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Daily-mcqs 22 Sep 2020

(Video) Daily Current Affairs for UPSC, IAS, UPPSC/UPPCS, BPSC, MPSC, RPSC & All State PSC/PCS Exams - 22 September 2020 22 Sep 2020

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(Video) Daily Current Affairs for UPSC, IAS, UPPSC/UPPCS, BPSC, MPSC, RPSC & All State PSC/PCS Exams - 22 September 2020


(Video) Daily Current Affairs for UPSC, IAS, UPPSC/UPPCS, BPSC, MPSC, RPSC & All State PSC/PCS Exams - 22 September 2020



किन संसदीय नियमों के लिए विपक्ष लड़ रहा है।

  • विधेयक किसी विधायी प्रस्ताव का प्रारूप होता है, जिसे कई चरणों से पास कर के अधिनियम बनाया जाता है।
  • देश के हित में सरकार यदि कोई नया कानून बनाना चाहती है या किसी पुराने कानून में आवश्यकतानुसार संशोधन करना चाहती है तब विधेयक एक प्रस्ताव के रूप में पेश किया जाता है।
  • विधेयक/बिल सबसे पहले केंद्रीय मंत्रिमंडल के सामने विचार- विमर्श के लिए आता है, जहाँ इसके इसमें क्या जोड़ना ,क्या घटाना है इस पर मंत्रिमंडल विचार करता है।
  • इसके बाद विधान संबंधी प्रक्रिया प्रारंभ होती है, जिसके अंतर्गत प्रस्ताव/विधेयक संसद के किसी भाग (राज्यसभा या लोकसभा) में प्रस्तुत किया जाता है। विधेयक के प्रभारी सदस्य के लिए विधेयक को पुरः स्थापित करने हेतु सभा की अनुमति लेनी होती है, इसके बाद विधेयक प्रस्तुत किया जाता है, यह विधेयक का प्रथम चरण या प्रथम वाचन कहलाता है।
  • विधेयक पुरः स्थापित किये जाने के पश्चात संबंधित सभा का पीठासीन अधिकारी जांच तथा प्रतिवेदन प्रस्तुत करने हेतु इसे संबंधित समिति को भेज सकता है।
  • यदि किसी विधेयक को स्थायी समिति को भेजा जाता है तो समिति उस विधेयक के आम सिद्धांतों ओर खण्डों पर विचार कर उस पर अपना प्रतिवेदन देती है। समिति विशेषज्ञों की राय भी ले सकती है।
  • इसके बाद विधेयक का द्वितीय वाचन प्रारंभ होता है। इसके दो चरण हो सकते है। पहला- चरण विधेयक पर सभा में सामान्य चर्चा होती है और इस दौरान विधेयक को प्रवर समिति या दोनों सदनों की संयुक्त समिति को भी विधेयक सौंपा जा सकता है। दूसरे चरण में विधेयक (या प्रवर समिति/संयुक्त समिति द्वारा यथा प्रतिवेदित रूप में विधेयक, जैसी भी स्थिति हो) पर खंडवार विचार किया जाता है।
  • इस दौरान विधेयक के प्रत्येक खण्ड पर चर्चा होती है और संशोधन भी प्रस्तुत किये जाते हैं।
  • किसी खंड पर प्रस्तुत किये गये परंतु वापस नहीं लिये गये संशोधनों को सभा द्वारा संबंधित खण्ड का निपटान किये जाने से पहले सभा में मतदान के लिए रखा जाता है।
  • सभा में उपस्थित तथा मतदान करने वाले सदस्यों द्वारा बहुमत से स्वीकार करने के पश्चात संशोधन , विधेयक का अंग बन जाते हैं। इसके बाद विधेयक नाम स्वीकृत किया जाता है। और द्वितीय वाचन पूरा हो जाता है।
  • इसके बाद तीसरा वाचन प्रारंभ होता है, जिसमें प्रभारी सदस्य कह सकता है कि विधेयक परित किया जाये इसके पश्चात सामान्य विधेयक को साधारण बहुमत से पारित कर दिया जाता है।
  • एक सभा द्वारा विधेयक पारित किये जाने के बाद इसे सहमति प्रदान करने के संदेश के साथ दूसरी सभा को भेजा जाता है और वहां भी उसे पुरः स्थापन के चरण को छोड़कर उपरोक्त सभी चरणों से गुजरना पड़ता है।
  • वर्तमान समय में संसद तीन विधयेकों के प्रावधानों एवं उसे पास करवाने के तरीके को लेकर चर्चा में बनी हुई है।
  • यह विधेयक कृषक उपज व्यापार और वाणिज्य (संवर्द्धन एवं सरलीकरण विधयेक 2020 और मूल्य आश्वासन और कृषि सेवाओं पर किसान (सशक्तिकरण और संरक्षण) समझौता विधेयक, 2020 है जिन्हें पिछले सप्ताह लोकसभा द्वारा स्वीकृति दे दी गई थी। तीसरा विधेयक आवश्यक वस्तु अधिनियम (संशोधन) 2020 है।
