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Daily-mcqs 21 Oct 2020

(Video) Daily Current Affairs for UPSC, IAS, UPPSC/UPPCS, BPSC, MPSC, RPSC & All State PSC/PCS Exams - 21 October 2020 21 Oct 2020

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(Video) Daily Current Affairs for UPSC, IAS, UPPSC/UPPCS, BPSC, MPSC, RPSC & All State PSC/PCS Exams - 21 October 2020


(Video) Daily Current Affairs for UPSC, IAS, UPPSC/UPPCS, BPSC, MPSC, RPSC & All State PSC/PCS Exams - 21 October 2020



मालाबार सैन्य अभ्यास चर्चा में क्यों है?

  • 1990 का दशक कई प्रकार के राजनीतिक एवं आर्थिक बदलावों वाले दशक के रूप में जाना जाता है।
  • शीतयुद्ध में आर्थिक और राजनीतिक और सामरिक प्रभुत्व स्थापित करने का प्रयास अमेरिका एवं उसके समार्थिक देशों तथा सोवियत संघ एवं उसके समर्थित देशों के बीच किया जा रहा था।
  • शीतयुद्ध के खात्मे के बाद भारत ने सभी देशों से अपने संबंध मजबूत करने का निर्णय लिया। इसीक्रम में भारत ने अमेरिका के साथ वर्ष 1992 में मालाबार साझा नौसैनिक अभ्यास शुरू किया।
  • भारत का मकसद इसे प्रारंभ करने का यह था कि वह हिंद महासागर क्षेत्र में शांति स्थापित कर सके और समुद्री क्षेत्र को नौपरिवहन के दृष्टिकोण से सुरक्षित और किफायती बना सके।
  • वर्ष 1992 से यह अभ्यास अमेरिका और भारत के बीच हर साल होता है, जिसमें दोनों की नौसेनाएं एक दूसरे को मजबूत एवं सशक्त करने का प्रयास करती है।
  • वर्ष 2007 में ऑस्ट्रेलिया एक बार इसमें भाग लिया लेकिन चीन के द्वारा विरोध किये जाने पर वह इससे अलग हो गया।
  • वर्ष 2015 में जापान भी इसमें शामिल हो गया तब से मालाबार सैन्य अभ्यास अमेरिका, जापान और भारत का त्रिपक्षीय सैन्य अभ्यास बन गया।
  • वर्ष 2017 में यह अभ्यास चेन्नई के तट पर आयोजित किया गया, वर्ष 2018 में यह अभ्यास फिलीपींस के गुआम तट पर आयोजित किया गया तथा वर्ष 2019 में यह जापान में आयोजित हुआ था। इस साल (2020) यह नवंबर माह में बंगाल की खाड़ी और अरब सागर में होगा। इस बार का मालाबार सैन्य अभ्यास इसलिए खास है क्योंकि इसमें भारत, अमेरिका एवं जापान के साथ ऑस्ट्रोलिया भी शामिल होगा।
  • वर्ष 2007 में एक बार शामिल होने के बाद जब ऑस्ट्रेलिया इसे अलग हो गया तो उसने इसमें अपने लिए पर्यवेक्षक सदस्य के रूप में मांग की।
  • इस दौरान भारत भी चीन को नाराज नहीं करना चाहता था इसलिए भारत ने भी अपनी तरफ से कोई विशेष प्रयास नहीं किये।
