भारतीय डाक सेवाः अब तक की यात्रा - यूपीएससी, आईएएस, सिविल सेवा और राज्य पीसीएस परीक्षाओं के लिए समसामयिकी


भारतीय डाक सेवाः अब तक की यात्रा - यूपीएससी, आईएएस, सिविल सेवा और राज्य पीसीएस  परीक्षाओं के लिए समसामयिकी


चर्चा का कारण

प्रत्येक वर्ष विश्व डाक दिवस (World Post Day) 9 अक्टूबर को मनाया जाता है। इसको मनाने का मुख्य उद्देश्य ग्राहकों को डाक विभाग के बारे में जानकारी देना, उन्हें जागरूक करना और डाकघरों के बीच सामंजस्य स्थापित करना है। इस दिवस को स्विट्जरलैंड के बर्न में वर्ष 1874 में यूनिवर्सल पोस्टल यूनियन (यूपीयू) की स्थापना की याद में मनाया जाता है।

परिचय

एक समय था जब लोग खत या चिट्ठी के माध्यम से अपने शब्दों को ही नहीं बल्कि भावनाओं को भी पिरोया करते थे। इन खतों के माध्यम से वे दुःख-सुख की कहानियों के साथ, ढेर सारा प्यार भी आपस में बांटते थे।

भारत में डाकिया (Postman) की छवि आज भी काफी अच्छी है। एक डाकिया वो व्यक्ति होता है जो विशेषकर गाँवों में हर परिवार से सीधे जुड़ा हुआ होता है। समाज में अपनी ईमानदार छवि रखने वाले डाकिये की भूमिका कई फिल्मों में भी हमें देखने को मिलती है। वर्तमान में हम भले ही कुरियर पर शक कर सकते हैं, पर सरकारी पोस्टमैन का भरोसा और सम्मान आज भी वैसा ही है।

गौरतलब है कि बदलते वक्त के साथ बदलती तकनीक की वजह से लोग चिट्ठी से होते हुए कम्प्यूटर और स्मार्ट फोन से ईमेल और वीडियो कॉलिंग तक आ पहुँचे। हालाँकि आज भी डाकघरों की अहमियत कम नहीं हुई है। वर्तमान में भारत के पास दुनिया का सबसे बड़ा डाक नेटवर्क है। संचार क्रांति ने चिट्ठियों पर बेशक असर डाला पर भारत सरकार ने बहुत तेजी से डाक व्यवस्था का विस्तार एवं आधुनिकीकरण किया। इसके जरिए सरकारी योजनाओं को भी घर-घर पहुँचाया गया। वर्तमान में सड़कों पर जीपीएस (GPS) से लैस डाक गाडि़याँ हैं, साथ ही मोबाइल ऐप भी शुरू किये गए हैं। दुनियाभर में जहाँ डाक सेवाएँ सिमट रही हैं वहीं भारतीय डाक न केवल तकनीक के साथ कदमताल कर रहा है बल्कि अपना विस्तार भी कर रहा है।

क्यों मनाया जाता है विश्व डाक दिवस

विश्व डाक दिवस उन संदेश वाहकों को याद करने का दिन है जो मोबाइल और वीडियो कॉल से पहले के जमाने से हमारे संदेश दुनिया के कोने-कोने में पहुँचाते थे। इस दिवस का मकसद रोजमर्रा की जिंदगी और समाज के बीच रिश्ते मजबूत करने में डाक विभाग की भूमिका के बारे में लोगों को जागरूक करना है। यह दिन उन लोगों का महत्त्व समझाने का है जो सर्दी, गर्मी और बरसात की परवाह किए बगैर हमारे संदेश पहुँचाते हैं। इस दिवस के जरिए डाकघरों के बीच तालमेल बढ़ाने की भी कोशिश की जाती है।

