लॉन्च किया। पीएसएलवी रॉकेट ने सुबह 9.27 बजे उड़ान भरी और 9 बजकर 44 मिनट पर इसे कक्षा में स्थापित कर दिया गया।

इस मिशन में एमिसैट के साथ-साथ दूसरे देशों के 28 उपग्रहों को भी भेजा गया है। जिसमे अमेरिका के 24, लिथुआनिया के दो, स्पेन और स्विट्जरलैंड के एक-एक उपग्रह शामिल हैं। एमिसैट का वजन 436 किलोग्राम है और एमिसैट के अलावा लॉन्च होने वाले दूसरे देशों के 28 उपग्रहों का वजन 220 किलोग्राम है।

पहली बार इसरो ने एक ही मिशन के दौरान तीन अलग-अलग कक्षाओं में सैटेलाइट स्थापित करने की उपलब्धि हासिल की। इसरो के मुताबिक़, एमिसैट को 749 किलोमीटर के कक्ष में स्थापित किया गया। उसके बाद ये पीएसएलवी रॉकेट नीचे उतरते हुए दूसरे 28 उपग्रहों को 504 किलोमीटर की कक्षा में स्थापित किया। इस एमिसैट में रेडार की ऊंचाई नापने वाला एक डिवाइस अलटिका लगा हुआ है जिसे डीआरडीओ के प्रॉजेक्ट 'कौटिल्य' के तहत बनाया गया है।

आपको बता दें कि ईसा पूर्व दूसरी शताब्दी के महान कूटनीतिज्ञ चाणक्य यानी कौटिल्य मौर्य शासक चंद्रगुप्त मौर्य के सलाहकार थे। उनका मानना था कि किसी भी बड़े देश में सफलतापूर्व राज करने के लिए गुप्तचरों का प्रभावी नेटवर्क होना बेहद जरूरी होता है। कौटिल्य के इसी विचार के आधार पर भारत सरकार के रक्षा अनुसंधान विकास संगठन ने 'प्रॉजेक्ट कौटिल्य' शुरू किया था।

विशेषज्ञों का कहना है कि EMISAT को इजरायल के प्रसिद्ध जासूसी उपग्रह 'सरल' की तर्ज़ पर बनाया गया है। करीब 8 सालों की कड़ी मेहनत के बाद वैज्ञानिकों ने एमीसैट को बनाने में सफलता हासिल की। इसके ज़रिये सीमा पर दुश्मन की छोटी-छोटी हरकतों पर भी नज़र रखी जा सकती है।

इसमें जमीन पर संचार प्रणालियों, रेडार और अन्य इलेक्ट्रानिक उपकरणों से निकले सिग्नल को डिटेक्ट करने की क्षमता है। यानी इस सैटेलाइट से सुरक्षा एजेंसियों को यह पता लगाने में मदद मिलेगी कि किसी क्षेत्र में कितने मोबाइल फोन और दूसरे संचार उपकरण सक्रिय हैं। जासूसी उपग्रह EMISAT जमीन पर स्थित बर्फीली घाटियों, बारिश, तटीय इलाकों, जंगल और समुद्र की लहरों को बहुत आसानी से नाप सकता है।
इसके अलावा एमीसैट के ज़रिये दुश्मन देशों के रडार सिस्टम पर नज़र रखने के साथ ही उनकी लोकेशन को भी आसानी से ट्रैक किया जा सकता है। साथ ही, इस सैटेलाइट की मदद से सीमा पर इलेक्ट्रॉनिक या किसी भी तरह की मानवीय गतिविधि पर भी आसानी से नज़र रखी जा सकती है। एमीसैट की एक और अहम् बात ये है कि ये दुश्मन के इलाकों का सही इलेक्ट्रॉनिक नक्शा बनाने की सटीक जानकारी दे सकता है।

ग़ौरतलब है कि लांच व्हीकल के ज़रिए ही किसी सैटेलाइट को अंतरिक्ष में भेजा जाता है। भारत के पास दो प्रकार के लांच व्हीकल हैं - पहला पोलर सैटलाइट लॉन्च व्हीकल यानी PSLV और दूसरा जिओसिंक्रोनस सैटलाइट लॉन्च व्हीकल यानी GSLV। दोनों को भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन यानी इसरो ने तैयार किया है।

पीएसएलवी चार स्टेज वाली लॉन्च व्हीकल है। इसकी पहली और तीसरी स्टेज में सॉलिड रॉकेट मोटर का इस्तेमाल होता है और दूसरी और तीसरी स्टेज में लिक्विड रॉकेट इंजन का इस्तेमाल होता है। इसमें स्ट्रैप ऑन मोटर्स यानी बूस्टर भी लगा होता है जो धक्के की क्षमता को बढ़ाता है। इससे रॉकेट को ऊंचाई तक ले जाने में मदद मिलती है। भारत ने पीएसएलवी के ज़रिए चंद्रयान-1, मंगल मिशन, और IRNSS जैसे कई ऐतिहासिक मिशनों को लांच किया है।

आपको बता दें कि सन सिंक्रोनस ऑर्बिट एक ऐसे तल में स्थित होता है जिससे पृथ्वी और सूर्य के सापेक्ष ऑर्बिट की स्थिति एक निश्चित कोण पर बनी रहती है।

भारत के अंतरिक्ष अनुसंधान गतिविधियों की शुरुआत 1960 के दशक के दौरान हुई। विक्रम साराभाई को भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम का जनक कहा जाता है। विक्रम साराभाई ने देश के सक्षम और उम्दा वैज्ञानिकों, मानव विज्ञानियों, विचारकों और समाज विज्ञानियों को मिलाकर भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम के सफर की शुरुआत की।

कुल मिलाकर ये उम्मीद लगाया जा सकता है कि एमिसैट अंतरिक्ष में भारत की 'आंख और कान' बनने जा रहा है।