  • हाल के वर्षों में ऑस्ट्रेलिया और चीन के बीच तनाव बढ़ा है तो दूसरी तरफ भारत और ऑस्ट्रेलिया के बीच कई प्रकार के समझौते भी हुए है, जिससे दोनों देश एक दूसरे के नजदीक आये है।
  • कुछ माह पहले भारत और ऑस्ट्रेलिया ने हिंद-प्रशांत क्षेत्र में शांति स्थापित करने के लिए एक दूसरे के द्विपीय सैन्य बेस का उपयोग करने का समझौता किया था।
  • कोरोना काल में चीन के साथ भारत और ऑस्ट्रेलिया के संबंध बहुत ज्यादा तनावपूर्ण हो गये है। इसी कारण कई समीक्षकों, जापान और अमेरिका जैसे देशों का मानना था कि ऑस्ट्रेलिया को भी अब मालाबार सैन्य अभ्यास में शामिल हो जाना चाहिए।
  • अमेरिका और जापान भी भात पर ऑस्ट्रेलिया को इस अभ्यास में शामिल करने का दबाव बना रहे थे।
  • इसी क्रम में 6 अक्टूबर, 2020 को टोकियो में आयोजित क्वाड देशों के विदेशमंत्रियों की बैठक में ऑस्ट्रेलिया को मालाबार अभ्यास में शामिल करने पर चर्चा हुई। चीन ने इस पर एतराज जताया लेकिन भारत ने अब चीन की चिंताओं को दरकिनार करते हुए ऑस्ट्रेलिया के संदर्भ में सकारात्मक रूप दिखाया।
  • अब यह सार्वजनिक घोषण सभी देशों द्वारा की जा चुकी है कि नवंबर में होने वाले इस सैन्य अभ्यास में ऑस्ट्रेलिया भी शामिल होगा।
  • मालाबार 2020 में अरब क्वाड समूह (Quad Group) के चारों देशों भारत, अमेरिका, जापान और ऑस्ट्रेलिया को एक साथ लायेगा।
  • ऑस्ट्रेलिया के विदेश मंत्रलय ने कहा है कि यह अभ्यास चारों देशों की क्षमता को बढ़ायेगा ताकि शांति और स्थिरता कायम रहे।
  • आस्ट्रेलिया का मानना है कि मालाबार जैसे महत्वपूर्ण सैन्य अभ्यास समुद्री क्षमता को बढ़ाने, एक खुले और मुक्त डंडो-पैसेफिक क्षेत्र के लिए महत्वपूर्ण है।
  • मालाबार सैन्य अभ्यास दुनिया के सबसे महत्वपूर्ण सैन्य अभ्यायों में गिना जाता है। इसमें एक लाख टन वजनी विमान वाहक पोत यूएसएस निमित्ज एवं परमाणु ऊर्जा से चलने वाला यूएसएस निमित्ज एफए-18 फाइटर जेट हिस्सा लेते है। इस अभ्यास में दुनिया का सबसे बड़ा अमेरिकी एंटी सबमरीन हथियार भी शामिल किया जाता है।
  • भारत की तरफ से आईएनएस विक्रमादित्य एवं शिपालिक श्रेणी के युद्धपोत शामिल होते है।
  • आने वाले समय में भारत-अमेरिका सहयोग और बढ़ सकता है। 26 और 27 अक्टूबर कोई नई दिल्ली में दोनों देशों के बीच 2+2 फॉर्मेट में रक्षा एवं विदेश मंत्रियों की बैठक होने वाली है।
  • बीजिंग इस समुदी चतुर्भुज को एक एशियाई-नाटो के रूप में देखता है, जो चीन को बाधित करना चाहता है।
  • वहीं भारत, अमेरिका जैसे देशों का मानना है कि चीन जिस तरह पूर्वी चीन सागर, दक्षिणी चीन सागर में अपना हस्तक्षेप और आक्रामकता बढ़ा रहा है उससे वैश्विक चिंता और असुरक्षा बढ़ सकती है।

Quad चर्चा में क्यों हैं?

