भारतीय फार्मास्यूटिकल क्षेत्र में सुधार: समय की मांग - यूपीएससी, आईएएस, सिविल सेवा और राज्य पीसीएस परीक्षाओं के लिए समसामयिकी


भारतीय फार्मास्यूटिकल क्षेत्र में सुधार: समय की मांग - यूपीएससी, आईएएस, सिविल सेवा और राज्य पीसीएस  परीक्षाओं के लिए समसामयिकी


चर्चा का कारण

  • कोविड-19 महामारी से गरीब और हाशिये पर रहने वाले लोग सर्वाधिक प्रभावित व पीडि़त हो रहे हैं। इस संदर्भ में वर्तमान सरकार फार्मा सेक्टर में संस्थागत सुधार हेतु 'हेल्थ इम्पैक्ट फंड''के गठन पर विचार कर रही है जिसके द्वारा फार्मास्यूटिकल्स सेवाओं के उन्नत विकास,सुधार और विपणन में सहायता प्राप्त हो सकती है।

वर्तमान स्थिति

  • गौरतलब है कि वर्तमान में भारतीय फार्मास्युटिकल्स की वैश्विक बाजार में सालाना हिस्सेदारी 110 लाख करोड रूपए है, जो सकल वैश्विक उत्पाद का 1.7% है।
  • इसके अलावा वैश्विक बाजार का 55%, हिस्सा (लगभग 60 लाख करोड़ रूपए)केवल ब्रांडेड उत्पादों का है।
  • वित्त वर्ष 2018 में भारत का दवा निर्यात 17-27 बिलियन अमेरिकी डॉलर था जो वित्त वर्ष 2019 में बढ़कर 19-14 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुँच गया है।
  • जैव-फार्मास्युटिकल्स, जैव-सेवा, जैव-कृषि, जैव-उद्योग और जैव सूचना विज्ञान से युत्तफ़ भारत का जैव-प्रौद्योगिकी उद्योग प्रति वर्ष लगभग 30 प्रतिशत की औसत वृद्धि दर के साथ वर्ष 2025 तक 100 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुँचने की उम्मीद है।
  • भारतीय फार्मास्युटिकल सेक्टर उद्योग विभिन्न टीकों की वैश्विक मांग का 50 प्रतिशत, अमेरिका में सामान्य मांग का 40 प्रतिशत और यूके में सभी दवा का 25 प्रतिशत आपूर्ति करता है।

हेल्थ इम्पैक्ट फंड की आवश्यकता क्यों?

  • वर्तमान में फार्मास्युटिकल कंपनियों केवल उन्हीं दवाओं के अनुसंधान एवं शोध में खर्च करना चाहती हैं जिन्हें बेचकर उन्हें भारी मुनाफा हो सके। परिणामस्वरूप गरीब लोग इन मंहगी दवाओं को नहीं खरीद पाते। हेल्थ इम्पैक्ट फंड का निर्माण इसी समस्या का समाधान प्रस्तुत करता है।
  • हेल्थ इम्पैक्ट फंड को प्रत्येक वर्ष राज्य सरकार, अन्तर्राष्ट्रीय कराधान या फिर डोनेसन के माध्यम से एक निश्चित रकम प्रदान की जाएगी। फार्मास्युटिकल इनोवेटर्स हेल्थ इम्पैक्ट फंड के माध्यम से अपने उत्पाद को रजिस्टर करेंगे। हेल्थ इम्पैक्ट फंड के माध्यम से इन इनोवेटर्स को अपने उत्पाद के अनुसंधान और विकास के लिए सहायक राशी प्रदान की जाती है। बदले में इन इनोवेटर्स द्वारा अपने उत्पाद को लागत मूल्य पर ही बेचनी होगी। परिणामस्वरूप सभी को फायदा होगा। इनोवेटर्स को भी उचित इनाम मिलेगा।
  • हेल्थ इम्पैक्ट फंड द्वारा अनुसंधान एवं विकास परियोजनाओं में रुचि रखने वाली कुछ फार्मास्यूटिकल फर्में पुनः काम में आ सकेंगी, जो वर्तमान में लाभहीन है, इन फर्मों से ज्यादातर गरीब लोगों के लिए स्वास्थ्य लाभ होने की उम्मीद है।
  • इसके अलावा इस तरह की परियोजनाएं मुख्य रूप से संचारी रोगों का भी इलाज करने में मदद कर सकती है जो मुख्य रूप से गरीबों पर नकारात्मक प्रभाव डालती हैं।
  • इस प्रकार हेल्थ इम्पैक्ट फंड द्वारा इनोवेटर्स को दवाओं के व्यापार के बजाय स्वास्थ्य परिणामों के आधार पर पुरस्कृत करके भी एक महत्वपूर्ण परिवर्तन ला सकती है, साथ ही इससे COVID-19 के प्रकोप से निपटने के लिए फार्मास्युटिकल इनोवेटर्स, बेहतर दवाओं की आपूर्ति या नयी दवा खोजकर सकेंगे।