पृष्ठभूमि

9 अक्टूबर, 1874 को जनरल पोस्टल यूनियन (General Postal Union) का गठन किया गया। इसके गठन के लिए स्विट्जरलैंड के बर्न शहर में 22 देशों ने एक संधि पर हस्ताक्षर किए थे। यह संधि 1 जुलाई, 1875 को लागू हुई, हालांकि 1 अप्रैल 1879 को जनरल पोस्टल यूनियन का नाम बदलकर यूनिवर्सल पोस्टल यूनियन (Universal Postal Union) कर दिया गया। गौरतलब है कि यूपीयू की स्थापना से पहले सभी देशों को एक दूसरे के यहाँ चिट्ठी भेजने के लिए द्विपक्षीय या बहुपक्षीय संधि करनी पड़ती थी। डाक भेजने वाले को हर चरण और रास्ते में पड़ने वाले हर देश के लिए अलग से शुल्क चुकाना होता था। इस परेशानी को दूर करने के लिए 1863 में अंतर्राष्ट्रीय पोस्टल काँग्रेस की बैठक बुलाई गई। इसके बाद यूपीयू के गठन का फैसला किया गया। इस यूनियन की स्थापना से वैश्विक संचार क्रांति की शुरूआत हुई। 1969 में जापान के टोक्यो (Tokyo) में आयोजित यूनिवर्सल पोस्टल यूनियन काँग्रेस (Universal Postal Union Congress) में 9 अक्टूबर को विश्व डाक दिवस के रूप में मानने की घोषणा की गई। गौरतलब है कि उस दौर में कहा गया कि 9 अक्टूबर का दिन अंतर्राष्ट्रीय पत्रों के लिए पूरी दुनिया में मुक्त प्रवाह का रास्ता खोलने की एक कोशिश है।

यूनिवर्सल पोस्टल यूनियन (यूपीयू) 1948 में संयुक्त राष्ट्र की एजेंसी बन गई। यूपीयू का संविधान 1964 की वियना पोस्टल काँग्रेस में स्वीकार किया गया जो 1966 से लागू हुआ। वर्तमान में यूपीयू के 192 सदस्य देश हैं। यह एजेंसी विश्व डाक दिवस पर हर साल पोस्टल जारी करने के अलावा कई और कार्यक्रम आयोजित करती है। साथ ही एजेंसी डाक व्यवस्था से जुड़ी वैश्विक दिक्कतों को दूर करने के लिए लगातार कोशिशें भी करती रहती है।

एक दिलचस्प पहलू यह है कि भारत में हर वर्ष 10 अक्टूबर को राष्ट्रीय डाक दिवस भी मनाया जाता है। भारत 1 जुलाई, 1876 को यूनिवर्सल पोस्टल यूनियन का सदस्य बना था। उस वक्त भारत एशिया का पहला देश था जिसे इसकी सदस्यता मिली थी।

भारतीय डाक प्रणाली का विस्तार

200 वर्षों से ज्यादा पुरानी भारतीय डाक दुनिया की डाक प्रणालियों में अव्वल है। पूरी दुनिया में या तो डाकघर बंद हो रहे हैं या संचार क्रांति के कारण सिमट रहे हैं, लेकिन भारतीय डाक का लगातार विस्तार हो रहा है। आज भी ये पूरे देश की संचार व्यवस्था की धड़कन बनी हुई है।

विदित हो कि भारत में जब ईस्ट इंडिया कंपनी आई तो उसने विश्वसनीय संचार व्यवस्था के तहत नियमित हरकारों (संदेशवाहकों) को सेवा में रखा। आधुनिक डाक व्यवस्था की शुरूआत 18वीं सदी से पहले हुई।

1766 में लॉर्ड क्लाइव ने पहली बार डाक व्यवस्था शुरू की थी। डाक व्यवस्था का विकास वारेन हेस्टिंग्स ने 1774 में कलकत्ता जीपीओ की स्थापना करके किया। इसके बाद मद्रास जनरल पोस्ट ऑफिस, 1786 और बंबई जनरल पोस्ट ऑफिस 1793 में अस्तित्व में आए।

