पॉक्सो अधिनियम की समीक्षा - समसामयिकी लेख

   

कीवर्ड : पॉक्सो अधिनियम, संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन, लिंग-तटस्थ, भारतीय दंड संहिता, अपराध और आपराधिक ट्रैकिंग नेटवर्क और सिस्टम, आपराधिक प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी), जरनैल सिंह बनाम हरियाणा राज्य (2013)।

सन्दर्भ :

  • 1992 में बाल अधिकारों पर संयुक्त राष्ट्र कन्वेंशन के भारत के अनुसमर्थन के परिणामस्वरूप यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण (पॉक्सो) अधिनियम, 2012 को लाया गया, जिसे 14 नवंबर, 2012 को लागू किया गया। पॉक्सो अधिनियम को अधिनियमित हुए दस साल बीत चुके हैंI
  • इस विशेष कानून का उद्देश्य बाल यौन शोषण के अपराधों को संबोधित करना है, जिन्हें या तो विशेष रूप से परिभाषित नहीं किया गया था या जिनमें अपर्याप्त सजा संबंधी प्रावधान था।

पॉक्सो अधिनियम 2012 :

  • पॉक्सो अधिनियम, 2012 और आईपीसी के कई प्रावधानों के अंतर्गत, जो कोई भी 18 वर्ष से कम उम्र के बच्चे ( लड़का या लड़की ) के विरुद्ध यौन हिंसा करता है - उसे "कम से कम सात वर्ष की अवधि के लिए कारावास की सजा हो सकती है, अपराध की गंभीर प्रवृत्ति को देखते हुए इसे आर्थिक जुर्माने सहित आजीवन कारावास तक बढ़ाया जा सकता है"।
  • यहां तक कि अगर लड़की 16 साल की है, तो उसे पॉक्सो अधिनियम के तहत एक "बच्ची" माना जाता है और ऐसे में उसकी सहमति कोई मायने नहीं रखती है, और उसके साथ किसी भी तरह के यौन संबंध को बलात्कार माना जाता है, जिसमें कड़ी सजा का प्रावधान होता है।

अधिनियम का महत्व :

1. लैंगिक-तटस्थता की प्रकृति में :

  • भले ही राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) ने पुरुष और महिला पीड़ितों पर अलग-अलग डेटा प्रकाशित नहीं किया हैI छत्तीसगढ़ में, प्रत्येक 1,000 पॉक्सो मामलों (0.8%) में लगभग आठ पीड़ित लड़के हैं।
  • हालांकि रिपोर्ट की गई संख्या बड़ी नहीं है, फिर भी यह समाज की इस आशंका का समर्थन करती है कि लड़कों का यौन शोषण भी एक गंभीर मुद्दा है जो काफी हद तक रिपोर्ट नहीं किया गया है।

2. सामान्य जागरूकता में वृद्धि :

  • न सिर्फ व्यक्तियों द्वारा बल्कि संस्थानों द्वारा भी बच्चों के यौन शोषण के मामलों की रिपोर्ट करने के लिए अब पर्याप्त सामान्य जागरूकता है क्योंकि गैर-रिपोर्टिंग को पॉक्सो अधिनियम के तहत एक विशिष्ट अपराध बनाया गया है।
  • इससे बच्चों के खिलाफ अपराधों को छिपाना पहले की तुलना में अब मुश्किल हो गया है।

3. चाइल्ड पोर्नोग्राफी सामग्री के भंडारण को नया अपराध बनाया गया हैI

4. जांच की अवधि

  • बलात्कार की जांच पूरी करने के लिए अनिवार्य समय ( पॉक्सो अधिनियम में सीआरपीसी के समान प्रावधान नहीं है ) दो महीने है।
  • हालांकि इसका उद्देश्य जांच में तेजी लाना है, इसके परिणामस्वरूप दो महत्वपूर्ण परिवर्तन हुए हैं।
  • एक, जांच अधिकारियों पर इस बात का अत्यधिक दबाव है कि जांच चाहे किसी भी स्तर पर हो, किसी तरह दो महीने में चार्जशीट दाखिल कर दें।
  • जांच अधिकारी आंतरिक दंड को आमंत्रित नहीं करना चाहते हैं क्योंकि गृह मंत्रालय अपराध और आपराधिक ट्रैकिंग नेटवर्क और सिस्टम ( सीसीटीएनएस ) और राज्य पुलिस मुख्यालय के माध्यम से पॉक्सो मामलों की निगरानी करता है।

अधिनियम की आलोचना:

