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Daily Current Affairs for UPSC, IAS, State PCS, SSC, Bank, SBI, Railway, & All Competitive Exams - 15 July 2020

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Daily Current Affairs for UPSC, IAS, State PCS, SSC, Bank, SBI, Railway, & All Competitive Exams - 15 July 2020



ईरान-चाबहार प्रोजेक्ट

  • ईरान दक्षिण-पश्चिम एशिया में स्थित एक प्रमुख देश है, जिसकी राजधानी तेहरान है।
  • इसके उत्तर-पूर्व में तुर्कमेनिस्तान, उत्तर में कैस्पियन सागर और अजरबैजान, दक्षिण में फारस की खाड़ी, पश्चिम में ईराक और तुर्की, पूर्व में अफगानिस्तान तथा पाकिस्तान है।
  • इसे 1935 तक फारस के नाम से जाना जाता था।
  • ईरान की अर्थव्यवस्था मुख्यतः तेल और प्राकृतिक गैस के निर्यात पर निर्भर है।
  • ईरान में सिस्तान और ब्लूचिस्तान प्रांत का एक प्रमुख शहर चाबहार है।
  • ओमान की खड़ि के किनारे स्थित यह एक मुक्त बंदरगाह शहर है।
  • यहाँ मौसम सामान्य रहता है जिससे व्यापार आसान होने के साथ हिन्द महासागर से गुजरने वाले समुद्री रास्तों तक भी यहां से होकर पहुंचना सुविधाजन होता है।
  • यहाँ से 72 किमी- की दूरी पर चीन द्वारा पकिस्तान में ग्वादर बंदरगाह का विकास किया गया है।
  • चाबहार बंदरगाह भारत के साथ संपूर्ण एशिया, अफ्रीका तथा यूरोप को जोड़ने के लिहाज से सर्वश्रेष्ठ स्थान है।
  • मध्ययुगीन यात्री अल-बरूनी द्वारा चाबहार को मध्य एशिया से भारत को जोड़ने वाला प्रवेशद्वार कहा गया था।
  • चाबहार भारत को अफगानिस्तान एवं मध्य एशिया से जोड़ सकता है।
  • उपरोक्त विशेषताओं के साथ-साथ अनेक संभावनाओं को देखते वर्ष 2016 में भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मादी की ईरान यात्र के दौरान भारत एवं ईरान के मध्य चाबहार समझौते (Chabahar Agreement) पर हस्ताक्षर किया गया था।
  • इसके तहत चाबहार बंदरगाह के 2 टर्मिनल और 5 बर्थस का विकास कर भारत द्वारा इसे लगभग 10 वर्ष तक आपेरट करने की बात की गई थी।
  • इसी के बाद अशरफ घनी (अफगानिस्तान राष्ट्रपति) भी इससे जुड़ गये जिससे एक Trilateral Transport and Transit Corridor एग्रीमेंट पर हस्ताक्षर हुआ।
  • चाबहार बंदरगाह के उपयोग को बढ़ाने के लिए इस एग्रीमेंट में इस बात पर सहमती बनी कि चाबहार बंदरगाह को अफगानिस्तान से जोड़ने के लिए इसे रेल नेटवर्क और सड़क मार्ग का विकास किया जायेगा।
  • इसके तहत चाबहार को ईरान के जैदान (Zahedan) एवं अफगानिस्तान के जारांज (Zaranj) तथा डेलाराम (Delaram) को जोड़ने की बात की गई।
  • वर्ष 2016 में हस्ताक्षरित इस एग्रीमेंट में ईरानी रेलवे तथा इंडियन रेलवेज कंस्ट्रक्शन लिमिटेड (इरकॉन) दो प्रमुख एजेंसियो को इस प्रोजेक्ट को कंप्लीट करना था।
  • इस रेल प्रियोजना में भारत की रेलवे कंपनी इरकान द्वारा लगभग 1.6 अरब डॉलर का निवेश किया जाना था।
  • 628 किमी- लंबे चाबहार- जैदान (Zahedan) रेल लाइन के विषय में ईरान के ट्रांसपोर्ट एंड अर्बन डेवलपमेंट मिनिस्टर ने कहा है कि अब ईरान अकेले ही इस रेल लाइन का विकास करेगा।
  • ईरान सरकार ने कहा है कि बिना भारत के सहयोग वह मार्च 2022 तक इस प्रोजेक्ट को पूरा करेंगे।
  • इसके लिए ईरान 400 मिलियनडॉलर अपने नेशनल डेवलपमेंट फंड से खर्च करेगा।
  • ईरान द्वारा इस परियोजना से भारत को बाहर करने की वजह भारत द्वारा समय पर फंडिंग न किया जाना बताया गया है।
  • साथ ही भारत द्वारा काम प्रारंभ करने में विलंब को बताया गया है ।
  • दरअसल लंबे समय से ईरान इस प्रोजेक्ट पर रोडमैप बनाकर इस साइट पर लंबे समय से काम कर रहा है लेकिन भारत द्वारा ऐसा कुछ नहीं किया गया जिसका परिणाम जमीनी स्तर पर दिखे।