हेल्थ इम्पैक्ट फंडः मुख्य बिन्दु

  • हेल्थ इम्पैक्ट फंड को 20,000 करोड़ रूपए की प्रारंभिक राशि के साथ प्रारंभ किया जा सकता है। इस फंड के जरिये कई दवाओं पर शोध के कार्य को गति प्रदान की जा सकती है।
  • इस शोध व अनुसंधान के द्वारा निर्मित दवाओं के माध्यम से प्रतिवर्ष 17,000 करोड़ रूपए से 20,000 करोड़ रूपए की धनराशि जुटाई जा सकती है।
  • इस फंड के माध्यम से अनुसंधान एवं विकास परियोजनाओं में रुचि रखने वाली फार्मास्युटिकल कंपनियों को शोध कार्य हेतु मौद्रिक सहायता प्रदान की जा सकती है।
  • शोध व अनुसंधान के द्वारा निर्मित की गई दवाएँ अन्य देशों के द्वारा निर्मित ब्रांडेड दवाओं से सस्ती होंगी, जिसका विशेष लाभ लोगों को स्वास्थ्य सेवाओं के जरिये प्राप्त होगा।
  • हेल्थ इम्पैक्ट फंड के द्वारा फार्मास्युटिकल इनोवेटर्स COVID-19 के प्रकोप को रोकने व उपयुत्तफ़ दवाओं की आपूर्ति करने या विकसित करने के लिये पूरी तरह से तैयार होंगे।
  • हेल्थ इम्पैक्ट फंड दवाओं की बिक्री करने के बजाय बेहतर स्वास्थ्य परिणामों को प्राप्त करने के लिये प्रतिबद्ध होगा।

अनुसंधान और विकास के सामने उत्पन्न समस्याएं

  • R&D को निम्नलिखित समस्याओं का सामना कर पड़ रहा है:
  • लाभ की भावना से प्रेरित इनोवेटर्स, मुख्य रूप से उन गरीब लोगों में होने वाली बीमारियों की उपेक्षा करते देते है, जो महंगी दवाएं नहीं खरीद सकते। डब्ल्यूएचओ में सूचीबद्ध 20 उपेक्षित उष्णकटिबंधीय बीमारियों ने एक अरब से अधिक लोगों को पीडि़त किया है, लेकिन इस क्षेत्र पर दवा उद्योग के अनुसंधान और विकास के कुल खर्च का केवल 0.35% ही खर्च होता है। इसके अलावा R&D का केवल 0.12% क्षय रोग और मलेरिया के लिए समर्पित है, जबकि इन रोगों से प्रत्येक वर्ष 1.7 मिलियन लोगों की मृत्यु होती है।
  • विनिर्माण लागत आम तौर पर काफी कम होने के बावजूद बड़ी संख्या में संपन्न रोगियों के कारण नई दवाओं की कीमत काफी अधिक हो जाती है। नतीजतन, दुनिया भर के अधिकांश लोग उन दवाओं की बढ़ी हुई कीमत का वहन नहीं कर पाते हैं और हर साल, लाखों लोग उन दवाओं की कमी से पीडि़त हो जाते हैं जिसका सस्ते में बड़े पैमाने पर उत्पादन किया जा सकता है।
  • चिकित्सीय उत्पाद के व्यापार में उच्च लाभ वृद्धि के लिए कई फर्म, डुप्लिकेट दवाओं को विकसित करके अरबों कमाते हैं जिनसे पीडि़तों को अपेक्षाकृत लाभ नहीं होता है।
  • भारतीय फार्मा कंपनियों द्वारा अनुसंधान और विकास में निवेश वित्त वर्ष 2018 में 8.5 प्रतिशत हो गया है जो वित्त वर्ष 2012 में 5.3 प्रतिशत के सापेक्ष अधिक है, लेकिन यह अमेरिकी फार्मा कंपनियों की तुलना में अभी भी कम है क्योंकि अमेरिकी फार्मा कंपनियाँ अनुसंधान और विकास के क्षेत्र में 15-20% तक निवेश करती हैं।
  • अमेरिकी फार्मा कंपनियाँ अक्सर यह आरोप लगाती हैं कि भारतीय फार्मा कंपनियाँ दवा निर्माण में किसी भी प्रकार का शोध नहीं करती हैं और अमेरिकी फार्मा कंपनियों द्वारा निर्मित दवा का पेटेंट समाप्त होने के बाद उसकी 'सक्रिय दवा सामग्री'(Active Pharmaceutical Ingredient- API) का उपयोग कर जेनेरिक दवाओं का निर्माण कर रही हैं।