  • प्रथम दो कृषि संबंधी विधेयकों को राजसभा में 20 सितंबर को ध्वनि मत के साथ पारित कर दिया गया। राज्यसभा के उपसभापति हरिवंश नारायण सिंह द्वारा प्रस्तावों पर मतदान कराने से मना करने तथा ध्वनि मत के साथ पारित कराये जाने के बाद विपक्षी दल ने जोर-शोर से इसका विरोध प्रारंभ कर दिया है।
  • विपक्ष ने जहां इसे लोकतंत्र एवं संसदीय नियमों की हत्या बताया वहीं सरकार का कहना है कि उसने सभी नियमों का पालन किया ,बहुमत के आधार पर ही विधेयकों को पारित किया गया है।
  • राज्य सभा के कामकाज से संबंधित नियम-252 से लेकर 254 तक में मत विभाजन के चार अलग-अलग तरीकों का उल्लेख किया गया है। यह तरीकें ध्वनि मत, काउंटिंग/वोटिंग, ऑटोमैटिक वोट रिकॉर्डर के जरिए मत विभाजन और लॉबी में जाकर पक्ष/विक्षप के समर्थन में खड़े होना सम्मिलित है।
  • ध्वनि मत में सदन के सभापति/अध्यक्ष द्वारा सदन के समक्ष प्रस्ताव रखते हुए सदन के सदस्यों से ‘हाँ’ (Ayes) और ‘ना’ (Noes) के रूप में अपनी राय देने को कहा जाता है।
  • ध्वनि मत के आधार पर जब मत का निर्णय होता है तो अध्यक्ष या सभापति तय करते है कि प्रस्ताव पारित किया गया था या नहीं।
  • ध्वनि मत के माध्यम से सामान्यतः तब विधेयकों को पारित किया जाता है जब उस पर ज्यादा विरोध न हो और सरकार का बहुमत संबंधित सदन में हो, जिससे सरकार के विधेयक को पास कराने के लिए मताभाव का संकट न हो। दूसरे शब्दों में विधेयक को भारी समर्थन मिल सकता हो।
  • सर्वसम्मति (पक्ष/विपक्ष) से यदि ध्वनि मत से विधेयक पर मत विभाजन का विकल्प चुना जाता है तो कोई समस्या नहीं है। लेकिन यह विधेयक ऐसे हों जिनका विरोध संसद से लेकर सड़क तक हो रहा हो तो ध्वनि मत से पारित करवाना संसदीय परंपरा के अनुकूल नहीं माना जा सकता है, तब तो बिल्कुल भी नहीं जब सरकार के सांसद एवं समर्थक राजनीतिक दलों में एकमत का अभाव हो।
  • कृषि विधेयक के प्रावधानों को लेकर कई दिनों से विरोध हो रहा है तथा यह विधेयक कुछ प्रावधानों के कारण विवादित रूप भी धारण कर चुका है ऐसे में इसे ध्वनि मत से पारित करवाना संसदीय परंपरा के अनुकूल नहीं है।
  • इन विधेयकों के विरोधस्वरूप भारतीय जनता पार्टी के ही सहयोगी अकाली दल ने स्वयं को सरकार से पृथक कर लिया है और उसके ही कई सांसद खुलकर सरकार का समर्थन करते हुए दिखाई नहीं दे रहे हैं।
  • भारतीय जनता पार्टी के पास राज्यसभा की लगभग एकतिहाई सीटे हैं, ऐसे में उपसभापति द्वारा इतने महत्वपूर्ण मामले को ध्वनि मत से पास करना, समीक्षकों के अनुसार ठीक नहीं है।
  • ध्वनि मत द्वारा पास करवाने पर विपक्ष ने कहा है कि इतने हंगामें के बीच उपसभापति द्वारा यह पता लगाना असंभव है कि बहुमत प्राप्त हुआ या नहीं।
  • विपक्ष ने इस अपनी नाराजगी दिखते हुए राज्सभा के उप सभापति को हटाने हेतु अविश्वास प्रस्ताव प्रस्तुत करने के लिए 12 विपक्षी दल एक साथ आ गये।
  • विपक्ष ने कृषि विधेयक पर अगले दिन भी चर्चा जारी रखने की मांग की, जिसे ने खारिज कर दिया जिसके बाद संसद में गतिरोध और भी ज्यादा हो गया। इसकी प्रतिक्रिया में राजसभा के सभापति द्वारा विपक्षी सांसदों को नियम-256 के तहत निलंबित कर दिया गया।
  • इसके बाद विपक्ष और भी भड़क गया और उसने संसदीय मर्यादाओं को ताक पर रखने का आरोप सरकार और भारतीय जनता पार्टी पर लगाया।
  • विपक्ष अब इस मुद्दे पर राष्ट्रपति के हस्तक्षेप की भी मांग कर रहा है।