  • जांच में कोई बदलाव नहीं
  • अधिनियम के तहत अपराधों की जांच का एक बड़ा हिस्सा अभी भी दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) द्वारा निर्देशित है।
  • पुलिस बल में महिलाओं की कम संख्या:
  • पॉक्सो अधिनियम में एक महिला उप-निरीक्षक द्वारा बच्चे के निवास स्थान या पसंद के स्थान पर प्रभावित बच्चे का बयान दर्ज करने का प्रावधान है।
  • लेकिन इस प्रावधान का पालन करना व्यावहारिक रूप से असंभव है क्योंकि पुलिस बल में महिलाओं की संख्या सिर्फ 10% है , और कई पुलिस थानों में शायद ही कोई महिला कर्मचारी है।
  • फोकस काफी हद तक जांच पूरी करने पर है:
  • मुख्य रूप से गुणवत्ता पर ध्यान दिए बिना दो महीने में जांच पूरी करने पर ध्यान केंद्रित किया गया है। यदि आरोपी की गिरफ्तारी के 90 दिनों में चार्जशीट दाखिल नहीं हुयी तो उसे जमानत दे दी जाती है।
  • जबकि प्राथमिकी के 60 दिनों में चार्जशीट दायर की जाती है (गिरफ्तारी नहीं), तो आरोपी चार्जशीट दाखिल होने के तुरंत बाद जमानत की मांग कर सकता है।
  • इस प्रकार, यह आरोपी है, न कि एक पीड़ित, जिसे कम समय में जांच पूरी होने का लाभ मिलता है।
  • न्यायालय यह मानेगा कि अभियुक्त ने अपराध किया है:
  • पॉक्सो अधिनियम प्रावधान करता है कि अदालत यह मान लेगी कि आरोपी ने अपराध किया है।
  • आयु निर्धारण का मामला
  • हालांकि किशोर अपराधी की आयु निर्धारण किशोर न्याय (बच्चों की देखभाल और संरक्षण) अधिनियम द्वारा निर्देशित है, किशोर पीड़ितों के लिए पॉक्सो अधिनियम के तहत ऐसा कोई प्रावधान मौजूद नहीं है।
  • चिकित्सा राय के आधार पर आयु का अनुमान आम तौर पर इतना व्यापक होता है कि ज्यादातर मामलों में नाबालिगों को वयस्क साबित कर दिया जाता है।
  • एक बार अवयस्क के बालिग साबित होने के बाद, अन्य कारकों ( जैसे कि सहमति या निजी अंगों को कोई चोट न लगने ) के आधार पर बरी होने की संभावना बढ़ जाती है।
  • उचित बुनियादी ढांचे का अभाव
  • उचित बुनियादी ढांचे के अभाव में, किसी भी ऑडियो-वीडियो माध्यम का उपयोग करके रिकॉर्ड किए गए साक्ष्य की स्वीकार्यता एक चुनौती बनी रहेगी।

क्या आप जानते हैं?

  • 2015 में, गृह मंत्रालय ( एमएचए ) ने महिलाओं के खिलाफ अपराध (आईयूसीएडब्लू ) पर एक जांच इकाई बनाने के लिए एक योजना शुरू की, जिसे प्रत्येक जिले में,15 पुलिस अधिकारियों से बनाया जाना था जिसमें कम से कम एक-तिहाई महिला अधिकारियों के साथ ही एक अतिरिक्त महिला पुलिस अधीक्षक की अध्यक्षता संबंधी प्रावधान किया गया था।
  • जरनैल सिंह बनाम हरियाणा राज्य (2013) में सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि दिए गए वैधानिक प्रावधान भी एक ऐसे बच्चे के लिए उम्र निर्धारित करने में मदद करने के लिए आधार होना चाहिए, जो अपराध का शिकार है।

आगे की राह :

  • बाल यौन शोषण बेहद गंभीर मामला है। एक ऐसा समाज जहां सबसे कमजोर और निर्दोष बच्चों के साथ नियमित और भयानक रूप से दुर्व्यवहार किया जाता है, यह एक निराशाजनक स्थिति का संकेत है जो निस्संदेह तत्काल सख्त कार्यवाही की मांग करता है ।
  • चुनौतियों से निपटने के लिए सरकार को पॉक्सो अधिनियम में संशोधन करना चाहिए।
  • पॉक्सो अधिनियम में बच्चों की साइबर बुलिंग और बच्चों के खिलाफ अन्य ऑनलाइन यौन अपराधों जैसे अपराधों को भी शामिल किया जाना चाहिए ।
  • सुप्रीम कोर्ट ने 100 से अधिक पॉक्सो मामलों वाले जिलों में 60 दिनों के भीतर विशेष अदालतें स्थापित करने का निर्देश जारी किया गया। इसे अविलंब लागू किया जाना चाहिए।
  • स्कूलों में यौन शिक्षा की शुरूआत और बच्चों को गुड टच और बैड टच के बारे में शिक्षित करना महत्वपूर्ण हैI

निष्कर्ष

  • यह देखा गया है कि पीड़िता के नाबालिग साबित होने के बाद भी, अदालत द्वारा ट्रायल के दौरान पॉक्सो अधिनियम के महत्वपूर्ण निर्देशों की सुध नहीं ली जाती है।
  • ऐसी परिस्थितियों में, सजा दर में अपेक्षित वृद्धि हासिल होने की संभावना नहीं है।
  • इसलिए, यह समय है कि पॉक्सो अधिनियम को लागू करने के तरीके की समीक्षा की जाए कि इसने यौन शोषण के पीड़ितों की कितनी मदद की है और न्याय सुनिश्चित करने के लिए और क्या करने की आवश्यकता है।

स्रोत: द हिन्दू

सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र 2:
  • सरकार की नीतियां और विभिन्न क्षेत्रों में विकास के लिए हस्तक्षेप और उनके कार्यान्वयन से उत्पन्न मुद्दे।

मुख्य परीक्षा प्रश्न:

  • 'यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण ( पॉक्सो ) अधिनियम' की विशेषताओं की चर्चा कीजिए। साथ ही, पॉक्सो एक्ट से जुड़ी चुनौतियाँ क्या हैं? (250 शब्द)