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परफेक्ट - 7 पत्रिका / 13 Feb 2020

(डेली न्यूज़ स्कैन - DNS हिंदी) मैला ढोना एक कलंक (Manual Scavenging: Deep Black Stain on Society)

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(डेली न्यूज़ स्कैन - DNS हिंदी) मैला ढोना एक कलंक (Manual Scavenging: Deep Black Stain on Society)


यूँ तो आज हम एक आज़ाद देश का हिस्सा है...जहाँ की हवा में ही आजादी का एहसास होता है...लेकिन क्यूँ आज भी हमसे से जुड़ा एक वर्ग गुलाम है...गुलाम है उस प्रथा का...जो हमारे देश पर किसी कलंक से कम नही...

आज DNS में हम बात करेंगे मैला प्रथा/ MANUAL SAVENGING की....

आखिर क्या है हाथ से मैला ढोना (MANUAL SAVENGING)?

किसी व्यक्ति द्वारा शुष्क शौचालयों या सीवर से मानवीय अपशिष्ट (मल-मूत्र) को हाथ से साफ करने, सिर पर रखकर ले जाने, उसका निस्तारण करने या किसी भी प्रकार की शारीरिक सहायता से उसे संभालने को हाथ से मैला ढोना या MANUAL SAVENGING कहते हैं....इस प्रक्रिया में अक्सर बाल्टी, झाड़ू और टोकरी जैसे सबसे बुनियादी उपकरणों का उपयोग किया जाता है....ये कहना की इस कुप्रथा का संबंध भारत की जाति व्यवस्था से भी है ये गलत नही होगा......

कहने और कागजों में भारत सरकार ने 1993 में सफाई कर्मचारी नियोजन और शुष्क शौचालय संनिर्माण (प्रतिषेध) अधिनियम 1993 लागू किया गया था, जिसके तहत प्रावधान किया गया था कि जो भी व्यक्ति यह काम करवाएगा उसे एक वर्ष के कारावास और दो हजार रूपए जुर्माना भुगतना पड़ सकता है....लेकिन इतना सब कुछ करने के बाद भी इसे रोका नहीं जा सका...

आज की स्थिति

देश में मैला ढोने वाले सफाई कर्मचारियों की स्थिति बेहद ही खराब है...आपको बता दें ये हाथ से मैला ढोने वाले सफाई कर्मियों को अपनी जान से भी हाथ दोना पड़ जाता है...ये मौतें अक्सर सफ्टिक टैंक में मौजूद जहरीली गैस जैसे मिथेन, Sulfur dioxide , carbon monoxide, और Carbon dioxide से होती है..बिना किसी SAFETY उपकरणों के...ये इस मौत के कुँवें में उतर जाते है...सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय (Ministry of Social Justice and Empowerment) के अनुसार, पिछले कुछ वर्षों में हाथ से मैला ढोने (मैनुअल स्केवेंजिंग) के कारण मरने वाले सफाई कर्मचारियों की संख्या में काफी बढ़ोतरी हुई है और यह आँकड़ा 88 (अठासी ) तक पहुँच चुका है..

आये दिन सीवर और सेप्टिक टैंक में काम करते हुए सफाई कर्मियों के अपनी जान से हाथ धोने की खबरें आती रहती है....क्या यह देश के लिए जरूरी नहीं कि वह अपने सफाई कर्मचारियों को आधुनिक तकनीक से लैस मशीनें उपलब्ध कराए जिससे उनके जीवन की रक्षा हो सके और वे स्वच्छ पर्यावरण में जी सकें...यह जरूरी है कि मैला ढोने का सवाल मानवाधिकारों के दायरे में लाया जाए जिससे इसका उल्लंघन करने वालों पर आवश्यक कानूनी कार्रवाई की जा सके...

सफाई कर्मियों के लिए बनाये गये कानून

  • 1993 में मैला ढोने की प्रातः को रोकने के लिए पहला क़ानून बना
  • 6 दिसम्बर , 2013 में Prohibition of Employment as Manual Scavengers and their Rehabilitation Act 2013लाया गया...जिसके अंतर्गत
  1. सेफ्टी टैंकों की सफाई और रेलवे पटरियों की सफाई को भी शामिल किया गया.
  2. सीवेज सिस्टम को बिना सुरक्षा उपकरण साफ़ करने पर पूरी तरह रोक लगायी गयी
  • साल 2014, 27 मार्च को सुप्रीम कोर्ट का एतिहासिक फैसला आया
  1. सेफ्टिक टैंक में किसी को बिना सुरक्षा उपकरण के प्रवेश करना दण्डनीय प्रावधान बताया
  2. सिर्फ अपातकालीन स्थिति में ही सुरक्षा उपकरणों के साथ सफाई कर्मी प्रवेश कर सकता है
  • मैनुअल स्केवेंजिंग के कारण मरे गए लोगों की संख्या की पहचान करने और उनके परिवारों को मुआवज़े के रूप में 10-10 लाख रूपए देने का निर्देश दिया

लिकिन इन सब की बदौलत आज भी ये लोग ये काम काम बदस्तूर जारी है..जाहन जात पात का घिनोना चेहरा भी देखने को मिलता है...समाज की त्रिस्क्रित नज़रों का सामना आज भी इस वर्ग को करना पद रहा है...भारत के अधिकांश गांवों में सीवरेज नहीं होने के कारण घरों से गंदा पानी निकलने की कोई प्रणाली नहीं है....ऐसे शौचालय भी नहीं, जहां मल निकास की व्यवस्था हो...इस कारण आज भी पूरे देश में कई हजार महिलाएं यह कार्य करती हैं...भारत में शौचालय से ज्यादा तो मोबाइल फोन हैं...वहीँ देशभर में करीब सात लाख शौचालय ऐसे हैं, जहां मल निकास की व्यवस्था नहीं हैं...जिन्हें शुष्क शौचालय कहा जाता है और यहीं से मल साफ करने के लिए लोगों की जरूरत होती है....

यूँ तो स्वच्छ भारत अभियान के तहत शौचालय को ले कर देशभर में खूब चर्चा है....इन सब के बीच, मानवता को शर्मसार करने वाली सिर पर मैला ढोने की प्रथा का कहीं कोई जिक्र तक नहीं हो रहा है...जबकि इस प्रथा को खत्म करने का कागजी अभियान काफी पुराना है...जैसा की हमने आपको बताया...तब से ले कर अब तक, इस प्रथा को खत्म करने की जबानी कोशिश बहुत हुई है....कानून बने, लेकिन सब धरे के धरे रह गए हैं...

यह प्रथा खत्म होने का नाम नहीं ले रही है...क्यूँ आज भी ये वर्ग समाज से अलग थलग है...और क्यूँ ये घिनोना परताव पीढ़ी दर पीढ़ी चलता आ रहा है...सदियों से चले आ रहे हाथ से मैला उठाने की ये प्रथा आज भी जारी है.... ऐसे में ज़रूरत है ठोस कानून की लेकिन साथ ही जागरूकता की भी..समाज के शिक्षित वर्ग को आगे आकर इस वर्ग को शिक्षित करने का बीड़ा उठाना चाहिये... शिक्षा से हि बदलाव सम्भव हो पायेगा...

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