  • विपक्ष ने उपसभापति के खिलाफ पेश किये गये अविश्वास प्रस्ताव में कहा है कि उपसभापति ने संसदीय परंपराओं, कानूनों एवं निष्पक्षता के नियामें का उल्लंधन किया है तथा विपक्ष के सदस्यों को अपनी बात कहने का मौका नहीं दिया है।
  • विपक्ष ने कहा है कि अब उन्हें उपसभापति पर कोई विश्वास नहीं है, इसलिए अविश्वास प्रस्ताव लाया गया है।
  • अविश्वास प्रस्ताव का समर्थन कांग्रेस, ऑल इंडिया तृणमूल कांग्रेस, DMK, CPI-M, CPI, RJD, AAP, TRS, IUML आदि द्वारा किया जा रहा है।
  • राज्यसभा के उपसभापति चौहद दिन पूर्व नोटिस देकर और उसके बाद अविश्वास प्रस्ताव कुल सदस्यों के बहुमत पारित करके हटाया जा सकता है।
  • संविधान के अनुच्छेद-90 में उपसभापति के पद के रिक्त होने, पदत्याग और पद से हटाये जाने के बारे में इसका उल्लेख किया गया है।
  • कृषि संबंधित इन विधेयकों के संदर्भ में विपक्ष एक और प्रमुख कारण से नाराज है, वह है विधेयकों की संसदीय समिति द्वारा जांच न करवाना।
  • विपक्ष का कहना है कि कृषि भारतीय ग्रामीण अर्थव्यवस्था का प्रमुख आधार है, जिसके संदर्भ में कोई विधेयक लाने और पास करवाने के चरण में उस पर गहन विचार-विमर्श की आवश्यकता होती है इसलिए संसदीय समिति को इन्हें सौंपा जाना चाहिए था।
  • संसदीय समितियाँ जटिल विशेषतों के माध्यम से जटिल मुद्दों पर विचार-विमर्श कर संसदीय कार्यों को आसान करती हैं तथा अपनी रिपोर्ट के आधार पर संसद को मुद्दों को समझाने का प्रयास करती है।
  • हमारे संविधान में ऐसी समितियों का अलग-अलग स्थानों और संदर्भो में उल्लेख अता है लेकिन इन समितियों के गठन, कार्यकाल तथा कार्य आदि के विषय में कोई संवैधानिक प्रावधान नहीं किया गया है इसलिए संसद के नियमों के तहत ही इन्हें डील किया जाता है।
  • संसदीय समिति क्या है? 1. जो किसी सदन द्वारा निर्वाचित/नियुक्त होती है या जिसे सदन के अध्यक्ष/सभापति नामित करते हैं। 2. जो अध्यक्ष/सभापति के दिशानिर्देशों अनुसार कार्य करती है और उन्हें अपनी रिपोट्र सौंपती है। 3. जिसका अपना एक सचिवालय होता है जिसकी व्यवस्था लोकसभा या राज्यसभा सचिवालय करता है।
  • कोई विधेयक स्वचालित तरीके संसदीय समिति के पास नहीं जाता है। बल्कि वह तरीकों से संसदीय समिति तक पहुचता है।
  1. विधेयक का प्रभारी सदस्य/मंत्री स्वयं प्रस्ताव रखता है कि इस विधेयक को प्रवर समिति या दोनों सदनों की संयुक्त समिति द्वारा जांच की जायों जैसा कि पिछले साल पर्सनल डेटा प्रोटेक्शन बिल के संदर्भ में किया गया था।
  2. पीठासीन अधिकारी/अध्यक्ष भी किसी विधेयक को संसदीय समिति के पास भेजने का अधिकार होता है कई बार जब किसी विधेयक पर कोई गतिरोध उत्पन्न होता है तब ऐसा निर्णय लिया जाता हैं पिछली लोकसभा के कार्यकाल के दौरान राज्यसभा के सभापति वेंकैया नायडू ने 8 विधेयक संसदीय समिति के पास भेजा था।
  3. एक सदन द्वारा पारित विधेयक जब दूसरे सदन में जाता है तो पारित विधेयक को वह सदन अपनी प्रवर समिति को भेज सकता है।
  • संसदीय समिति विधेयक का परीक्षण करती है, विशेषज्ञों, हित धारकों के सुझाव आमंत्रित करती है। सरकार भी अपना पक्ष रखती है।
  • आमतौर पर संसदीय समितियों को तीन महीने में अपनी रिपोर्ट देनी होती लेकिन कभी-कभी इसमें समय लग जाता है।
  • समिति जब किसी विधेयक पर विचार कर रही होती है तब वह विधेयक वहीं रूक जाता है। जब समिति अपनी रिपोर्ट सौंप देती है तब ही वह आगे बढ़ती है।
  • संसदीय समितियों की रिपोर्ट भले ही अनुशंसात्मक प्रकृति की होती है, लेकिन इसका महत्व बहुत ज्यादा होता है।
  • 14वीं लोकसभा में 60 प्रतिशत विधेयक, 15वीं लोकसभा में 71 प्रतिशत विधेयक, 16वीं लोकसभा में 25 प्रतिशत विधयकों को संसदीय समितियों को भेजा गया था।

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