  • कुछ माह पहले भारत के चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ (सीडीएस) जनरल बिपिन रावत ने कहा था कि “क्वाड (Quad) ग्रुप में क्षमता है की वह हिन्द महासागर, हिन्द- प्रशांत क्षेत्र और अन्य महासागरीय क्षेत्र में ‘नेविगेशन संचालन की स्वतंत्रता’ (freedom of navigation operation) सुनिश्चित करने हेतु मिलकर नेविगेशन संचालन को ऑपरेट (operate) कर सकता है”।
  • भारतीय चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ (सीडीएस) के इस बयान से कयास लगाए जाने लगे थे कि क्या भारत हिन्द महासागर, हिन्द- प्रशांत क्षेत्र और अन्य महासागरीय क्षेत्र में क्वाड (Quad) ग्रुप के दूसरे देशों (अमेरिका, जापान और आस्ट्रेलिया) के साथ मिलकर ज्वाइंट पेट्रोलिंग (Joint Petroling) कर सकता है। यदि ऐसा हुआ तो क्वाड (Quad) ग्रुप का सैन्यीकरण (Militarisation) का रास्ता प्रशस्त होगा।
  • भारत परंपरागत रूप से हिन्द महासागर और हिन्द-प्रशांत क्षेत्र में किसी भी तरह के सैन्यीकरण को लेकर उत्साहित नहीं रहा है। इसीलिए भारत क्वाड ग्रुप के सैन्यीकरण को भी नकारता रहा है।
  • भारत, हिन्द महासागर क्षेत्र में भी बड़ी मुश्किल से ही किसी देश के साथ ज्वाइंट पेट्रोलिंग (Joint Petroling) हेतु राजी होता है क्योंकि भारत का मानना है कि हिन्द महासागर क्षेत्र में किसी अन्य देश की उपस्थिति से भारत का इस क्षेत्र में प्रभाव कम हो सकता है।
  • हालांकि हाल ही में भारत ने फ्ररांस के साथ मिलकर हिन्द महासागर में ज्वाइंट पेट्रोलिंग की थी।
  • भारत, मालाबार सैन्य अभ्यास में अभी तक ऑस्ट्रेलिया को शामिल करने हेतु राजी नहीं था लेकिन अब राजी हो गया है।

क्या है क्वाड (Quad) की अवधारणा?

  • ‘क्वाड’ दरअसल चार देशों- भारत, जापान, ऑस्ट्रेलिया और अमेरिका का एक समूह है। हिंद-प्रशांत क्षेत्र में शांति और स्थिरता, कानून का पालन सुनिश्चित करने के लिए इन देशों ने हाथ मिलाया है । गौरतलब है कि हिंद महासागर और प्रशांत महासागर के कुछ समुद्री भागों के हिस्से को हिंद प्रशांत क्षेत्र (Indo-Pacific Area) कहते हैं। वर्तमान में इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में 38 देश शामिल हैं, जो विश्व के सतह क्षेत्र का 44 प्रतिशत है।
  • जापानी प्रधानमंत्री शिंजो आबे ने हिंद-प्रशांत क्षेत्र में किसी एक देश के बढ़ते प्रभुत्व के कारण उत्पन्न हो रही भू-राजनैतिक और भू- रणनीतिक चिंताओं के मद्देनजर 2007 में भारत, अमेरिका व ऑस्ट्रेलिया के नेतृत्वकर्त्ताओं के साथ मिलकर रणीनतिक वार्ता के रूप में ‘क्वाड’ नामक अनौपचारिक समूह की शुरुआत की थी। वर्ष 2008 में ऑस्ट्रेलिया द्वारा इस ग्रुप से बाहर हो गया, जिसके परिणामस्वरूप ‘क्वाड’ का सिद्धान्त शिथिल पड़ गया था ।
  • वर्ष 2017 में भारत, जापान, ऑस्ट्रेलिया और अमेरिका ने मिलकर ‘क्वाड’ को ‘क्वाड’ 2.0 के रूप में फिर से पुनर्जीवित किया था। ‘क्वाड’ मार्च में कोरोना वायरस को लेकर भी क्वॉड की मीटिंग हुई थी। इसमें पहली बार न्यूजीलैंड, द- कोरिया और वियतनाम भी शामिल हुए थे।
  • कुछ विशेषज्ञों का कहना है कि आधिकारिक तौर पर भले ही‘क्वाड’ को लेकर कुछ कहा जाये लेकिन व्यावहारिक तौर पर हिन्द-प्रशांत क्षेत्र में चीन के बढ़ते सैन्य प्रभाव को रोकने के लिए ये लोकतान्त्रिक देश एक साथ आए हैं। क्वाड का चीन के अलावा रूस भी विरोध करता है।
  • आसियान के कुछ देश ‘क्वाड’ का खुलकर समर्थन करते हैं, जबकि अन्य देश चीन को नाराज नहीं करने की नीति को अपनाते हुए ‘क्वाड’ के बारे में सधी प्रतिक्रिया देते हैं।
  • क्वाड का उद्देश्य नेविगेशन की स्वतंत्रता, ओवर फ्रलाइट की स्वतंत्रता, अंतर्राष्ट्रीय नियमों का सम्मान, समुद्री क्षेत्र में शांति व सुरक्षा, परमाणु अप्रसार आदि मुद्दों पर बल प्रदान करना है।
  • भारत ने समुद्र में आने-जाने की आजादी के सिद्धांत पर जोर देकर, समुद्र के अंतरराष्ट्रीय कानून का सम्मान कर और चारों देशों के साझा विचार के साथ तालमेल बैठाकर अपने लिए एक अलग जगह बनाई है।