  • भारत द्वारा विलंब का प्रमुख कारण अमेरिका द्वारा ईरान पर लगाये गये आर्थिक प्रतिबंध थे।
  • वर्ष 2015 में ईरान के साथ हुए परमाणु समझौते से वर्ष 2018 में अमेरिका ने खुद को अलग कर लिया तथा ईरान पर अनेक प्रकार के प्रतिबंध लगा दिये।
  • इसके तहत ईरान से यदि कोई देश व्यापार करता है या किसी प्रोजेक्ट का हिस्सा बनता है तो उस पर भी प्रतिबंध लगाया जा सकेगा तथा कंपनियों को अमेरिका की तरफ से ब्लैकालिस्ट किया जा सकता है।
  • हलांकि अमेरिका ने भारत को इस प्रतिबंध से इस प्रोजेक्ट के लिए छूट दे दी थी लेकिन इस प्रोजेक्ट में कई प्रकार के सप्लायर, सर्विस प्रोवाइडर कंपनियां (इंजीनिर्यारंग) शामिल थीं जो अमेरिका को किसी भी तरह नाराज नहीं करना चाहती थीं, जिसके कारण विलंब होता चला गया।
  • इस प्रतिबंध की बजह से भारत ने ईरान से तेल का आयात भी बंद कर दिया जिससे ईरान के साथ भारत की दूरी बढती चली गई। इस समय भारत का तीसरा सबसे बड़ा आपूर्तिकर्ता देश ईरान था।
  • नवंबर 2019 में ईरान के विदेश मंत्री ने कहा- "हमने सोचा था कि हमारा दोस्त भारत अमेरिका दबाव का विरोध करेगा लेकिन भारत अमेरिका को नाराज नहीं करना चाहता।"
  • इस तरह ईरान एवं भारत के बीच बढ़ती दूरी ने भारत के हाथ से इस प्रोजेक्ट को निकाल दिया।
  • मध्य पूर्व मामलों के जानकार- कमर आगा कहते है कि "पहले से ही यह लग रहा था कि ये प्रोजेक्ट भारत से निकल जायेगा क्योंकि भारत की तरफ से काफी देरी हो रही थी। ईरान बार-बार इसकी शिकायत कर रहा था। "
  • JNU इंटरनेशनल स्टडीज के डीन प्रोफेसर अश्विनी मोहपात्रा कहते है- "भारत के लिए यह बड़ा नुकसान है, क्योंकि ये प्रोजेक्ट रणनीतिक रूप से काफी अहम है।'
  • कमर आगा के अनुसार ईरान की चीन से बढ़ती हुई दोस्ती भी इस प्रोजेक्ट के भारत के हाथ से बाहार जाने का एक प्रमुख कारण है।
  • वर्ष 2016 में जीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ईरान की यात्र पर गये । इस दौरान दोनों दशों के बीच 17 समझौते हुए। इसमें यह कहा गया कि दोनों देश अगले एक दशक में आपसी कारोबार को बढ़ाकर 45 लाख करोड़ रूपये तक ले जायेंगे।
  • इस यात्र में दोनों देशों के बीच एक खास प्रस्ताव पर बात हुई, जिसमें दोनों देशों के बीच एवसक्लूसिव आर्थिक और सिक्योरिटी पार्टनरशिप की बात की गई।
  • ईरान ने इस समय तो इस प्रस्ताव को इतना तवज्जों नहीं दिया लेकिन बाद में वह इस प्रस्ताव को लेकर गंभीर होता गया।
  • वर्ष 2016 के प्रस्ताव को ईरान अब चीन के साथ समझौते का रूप देने जा रहा है।
  • खबरों के मुताबिक इस संधि को लेकर ईरान और चीन के बीच बातचीत फाइनल स्टेज में है।
  • संधि का मसौदा अभी स्पष्ट नहीं है लेकिन लीक हुई बातों में मुख्य बिंदु निम्नलिखित हैं:-
    1. 25 साल के लिए चीन और ईरान में पार्टनरशिप करार होगा
    2. इन 25 सालों में चीन ईरान में करीब 30 लाख करोड़ रूपये का निवेश करेगा।
    3. पार्टनरशिप व्यापारिक, आर्थिक और सैन्य होगी।
    4. ईरान चीन को डिस्काउंट रेट पर कच्चा तेल देगा तथा ईरान में चीन को फ्री ट्रेड जोन्स की प्राप्ति होगी ।
    5. हथियार बनाने और खुफिया जानकारियां शेयर करने में भी दोनों पार्टनर होंगे। तो साथ ही चीन और ईरान की सेनाएं साझा ट्रेनिंग करेंगी।
    6. बैंकिग, बंदरगाह, रेलवे समेत कई दर्जन सेक्टरों में चीन निवेश करेगा।
  • इस तरह अमेरिकी प्रतिबंधों से अलग-थलग पड़े ईरान का हाथ थामकर चीन ने उसे अपने पक्ष में कर लिया है।
  • चीन आने वाले समय में चाबहार बंदरगाह पर भारत के लिए दिक्कत का कारण बन सकता है।
  • भारत के पास दो विकल्प है-
    1. वह ईरान से बात करके इस प्रोजेक्ट का हिस्सा बना रहे।
    2. मध्य-पूर्व में भारत, अमेरिका, इजराइल, सउदी अरब का साथ लेकर चीन को काउंटर करे।