उस वक्त के डाकघरों में एकरूपता लाने के लिए भारतीय डाकघर अधिनियम, 1837 बनाया गया। इस अधिनियम के तहत डाक व्यवस्था के एकाधिकार की पहल हुई। इस अधिनियम से तीनों प्रेसीडेंसी-कलकत्ता, मद्रास और बंबई में सभी डाक संगठनों को आपस में मिलाकर देश स्तर पर एक अखिल भारतीय डाक सेवा बनाने की शुरूआत की गई। डाक व्यवस्था को सुचारु बनाने की दिशा में 1854 का पोस्ट ऑफिस अधिनियम मील का पत्थर साबित हुआ। इसने डाक प्रणाली का स्वरूप ही बदल दिया, अर्थात सामान्य शब्दों में कहें तो भारत में वर्तमान डाक प्रणाली का मुख्य आधार यही कानून बना। इस कानून ने समूची डाक प्रणाली में सुधार किया। इसके जरिए भारत के ब्रिटिश क्षेत्रें में डाक धुलाई का एकाधिकार भारतीय डाकघरों को दिया गया। उसी वर्ष रेल डाक सेवा की भी शुरूआत की गई और भारत से ब्रिटेन और चीन के लिए समुद्री डाक सेवा शुरू की गई।

1 जुलाई 1852 को सिंध (पाकिस्तान) में ही डाक मोहर बनी। इसके दो वर्ष बाद यानी अक्टूबर 1854 में आधा आना, एक आना और चार आने के टिकट की बिक्री भी शुरू हुई। इन टिकटों पर रानी विक्टोरिया की तस्वीरें थीं। अंग्रेजों ने जब आधुनिक डाक व्यवस्था 1854 में खड़ी की तो सालाना एक करोड़ बीस लाख चिट्ठियों की आवाजाही थी जो बढ़ते-बढ़ते 1550 करोड़ तक पहुँच गई थी। उस वक्त देश कई हिस्सों में बंटा था और ये राजवाड़े की मर्जी पर निर्भर करता था कि वो डाक सेवा लागू करना चाहते हैं या नहीं। लेकिन धीरे-धीरे डाक की अहमियत को सभी ने समझा और इसका विस्तार या नेटवर्क बढ़ने लगा। 1926 में नासिक में डाक टिकटों की छपाई का काम जब शुरू हुआ तो भारतीय डाक को नई ऊर्जा मिली। 21 नवंबर, 1947 को आजाद भारत का पहला डाक टिकट जारी किया गया। इसके बाद कई वर्षों तक भारतीय डाक और भारतीय समाज एक दूसरे के भीतर इस कदर घुल-मिल गए कि एक के बगैर दूसरे की कल्पना भी मुश्किल नजर आने लगी।

गौरतलब है कि आजादी के वक्त देश में कुल 23,344 डाकघर थे, इनमें 19,184 ग्रामीण इलाकों और 4,160 शहरी क्षेत्रें में विद्यमान थे। वर्तमान में देश में डाकघरों का विशाल नेटवर्क मौजूद है। भारत में कुल 1 लाख 55 हजार 531 डाकघर हैं। गाँवों में इसका ढाँचा बहुत मजबूत है और करीब 90 फीसदी डाकघर गांवों में ही मौजूद हैं। भारत के कुल डाकघरों में ग्रामीण डाकघर 1,39,067 है, औसतन 21.56 वर्ग किमी के क्षेत्र में एक डाकघर है। एक डाकघर औसतन 7753 व्यक्तियों को सेवा दे रहा है। विदित हो कि भारतीय डाक में विभागीय कर्मचारियों की संख्या 1.84 लाख है, जबकि ग्रामीण डाक सेवकों की संख्या करीब 2.5 लाख है।

