कम्यूनिटी पुलिसिंग: समय की मांग - यूपीएससी, आईएएस, सिविल सेवा और राज्य पीसीएस परीक्षाओं के लिए समसामयिकी


 कम्यूनिटी पुलिसिंग: समय की मांग - यूपीएससी, आईएएस, सिविल सेवा और राज्य पीसीएस  परीक्षाओं के लिए समसामयिकी


संदर्भ

  • अमेरिका के मिनियापोलिस में एक निहत्थे अश्वेत व्यत्तिफ़ जॉर्ज फ्रलॉयड की पुलिस हत्या ने वर्तमान दिनों के सबसे बड़े नागरिक विद्रोह में से एक को प्रेरित किया जिसमें घटना के केंद्र में नस्लीय भेदभाव और आम जनता के प्रति पुलिस का क्रूर रवैया रहा।
  • पिछले कुछ महीनों में, भारतीय पुलिस भी CAA विरोध प्रदर्शनों, दिल्ली में दंगों और कोविड-19 के दौरान पूरे भारत में प्रवासियों को संभालने के गलत रवैये के लिए खबरों में बनी हुई है।
  • ऐसे में जनता और पुलिस के बीच अविश्वास बढ़ता जा रहा है। हालांकि, COVID-19 महामारी के समय में, पुलिस न केवल कानून लागू करने वाली एजेंसी की भूमिका निभा रही है, बल्कि एक सेवा प्रदाता के रूप में भी कार्य कर रही है। इसलिए जरूरी है कि पुलिस और जनता के बीच के संबंधों को बेहतर बनाया जाना चाहिए।

परिचय

  • पुलिस और जनता के बीच बढ़ता अविश्वास सेंटर फॉर द स्टडी ऑफ डेवलपिंग सोसाइटीज (CSDS) द्वारा 2019 में किए गए एक अध्ययन के अनुसार, गरीब, निम्न तबके के लोग, अल्पसंख्यक और महिलाएं पुलिस से भयभीत रहतीं हैं और पुलिस से जुड़ाव महसूस नहीं करती हैं। अध्ययन में शामिल आधे से अधिक लोगों का मानना है कि पुलिस गरीबों की तुलना में अमीरों के साथ बेहतर व्यवहार करती है, जो यह दर्शाता है कि गरीब और निम्न तबके के लोगों के साथ भेदभावपूर्ण व्यवहार किया जाता है। इसके अलावा यह भी पाया गया कि पुलिस बल SC ST और OBC के प्रतिनिधित्व में भी कमी है।
  • पुलिस के भेदभावपूर्ण और दमनकारी व्यवहार की धारणा के कारण आम जनता में पुलिस का भय है। पुलिस द्वारा अक्सर शत्तिफ़ का दुरुपयोग पुलिस के प्रति जनता के विश्वास को और भी काम कर देता है।
  • अविश्वास दूर करने के लिए विभिन्न सिफारिशें स्वतंत्रता के बाद से ही विभिन्न समितियों और आयोगों ने भारत में त्वरित पुलिस सुधारों की सिफारिश की। कुछ महत्वपूर्ण सिफारिशें निम्नलिखित हैंः
  • द्वितीय प्रशासनिक सुधार आयोग रिपोर्ट (2006): रिपोर्ट में कहा गया है कि पुलिस-जनता संबंध संतोषजनक स्थिति में नहीं हैं। लोग पुलिस को भ्रष्ट, अक्षम, राजनीतिक रूप से पक्षपातपूर्ण और गैर-जिम्मेदाराना मानते हैं। राष्ट्रीय पुलिस आयोग की दूसरी रिपोर्ट (1980)ः रिपोर्ट के सिफारिश के अनुसार पुलिस को विधिवत मान्यता प्राप्त होनी चाहिए और संकट की स्थिति में लोगों को राहत प्रदान करने के लिए सेवा-उन्मुख भूमिका निभाने के लिए प्रशिक्षित और सुसज्जित होना चाहिए।
  • 'प्रकाश सिंह एवं अन्य बनाम यूनियन ऑफ इंडिया' (2006) वाद में सर्वाेच्च न्यायालय ने फैसला करते हुए कहा कि केंद्र और राज्यों को पुलिस कार्यप्रणाली के लिए दिशा-निर्देश निर्धारित करने, पुलिस के प्रदर्शन का मूल्यांकन करने, पोस्टिंग और स्थानांतरण का फैसला करने और पुलिस के कदाचार की शिकायतों की सुनवाई करने के लिए अथॉरिटी की स्थापना की जानी चाहिए। अदालत ने यह भी कहा कि प्रमुख पुलिस अधिकारियों को सेवा के न्यूनतम कार्यकाल की गारंटी दी जानी चाहिए ताकि उन्हें मनमाने स्थानान्तरण और पोस्टिंग से बचाया जा सके।
  • व्यावहारिक रूप से, पुलिस जनता के सहयोग और समर्थन के बिना प्रभावी ढंग से काम नहीं कर सकती है, जिसकी सेवा, बचाव और सुरक्षा करने का कार्य उन्हें सौंपा गया है। पुलिस को अक्सर अपने कर्तव्यों के प्रभावी निर्वहन के लिए नागरिक भागीदारी, सार्वजनिक भागीदारी और सामुदायिक संबंधों की आवश्यकता होती है। इस प्रकार, प्रभावी पुलिसिंग के लिए जनता और पुलिस के बीच संबंधों में सुधार महत्वपूर्ण है।

