Home > DNS

Blog / 02 Mar 2020

(डेली न्यूज़ स्कैन - DNS हिंदी) बीएस-6 ईंधन (BS-6 Fuel)

image


(डेली न्यूज़ स्कैन - DNS हिंदी) बीएस-6 ईंधन (BS-6 Fuel)



क्या हैं भारत स्टेज नॉर्म्स

देश में वायु प्रदूषण का तेज़ी से बढ़ना चिंता का सबब है क्यूंकि वायु प्रदूषण के चलते हमारी राजधानी और कई अन्य शहर गैस चैम्बरों में तब्दील होते जा रहे हैं …वायु प्रदूषण बढ़ने के पीछे कई वजहें शामिल हैं जैसे पराली का जलाया जाना , कल कारखानों की चिमनियों से लगातार निकलता धुआं , मोटर वाहनों से निकलता धुआं … इन सब वजहों में जो सबसे अहम् कारण है वो है मोटर गाड़ियों से बेतरतीब निकलता हुआ धुंआ …मोटर वाहनों से होने वाले प्रदूषण के ज़रिये कई बीमारियां पैदा होती हैं जिसमे सांस की बीमारिया ह्रदय रोग आँखों की बीमारियों के मामले सबसे ज़्यादा हैं ..ऐसे में वाहनों के प्रदूषण पर लगाम लगाने के मद्देनज़र कई तरह के उपाय किये गए जिनमे सबसे महत्वपूर्ण है ईंधन की गुणवत्त्ता को सुधारने की कोशिश … इसी कोशिश की एक कड़ी है, भारत स्टेज मानक वाले ईंधन का इस्तेमाल ..आज के dns में हम जानेंगे भारत स्टेज मानक ईंधन के बारे में साथ ही जानेंगे की क्यों 1 अप्रैल से भारत स्टेज 6 मानक वाले ईंधन का प्रयोग किया जायेगा, साथ ही समझेंगे इसके इस्तेमाल से पट्रोल और डीजल की लागत में क्या बदलाव होंगे..?तो आइये शुरू करते हैं आज का DNS...

वायु प्रदूषण के बढ़ते स्तर को देखते हुए देश में एक अप्रैल 2020 से सिर्फ बीएस-6 यानि भारत स्टेज 6 उत्सर्जन मानक वाले वाहन ही बिकेंगे। इसके लिए ऑटोमोबाइल कंपनियों ने कमर कस ली है। कुछ बीएस-6 इंजन वाली गाड़ियां ने तो बाजार में कदम भी रख दिया है।

बीएस नॉर्म्स क्या होते हैं?

पूरे भारत में 1 अप्रैल 2020 से भारत स्टेज ६ यानि बीएस 6 मानक की गाड़ियां चलेंगी । हालांकि दिल्ली और आस पास के इलाकों में इसे1 अप्रैल 2018 में ही लागू कर दिया गया था ...बीएस 6 लागू होने के बाद से डीजल और पेट्रोल के दामों में भी इज़ाफ़ा होगा जिसका सीधा असर आम आदमी की जेब पर पड़ेगा । नए मानक लागू करने के लिए तेल कंपनियों ने अपनी रिफायनरीज़ में तकनीकी बदलाव किये हैं इस पर तकरीबन 30 हज़ार करोड़ रुपये का खर्च आया है ।बीएस यानि भारत स्टेज का सम्बन्ध वाहनों के उत्सर्जन मानकों से है । नए उत्सर्जन मानकों का पर्यावरण पर सीधा असर पड़ेगा । ऐसा करने देश की वायु की सेहत में सुधार आएगा । इस उत्सर्जन मानक का इस्तेमाल करने पर सल्फर उत्सर्जन तकरीबन 50 फीसदी घट जाएगा भारत स्टेज मानक क्यों ज़रूरी हैं और इनके लागू करने से क्या फ़र्क़ आएगा।

लेकिन इससे पहले आइये समझते हैं की आखिर बीएस मानक हैं क्या बीएस यानी 'भारत स्टेज' जिसे साल 2000 में पेश किया गया था। ये वो मानक हैं जिससे पता चलता है कि गाड़ी कितना प्रदूषण फैलाती है। बीएस के जरिए सरकार गाड़ियों के धुएं से होने वाले प्रदूषण को नियंत्रित करती है। समय-समय पर केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड नए मानक जारी करता रहता है। बीएस के साथ जो नंबर होता है, उससे यह जानकारी मिलती है कि इंजन कितना प्रदूषण फैलाता है। जैसे बीएस-3 से कम प्रदूषण बीएस-4 से होगा और बीएस-6 काफी कम प्रदूषण करेगा, यानी जितना बड़ा नंबर उतना कम प्रदूषण।

बीएस अपग्रेड करने से क्या होता है?