वर्तमान परिप्रेक्ष्य में देखा जाए तो भले ही संचार क्रांति के बाद देश में व्यक्तिगत चिट्ठियाँ कम हुईं हों, लेकिन अभी भी सालाना करीब 635 करोड़ डाक सामग्रियाँ आ रही हैं जिनमें 568 करोड़ सामान्य चिट्ठियाँ हैं। भारत में शायद ही ऐसा कोई नागरिक हो जिसका इस संस्थान से कोई वास्ता न पड़ा हो, चाहे वह डाक, बैंकिंग सेवा, जीवन बीमा, मनी ऑर्डर, हो या फिर पोस्टल ऑर्डर, रिटेल सेवाएँ, स्पीड पोस्ट, मनरेगा की मजदूरी, पीपीएफ (Public Provident fund) और एनएससी (National Saving Certificate) हो। भारतीय डाक की सेवा सभी ने कभी न कभी जरूर ली है।

डाक सुधारों की दिशा में उठाये गए कदम

आजादी के कई वर्षों बाद तक डाक विभाग के कंधों पर देश के सूचना और संचार तंत्र का सबसे बड़ा जिम्मा था, इसके बावजूद शुरूआती दौर में यह विभाग सरकारी उपेक्षा का शिकार बना रहा। हालांकि जैसे-जैसे संचार क्षेत्र की अहमियत बढ़ती गई, सरकार को डाक सुधारों की दिशा में काम करने पर मजबूर होना पड़ा। सरकार द्वारा डाक सुधारों की दिशा में उठाये गए कदमों को निम्न बिन्दुओं के अंतर्गत समझा जा सकता है-

  • तेज डाक वितरण के जरिए 1972 में पोस्टल इंडेक्स नंबर (Postal Index Number) यानी पिन कोड की शुरूआत की गई। संचार की बढ़ती अहमियत की वजह से 1985 में डाक और दूरसंचार विभाग को अलग-अलग कर दिया गया। इसके ठीक एक वर्ष बाद 1986 में स्पीड पोस्ट (Speed Post) सेवा की शुरूआत की गई।
  • इसके बाद 1994 में मेट्रो, राजधानी, व्यापार चैनल, ईपीएस और वीसैट के जरिए मनी ऑर्डर भेजा जाने लगा।
  • हाल ही में केन्द्र सरकार ने डाक विभाग को मजबूत बनाने के लिए अनेक कदम उठाये हैं। इनमें आईटी आधुनिकीकरण परियोजना, सेवा में सुधार के लिए प्रोजेक्ट ऐरो (Project Arrow) और नेटवर्क सुधार के लिए डाक नेटवर्क का सर्वाधिक उपयोग योजना (एमएनओपी) और चिट्ठियों की तेज छटनी के लिए स्वचालित डाक प्रोसेसिंग केन्द्र अहम हैं।
  • सभी प्रकार के पत्र, स्पीड पोस्ट, रजिस्ट्री और पार्सल के साथ-साथ मनी ऑर्डर के लिए ट्रैक (Track) और ट्रैस (Trace) सुविधा का भी विस्तार किया गया है।
  • सरकार के मुताबिक 27,215 डाकघरों, डाक कार्यालयों और प्रशासनिक कार्यालयों को देश व्यापी वाइड एरिया नेटवर्क या वैन (Wide Area Network-WAN) से जोड़ा गया है।
  • सरकार ने निजी कंपनियों से प्रतिस्पर्द्धा करने के लिए एक्सप्रेस पार्सल, बिजनेस पार्सल, कैश ऑन डिलीवरी, ऑनलाइन मनी ट्रांसफर सेवा, इंस्टेंट मनी ऑर्डर और ई-ग्रीटिंग जैसी नई सेवाएँ भी शुरू की हैं।
  • हाल ही में सरकार ने मोबाइल यूजर्स के लिए मोबाइल ऐप भी शुरू किया है।
  • डाक विभाग को और ज्यादा सुलभ बनाने के लिए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने 1 सितंबर 2018 को इंडिया पोस्ट पेमेंट्स बैंक (India Post Payments Bank-IPPB) की शुरूआत की। ‘आपका बैंक आपके द्वार’ के नारे से शुरू हुआ आइपीपीबी आज देश के दूर दराज के ग्रामीण इलाकों तक पहुँच चुका है। वर्तमान में आइपीपीबी खातों की संख्या एक करोड़ से ज्यादा हो गई है और इससे डाकघर बचत के 20 करोड़ बैंक खातों को भी जोड़ा जा रहा है।
  • आइपीपीबी की एक खूबी यह भी है कि इसके खातों से पीएलआई, आरपीएलआई, सुकन्या समृद्धि खाता, पीपीएफ और रिकरिंग डिपॉजिट के साथ दूसरी स्कीमों में डिजिटल भुगतान हो रहा है।
  • डाक विभाग ने चुनिंदा शहरों में जीआईएस (Geographic Information Systems) मैपिंग के जरिए डाक वितरण की पहल भी शुरू की है। डाक विभाग आज म्युचुअल फंड (Mutual Fund) की रिटेलिंग, डाक जीवन बीमा और बैंकिंग क्षेत्र तक अपने पैर पसार चुका है।