विभिन्न रणनीतियाँ

  • अपने उत्पाद के बिक्री के साथ स्वास्थ्य लाभ प्राप्त करने हेतु, इनोवेटेर्स को विभिन्न रणनीतियों की आवश्यकता होगी।
  • उन्हें समग्र रूप से यह सोचने की आवश्यकता है कि उनकी दवा उपचार के परिणामों के लिए प्रासंगिक अन्य कारकों को ध्यान में रखकर, किस तरह से काम कर सकती है।
  • उन्हें रोगियों की पहचान करने और उन तक पहुंचने के लिए बेहतर चिकित्सीय निदान के बारे में सोचने की आवश्यकता है।
  • उन्हें संभावित अवरुद्धों को पहचानने और उनको दूर करने के लिए वास्तविक समय में रणनीति बनानी होगी।
  • उन्हें यह सुनिश्चित करने की आवश्यकता है कि उच्च-महत्व वाले रोगियों के पास दवा की सस्ती पहुँच है और उन्हें सही समय पर दवा से सम्बंधित उचित रूप से निर्देश दिया जा रहा हो।

निष्कर्ष

  • इस अवधारणा को एक नई बीमारी पर लागू करना (जैसे कि COVID-19) जटिल है क्योंकि हमारे यहां अच्छी तरह से स्थापित बेस लाइन की कमी है जो कि यह बताता है कि दवा के बिना इस बिमारी से कितने लोग प्रभावित हुए।
  • परन्तु जब बीमारी के प्रसार और संक्रमित रोगियों पर इसके प्रभाव के बारे में अनुमानित आंकड़ें उपलब्ध हों तो इस अवधारणा को लागू किया जा सकता है।
  • यह निश्चित रूप से एक चुनौतीपूर्ण उपक्रम है, जो इस बात का सटीक परिणाम नहीं दे सकता है कि महामारी वास्तव में बिना वैक्सीन या दवा के क्या नुकसान पहुंचाएगी।
  • सभी चुनौतियों के बावजूद हेल्थ इम्पैक्ट फंड, इनोवेटर्स को अच्छा प्रोत्साहन प्रदान करता है। यह इनोवेटर्स को अच्छी दवा का निर्माण करने एवं बीमारी को दूर करने के लिए प्रोत्साहित करता है।

सामान्य अध्ययन पेपर-2

  • सरकारी नीतियों और विभिन्न क्षेत्रें में विकास के लिए हस्तक्षेप और उनके अभिकल्पन तथा कार्यान्वयन के कारण उत्पन्न मुद्दे।
  • स्वास्थ्य, शिक्षा, मानव संसाधनों से संबंधित सामाजिक क्षेत्र/ सेवाओं के विकास और प्रबंधन से संबंधित मुद्दे।

मुख्य परीक्षा प्रश्न :

  • कोविड-19 की गंभीरता को देखते हुए भारत में फर्मास्यूटिकल सेवाओं से संबंधित चुनौतियों एवं समाधान का विश्लेषण करें।


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