विश्व महासागर दिवस 2020: एक सतत महासागर के लिए नवाचार - यूपीएससी, आईएएस, सिविल सेवा और राज्य पीसीएस परीक्षाओं के लिए समसामयिकी


 विश्व महासागर दिवस 2020: एक सतत महासागर के लिए नवाचार - यूपीएससी, आईएएस, सिविल सेवा और राज्य पीसीएस  परीक्षाओं के लिए समसामयिकी


चर्चा का कारण

  • संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंतोनियो गुटेरेश ने 8 जून, को 'विश्व महासागर दिवस' के अवसर पर ध्यान दिलाया है कि प्लास्टिक प्रदूषण और जलवायु परिवर्तन जैसी चुनौतियों से महासागरों की रक्षा करने के लिए अभिनव समाधान तलाश करने होंगे।
  • विश्व महासागर दिवस 2020 का विषय श्एक सतत महासागर के लिए नवाचारश् (Innovation for sustainable ocean) है।

परिचय

  • महासागरों का पृथ्वी की सतह के तीन चौथाई हिस्से तक विस्तार है और पृथ्वी पर उपलब्ध कुल जल का 97 फीसदी महासागरों में ही समाया है। गौरतलब है कि पृथ्वी के फेफड़ों की तरह काम करते हुए महासागर कार्बन डाय ऑक्साइड को भी सोखते हैं जिससे वैश्विक जलवायु को नियन्त्रित करने में मदद मिलती है।
  • विश्व महासागर दिवस महासागरों के प्रति सम्मान देने, उनके महत्व को जानने और उनके संरक्षण के लिए जरूरी कदम उठाने का अवसर प्रदान करता है। कनाडा सरकार ने साल 1992 में रियो डी जनेरियो में आयोजित पृथ्वी सम्मेलन के दौरान विश्व महासागर दिवस की स्थापना का प्रस्ताव रखा था।
  • इसके बाद 8 जून, 2009 से प्रत्येक वर्ष विश्व महासागर दिवस मनाया जा रहा है, जिसका उदेश्य महासागरों के महत्त्व और इनकी वजह से आने वाली चुनौतियों के बारे में लोगों के बीच जागरूकता पैदा करना है और साथ ही महासागरों से जुड़े विशेष पहलुओं जेसे जैव-विविधता, खाद्य सुरक्षा, पारिस्थितिक संतुलन, जल संसाधनों का बेहिसाब उपयोग आदि को भी जन समुदायों के बीच उजागर करना है।
  • हर साल इस दिन को मनाए जाने के पीछे का मकसद महासागरों के महत्व से लोगों को अवगत कराना है कि कैसे महासागर खाद्य सुरक्षा, जैव विविधता, परिस्थिति संतुलन जैसी चीजों में अपनी अहम भूमिका निभाते हैं। देशों के विकास के साथ ही महासागरों के दूषित होने की गति भी उतनी ही तेजी से बढ़ रही है।
  • वैश्विक महामारी कोविड-19 के बाद पुनर्निर्माण प्रक्रिया एक पीढ़ी में मिलने वाला एक ऐसा अवसर है जिसकी मदद से दुनिया प्रकृति के साथ अपने सम्बन्ध को फिर से सही मायनों में स्थापित कर सकती है।
  • गौरतलब है कि महासागरों की रक्षा के लक्ष्य से संयुक्त राष्ट्र ने 'टिकाऊ विकास के लिए 'हासागर विज्ञान का दशक 2021-2030' (Decade of Ocean Science for Sustainable Development) की घोषणा की है।
  • इस पहल का उद्देश्य महासागरों के बिगड़ते स्वास्थ्य को बेहतर बनाने और उनके टिकाऊ विकास के लिए परिस्थितियों का निर्माण करने में देशों को सहायता प्रदान करने का संकल्प लिया गया है।