चुनौतियाँ

तकनीक के दखल के बाद डाक विभाग की चुनौतियाँ काफी बढ़ी हैं, तकनीकी युग में चिट्ठी, पत्रों की दुनिया लगातार सिमटती जा रही है। वर्तमान में ई-मेल, एसएमएम (SMS) , फेसबुक, ट्विटर और सोशल मीडिया के जरिए दुनिया के किसी भी कोने में सेकेण्डों में पहुँचा जा सकता है, जिससे डाक प्रणाली में चुनौतियों का समावेश हुआ है। डाक विभाग को सरकार द्वारा काफी प्रोत्साहन देने के बादजूद इसके समक्ष कई चुनौतियाँ विद्यमान हैं, जिन्हें निम्न बिन्दुओं के अंतर्गत समझा जा सकता है-

  • मोबाइल फोन के विस्तार ने चिट्ठियों के सिलसिलों पर लगभग विराम सा लगा दिया है। अब लोगों की दूरी बस एक स्विच ऑन और क्लिक में सिमट गई है। इसके बाद लोग ई-जनरेशन में पहुँच गए हैं, जहाँ सोशल नेटवर्किंग साइट्स, एसएमएस, फोन, वीडियो कॉलिंग और मुफ्रत ऑडियो कॉलिंग की सुविधा है वहाँ डाक सेवा इसके सामने धीरे-धीरे कमजोर होता जा रहा है।
  • डाक विभाग में ज्यादातर चिट्ठियाँ या तो सरकारी दफ़्तरों से आती हैं या फिर कंपनियों से। डाक विभाग नये-नये परिवर्तनों को तो अपना रहा है मगर फिर भी यह विभाग तकनीक के इस युग में अपने आप को संतुलित नहीं कर पा रहा है।
  • भारतीय डाक ने 1997-98 में 15 अरब 74 करोड़ चिट्ठियाँ बाँटी, 2006-07 में यह आंकड़ा घटकर 6 अरब 39 करोड़ रह गया। वर्ष 2012-13 में 6 अरब 5 करोड़ और 2013-14 में 6 अरब 8 करोड़ चिट्ठियां भारतीय डाक ने देशभर में पहुँचायीं। यही वजह है कि पिछले कुछ सालों में भारतीय डाक विभाग का राजस्व घाटा लगातार बढ़ रहा है। साल 2016 में यह 150 फीसदी बढ़कर 6 हजार 7 करोड़ रुपये तक पहुँच गया। वहीं 2019 में यह घाटा बढ़कर 15 हजार करोड़ रुपये तक पहुँच गया है।
  • गौरतलब है कि कुछ वर्षों से पंजीकृत चिट्ठियों की संख्या में भी भारी कमी दर्ज की गई है, जबकि साधारण डाक के जरिए आज भी अरबों चिट्ठियाँ भेजी जा रही हैं। इनमें दफ्रतर से हुए पत्रचार की बड़ी भूमिका तो है मगर गैर सरकारी चिट्ठियों की आवाजाही अपेक्षाकृत कम है।
  • उदारीकरण के बाद कुरियर कंपनियों की बाढ़ आ गई, वैसे तो नियमों के तहत चिट्ठियों पर डाक विभाग का एकाधिकार है, लेकिन पैकेट के नाम पर बड़ी संख्या में चिट्ठियाँ कुरियर कंपनियाँ ले जा रही हैं। इसके अलावा तमाम सेवाओं पर डाक विभाग घाटा उठा रहा है जो पोस्टकार्ड 50 पैसे का है उस पर लिखी चिट्ठी को पहुँचाने में बारह रुपये पन्द्रह पैसे की लागत आती है। वहीं अंतर्देशीय पत्र की कीमत ढाई रुपये है लेकिन उसे पहुँचाने में बारह रुपये सात पैसे की लागत आती है।