क्वाड के सैन्यीकरण को लेकर भारत की रणनीति

  • भारत ने क्वाड के सैन्यीकरण को लेकर परंपरागत रूप से अरूचि ही दिखाई है और कई मौकों पर तो क्वाड के सैन्यीकरण के मुद्दे पर विरोध भी दर्ज कराया है।
  • भारत का कहना है कि क्वाड का उपयोग असैनिक या नागरिक मुद्दों के लिये ही होना चाहिये।
  • वर्ष 2018 में शांग्रिला डायलॉग में भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा था कि भारत, हिन्द-प्रशांत क्षेत्र को एक भौगोलिक सिद्धांत (Geographical Concept) प्रदान करता है, न कि यह कुछ देशों की विशेष रणनीति पर बल प्रदान करता है। कुल-मिलकर भारतीय प्रधानमंत्री का इशारा क्वाड की तरफ था, जिसे भारत सहित कुछ देशों ने मिलकर एक विशेष रणनीति के तहत बनाया है।
  • कुछ माह पहले विदेश मंत्री एस जयशंकर ने कहा था कि भारत द्वारा गुटनिरपेक्ष आंदोलन को वरीयता ना देने का यह मतलब नहीं है कि भारत किसी अन्य संगठन या तंत्र का हिस्सा बनेगा। एस जयशंकर का भी इसारा क्वाड की ही तरफ था।

क्वाड के सैन्यीकरण से भारत को लाभ

  • कुछ विशेषज्ञों का कहना है कि भारत और चीन के बीच लद्दाख में सीमा पर जिस प्रकार का तनाव बना हुआ है , उसे देखते हुए भारत को क्वाड के सैन्यीकरण की तरफ बढ़ाना चाहिए ।
  • ऐसा भी देखा जा रहा है कि भारत की तमाम कोशिशों के बावजूद चीन लद्दाख में उस क्षेत्र को छोड़ने को राजी नहीं हो रहा है, जहां पहले दोनों देशों की सेनाएँ पेट्रोलिंग करती थीं। यह क्षेत्र दोनों देशों के बीच बफर जोन का कार्य करता था। कई बैठकों के बावजूद अभी तक सीमा विवाद का हल नहीं निकल पाया है। इसलिए कुछ विशेषज्ञों का कहना है कि चीन पर दबाव बनाने हेतु भारत को क्वाड पर फोकस करना चाहिये।
  • विशेषज्ञों का यह भी मानना है कि क्वाड के सैन्यीकरण से हिंद- प्रशांत क्षेत्र में स्वतंत्र नेविगशन सुनिश्चित होगा और इस क्षेत्र की सुरक्षा में भी इजाफा होगा क्योंकि क्वाड ग्रुप के सदस्य देशों का लक्ष्य हिंद-प्रशांत क्षेत्र में शांति व स्थिरता को बढ़ावा देना है।
  • क्वाड के सैन्यीकरण से भारतीय नौसेना की क्षमता में इजाफा होगा और भारत को इस ग्रुप के माध्यम से सैन्य क्षेत्र में काफी कुछ सीखने को मिलेगा क्योंकि इस क्वाड ग्रुप अमेरिका जैसी अत्याधुनिक शक्ति शामिल है।
  • कुछ विशेषज्ञों का सुझाव है कि क्वॉड को ‘एशिया का नाटो’ बना दिया जाए। विशेषज्ञों का मानना है कि क्वॉड में शामिल सभी देश अगर साथ आ जाएं तो चीनी ड्रैगन को आसानी से काबू में किया जा सकता है।