महासागर का महत्व

  • सामाजिक, सांस्कृतिक और आर्थिक रूप से महत्वपूर्ण होने के कारण महासागर अत्यंत उपयोगी हैं। पृथ्वी के विशाल क्षेत्र में फैले अथाह जल का भंडार होने के साथ ही महासागर अपने अंदर व आसपास अनेक छोटे-छोटे नाजुक पारितंत्रें को पनाह देते हैं जिससे उन स्थानों पर विभिन्न प्रकार के जीव-जंतु व वनस्पतियां पनपती हैं। महासागरों में प्रवाल भित्ति क्षेत्र ऐसे ही एक पारितंत्र का उदाहरण है, जो असीम जैवविविधता का प्रतीक है।
  • तटीय क्षेत्रें में स्थित मैन्ग्रोव जैसी वनस्पतियों से संपन्न वन, समुद्र के अनेक जीवों के लिए नर्सरी बनकर विभिन्न जीवों को आश्रय प्रदान करते हैं। अपने आरंभिक काल से आज तक महासागर जीवन के विविध रूपों को संजोए हुए हैं। महासागर पृथ्वी के सबसे विशालकाय जीव व्हेल से लेकर सूक्ष्म जीव को रहने के लिए ठिकाना मुहैया कराते हैं। एक अनुमान के अनुसार समुद्रों में जीवों की करीबन दस लाख प्रजातियां मौजूद हैं।
  • पृथ्वी की समस्त ऊष्मा में जल की ऊष्मा का विशेष महत्व है। अधिक विशिष्ट ऊष्मा के कारण दिन में सूर्य की ऊर्जा का बहुत बड़ा भाग समुद्री जल में समाहित हो जाता है। इस प्रकार अधिक विशिष्ट ऊष्माधारिता से महासागर ऊष्मा का भण्डारक बन जाते हैं जिससे विश्व भर में मौसम संतुलित बना रहता है या कहें कि पृथ्वी पर जीवन के लिए औसत तापमान बना रहता है।
  • मौसम के संतुलन में समुद्री जल की लवणता का भी विशेष महत्व है। समुद्री जल के खारेपन और पृथ्वी की जलवायु में बदलाव की घटना आपस में अन्तःसंबंधित होती है।
  • हम जानते हैं कि ठंडा जल, गर्म जल की तुलना में अधिक घनत्व वाला होता है। इसके अलावा महासागर में किसी स्थान पर सूर्य के ताप के कारण जल के वाष्पित होने से उस क्षेत्र के जल के तापमान में परिवर्तन होने के साथ वहां के समुद्री जल की लवणता और आसपास के क्षेत्र की लवणता में अंतर उत्पन्न हो जाता है जिसके कारण गर्म जल की धाराएं ठंडे क्षेत्रें की ओर बहती है और ठंडा जल उष्ण और कम उष्ण प्रदेशों में बहता है।
  • महासागर धरती के मौसम को निर्धारित करने वाले प्रमुख कारक हैं। महासागरीय जल की लवणता और विशिष्ट ऊष्माधारिता का गुण पृथ्वी के मौसम को प्रभावित करता है।
  • आज विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी की मदद से महासागरों से पेट्रोलियम सहित अनेक महत्वपूर्ण प्राकृतिक संसाधनों को निकाला जा रहा है। इसके अलावा जलवायु परिवर्तन सहित अनेक मौसमी परिघटनाओं को समझने के लिए समुद्रों का अध्ययन भी महत्वपूर्ण है।

चुनौतियाँ

  • महासागरों में बढ़ता प्रदूषण चिंता का विषय बनता जा रहा है। अरबों टन प्लास्टिक का कचरा हर साल महासागर में समा जाता है। आसानी से विघटित नहीं होने के कारण यह कचरा महासागर में जस का तस पड़ा रहता है। अकेले हिंद महासागर में भारतीय उपमहाद्वीप से पहुंचने वाली भारी धातुओं और लवणीय प्रदूषण की मात्र प्रतिवर्ष करोड़ों टन है। विषैले रसायनों के रोजाना मिलने से समुद्री जैव विविधता भी प्रभावित होती है।इन विषैले रसायनों के कारण समुद्री वनस्पति की वृद्धि पर भी बुरा प्रभाव पड़ता है।
  • वर्तमान में मानवीय गतिविधियों का असर समुद्रों पर भी दिखने लगा है। समुद्र में ऑक्सीजन का स्तर लगातार घटता जा रहा है और तटीय क्षेत्रें में समुद्री जल में भारी मात्र में प्रदूषणकारी तत्वों के मिलने से जीवन संकट में हैं।
  • तेलवाहक जहाजों से तेल के रिसाव के कारण समुद्री जल के मटमैला होने पर उसमें सूर्य का प्रकाश गहराई तक नहीं पहुँच पाता, जिससे वहाँ जीवन को पनपने में परेशानी होती है और उन स्थानों पर जैव-विविधता भी प्रभावित हो रही है। महासागरों के तटीय क्षेत्रें में भी दिनों-दिन प्रदूषण का बढ़ता स्तर चिंताजनक है।
  • महासागरों में अम्ल की मात्र बढ़ रही है इससे समुद्री जैवविविधिता और जीवन के लिए बेहद आवश्यक भोजन श्रृंखलाओं (फूड चेन्स) के लिए जोिखम और ज्यादा गहरा हो गया है।
  • जलवायु परिवर्तन के कारण समुद्री जलस्तर बढ़ रहा है, निचले तटीय इलाकों वाले देशों में शहरों व समुदायों में लोगों की जिन्दगियों और आजीविका पर खतरा मँडरा रहा है।
  • समुद्री जैव विविधता के नुकसान के लिये आमतौर पर पारम्परिक मछुआरों को दोषी ठहराया जाता है, जबकि मानवों द्वारा किये जाने वाले हस्तक्षेप जैसे- बन्दरगाहों का निर्माण, रेत का खनन, पानी का रुख मोड़ने वाला निर्माण कार्य और समुद्र के अन्दर की जाने वाली गतिविधियों का असर अधिक पड़ता है