आगे की राह

संचार और आइटी (Information Technology) क्रांति ने बेशक पत्रों या चिट्ठियों पर असर डाला है, मगर इसकी उपयोगिता समाप्त नहीं हुई है। पत्र जैसा संतोष न फोन दे सकता है और न ही कोई दूसरा साधन। दुनिया का तमाम साहित्य पत्रों पर केन्द्रित है, अर्थात मानव सभ्यता के विकास में पत्रों की अनूठी भूमिका रही है। इसलिए डाक व्यवस्था के सुधार के साथ पत्रों को सही दिशा देने के लिए विशेष प्रयास भी हुए। पत्र संस्कृति विकसित करने के लिए स्कूल पाठ्यक्रमों में पत्र लेखन का विषय भी शामिल हुआ। आज देश में ऐसे लोगों की कमी नहीं है जो अपने पूर्वजों की चिट्ठियों को सहेज और संजोकर विरासत के रूप में रखे हुए हैं। व्यक्तिगत पत्रचार तो घटा है किन्तु व्यावसायिक पत्रचार के लिए डाक पर भरोसा बढ़ा है। वर्तमान डाक विभाग द्वारा पासपोर्ट व अन्य महत्वपूर्ण कागजात बनाये जाते हैं। साथ ही संघ लोक सेवा आयोग एवं अन्य परीक्षाओं के प्रश्न पत्र पोस्टल डिपार्टमेंट के माध्यम से हर राज्य में पहुँचाए जाते हैं, इससे ही इसकी महत्ता का अंदाजा लगाया जा सकता है।

वर्तमान में देखा जाए तो प्रधानमंत्री कार्यालय में हर रोज लगभग 5 हजार चिट्ठियाँ आती हैं, सांसदों, विधायकों, जनप्रतिनिधियों के पास तो रोज सैकड़ों की संख्या में पत्र आते हैं, इससे इस बात को बल मिलता है कि डाक हमारे जीवन में कितनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं, इसलिए डाक विभाग को नये सिरे से मजबूत करने की आवश्यकता है।

निष्कर्षतः कहा जा सकता है कि समय के साथ डाक की भूमिका बदल सकती है, किन्तु उसका महत्व समाप्त नहीं हो सकता, इसलिए भारत सरकार को उन सभी क्षेत्रें में कार्य करने की आवश्यकता है जिनमें डाक विभाग को समस्याएँ आ रही हैं।

सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र-3

  • भारतीय अर्थव्यवस्था तथा योजना, संसाधनों को जुटाने, प्रगति, विकास तथा रोजगार से संबधित मुद्दे।
  • बुनियादी ढाँचाः ऊर्जा, बंदरगाह, सड़क, विमानपत्तन, रेलवे आदि।

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