सामुदायिक पुलिसिंगः एक समाधान

  • जनता-पुलिस अविश्वास को कम करने की तरीकों में से एक सामुदायिक पुलिसिंग मॉडल है। यह बड़े पैमाने पर समुदाय के साथ सक्रिय परामर्श, सहयोग और साझेदारी से की जाने वाली पुलिसिंग है। सामुदायिक पुलिसिंग के लिए अपराध की रोकथाम और उसकी पहचान, सार्वजनिक व्यवस्था के रख-रखाव और स्थानीय संघर्षों के समाधान के लिए पुलिस को समुदाय के साथ काम करने की आवश्यकता होती है, जिसका उद्देश्य बेहतर जीवन स्तर और सुरक्षा की भावना प्रदान करना है।

भारत में सामुदायिक पुलिसिंग के कुछ प्रमुख उदाहरण निम्नलिखित हैंः

  • 2008 में पुलिस और स्थानीय समुदाय के बीच अधिक पहुंच और निकट संपर्क स्थापित करने के लिए केरल में जनमैत्री सुरक्षा की शुरुआत की गई थी। कोविड महामारी के समय में, इस परियोजना के माध्यम से, पुलिसकर्मी समुदाय के बड़े हिस्से तक निगरानी, संपर्क पता लगाने, वरिष्ठ नागरिकों तक पहुंचने और स्वास्थ्य और स्वच्छता जागरूकता पैदा करने में सक्षम हो पाए।
  • गुवाहाटी में मणिपुरी बस्ती की महिलाएं अपने क्षेत्र के युवाओं में नशीली दवाओं के दुरुपयोग और कानून व्यवस्था में सुधार के लिए आगे आई जिन्हें मीरा पायबी (मशाल-वाहक) के नाम से जाना जाता है। वे जलती हुई मशालों को लेकर बस्ती में प्रवेश करने और बाहर निकलने के रास्तों पर पहरा देती थी, ताकि युवाओं को सूर्यास्त के बाद से बाहर जाने से रोका जा सके।
  • दिल्ली में, विशेष पुलिस अधिकारी (एसपीओ) 1980 के दशक से पुलिस और समुदाय के बीच एक सेतु का काम कर रहे हैं।
  • देश में ऐसे ही अन्य सामुदायिक पुलिसिंग के मॉडल जैसे राजस्थान में 'संयुक्त पैट्रोलिंग समितियों' के माध्यम से, तमिलनाडु में, 'फ्रेंड्स ऑफ पुलिस' के माध्यम से, पश्चिम बंगाल में 'कम्युनिटी पुलिसिंग प्रोजेक्ट', आंध्र प्रदेश में 'मैत्री' और महाराष्ट्र में मोहल्ला समितियों' के माध्यम से सामुदायिक पुलिसिंग की जाती है।
  • अतः वर्तमान कोविड-19 महामारी के दौरान सामुदायिक पुलिसिंग अधिक महत्वपूर्ण हो जाती है, जहां समुदाय की सक्रिय भागीदारी से पुलिस को अपने कर्तव्यों के बेहतर निर्वहन में मदद मिल सकती है।

सामुदायिक पुलिसिंग की चुनौतियाँ

  • सामुदायिक पुलिसिंग को अति सतर्कता और त्वरित न्याय की ओर अग्रसर नहीं होना चाहिए। इसके लिए फ्सलवा जुडूमय् के उदाहरण को ध्यान में रखा जाना चाहिए। जिसमें छत्तीसगढ़ में नक्सलियों से लड़ने के लिए स्थानीय आदिवासी युवाओं को हथियार सौंप दिए गए थे। 'नलिनी सुंदर एवं अन्य बनाम छत्तीसगढ़ राज्य' वाद में सर्वाेच्च न्यायालय ने इस कार्यक्रम को रोकने का आदेश दिया और कहा कि इससे संविधान के अनुच्छेद 14 और 21 का उल्लंघन है।

आगे की राह

  • प्रभावी पुलिसिंग के लिए पुलिस-जनसंपर्क एक महत्वपूर्ण मुद्दा है। वर्तमान में जब COVID-19 महामारी से लड़ाई में पुलिस प्रथम पंत्तिफ़ में खड़ी है तो, तब उसे जनता के समर्थन और सहयोग की आवश्यकता महसूस होती है। पुलिस बलों को कानून-व्यवस्था और अपराध केंद्रित दृष्टिकोण से, सेवा-उन्मुख, जन-सहयोगी दृष्टिकोण की ओर स्थानांतरित करने की आवश्यकता है जिससे सामुदायिक पुलिसिंग सुविधा और पुलिस के प्रति जनता के विश्वास को बल प्रदान की जा सके।

सामान्य अध्ययन पेपर-2

  • शासन व्यवस्था, पारदर्शिता और जवाबदेही के महत्वपूर्ण पक्ष, ई-गवर्नेंस-अनुप्रयोग, मॉडल, सफलताएं, सीमाएं और संभावनाएं, नागरिक घोषणा-पत्र, पारदर्शिता एवं जवाबदेही और संस्थागत तथा अन्य उपाय।

मुख्य परीक्षा प्रश्न :

  • सामुदायिक पुलिसिंग से आप क्या समझते हैं? यह जनता में पुलिस के प्रति विश्वास बढ़ाने में किस प्रकार सहायक हो सकती है?