जब भी बीएस (भारत स्टेज) को अपग्रेड किया जाता है, तो वाहनों से निकलने वाले धुंए से जो प्रदूषण होता है, उसे कम करने में यह काफी कारगर होता है। देश में गाड़ियों की संख्या लगातार बढ़ रही है और उनसे प्रदूषण भी लगातार फैल रहा है। ऐसे में नए मानकों को अपनाना जरूरी हो जाता है।

बीएस-3 और बीएस-4 से होने वाले नुकसान

देश में अभी भी काफी संख्या में बीएस-3 गाडियां सड़कों पर दौड़ रही हैं, और इनसे निकलने वाला धुआं हमारी सेहत के लिए काफी खतरनाक साबित हो रहा है। वहीं बीएस-4 से निकलने वाला धुआं कई गंभीर बिमारियों जैसे आंखों में जलन, नाक में जलन, सिरदर्द और फेफड़ों की बीमारी की वजह बनता है । ऐसे में एक अप्रैल 2020 से सिर्फ बीएस-6 गाड़ियों के चलने से प्रदूषण पर काफी हद तक लगाम लगाई जा सकेगी।

बीएस-6 के फायदे

पेट्रोल वाहनों की तुलना में डीजल वाहन ज्यादा प्रदूषण फैलाते हैं। बीएस-6 लागू होने के बाद पेट्रोल और डीजल कारों के बीच ज्यादा अंतर नहीं रह जाएगा । पेट्रोल कारों से जहाँ 25 फीसदी तो वहीं डीजल वाहनों से 68 (अडसठ )फीसदी नाइट्रोजन ऑक्साइड का उत्सर्जन कम हो जाएगा। सीएसई की रिपोर्ट के मुताबिक़ बीएस-6 ईधन से सल्फर की मात्रा बीएस-4 से पांच गुना तक कम होगी... वहीं बीएस-6 वाहनों में एडवांस्ड एमीशन कंट्रोल सिस्टम भी फिट होगा।

क्या है बीएस -6 ग्रेड फ्यूल?

बीएस-6 ग्रेड फ्यूल का मतलब है कि फ्यूल में सल्फर की मात्रा को कम किया जाना। अभी बीएस-4 पेट्रोल और डीजल में सल्फर की मात्रा 50 PPM यानी पार्ट्स पर मिलियन है। जबकि बीएस-6 ग्रेड फ्यूल में सल्फर की मात्रा महज 10 PPM तक रह जाएगी।

क्या होगा असर?

बीएस-6 फ्यूल को मौजूदा बीएस-3 और बीएस-4 फ्यूल के अनुकूल बने वाहनों में इस्तेमाल किया जा सकता है। खास बात यह है कि यह फायदेमंद भी है। फ्यूल में सल्फर की मात्रा काम होने से कम NOx, CO और हाइड्रोकार्बन का उत्सर्जन होगा । साथ साथ सल्फर की मात्रा कम होने से पार्टिकुलेट मैटर यानि PM की मात्रा भी धुएं में कम होगी।हवा में PM 2.5 की मात्रा 60 मिली ग्राम पर क्यूबिक मीटर होनी चाहिए। बीएस 6 मानक ईंधन में इसकी मात्रा 20-40 MGCM होती है जबकि बीएस 4 में यह मात्रा 120 MGCM हो जाती है ....देश में बीएस मानक तय करने की ज़िम्मेदारी पर्यावरण वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय की है इसके अंतर्गत आने वाला प्रदोषन नियंत्रण बोर्ड इन मानकों को बनाने और लागू करने का काम करता है । भारत स्टेज या बीएस मानक यूरोपीय उत्सर्जन नियमों पर आधारित हैं।

जानकारों के मुताबिक़ बीएस-4 के अनुरूप बनी डीजल कार को अगर बीएस-6 फ्यूल पर चलाया जाए, तो औसतन 50 फीसदी तक कम पार्टिकुलेट मैटर उत्सर्जित होगा। उम्मीद है जल्द ही सभी वाहन निर्माता कंपनियां बीएस-6 वाहनों को बाजार में पेश करेंगी। अभी तक सिर्फ मेरसडीज जैसी कंपनी ही बीएस 6 इंजन बना रही हैं ।कुछ कार कंपनियां नए एडवांस्ड इंजन पर काम कर रही हैं, जो फ्यूल की खपत को काफी कम करेंगे साथ ही प्रदूषण पर काफी हद तक रोक लगाने में मदद करेंगे।