क्वाड बनाम चीन की स्ट्रिंग ऑफ पर्ल्स नीति

  • क्वाड के सैन्यीकरण के माध्यम से भारत चीन की स्ट्रिंग ऑफ पर्ल्स की नीति को भी जवाब दे सकता है।
  • जापान से लेकर अफ्रीका तक विस्तारवादी नीतियों लागू कर चीन अपनी मोतियों की माला की नीति (स्ट्रिंग ऑफ पर्ल्स नीति) के तहत दक्षिण एशिया तथा हिन्द महासागर के छोटे-छोटे देशों में सामरिक एवं आर्थिक दृष्टि से महत्वपूर्ण अîóों का निर्माण करके भारत को घेरने की लंबे समय से जीतोड़ कोशिश कर रहा है। चीन, बांग्लादेश और म्यामांर में नेवल बेस की स्थापना कर रहा है। दोनों ही देशों को चीन हथियार और अन्य साजों सामान दे रहा है।
  • चीन मालदीव में भारत से मात्र कुछ सौ किलोमीटर की दूरी पर एक कृत्रिम द्वीप बना रहा है। इसने श्रीलंका के रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण हंबनटोटा बंदरगाह को 99 साल के लिए लीज पर ले लिया है।
  • इसी तरह से चीन पाकिस्तान के ग्वादर पोर्ट को भी नेवल बेस के रूप में विकसित कर रहा है। जानकारों का मानना है कि मलक्का स्ट्रेट में भारत और अमेरिका की नजर से बचने के लिए चीन ग्वादर पोर्ट का इस्तेमाल करेगा। इसी तरह से चीन कंबोडिया में भी एयर बेस और नेवल बेस बना रहा है।

क्वाड का सैन्यीकरण एवं अन्य देश

  • क्वाड के सैन्यीकरण से हिंद-प्रशांत क्षेत्र में कई देश अपना हित साधने की कोशिश में हैं क्योंकि चीन का इस क्षेत्र में कई देशों के साथ संघर्ष है।
  • जापान का चीन के साथ एक निर्जन द्वीप को लेकर विवाद चल रहा है। माना जा रहा है कि एशिया में जापान और चीन के बीच अगली भिड़त हो सकती है। उधर, ऑस्ट्रेलिया के पास सोलोमन द्वीप पर चीन नेवल बेस बनाने की तैयारी कर रहा है। चीन के साथ अमेरिका का ट्रेड वॉर और ताइवान को लेकर विवाद बढ़ गया है। ये चारों देश एशिया के अन्य देशों के साथ मिलकर चीन को आसानी से घेर सकते हैं।
  • इनके अलावा, दक्षिणी चीन सागर में चीन के बढ़ते दबदबे से भी सब परेशान हैं। यहां केनटूना आइलैंड को लेकर सालों से चीन और इंडोनेशिया के बीच विवाद है। पार्सेल और स्पार्टी आइलैंड को लेकर चीन-वियतनाम आमने-सामने हैं।
  • दक्षिणी- चीन सागर में ही जेम्स शेल पर चीन और मलेशिया दोनों दावा करते हैं। दक्षिणी चीन सागर पर चीन के दावे को लेकर अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया और जापान ने भी अंतर्राष्ट्रीय समुद्री कानून के तहत शिपिंग का मुद्दा उठाकर चीन को चेतावनी दी है।