कोलंबो पोर्ट प्रोजेक्ट

  • श्रीलंका भारत का प्रमुख पड़ोसी देश है जिसमें भारतीय तमिल समुदाय के साथ-साथ दक्षिण भारत मूल के लोग निवास करते है।
  • श्रीलंका भारत का न सिर्फ पड़ोसी देश है बाल्कि यह हिन्द महासागर क्षेत्र में शांति स्थापित करने में इसकी अवस्थिति बहुत महत्वपूर्ण है।
  • यहां चीन द्वारा हंबनटोटा बंदरगाह का विकास किया गया है जिसे चीन ने 99 साल के लिए लीज पर लिया है।
  • इसके अलावा भी कई जगहों पर चीन ने बड़ी मात्रा में निवेश किया है।
  • इस बंदरगाह के चीन के पास जाने के बाद भारत ने भी श्रीलंका में अपनी स्थिति मजबूत करने के लिए दो विकल्पों का चयन किया।
    1. पहला विकल्प था- मटाला राजपक्षे अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे (Matala Rajapaksa International Airport) के संचालन के कार्य को अपने हाथ में लेना।
    2. दूसरा विकल्प था- कोलंबो पोर्ट प्रोजेक्ट (Colombo Port Project) मटाला (मताला) एयरपोर्ट के संदर्भ में यह बात चल रही थी कि भारत को इसमें बड़ी हिस्सेदारी मिलेगी।
  • यह हवाई अड्डा कोलंबों (राजधानी) से 241 किमी- दूर हंबनटोटा शहर में स्थित है। जिसका विकास श्रीलंका ने चीन से पैसा उधार लेकर किया है।
  • इस हवाई अड्डे को दुनिया के सबसे खाली एयरपोर्ट का दर्जा प्राप्त है।
  • वर्ष 2013 में इसका संचलान शुरू हुआ था। और वर्ष 2017 में इस हवाई अड्डे के संचालन के लिए निवेश आमंत्रित किया गया था।
  • भारत यहां से हंबनटोटा बंदरगाह पर चीन द्वारा किये जा रहे कार्यो पर नजर रख सकता है।
  • यहां पिछले साल निर्वाचित होकर आई राजपक्षे परिवार ने अपने चुनाव भाषण में यह कहा था कि अब कोई राष्ट्रीय संपप्ति बेची नहीं जायेगी। इसीकारण राजपक्षे परिवार भारत से यह कह रही है कि वह मताला एयरपोर्ट में हिस्सेदारी न खरीदे।
  • महिंदा राजपक्षे का संसदीय क्षेत्र हंबनटोटा है। इसी के अंतर्गत मताला एयरपोर्ट आता हैं इसलिए इनका कहना है कि आगामी चुनाव या इस समय यह बात श्रीलंका के लोगों का ठीक नहीं लगेगी कि एक प्रोजेक्ट दूसरे देश को बेच दिया गया। इसीकारण यह चाहते हैं कि भारत इसमें अपनी भूमिका शामिल न करे।
  • कोलंबो पोर्ट प्रोजेक्ट विकसित करने का प्रस्ताव भारत और जापान लेकर श्रीलंका की पिछली सरकार के पास गये थे।
  • भारत और जापान कोलंबो पोर्ट के पूर्वी टर्मिनल का 49% हिस्सा खरीदना चाहते थे।
  • इसके लिए श्रीलंका के साथ मेमोरंडम ऑफ अंडरस्टैंडिंग पर भी हस्ताक्षर हो चुका था।
  • नई सरकार ने कहा है कि वह इस प्रोजेक्ट और MoU का रिव्यू (Review) करेगे।
  • दरअसल यहां के लोगों के बीच यह बात फैल गई है कि उनकी नोकरी खतरे में पड़ सकती है ।
  • दरअसल कई संगठन चीनी समर्थन एवं भारत विरोधी गतिविधि में संलिप्त है।
  • कुछ समय पहले चीन ने श्रीलंका को कोरोना से लड़ने के लिए 500 मिलियन डॉलर की राशि दी है। पहले से चीन के ट्टण जाल मे फंसे श्रीलंका के लिए यह चिंताजनक है।

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