भारत के संदर्भ में

  • भारत को उसके महासागरों के बारे में अधिक जानकारी नहीं है। भारत रिमोट सेंसिंग का उपयोग करके अपने अधिकांश समुद्री आँकड़ों को एकत्र करता है, जिसके जरिए केवल ऊपरी परतों की ही जानकारी मिलती है। पृथ्वी विज्ञान केन्द्र मंत्रलय लगभग दो दशकों से तटीय जल की प्रकृति का मूल्यांकन करने के लिये एक कार्यक्रम चला रहा है, लेकिन यह आँकड़े 20 स्थानों और 25 मापदंडों तक ही सीमित है। इसके अलावा कुछ जरूरी मानदंडों जैसे-समुद्री अम्लीकरण, समुद्री कचरा और सूक्ष्म प्लास्टिक के आँकड़ों का कोई विश्लेषण हैं। विशेषज्ञों का यह भी कहना है कि देश का वर्तमान रुख केवल बन्दरगाहों के विकास को ही बढ़ावा देता है।
  • अन्तरराष्ट्रीय समुदाय ने सतत् विकास लक्ष्य (एसडीजी) 14 के तहत सभी लक्ष्यों को पूरा करने का वादा किया, जो महासागरों और समुद्री संसाधनों के संरक्षण और इसके दीर्घकालिक उपयोग पर जोर देता है। जिस तरह से भारत एसडीजी 14 हासिल करने की कोशिश कर रहा है, वह पूरी तरह से दोषपूर्ण है। एसडीजी 14 पर नीति आयोग संयुक्त राष्ट्र के लक्ष्यों को लागू करने के लिये जिम्मेदार है।
  • आयोग की रिपोर्ट बताती है कि नेशनल प्लान फॉर कंजरवेशन ऑफ एक्वेटिक इकोसिस्टम और सागरमाला प्रोजेक्ट के द्वारा एसडीजी 14 को हासिल किया जाएगा। लेकिन यह नेशनल प्लान झीलों और दलदली जमीन के संरक्षण के बारे में है न कि समुद्र के, इसी तरह सागरमाला प्रोजेक्ट बन्दरगाहों के ही बढ़ावे की बात करता है।

सुझाव

  • एकल-उपयोग वाले प्लास्टिक का प्रयोग करने के बजाय सबसे अच्छा तरीका है कि कपड़े के थैले का प्रयोग करें । साथ ही समुद्र तटों की सफाई में स्थानीय संगठन महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं इसलिए स्थानीय सरकार को तटों की सफाई से संबन्धित जागरूकता कार्यक्रम चलाना चाहिए । छोटे पैमाने पर कुशल मछुआरों को समुद्री संसाधनों के उपयोग और बाजारों की पहुँच को आसान बनाये जाने की आवश्यकता है।
  • समुद्र के कानून पर संयुक्त राष्ट्र कन्वेंशन। (यूएनसीएलओएस) का कार्यान्वयन करके महासागरों और उनके संसाधनों के संरक्षण और दीर्घकालिक उपयोग को बढ़ाये जाने की आवश्यकता है।
  • वैश्विक देशों को मत्स्य पालन सब्सिडी के कुछ प्रकारों को खत्म करने की आवश्यकता, साथ ही अधिक मात्र में मछली पकड़ने में योगदान देने वाले गैर कानूनी तरीकों को रोकने की आवश्यकता है

आगे की राह

  • पृथ्वी पर जीवन की उत्पत्ति महासागरों में ही हुई और आज भी महासागर जीवन के लिए आवश्यक परिस्थितियों को बनाए रखने में सहायक हैं। इसलिए महासागरीय पारितंत्र में थोड़ा सा परिवर्तन पृथ्वी के समूचे तंत्र को अव्यवस्थित करने की सामर्थ्य रखता है।
  • पृथ्वी पर जीवन को बनाए रखने वाले पारितंत्रें में महासागर की उपयोगिता को देखते हुए यह आवश्यक है कि हम महासागरीय पारितंत्र के संतुलन को बनाए रखें, तभी हमारा भविष्य सुरक्षित रहेगा।
  • वैश्विक महामारी कोविड-19 के बाद पुनर्निर्माण प्रक्रिया एक पीढ़ी में मिलने वाला एक ऐसा अवसर है जिसकी मदद से दुनिया प्रकृति के साथ अपने सम्बन्ध को फिर से सही मायनों में स्थापित कर सकती है।

सामान्य अध्ययन पेपर-1

  • भूकंप, सुनामी, ज्वालामुखीय हलचल, चक्रवात आदि जैसी महत्वपूर्ण भू-भौतिकीय घटनाएं, भौगोलिक विशेषताएं और उनके स्थान-अति महत्वपूर्ण भौगोलिक विशेषताओं (जल-स्रोत और हिमावरण सहित) और वनस्पति एवं प्राणिजगत में परिवर्तन और इस प्रकार के परिवर्तनों के प्रभाव।

सामान्य अध्ययन पेपर-3

  • संरक्षण, पर्यावरण प्रदूषण और क्षरण, पर्यावरण प्रभाव का आकलन।

मुख्य परीक्षा प्रश्न :

  • पृथ्वी पर जीवन को बनाए रखने वाले पारितंत्रें में महासागर की उपयोगिता को देखते हुए यह आवश्यक है कि हम महासागरीय पारितंत्र के संतुलन को बनाए रखें, तभी हमारा भविष्य सुरक्षित रहेगा। चर्चा कीजिये ।