क्वॉड ग्रुप को लेकर भारत की विदेश नीति की चिंताएँ

  • क्वाड ग्रुप के सैन्यीकरण को लेकर भारत की अपनी चिंताएँ हैं। भारत को लगता है कि इससे चीन की भारत के प्रति नाराजगी काफी बढ़ जाएगी।
  • कुछ विशेषज्ञों का कहना है कि क्वाड ग्रुप के सैन्यीकरण का तात्पर्य है कि भारत का अमेरिका के गुट में पूरी तरह से चला जाना है। जबकि भारत हमेशा से ही गुट निरपेक्ष की नीति पर बल देता आया है।
  • भारत एशिया में चीन को संतुलित करने हेतु अमेरिका का मोहरा नहीं बनना चाहता है।
  • भारत को लगता है कि क्वाड ग्रुप के सैन्यीकरण से भारत की विदेश नीति की रणनीतिक स्वतन्त्रता प्रभावित हो सकती है।

क्वॉड ग्रुप के अस्तित्व को आने में लेकर चुनौतियाँ

  • चीन-केंद्रित क्वाड 2.0 रणनीति का भारत के लिए प्रत्यक्ष परिणाम हो सकते हैं क्योंकि इस समूह में भारत ही एकमात्र राष्ट्र है चीन के साथ स्थलीय सीमाओं को साझा करता है। वर्तमान में चीन- पाकिस्तान की सांठगांठ और लद्दाख में गतिरोध को लेकर तनाव द्विपक्षीय संबंधों पर हावी है।
  • यह भारत के दो प्रमुख भारतीय सहयोगियों, ईरान और म्यांमार को भारत से अलग करने का जोखिम बढ़ा देगा क्योंकि बीजिंग का ईरान और म्यांमार दोनों के साथ प्रगाढ़ संबंध है।
  • चीन के विरुद्ध एक मुखर प्रतिक्रिया के रूप में क्वाड को पुनर्जीवित किया गया है जोकि ‘स्वतंत्र और खुले इंडो-पैसिफिक’ और ष्नियम आधारित आदेशष् की संकल्पना पर आधारित है। यह शब्द अपष्ट है और संभावित अटकलों की गुंजाईश को बढ़ा देता है।
  • भारत ने व्यापक इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में अपनी भूमिका को सीमित रखा है एवं कुछ अपवाद स्वरूप गतिविधियों (मालाबार अभ्यास, त्रिपक्षीय समूह भारत-ऑस्ट्रेलिया-जापान और भारत-अमेरिका-जापान वियतनाम के साथ सहयोग) में भारत की भूमिका स्पष्ट दिखती है। लुक ईस्ट (अब बदला हुआ एक्ट ईस्ट) की घोषणा के बाद भी 25 साल बीत चुके हैं और भारत की नीतियों ने इंडो-पैसिफिक में चीन की घुसपैठ को नजरअंदाज किया है। क्वाड देशों के साथ गहरा सहयोग इस विसंगति को उजागर कर सकता है और भारत और चीन को एक क्षेत्रीय प्रतियोगिता में डाल सकता है, जिसके लिए भारत तैयार नहीं है।
  • रणनीतिक डोमेन में भारत काफी पिछड़ा हुआ है क्यों भारत का नौसैनिक बेड़ा लगातार घट रहा है। हालांकि इस दिशा में कार्य हो रहे है लेकिन यह काफी धीमी गति से हो रहा है ऐसे में प्रश्न उठता है कि भारत चीन की बढ़ती नौसैनिक क्षमताओं के साथ कैसे आगे बढ़ेगा। आर्थिक क्षेत्र में एक समान गतिशील प्रबल होता है। इसके अलावा चीन का आसियान देशों के साथ व्यापार भारत-आसियान व्यापार से छह गुना अधिक है। इसके साथ ही भारतीय विदेशी प्रत्यक्ष निवेश चीन की तुलना में अल्प है।

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